जमुना ताई Tara Gupta द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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जमुना ताई

!! जमुना ताई !!

जमुना ताई-जमुना ताई कहते हुए बच्चे उसके साथ हो लिए। किसी के सर पर हाथ रख देती, किसी के गालों को सहलाती। किसी को उठा चूम लेती। धीरे धीरे जमुना अपने आफिस में आ गई।बच्चे वापस फील्ड में लौट गए।
खिड़की से बच्चों को खेलते , झूलते, पढ़ते हुए देख उसका मन खुशी से झूम उठा था।ये खुशी उसको यूं ही नहीं मिली थी। न ही वह जमुना ताई थी। इसके पीछे उसे न जाने कितने दुःख - दर्द सहने पड़े थे। उसकी आंखें नम हो चली थी। आंसू की धार गालों पर बहने लगी।
' रेड लाइट एरिया' एक ऐसा जाना-माना नाम। कुछ के लिए वह एरिया जन्नत से कम नहीं था।तो कुछ के लिए वो जगह नरक से कम नहीं थी।
रेड लाइट एरिया को जमुना एक नये नाम से पुकारती थी
'दुर्भाग्य की गली' ---
जहां एक आठ साल की बच्ची का शारीरिक विकास के साथ शारीरिक शोषण भी हुआ, परंतु एक अच्छे विचार के साथ अच्छा जीवन भी मिला।
जमुना को ठीक से यह भी नहीं पता था कि उसका जन्म किस जगह,किस तारीख किस दिन हुआ था। उसको ये बताता कौन क्योंकि उसकी मां तो उसके बड़े होने से पहले ही चल बसी थी, और बाबा पेट भरने के लिए शहर में मजदूरी करते थे। पड़ोसी के पास उसको छोड़ जाते। दो तीन दिन बाद आते।
एक दिन...
बाबा-----जमुना ! देखो कौन आया है।
जमुना बाबा की आवाज पर दौड़ती हुई आई।
देख! बेटी तेरी मां आई है । तू रोज पूछती थी, बाबा मेरी मां कहां है ? आज मैं तुम्हारी मां को ले आया।
जमुना मां ---कहकर उससे लिपट गई। मेरी अच्छी मां
उसनेे भी जमुना को गले से लगा लिया।
जमुना बहुत खुश थी,वो छोटी बच्ची अपने दोस्तों एवं आस पास के लोगों से कहती फिर रही थी---
-काका , मेरी मां आई है।
दीदी .. मेरी मां आई है।
मां के आने से जमुना बेहद खुश थी। परंतु ये खुशी कुछ महीनों ही टिकी। बाबा के शहर जाते ही धीरे धीरे एक एक काम उसके सर पर आते चले गए।
जमुना ----बर्तन धुल गए।
हां मां... ‌. झाड़ू लगा दो .. ... अच्छा मां
देरी होने पर , भूल जाने पर अब मार भी पड़ने लगी
नन्ही बच्ची अपने दोस्तों से पूछती... श्यामा, कृष्णा
मोहन, राजा तुम सबकी मां तो तुमसे कितना प्यार करती है।मेरी मां काम कराती है और मारती भी है
क्यों ?
' ---'तेरी मां सौतेली है सौतेली । जलती है तुमसे।'
सोचते हुए
....सही कह रहे हो। अच्छा मैं जा रही हूं ।नहीं तो मां मारेगी। भागती घर आती है। मां को बाहर खड़ी देख डर से कांप जाती है तभी सपाक से छड़ी उसके पीठ पर पड़ी।
-------हरामजादी, कलमुंही ये बर्तन पड़े हैं ,कब साफ करेगी।आ रही हैं रानी जी घूम फिर कर।
जमुना को भी गुस्सा आ गया उसने मां के हाथ से छड़ी छीनकर भाग खड़ी हुई। भागते-भागते स्टेशन पर पहुंच गई सामने खड़ी ट्रेन में चढ़ सीट के कोने में बैठ घुटनों में मुंह छुपा रोते रोते सो गई।जब आंख खुली तो अनजाने स्टेशन पर थी ।रेल से उतर जिधर सब जा रहे थे , उनके साथ बाहर आई। वहीं फुटपाथ पर कुछ बच्चे बैठे भीख मांग रहे थे । उन्हीं के पास बैठ गई। बच्चों ने अपना-अपना दुःख साझा किया।उनके साथ शामिल हो गयी।
एक दिन एक आदमी उससे बातें करने लगा बातें करते हुए ,उसको उठा कर कार में डाल लिया और जाकर अन्ना बेगम के कोठे पर बेच दिया।डरी सहमी सुंदर सी बच्ची अन्ना को भा गई ।
बहुत ही प्यार ने अन्ना ने पूछा -----तुम्हारा नाम क्या है?
------- जमुना -बिसूरते हुए बोली।
जमुना का भोलापन, बात करने कीअदा पर अन्ना हस पड़ी। साथ ही जमुना भी रोते रोते हंस पड़ी।
आओ पास आओ _--- कह अन्ना ने हाथों को आगे बढ़ाया। जमुना जाकर लिपट गई।
अन्ना के हृदय में ममता की लहर दौड़ गई।
साबिया जा इसको नहला कर कपड़े बदल दे।
कुछ ही दिनों जमुना सबकी चहेती बन गई। अन्ना बेगम को वो अन्नाताई कहती।तो बेगम साहिबा उसपर रीझ जाती।पास बिठा उससे बातें करती।
------ ताई मैं नाचना नहीं चाहती, मुझे पढ़ना है।ताई घुंघरू मुझे अच्छे नहीं लगते, चुभते हैं।
---ठीक है पर तुम्हे नाचना-गाना तो सीखना ही होगा।
-----आप मुझे पढ़ाओगे ।
हां में सर हिला दिया अन्ना ने। जमुना खुशी में अन्ना के चिपट गई। जमुना की खुशी के लिए अन्ना ताई ने उसकी बात मान ली थी। कहते हैं कि समय पंख लगा कर उड़ता है। अब नन्ही बच्ची सोलहवें साल में कदम रखने वाली थी।उसको देख कर कितने मनचलों ने अन्ना से गुज़ारिश की थी , अपने तराशे बेशकीमती हीरे को किसी ऐसे ग्राहक की तलाश थी जो उसकी मुंह मांगी कीमत देने की ताकत रखता हो। क्योंकि वो अनछुई कली के साथ साथ सुंदर भी थी। उसकी खूबसूरती की चर्चा पूरी गली में थी।जमुना अन्नाताई की मंशा समझ उनसे यह काम न करने के लिए गिड़गिड़ाती पर अन्ना का जबाब सुन कांप जाती।दो बार भागने की कोशिश में पकड़ी गई। पकडे जाने पर मार ,गालियां मिलती साथ ही करिंदो से नुच वाने की धमकी दी जाती। जिस मार पीट के डर से उसने अपना घर छोड़ा था । अब उसे फिर से वही सहना पड़ रहा था। जितना उसे इस काम के लिए कहा जाता, उतनी ही उसकी वहां से निकल कर कोई इज्जत दार काम करने की इच्छा बलवती होती जाती। जल्द ही वो दिन भी आ गया।
जमुना इसके लिए तैयार नहीं थी। कोठे पर आई सभी लड़कियों से यही काम लिया जाता है।रोती गिड़गिड़ाती
जमुना पर किसी को भी दया न आई। अन्ना को मन ही मन मां मानने वाली ताई का रौद्र रूप देख वो सिहर उठी थी।बेगम का एक पुराना ग्राहक जो अन्ना का कभी
बहुत चहेता था। जमुना को देख उस पर रीझ गया।
......अन्ना कीमत बोलो ।
...... बेशकीमती है हुजुर।
......हा हा हा हंसते हुए कभी तुम भी तो बेशकीमती थीं।तब हम नये थे। उम्र होने के बाद भी आप किसी हूर से कम न थीं।
..... आपकी जर्रा नवाजी थी हुजुर।
......कीमत बोलो अन्ना बाई।
अन्नाबाई के इशारा करते ही एक थैली उसकी गोद में आ गिरी। कुछ पलों में रोशन साहब साहब कमरे के अंदर थे। कोने में दुबकी जमुना खड़ी थी। रोशन ने बड़े प्यार से अपने पास बुला की कोशिश की पर वह कोने में खड़ी रही। जैसे ही थोड़ा आगे बढ़े जमुना दौड़ कर उनके पैरों में लिपट कर रोने लगी। और उनसे इस नरक से निकालने के लिए विनती करने लगी। रौशन का पहले तो मूड़ खराब हो गया वह कमरे से बाहर निकलने के लिए बढ़े तो उसने बढ़ कर दरवाजे पर जा खड़ी हुई।
.हाथ जोड़कर..... साहब ! आप भगवान के लिए बाहर मत जाओ ,जो करना हो कर लो। वरना मुझे मार मार कर मेरी खाल ही उधेड़ देंगे।अन्नाबाई मुझे अपने करिदों के सामने मुझे फेंक देगी।

रौशन को उस बच्ची को इस तरह रोते देख थोड़ा सा पसीज गया ।उसका हाथ पकड़ कर बिस्तर पर बैठा दिया,प्यार से उससे बातें करने लगा। जमुना ने अपने बचपन से लेकर अब तक की सारी आप बीती रोते-रोते सुना दी। रौशन ने उसकी कहानी बहुत ध्यान से सुनी।
......अब क्या चाहती हो ?
....यह काम मै नहीं करना चाहती बाबूजी। कोई काम मिल जाए जिससे मैं इज्ज़त के साथ अपना जीवन व्यतीत कर सकूं।
...... " बाबूजी आप कुछ मेरे लिए करो ।(हाथ जोड़कर )मैं सदा आपकी सेवा करूंगी ।आपको सदा खुश रखूंगी ।भगवान के लिए आप मेरी विनती स्वीकार कर ले ।मुझे कोई काम दिला कर इस नरक से बाहर निकाल दीजिए । मैं जीवन भर आपकी दासी बनकर रहूंगी।"
......" रोशन कुछ सोचते हुए बहुत खतरे का काम है। अन्ना बाई तुम्हें किसी भी कीमत में खोना नहीं चाहेंगी।'
...... बाबू जी, मैं आज से अपना जीवन आपको सौप रही हूं ।बस आप मेरी विनती स्वीकार कर लो।'
........'ठीक है थोड़ा मुझे सोचने का मौका दो मैं कल आकर तुमसे मिलता हूं।'
"अन्ना बाई आज से यह लड़की मेरी धरोहर है तुम्हारे पास। मजा आ गया राम कसम ।अन्ना बाई एक गुजारिश है आपसे इस लड़की को किसी के साथ अब न बैठाना ।"
........ 'अरे साहब आपकी ही जर्रा नवाजी है सब कुछ आप ही का तो दिया हुआ है ।आते जाते रहिएगा ।'
रौशन एक सप्ताह बाद आया । कुछ बात की अन्ना मैं जमुना को अपनी रखैल रखना चाहता हूं। पहले तू अन्ना कुछ नाराज हुई फिर उसने रोशन ने उसे हर महीने पैसे देने का वादा कर लिया। अन्ना तैयार हो गई।
रोशन जमुना को लेकर जब भी बाहर-भीतर निकलता तो दो चार जगह नौकरी लगवाने की कोशिश भी की परंतु बात नहीं बनी ,फिर एक कारखाने में उसे काम दिलवा दिया। पगार कम थी पर वो खुश थी। जमुना रोशन के साथ खुश रहने लगी ।लेकिन उसकी नसीब में जैसे खुशी थी ही नहीं। एक वेश्या को समाज का सुख कहां मिलता है?तकदीर से धोखा खाने पर यमुना ने अपनी तकदीर से शिकायत करने की बजाय उसी बदलने का फैसला लिया।
वहीं वेश्यालय में ही पैदा हुए बच्चों की देखभाल करने का काम करने लगी ।कभी-कभी कोई ना कोई उसकी मदद कर दिया करते थे। थोड़ी सी जमा पूंजी ले वह कई संगठनों से मिलकर एक शेल्टर होम खोलने के लिए प्रयास करने लगी ।जहां कहीं से भी कुछ भी पता चलता ,उस से मदद मांगने के लिए दौड़ जाती। परेशानियां थी कि पीछा ही नहीं छोड़ रही थी। फिर भी उसने हिम्मत नहीं हारी लगन मेहनत और ईमानदारी ने रंग दिखाना शुरू किया। समाज कल्याण विभाग में अपने शेल्टर होम को पंजीकृत कराया धीरे धीरे उसके पास 2 साल से लेकर के 14 साल तक के करीब 20 बच्चे उसके साथ रहने लगे। अपने को आगे बढ़ाने के लिए रात के स्कूल में पढ़ने लगी। साथ ही बच्चों को खुद पढ़ाने-लिखाने लगी। उनको किसी अच्छे स्कूल में दाखिला दिलाने की पूरी कोशिश करने लगी। आमदनी का जरिया बढ़ाने के लिए बच्चों के साथ मिलकर क्राफ्ट की चीजें बनाकर बेचने लगी । एक स्कूल में क्राफ्ट की प्रर्दशनी में अपना स्टाल लगाया। जिसमें उसे सम्मान मिला । साथ ही उसके बच्चों को स्कूल में दाखिला भी मिला। वहीं के अध्यापकों एव प्रधानाचार्य ने बच्चों को पिता का नाम भी दिया ।
इस तरह वह नाजायज वह बेसहारा बच्चों की तकदीर संवारने वाली मां बन चुकी थी। सभी बच्चे उसे अपनी मां मानते थे और प्यार से जमुना ताई बुलाते हैं। अपनी ही बसाई छोटी सी दुनिया में बहुत खुश थी।
जब भी रेड एरिया में बच्चा जन्म लेता ।वह जमुना की गोद में आ जाता था ।जिसे जमुना बड़े प्यार से पालती ।
जिस रौशन के सहारे से उसने अपनी जिंदगी की राहें बनायीं थी।उसकी तस्वीर के सम्मुख मन ही मन नमन और धन्यवाद कहना कभी नहीं भूलती थी।

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!! तारा गुप्ता !!