अकेली Seema Jain द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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अकेली

नीलम कमरे में सिर झुकाए बैठी थी, और सब उपस्थित जन झुंझलाहट और गुस्से से उसकी तरफ देख रहे थे। सब की एक ही शिकायत थी बीस दिन से पति अमर अस्पताल में भर्ती था और वह एक बार भी देखने नहीं आई। उस दिन अमर को अस्पताल से छुट्टी मिल रही थी और प्रश्न यह था वह कहां जाएगा ।अपनी पत्नी नीलम के पास जिसको वह तलाक दे चुका था या अपनी प्रेमिका अंजू के पास जिसके साथ वह बारह साल से रह रहा था।

ससुर उसकी तरफ देखते हुए बोले,” अच्छा खासा मौका है बहू ,अमर तुम्हारे पास हमेशा के लिए आ जाएगा इस बहाने। तुम्हारे प्रेम और सेवा से प्रभावित होकर हमेशा के लिए तुम्हारा हो जाएगा।”

सांस ने घूरते हुए देखा और बोली,” किस बात की अकड़ दिखा रही हो ,बीस दिन से पति अस्पताल में पड़ा है और तुम में इतनी भी दया नहीं है कि उसको एक बार देखने आ जाती। आदमी है गलती किससे नहीं हो जाती, इसका मतलब नहीं कि उन बातों को पकड़ कर बैठ जाओ ।पति की गलती को नजरअंदाज करना पत्नी का कर्तव्य है। ”

स्वर में चाशनी घोलते हुए नन्द बोली,” यह जन्मों का रिश्ता होता है भाभी, एक जरा सी गलती के लिए इस तरह संबंध नहीं तोड़े जाते हैं। फिर भाई को आप की जरूरत है ,आप बड़प्पन दिखाइए और उन्हें अपने घर ले जाइए।”

देवर विनती भरी आवाज में बोला,” भाभी आप अभी भी समाज की नजरों में भाई की पत्नी हैं, सात फेरे लिए हैं। भले ही कोर्ट में तलाक हो गया हो। बच्चों की जिम्मेदारी भी खत्म हो गई है अब ,आपके पास करने को क्या है? भाई को अपने पास रखकर उनकी सेवा कीजिए और नहीं तो उनकी अब कौन करेगा?”

बेटी लाड दिखाते हुए बोली ,”मा प्लीज आप पापा से फिर से शादी कर लो। मैं ससुराल में तलाकशुदा औरत की बेटी हूं ,इस ताने को सुनते सुनते पक गई हूं।”

बेटा झुंझलाहट भरे स्वर में बोला ,” मां मुझे अगले महीने कुछ सालों के लिए विदेश जाने का मौका मिल रहा है। आप पापा के साथ रहने लोगों तो मुझे निश्चिंता हो जाएगी। नहीं तो हमेशा यह चिंता रहेगी आप अकेले कैसे रहोगी।”

नीलम मानसिक दबाव महसूस कर रही थी‌। परिवार का प्रत्येक सदस्य एक ही बात मनवाना चाह रहा था, किसी तरह वह अमर की देखभाल की जिम्मेदारी अपने ऊपर ले ले। अंजू ने साफ मना कर दिया था अब अमर के साथ वह कोई संबंध नहीं रखना चाहती थी। कानूनन कोई उसे बाध्य नहीं कर सकता था, दोनों ने शादी ही नहीं की थी ।बहुत हिम्मत करके ससुर की तरफ देखते हुए नीलम बोली ,”पापा जी आप चाहते हैं अमर की मजबूरी का लाभ उठाकर मैं उसे अपने कब्जे में कर लूं ।शादी के चार साल बाद सड़क हादसे में इनके दोनों पैरों में फ्रैक्चर हुआ था। रात दिन मैंने प्रेम पूर्वक सेवा की थी तब वे प्रभावित नहीं हुई तो क्या गारंटी है इस बार ठीक होने के बाद मुझे छोड़कर नहीं जाएंगे।”

फिर सांस की ओर मुखातिब होकर बोली,” मम्मी जी आपने ही तलाक के बाद कहा था अमर और उसके परिवार अब मेरे लिए अजनबी हैं। फिर एक अजनबी को किस हक से देखने जाती। जहां तक गलती माफ करने की बात है अगर मैं किसी और के साथ रहने लगती अमर को छोड़कर। आप सब क्या मुझे माफ कर देते? सारे कर्तव्य पत्नी के ही होते हैं ,पति की कोई जिम्मेदारी नहीं है।”

इतने सारे लोगों का सामना उसने अकेले कभी नहीं किया था। लेकिन अब अपनी बात नहीं बोली तो कभी नहीं बोल पाएगी ।ननद की तरफ देखते हुए बोली ,”वाह दीदी जो इंसान एक जन्म सही से रिश्ता नहीं निभा सका उससे मैं कईं जन्मों के रिश्ते निभाने की उम्मीद करू। मुझे दो बच्चों की परवरिश करने के लिए छोड़ कर स्वयं रंगरेलियां मनाने चला गया ।तब मुझे जरूरत थी तो बेसहारा कर दिया। आपकी नजर में मैं गंवार थी, बेवकूफ थी ,तब आपने अमर से क्यों नहीं कहा बड़प्पन दिखाए और मुझे छोड़कर नहीं जाए।”

देवर से बोली,” बहुत अच्छे भैया, आज अमर की जिम्मेदारी से बचने के लिए चाहते हैं मैं उसे अपना लूं। जब गलत काम में उनका साथ दिया था तो अब उनकी बीमारी में उनका साथ क्यों नहीं देते हो ।आपके पास इतना पैसा है आराम से सेवकों की फौज लगा सकते हैं।अमर को जायदाद से बेदखल करने के झूठे कागजात बनवा दिए जिससे मुझे बच्चों का भरण पोषण ना देना पड़े। मैं ही जानती हूं दो साल मायके में अपनी भाभियों की उलहाना सहते हुए कैसे अपने पैरों पर खड़ी हुई हूं।”

पुत्री की ओर देखते हुए नीलम बोली,” जब तेरी शादी हुई, तेरे ससुराल वाले जानते थे, तू तलाकशुदा औरतों की बेटी है। फिर शादी क्यों की थी अगर इस बात से ऐतराज था। तूने मेरा संघर्ष और अकेलापन सब देखा है। बस तुझे ताने न सहने पड़े इसलिए चाहती है मैं अमर को अपना लूं, जिससे मैं इतनी नफरत करती हूं।”

बेटे से दुखी स्वर में बोली,” तुझे लग रहा है यहां खाली और अकेली रहूंगी तो जब तब विदेश तेरे सिर पर आकर बैठ जाऊंगी। अगर जरा सी बीमार पड़ी नहीं कि तुझसे उम्मीद लगाकर बैठी रहूंगी। चिंता मत कर इतने सालों में इतनी आत्मनिर्भर हो गई हूं कि आप किसी पर आश्रित नहीं हूं।”

नीलम सबके बीच में से उठकर चली गई। उसे नहीं पता रिश्तेदार ,समाज और धर्म की दृष्टि से वह गलत है या सही। वह तो बस यह जानती हैं वह कल भी अकेली थी और आज भी अकेली है।