यकीन नहीं होता कभी हम मिले थे
ये अधूरा इश्क़ कब पूरा सा हुआ,
कब अधूरी सी ज़िन्दगी पूरी सी हुई..
इतनी हसीन क्यूं लग रही थी..
कब तुम्हारी हंसी मेरी ज़िंदगी बन गयी,
भटकी सी ज़िन्दगी को एक बन्दगी मिल गयी..
मेरी हर सांस में घुलता तेरा इश्क़,
जैसे जन्मोजनम का साथी था..
मेरा मुझमें कुछ भी ना रहा..
बस तू ही तू मुझमें बाक़ी था...
इतनी नज़दीकियां तो बढ़ा ली थी दिल ने,
अब दूरियां भी दिल को ही सहन करनी थी..
दिल की ख्वाहिशें अब दिल में ही दफन करनी थी..
इतना क्यूं बेचैन कर रही थी..
दिल में इतना क्यूं घर कर रही थी..
खुद हम खुद से बेघर हो रहे थे,
वीरां सारे खिलते मंज़र हो रहे थे..
बैचैनी इतनी बढ़ी हुई थी,
कोई जान ले जाये तो उफ़्फ़ तक ना हो,
बस ये दर्द किसी तरह से तो कम हो..
पर ये जान तो बेज़ान हो चुकी थी,
इसमें अब जान कहां बाक़ी थी..
पर दिल को कहां सुकून होता है जख्मों से,
दिल का मरहम तो बस उसका दीदार होता है ,
एक नज़र भर के देंखें उसको और कयामत आ जाए..
इससे खूबसूरत अंत और क्या है ज़िन्दगी का..
हां वादे भी नहीं थे बातें नहीं थी..
ऐसा भी नहीं है कि मोहब्बत नहीं थी..
हजारों शिकायतों में बंद प्यार भी था,
दरम्यां तो सब था हमारे पर
हमनवाई नहीं थी.
ऐसा भी नहीं है कि मोहब्बत नहीं थी..
जरूरत तक ही नहीं कुछ जरूरी सिलसिले थे,
यकीन नहीं होता कभी हम मिले थे
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एक कमी सी लगती है तुम्हारे बिना हर वक़्त,
मानो खो चुकी हूं मैं खुद का हिस्सा कहीं..
चंचल सा मन जो बावरा सा लगता है,
क्या है जो दिल पाना चाहता है हर वक़्त..
व्यस्त तो रखा मैंने खुद को कितना भी,
पर हर वक़्त आती बहार तुम थे..
मुश्किलों से निकली पहली किरन में,
वो सुबह का पहला ख़्याल तुम थे..
वो दिन भर मेरा तेरी यादों से लड़कर,
अलसायी नींदों की आख़िरी याद तुम थे..
हर वक़्त तुम्हें ही खोजती निगाहें,
बस एक बार मिलने की फ़रियाद तुम थे...
बेज़ान सी नीरस ढलती ज़िन्दगी में,
मेरी इस वीरानियों का सवाल तुम थे..
अब हर वक़्त अधूरे से ही है,
इस पूरी सी ज़िन्दगी में इन अधूरे से हिस्सों के,
मेरे हर सवालों का जवाब तुम थे...
क्या याद भी आती हूं किसी रोज़..
चलो ठीक है हर रोज़ भी याद नहीं किया जा सकता,
पर कभी सुबह का पहला ख़्याल रही हूं किसी रोज़..
हां माना कि नहीं आयी होगी याद
मीठे सपनों की महफ़िल में..
पर कभी थककर सोने लगे होंगे नींद के आगोश में,
वो दिल का आख़िरी ख्याल रहीं हूं किसी रोज़..
अच्छा ठीक है नहीं आता मेरा ख्याल कभी भी,
पर इतना तो बता दो तुम्हारी नफ़रतों का हिस्सा तो रहीं हूँगी कभी..
या मेरे वजूद का एक हिस्सा भी तुम्हें अब
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✍️✍️सरिता शर्मा..😊