इच्छा - 3 Ruchi Dixit द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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इच्छा - 3

इन बिजलियों ने तो सब उजाड़ ही कर दिया . घर से कम्पनी तक की दूरी ने मानो इच्छा का सारा सामार्थ्य खींच लिया हो आज तक उसने जितने भी इन्टरव्युव दिये उनसे मिली निराशा ने कभी इच्छा को अन्दर से इतना कमजोर नही किया जितना आज ,जैसे एक बंजरता की ओर उन्मुख भूमि को घने काले बादलो ने ढक लिया हो और हवायें उन्हे सरकाती हुई उड़ा ले गयी . पहली बार इच्छा अपनी असफलता को किस्मत के कंधो पर डाल खुद को सहज अनुभव कराना चाहती थी पर प्रयास असफल रहा वह खुद को ही कोसने लगी "मै योग्य ही नही तो नौकरी कहाँ से मिलेगी" "मै कोई कार्य नही कर सकती" पर इच्छा को आभास नही यह भावना उसे अन्दर से खत्म कर रही थी वह दिन ब दिन कमजोर होती जा रही थी. आभावो ने भी कभी इतना नुकसान नही किया था .बाहर के आभाव से आन्तिरिक ऊर्जा निपट सकती है पर जब यह अन्दर ,बाहर दोनो तरफ हो तो इससे कैसे निपटा जाये .अब इच्छा के पास एक ही चीज बाकी थी वो थी उसकी वेदना जिसका उसने हथियार बना परमात्मा पर वार करना शुरू कर दिया . एक दिन मौसी साॉस की बहु दीक्षा का फोन आया बताया "एक जगह वेकेन्सी है अभी कोई भी इन्टरव्युव के लिए नही पहुँचा वहाँ तुम्हारा काम हो सकता है" यह कह फोन काट दिया इच्छा ने वापस कई बार फोन लगाया मगर फोन नही उठा शायद वह सबकुछ कन्फर्म करना चाहती थी ताकि यह जॉब भी उसके हाथ से न छूट जाये इच्छा को यकीन तो नही था कि यह जॉब उसे मिल ही जायेगी लेकिन इस अवसर ने मानो कुम्भलाये हुए पौधे पर पानी डाल दिया हो बिना समय गवांये इच्छा उसी दिन इन्टरव्युव के लिए निकल पड़ी पता पूँछते वह कंपनी मे प्रवेश करती है जहाँ सिक्योरिटि गार्ड रेफरेन्स पूछ कर उसकी जॉच पड़ताल मे लग जाता है इच्छा को गार्डरूम मे ही बैठने को कहता है एक घण्टा बैठने के बाद अन्दर प्रवेश की आग्या पाते ही सिक्योरिटि गॉर्ड इच्छा को अन्दर रिशेप्शन पर बैठने को कहते हैं पाँच मिनट बैठने के बाद प्यून एक कप चाय हाथ मे लिए "मैमजी चाय पी लीजीये " सुबह घर से बिना कुछ खाये पीये खाली पेट निकली इच्छा ने बिना कुछ कहे कप थाम लिया . प्यून भी सामने रिशेप्शन के सिंगल सोफे पर बैठ एकटक इच्छा को देखने लगा इच्छा की नजर भी उस पर गयी वह एक अवसत कद दुबला पतला पहनावे और हरकत से बिल्कुल जोकर लग रहा था सामान्य अवस्था मे यदि इच्छा उसे देखती तो वह अपनी हँसी रोक न पाती देर तक हँसती लेकिन हँसने के लिए भी उर्जा और मन की शान्ति की आवश्यकता होती है फिर सामने वाले को बुरा भी न लगे ,"मैमजी नाम क्या है आपका " प्यून ने पूंछा ,"इच्छा" "आप किस जॉब के इन्टरव्युव के लिए आयीं हैं." "मुझे नही पता, यहाँ वेकेन्सी है इतना बताया गया है मुझे "इच्छा ने कहा. "आपको किसने भेजा है मैमजी " मेरी फ्रैन्ड ने " क्या नाम है उनका. तभी फोन की रिंग बजती है प्यून उठाता है "मैमजी आपको ऊपर एस सी शर्माजी ने बुलाया है . चलिये आपको छोड़ देता हूँ पहली मंजिल का पहला केबिन एस सी शर्मा जी का ही था "मे आई कमिन सर "यस वेलकम" "टेक योर सीट " " थैंक यू सर" आपका नाम रिज़्यूम आगे बढाते हुए "इच्छा" आपने इन्टर कर रख्खा है आगे क्यों नही पढ़ी नही "मैने बी.ए.फर्स्ट इयर कर रख्खा है ग्रेजुयेशन कर रही हूँ सर" आपके इन्टर और ग्रेजुयेशन के बीच समय का बहुत अन्तराल है . जी सर इन्टर के बाद ही शादी हो गयी दुबारा लगा ग्रेजुयेशन कर लेना चाहिए सो इसलिए सर . यदि आपको मै बोलू तो लिख लेंगी आप सर कोशिस करूंगी चलिये आप अपना बायोडाटा बनाईये भाषा इंग्लिश रखियेगा ." ओके सर"इच्छा ने कहा ."आपकी राइटिंग बहुत सुन्दर है." थैंक यू सर . कई सारे सवाल पूँछने के बाद एस सी शर्मा जी यह कह कर घर जाने के लिए कहते है कि आपको फोन पर बताया जायेगा इच्छा आस्वस्त हो गयी की मेरा इन्टरव्युव सफल रहा . आफिस से बाहर जैसे ही निकलने वाली थी प्यून ने पीछे से आवाज दी मैमजी क्या हुआ मैने सारी बात बता दी वह प्यून देखने मे बेशक कार्टून था लेकिन दिमागी घोड़े दौड़ने मे काफी माहिर था इसका एक कारण वहाँ सबके स्वभाव से परिचित होना भी था "मैमजी आप अभी घर मत जाईये साढ़े ग्यारह बजे यहाँ के मालिक आयेंगे मै आपको उनसे मिलवाउंगा " इच्छा को उसकी बात सही लगी वह रिशे्प्शन पर बैठ गई अब प्यून से इच्छा को कंम्पनी के बारे मे काफी कुछ पता चला प्यून इच्छा के लिए शिव प्रशाद भैय्या हो गया .