इच्छा - 2 Ruchi Dixit द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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इच्छा - 2

कई दिनो तक चलता रहा इच्छा का सुबह स्नान के बाद सबसे पहला कार्य ईश्वर का ध्यान था यह संस्कार उसे बचपन मे ही विरासत मे मिला था दिन के चौबीस घण्टो मे कई बार परमात्मा से बाते करती कई बार तो वह उनसे ऐसे लड़ती मानो वो सामने बैठे सुन रहे हो शादी के बाद उसका और था ही कौन माँ बाप से अपनी पीड़ा कह भी नही सकती थी कारण वो पहले ही तीन बेटियो के विवाह की चिन्ता से ग्रसित है उन्हे बताना मानो एक बोझ और, जो क्या उन्हे जीने देता माँ बाप की पीड़ा के सम्मुख उसे अपनी पीड़ा तिनके के समान प्रतीत हो रही थी . इच्छा ने कु़छ पैसे बचाकर रख्खे थे जिसे वह इन्टरव्युव के दौरान ऑटो,बस किराये मे खर्च कर दिये . एक समय ऐसा आया की दो पैरो के अतिरिक्त एक पूँजी उसके पास न बची वह दुःखी हो सोचने लगी तभी विचार आया किसी से पैसे उधार लिए जाये यह एक ऐसा विचार था जो उसके स्वभाव के बिल्कुल विपरीत था पर बचपन से ही बुजुर्गो के मुंह से एक बात सुनती आई थी "समय बड़ा बलवान होता है" सो पड़ोस मे ही एक ऑन्टी थी इच्छा जब भी उनसे मिलती वह उसे छाती से लगा लेती थी और इच्छा भी उनके पैरो को छूकर सम्मान देती थी ऐसा नही कि मोहल्ले मे सिर्फ वही एक आन्टी इच्छा मोहल्ले के जो भी बुजुर्ग उसके सामने पड़ते उनके पैर छूकर सम्मान देती . एक दिन इच्छा उन्ही आन्टी के घर गई एक हजार रूपये उधार लिये परन्तु इच्छा ने कभी भी उनसे अपनी परेशानी साझा नही की चेहरे पर मुस्कान की चादर ढक अपनी पीड़ा और वास्तविक परिस्थिति को इस बार भी छिपा ले गयी . एक दिन माँसी सास की बहु घर मिलने आई वह जिस प्राइवेट कम्पनी मे जाब करती थी कम वेतन की वजह से उसे छोड़ दूसरी कम्पनी ज्वाइन कर ली इच्छा की परिस्थिति देखकर उसने उस कम्पनी का पता बताया. दूसरे दिन इच्छा इन्टरव्युव के लिए तैयार हुई क्योकि समय से पहुंचना था रास्तो का ग्यान न होने के कारण उसे पति से मिन्नते करनी पड़ी इसका एक और भी कारण था नौकरी के लिए पति की सहज स्वीकृति .आर्थिक स्थिति को भॉपते हुए अनमने मन से तैयार तो हो गये और शीघ्र ही इच्छा को कम्पनी के गेट पर छोड़ दिया . इच्छा ने कम्पनी मे प्रवेश किया . अन्तरमन को भय ने व्याकुल कर रख्खा था किन्तु यह बाहर न झलक पड़े इच्छा ने इसका पूरा ध्यान रख्खा , रिशेप्शन पर मेरे अलावा और भी कई लड़कियाँ बैठी थीं .सबका रिज़ि्यूम लेकर बारी- बारी से बुलाया गया . आखिरी मे इच्छा की बारी आई जिसे सिर्फ यह बताने के लिए बुलाया गया था कि सिलेक्शन हो गया अब जगह खाली नही मन पर मानो कई सारे पत्थर एक साथ रख दिये गये हो . बाहर कैसा प्रतीत हो रहा था उसे इसका अभास न था किन्तु मन पर कई सारी बिजलियां एक साथ गिर गई हो वहाँ अभी ही को आशा रूपी अन्कुर फूटे थे...क्रमशः