मीनाक्षी अपनी तीसरी मंजिल के फ्लैट की बालकनी में कुर्सी पर बैठी नीचे पार्क को देख रही थी। एक भी बच्चा या बड़ा नजर नहीं आ रहा था। उसे अकेलेपन और बेबसी के कारण चिड़चिड़ाहट हो रही थी। पति को गुज़रे दो साल हो गए थे और बेटा चार महीने पहले ही पत्नी और दोनों बच्चों के साथ कंपनी की तरफ से विदेश चला गया था। अकेले रहने में अब तक उसे कोई परेशानी नहीं हुई थी। सोसाइटी के लोग आते जाते रहते थे। वह स्वयं भी नीचे जाकर बैठ जाती थी, रौनक देख कर मन बहल जाता था। लेकिन अभी एक हफ्ते से बच्चों का शोर-शराबा, पुत्र अमित की हाय तौबा और बहू की झुंझलाहट, सब बहुत याद आ रहे थे। इतना सन्नाटा। खीझ के कारण फोन और वाई-फाई बंद कर दिया था तीन दिन से। तभी दरवाजे की घंटी की आवाज आई। कौन होगा? करोना की वजह से सब कैद हो गए थे अपने अपने घरों में।बस सुबह चौकीदार एक पैकेट दूध और कुछ सब्जी दरवाजे पर रख जाता था। उसकी शक्ल देखे भी तीन-चार दिन हो गए थे।
दरवाजे से बहुत दूर सामने वाले फ्लैट की प्रीति खड़ी थी। मुंह पर मास्क और ग्लव्स पहने किसी दूसरे ग्रह की लग रही थी। मीनाक्षी ने बेरुखी से पूछा, " क्या है?"
वह प्यार से बोली, " क्या हुआ आंटी जी, आपने फोन और कंप्यूटर बंद क्यों कर रखा है? अमित का फोन मेरे पास आया था। चिंता के कारण बहुत परेशान है।"
मीनाक्षी मुंह बनाते हुए बोली, " अच्छा फिक्र हो रही होगी, बुढ़िया मर तो नहीं गई? नहीं करनी मुझे किसी से बात। तू भी कितनी बुरी है, ना खुद आती ना बच्चों को भेजती है। पहले तो कैसे प्यार जताती थी। सब स्वार्थी है। मुझसे तुम लोगों को क्या खतरा है?"
प्रीति समझाने वाले लहजे में बोली, " आंटी जी हमें आप से खतरा नहीं है, आपको हमसे खतरा है। मेरे पति को तो ड्यूटी के कारण बाहर जाना पड़ता है। मैं उन्हें बिलकुल अलग कमरे में रखती हूं। लेकिन फिर भी सावधानी तो रखनी पड़ती है। अब गुस्सा थूक दो, अमित से बात कर लो। वह बहुत परेशान हो रहा है।" मीनाक्षी ने कमरे में आकर कंप्यूटर चालू किया तो अमित और तीनों के चिंतित चेहरे नजर आए। अमित गुस्से में बोला, " सब कुछ ऑफ करके क्यों बैठी हो? आपको पता है कितनी चिंता हो रही थी हम सबको?"
मीनाक्षी टेढ़ा मुंह बना कर बोली, "और तुझे पता है अकेले रहना कितना मुश्किल है? नहीं करनी मुझे किसी से बात।"
अमित की आवाज से अभी भी नाराजगी नहीं गई थी," पेपर तैयार हो गए हैं।यह करोना का झंझट खत्म होगा तो आपको यहां बुला लूंगा। आपका यही अड़ियलपना अच्छा नहीं लगता है। कुछ समझना नहीं चाहती हो।"
मीनाक्षी अकड़ कर बोली, " हां नहीं समझती, तू मेरा बाप मत बन।" तभी दस साल की पिंकी की आवाज आई, " दादी डैड आपके पापा बन जाते हैं और हम दोनों आपके भाई बहन। चलो ऑनलाइन लूडो खेलते हैं, बहुत मजा आएगा।" पोती को देख मीनाक्षी की आवाज ढ़ीली हो गई, " कैसी है? बहुत मिस कर रही हूं। आज मेरा बर्थडे है और कोई नहीं है मेरे पास।"
सनी बोला, " हम हैं ना दादी। आपके लिए केक बना कर बैठे हैं सुबह से और आप मुंह फुला कर बैठी हो। आप फूंक मारो हम केक काटते हैं।" कुछ देर बात करने के बाद अमित बोला, " मां धैर्य रखो, खुद ही तो कहती हो उम्मीद पर दुनिया टिकी है। अच्छा मेरे कैक्टस का पौधा कहां है? दिखाना कैसा है? बिल्कुल रेयर पौधा है।" मीनाक्षी बिगड़ती हुई बोली, " मैं छत पर रख आई थी। तूने कहा था उसको देखभाल की कोई जरूरत नहीं है।"अमित माथे पर हाथ मारते हुए बोला, " अरे मेरा मतलब था परेशान नहीं होना पड़ेगा उसके कारण। यह थोड़ी ना कहां था कहीं भी फेंक आना।" फिर दुखी स्वर में बोला, " पता नहीं सही सलामत है की नहीं।"
कंप्यूटर पर बात खत्म कर मीनाक्षी छत पर गई तो देखकर दंग रह गई। कैक्टस पर फूल खिला हुआ था। सोचने लगी। सृष्टि में सब अपनी प्रकृति के अनुसार व्यवहार करते रहते हैं चाहे जैसी भी स्थिति में हो। फिर वह क्यों धैर्य नहीं रख पा रही थी।
कैक्टस के पौधे को लाकर उसने अपनी खिड़की पर रख दिया। उसके लिए उम्मीद की किरण बन गया था वह नन्हा सा पौधा।