कुछ बूंदे Tara Gupta द्वारा कविता में हिंदी पीडीएफ

कुछ बूंदे

शबनम

जब भावों की सझंवाती में,

टिम टिम तारें करते हैं।

सपनों की ताल तलैया में,

कमल पुष्प खिल जाते हैं।

‌‌ नजर नहीं आती कहींजब,

दूर तलक कोई भी परछाई।

अहसासों का हर पल ही,

तो बस एक हमारा है।

तब दबी हुई पीड़ा का,

आसूं ही एक सहारा है।

ढलक पलक से वारि बिंदु

‌ पत्ते पत्ते, डाली डाली से होकर,

‌ नरम दूब पर बिछ जाती है।

ये शबनम के कतरे नहीं, ‌

ये मन के मनके होते है।।

***

कुछपल

हवाओं के साथ घटाओं के पास, ले हाथों में हाथ करे अपनी बात ।

न मिले आघात न हो प्रतिवाद, मस्ती भरी बातों में, झूम लेती हूं मै।

इस तरह तेरे साथ कुछ पल गुजार लेती हूं मै

प्रणयी मन में मीठा एहसास रहे, नींद ना आए तेरा इंतजार रहे।

कुछ पल लगे सदी कुछ मधुमास भरे मधुरिम

सपनों के संसार में कुछ पल जी लेती हूं मैं।

इस तरह कुछ पल तेरे साथ गुजार लेती हूं मैं।।

है यही भावना हो सफल कामना प्रीत की रीत की बस यही कल्पना

स्वप्न साकार हो रूप आकार हो, प्रीत के क्षीरसागर में डूब कर

सत्य के रूप को देख लेती हूं मैं, इस तरह तेरे साथ कुछ पल गुजार लेती हूं मैं।।

***

विश्वास

इज्जत का वास्ता दे,

कैद किया घूंघट में

जानना चाहा जब अपने को

लहूलुहान लगी जिंदगी

लेकिन

बंद मुट्ठी के साथ ही

छूना चाहती हूं,

आकाश

है अपने पर विश्वास

इतना

नाप लूंगी मैं अपने कदमों से

एक दिन

ज़मीं क्या आसमां भी।।

***

सपना

खुली आंख से देख रहे हम सुंदर सपन सलोना।

कब आएगा मेरे घर में नन्हा सा एक खिलौना।

चंदा के रथ पर बैठा वह मंद मंद मुस्काता है।

किरणों की डोरी को थामे हमको वह तरसाता है।

बन के चंदा छिपता फिरता रजनी मां के आंचल में।

सूरज बनके दौड़ रहा है नील गगन की राहों में।

बन पवन झकोरा झूम रहा मेरे अंतस कि सांसो में।

अहसासो की खुशबू बनकर महक उठा है जीवन में।।

***

उदगार

तेरे आने से सुमन खिले, सुप्त पड़े मेरे गीत चले

हंस पड़ी चांदनी तुझे देख मन में चित्रित हुई रेख

कितना सुंदर रूप तुम्हारा, भर नयन तुझको देख तो लूं

तेरी मधुरिम किलोलो़ की गूंज जरा मै सुन तो लूं।

कब से मन में अकुलाहट थी तन में कितनी व्याकुलता थी,

दुर्लभ जैसी रजनी थी जग सोता था मैं जाग रही थी

अब तुम मेरे साथ रहोगी दुनिया नंदन कानन होगी।

तेरे सर की मधुर लहरिया अब तो मेरे आंगन होंगी।।

***

एहसास

‌तेरे आने की खुशबू,

मेरी उम्मीद है तू ।

पापा का प्यार है तू,

दादी का दुलार है तू।

आशीर्वादों की सौगात है तू

हृदय बसी मूरत है तू।

मेरे आंगन की रूनझुन,

मेरी लोरी की गुनगुन।

मेरे सांसों की सरगम,

मेरे स्पशों की मरहम।

मेरे दिल की धड़कन,

मन बगिया की चटकन है तू।।

होठों की मुस्कान तू ही,

तूं सपनों की रानी ।

तू ही मेरा जीवन धन है,

तू ही मेरी प्रेम कहानी।

मेरे घर की शान है तू,

ईश्वर का वरदान है तू।।

***

विकल मेरी वेदना

विकल मेरी वेदना की पीर भी कितनी मधुर है।।

पल भर जो बैठी याद करने,

आई न जाने कितनी बातें।

उनके सिरों को खोजती,

जागती कितनी मैं रातें।

मन में उठी पीर की जलन भी कितनी मधुर है।।

बह रही निर्झर सी आंखें,

दर्द उठता है घनेरा।

मैं विरहनी आंसुओं में,

ढूंढती बस एक चेहरा।

बंद पलकों में तेरी मुस्कान भी कितनी मधुर है।।

***

मेरी शहजादी

तू मेरे घर की शहजादी तू परियों की रानी।

तू मेरे दिल की धड़कन तू है अनमोल निशानी।।

पकड़ के उंगली बांहे थामें, तुझको बडा बनाऊंगा।

धीरज धर्म ज्ञान विवेक की माला तुझे पहनाऊंगा।।

कभी नहीं झरने दूंगा, तेरी आंखों से मोती।

तू ही मुस्कान है चेहरे की तू मेरे घर की ज्योति।।

तुझको पाकर मैंने पाया खुशियां, सारी बाहों मे

कभी नहीं चुभने दूंगा, कांटा तेरे पांवों में।।

***‌‌

किलकारी

एक किलकारी से ‌हुई पल्लवित,

खुशियां चारों दिशाओं में।

कर दी रचना सफल प्रभू ने,

मां के आंचल की छांव में।

पा स्पर्श हृदय है पुलकित,

ममता के इस गांव में।।

भर उदगार हृदय में अपने,

लेते सभी बलायें हैं।

दे आसीष स्नेह के चुबंन

अपने गले लगायें हैं।

थिरक उठे हैं पांव सभी के,

मानो बांधे पायल पांवों में।।

***

संभावनाएं

हैं बहुत संभावनाएं, खोल कर आंखें तो देखो।

तोड़ दो यह क्षितिज, देख लो उस पार क्या है।। घोर छाया है अंधेरा, घनघोर छांई हैं घटायें

जिंदगी का रूख तो मोड़ो, कोई तरीका सोच लो।

अनुभव की अनुगामिनी बन, मन के द्वार खोल दो।

जीवन के संग्राम में, कामनाओं को नया संसार दो।।

‌‌ बह चलो बन पवन झोंका, ऋतुओं के मुख मोड़ दो।

बज उठे संगीत अनाहत, अधरों को नयी मुस्कान दो।।

***

सोचती है "मां"

हुआ जब अपने में ही

अंकुर का अहसास।

बेटा या बेटी

"बेटा " तो कैसा ?

गांधी, नेहरू, कलाम , विवेकानंद,

या

होगा दिशा हीन, देश का आतंकी ?

" बेटी"

इंदिरा, किरन, कल्पना, ऐश्वर्या,

या गृह की गृहस्वामीनि

चढ़े न कहीं दहेज़ की सूली पर ?

खो न जाये समाज की बढ़ती गंदगी में।।

पैदा होने से पहले ही।

सोचती है----

एक डरी सहमी

"मां"

***

उफ़ गर्मी

उफ़ ये गर्मी, मुश्किल जीना।

ले गयी पवन, उड़ा सुंगध।

निर्जीव पत्ते, हंसता पतझर।

आग उगलता गगनागंन।

तपे बदन व्याकुल मन।

तपती धरती, बड़ी अखरती।

क्षुधित हृदय की आस भटकती

ठौर छांव की कहीं नहीं।

नही कहीं पवन का झोंका।

चंहु दिश कंक्रीट महल।

वृक्ष कटे हरियाली खोई।

छांव कहीं जाकर है सोई।

उफ़ ये गर्मी बता रही।

दिया जो तुमने मुझको।

आज वही मैं लौटा रही।

***

अभिनंदन

आज नव मधुमास डोले

आज है आकुल हवाएं

मद मस्त पल्लव डोलते

नाचती चारों दिशाएं।।

आसमां से इस धरा तक

रंग बासंती जा रहा।

हृदय भी कहने को आकुल

गुनगुनाता जा रहा।।

प्रकृति अपने चक्षु खोले

स्वागत करती है तुम्हारा।

हे ऋतु राज बसंत तुम्हें

अभिनंदन है हमारा ।।

***

तुम याद बहुत आते हो।

मेरी कल्पनाके श्रद्धा तुम आवाहन करती रहतीं

आसा की डोरी से बांधा

फिर भी दूर निकल जाते हो।

मधुर कल्पना लेकर

सुधियों की डाली पर बैठी।

देर रात तक जागूं तो

तुम याद बहुत आते हो।।

लिख जाता है नाम तुम्हारा

कापी के हर पन्ने पर।

सोचूं कुछ ऐसा लिख दूं

तो डगमग अक्षर हो जाते हैं।

शब्दों के ताने बाने में

तुम्हें से संजोया करती हूं।

जब जब डोर उलझ जाती है

तो तुम याद बहुत आते हो।

जब जब बातों में जिक्र हुआ

कुछ अहसासो के पल में।

थके कदमों से खड़ी हुई मै

एकटक तेरी राह निहारूं।

स्वप्निल सपनों के बादल

आंसू बन झर जातें हैं।

सांसें थम सी जाती है

तो तुम याद बहुत आते हो।।

***

____

रेट व् टिपण्णी करें

Tara Gupta

Tara Gupta मातृभारती सत्यापित 4 साल पहले

Priyanka Dafda

Priyanka Dafda 5 साल पहले

Pallavi Gupta

Pallavi Gupta 5 साल पहले

Very nice...

Shalini shail

Shalini shail 5 साल पहले

Nice writer ??

rakesh tripathi

rakesh tripathi 5 साल पहले

शेयर करे