नारीयोत्तम नैना - 14 Jitendra Shivhare द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

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नारीयोत्तम नैना - 14

नारीयोत्तम नैना

भाग-14

जिससे पण्डित जी को हारकर यहां से लौट जाना पड़ेगा। कुन्दन अपनी आस्तिन चढ़ाकर कुर्सी पर बैठ गया। दोनों में पंजा लड़ाने का खेल आरंभ हुआ। कुन्दन की आंखो में सरलतम खेल की पुर्व विजय देखी जा सकती थी। प. कमल अति सामान्य होकर पंजा लड़ा रहे थे। कुन्दन ने हाथ में बल की मात्रा बढ़ा दी ताकी खेल शीघ्र जीतकर वह पण्डित कमल को यहां से विदा करे। पण्डित कमल धैर्यपूर्वक मंद-मंद मुस्कुरा रहे थे। जबकी कुन्दन के माथे पर पसीना छलक आया था। वह अपनी संपूर्ण शक्ति लगा चुका था किन्तु प. कमल का हाथ विपरीत दिशा में लुढ़काने में वह असमर्थ था। उसे आभास हो चूका था कि वह प. कमल को इस खेल में पराजित नहीं कर सकेगा। पण्डित कमल ने कुन्दन की मनःस्थिति भांप ली। अगले ही पल उन्होंने कुन्दन को पंजा लड़ाने के खेल में पराजित कर दिया।

"कुन्दन! शारीरिक बल से अधिक आत्मबल की शक्ति होती है। मांस-मदिरा का सेवन कर शरीर को बाहरी रूप से बलिष्ठ तो बनाया जा सकता है किन्तु इन व्याभिचारों के आचरण से आन्तरिक शक्ति क्षीण हो जाती है।" प. कमल ने कुन्दन को समझाया।

"पृथ्वी पर सर्वाधिक शक्तिशाली प्राणी हाथी है जो शाकाहारी भोजन करता है। अश्व भी शाकाहारी है किन्तु संसार में उसे शक्ती का पर्याय के रूप में मान्यता प्राप्त है।" प. कमल आगे बोले।

कुन्दन का सिर शर्म से पाताल में झुका जा रहा था।

"अपनी शक्ती का प्रदर्शन, निरीह प्राणीओं की सुरक्षा में करना चाहिए। न की अपनी महत्ता सिध्द करने में।" प. कमल की बातों ने उपस्थित सभी का हृदय जीत लिया था।

"कुन्दन! यदि अपनी माता के दुध का सम्मान न बढ़ा सको तो कम से कम उसे लज्जित तो न करो।" प. कमल के इस वाक्य ने कुन्दन का हृदय भेद दिया। वह द्रवित होकर प. कमल के चरणों में गिर गया।

वहिदा के हृदय का द्वार प. कमल के लिए खुल चूका था। उसके स्वास्थ्य की चिंता में वहिदा अपने दैनिक कार्य को कम महत्व देने लगी। कोठे पर आ रहे ग्राहकों के प्रति भी वह कम ही रूचि रखती। विमला बाई को यह उचित नहीं लगा। उसने अदिति को तैयार किया कि वह कामदेव बनकर प. कमल के विश्वामित्र रूपी मन को जीत ले। ताकी इसका परिणाम देखकर वहिदा, जो अब प. कमल के प्रेम में पढ़ चूकी है, पुनः अपनी यथास्थिति पर लौट आये।

वहिदा के नाम से प. कमल को अपने कमरे में बुलाकर अदिति ने अपने यौवन का चमत्कार दिखाना आरंभ किया। अदिति ने स्वयं के बदन से साड़ी छिटक कर दुर फेंक दी। उसका गौर वर्ण देखकर प .कमल की आंखे फटी की फटी रह गयी।

"आईये पण्डित जी! मेरे नजदीक आईये। अपनी वर्षों की क्षुधा शांत करे। जीवन का आनंद ऊठाईये।" अदिति का निमंत्रण पाकर प. कमल धीरे-धीरे कदमों से उसकी ओर बढ़ रहे थे। यह दृश्य छत के उपर स्थित छिद्र से विमला बाई देख रही थी। यह देखने के लिए उन्होंने वहिदा को भी वहां आमन्त्रित किया। ताकि प. कमल के प्रति उसका मोह भंग हो सके।

प. कमल के दोनों हाथ अदिति के कांधों की ओर तेजी से बढ़ रहे थे। विमला बाई का मंतव्य पुरा होने जा रहा था। वहिदा भी एकटक यह दृश्य देख रही थी। अदिति जीत के बहुत करीब थी। उसने अपनी आंखें बंद कर ली। प. कमल के हाथ अदिति के दोनों कानों को ढक चुके थे।

"देखना पण्डित अदिति को पहले किस करेगा।" वहिदा की सहेली पुनम ने बड़े विश्वास से कहा।

सभी आश्चर्यचकित होकर पण्डित कमल के क्रियाकलाप की अगली क्रिया देखने को आतुर थे।

प. कमल ने अदिति के मस्तक को चूम लिया।

"प्यारी बहना! अब तु बड़ी हो गयी है। ऐसी तुच्छ हरकते तुझे शोभा नहीं देती। कल को तेरी शादी होगी, तो तेरे ससुराल वाले तो हमें बातें सुनायेगें न! अपना नटखट पना छोड़। और ये कपड़े ठीक से पहन ले। ठीक है।" प. कमल ने अदिति को बहन बनाकर सारा वातावरण ही परिवर्तित कर दिया। यह अदिति की हार नहीं थी बल्कि हर उस नारी की पराजय थी जो प. कमल को एक कामपुरूष समझ रही थी।

विमला देवी ने भी अपने सौन्दर्य का जाल प. कमल पर फेंका। वह अर्ध निर्वस्त्र होकर प. कमल के सम्मुख उपस्थित हुयी। प. कमल चौंक पड़े।

"क्या देख रहे हो कमल!" विमला देवी बोली।

रात गहराती जा रही थी।

"मैं जानती हुं की आजकल के युवाओं को आन्टी टाइप औरतें अधिक पसंद होती है। ये नई लड़कीयां क्या जाने की आज के युवकों को कैसे प्रसन्न किया जाता है?" विमला बाई आगे बोली।

"जो मेरे पास है वह अदिति के पास नहीं है।" विमला बाई बोली।

अगले ही पल विमला बाई ने कमल को अपनी ओर खींच लिया। उसने कमल का सिर अपने हृदय से सटा लिया। वह प. कमल की प्रतिक्रिया की प्रतिक्षा में थी।

"मैं कितना सौभाग्यशाली हुं मां। आपकी छाती से लगकर मुझे ऐसा प्रतित हो रहा है जैसे कि मैं पुनः शिशु अवस्था को प्राप्त होकर अपनी मां के स्तनों से लिपटा हूं। मुझे पुत्र समान स्नेह देकर आपने मेरी स्वर्गीय मां की कमी पुरी कर दी। मैं कृतार्थ हुआ।" प. कमल बोले। इस घटना ने विमला बाई का हृदय परिवर्तन कर दिया। प. कमल का मान-सम्मान विमला बाई की नज़रों में और भी बढ़ गया।

प. कमल के इर्द-गिर्द मंदिर प्रांगण में क्षेत्र की महिलाएं डेरा लगाकर बैठी थी।

"पण्डित जी! आपको गुस्सा नहीं आता?" पुनम ने पुछा।

मंदिर के आंगन में प. कमल फुलों को एक लम्बे धागे में पीरो कर माला बना रहे थे।

"क्रोध कभी आता नहीं पुनम! क्रोध हम करते है। वो भी जानबूझकर। मैं अपने मन के अनुसार नहीं चलता अपितु मेरा मन मेरे कहे अनुसार चलता है।" प. कमल बोले।

"इसका अर्थ है कि आपकी इच्छा के विरुद्ध आपसे कोई कार्य नहीं करवाया जा सकता?" विनिता ने पुछा।

"निश्चित ही ऐसा है। यह लो आप में से जो भी मेरी मुठ्ठी खोलकर यह फुल निकाल देगा, उसे मेरी ओर से एक पुरस्कार मिलेगा।" प. कमल ने गेन्दे का फुल अपनी हाथों की हथेलियों पर रखकर मुठ्ठी बांध ली।

एक-एक कर सभी महिलाओं ने जोर आजमाना करना आरंभ कर दिया। प. कमल को गुदगुदी छुड़ाने से लेकर उनके हाथों को अपने नुकीले दांतों से कांट कर उनकी मुठ्ठी खोलने का प्रयत्न उपस्थित सभी महिलाओं ने बारी-बारी से किया गया किन्तु वे सभी मिलकर भी प. कमल की मुठ्ठी खोल नहीं सकी।

वहिदा मंदिर के आंगन तक आ पहूंची।

अब सभी महिलाओं की दृष्टि वहिदा पर टीक गई। अब उसे ही प. कमल की मुठ्ठी खोलनी थी।

वहिदा आगे बढ़ी। सभी ने प. कमल तक उसे पहुंचने का रास्ता दिया। वह नीचे बैठ चूकी थी। प. कमल ने अपना हाथ वहिदा की ओर बढ़ा दिया। वहिदा ने प. कमल का हाथ अपने गालों से स्पर्श कर उसे चूम लिया। अगले ही पल प. कमल के हाथों में रखा फुल वहिदा की गोद मे गिर पड़ा। दोनों का अंतःसंबंध देखकर हर कोई अभिभूत था।

प. कमल की ख्याति दिनों-दिन बढ़ती जा रही थी। उसका लिखा साहित्य लोग पढ़ने लगे थे। नगर में बलात यौन अपराध बहुत हद तक अंकुश में आ चूका था। वेश्यावृत्ति स्वैच्छिक थी। जो महिलाएं यह वेश्यावृत्ति छोड़कर अन्य सम्मान जनक कार्य करना चाहती थी, शासन उनके लिए उचित रोजगार उपलब्ध करवाने के लिए प्रतिबद्ध थी। प. कमल इस हेतु विश्वसनीय माध्यम थे। नगर में अवांछनीय और असावधानी से उत्पन्न संतानों की पढ़ाई की उचित व्यवस्था की प. कमल ने की थी। प. कमल द्वारा व्रत-उपवास, यज्ञ, भजन, पौराणिक कथा इत्यादि की नये सिरे से व्याख्या की गयी। जो मानव मात्र की आन्तरिक शक्ति को प्रबल बनाते हुए उसे मनवांछित फल प्रदान करने की दिशा में सशक्त कदम था।

वहिदा और प. कमल के विवाह की सभी बाधाएं समाप्त हो चूकी थी। प. कमल को शौहर के रूप में स्वीकारने में वहिदा को अब कोई आपत्ति नहीं थी। जिले के कलेक्टर स्वयं इस आलौकिक प्रेम विवाह के साक्षी बने। नगर में दोनों का विवाह सामाजिक सुधार की दिशा में एक क्रांतिकारी कदम था। शनै: शनै: कुछ अन्य पुरूष भी वेश्यावृत्ति में लिप्त महिलाओं को जीवन साथी के रूप में स्वीकार करने आगे आये। रेड लाइट एरिया की दशा और दिशा दोनों परिवर्तित हो रही थी। महिलाएं अपने सम्मानित भविष्य की कल्पना को साकार करने के प्रयास कर रही थी। सुबह नौ बजते ही नगर की बहुत सी महिलाएं हाथों में टिफिन लेकर नगर के पास ही नमकीन फैक्ट्री में काम पर जाने लगी। उनके बच्चें पीठ पर बस्ता लादे स्कुल की ओर जा रहे थे। सरकार ने नगर को साफ-स्वच्छ किया था और प. कमल ने रहवासीयों के मन निश्छल और निर्मल करने में अपनी महती भूमिका निभाई। वहिदा पेट से थी। प. कमल के निर्देश पर सातवें माह का गर्भ होने पर उसने फैक्ट्री जाना छोड़कर घर पर ही विश्राम करने का प्रस्ताव मान लिया। दोपहर में भोजन के उपरांत प .कमल कुछ पलों की नींद ले रहे थे। वहिदा अपने पति के पैर दबाने में परम सुख का अनुभव कर रही थी। नगर और अन्य वे स्थान जहां वेश्यावृत्ति जैसी सामाजिक बुराई का व्यापार, धन के लोभ में तथाकथित कुछ लोग बड़े ही गर्व के साथ संचालित कर रहे थे, प .कमल के पुनर्जागरण अभियान के कारण बहुत सी महिलाओं ने इस अनैतिक कृत्य को करने से साफ इंकार कर दिया था। उन लोगों ने अपने परम्परागत रोजगार पर उत्पन्न संकट का कारण प. कमल को स्वीकार किया। इसलिए इन लोगों ने प. कमल की हत्या की निविदा एक कुख्यात अपराधी कंय्यूम काणा को सौंप दी। कुन्दन को जेल से छुटते ही पता चला की कंय्यूम काणा ने प. कमल की हत्या करने की सुपारी ली है। वह प. कमल को बचाने के लिए उनके मंदिर की ओर भागा।

वहिदा ने कंय्यूम काणा के पैर पकड़ रखे थे। उसके हाथों में पिस्तौल थी जिसकी नोंक प. कमल की कनपटी पर रखी थी। वहिदा अपने पति को जीवित छोड़ देने की कंय्यूम काणा से प्रार्थना कर रही थी। प. कमल सामान्य अवस्था में खड़े होकर निर्भिक थे। उनके अंतिम वचन वे वहिदा से कह रहे थे- "जीवन-मृत्यु निश्चित है। जीवन से अधिक लगाव और मृत्यु से भय उचित नहीं है। मेरी मृत्यु के बाद मुझे पुज्यनीय न समझा जाए अपितु मेरे अनुभवों का लाभ उठाकर निरंतर सत्कर्म किये जाये। मानव को निरीह पशु कोई न समझे बल्की उसे मानव होने का उचित सम्मान मिलना चाहिए। मेरी मौत के बाद मुझे कहीं भी जला दिया जाये किन्तु यहां नगर में मेरी कोई भी वस्तु सलामत न छोड़ी जाये। मेरी समाधी या अन्य कोई भी क्रियाकलाप जो मेरा महिमा मंडन करते हो, उन सभी भावि क्रियाकलापों का मैं कढ़ा विरोध करता हूं। माताओ-बहनो के शील भंग उनकी इच्छा से पुर्व न हो इस हेतु हम सभी मिलकर प्रयत्न करे। मेरे बाद मेरे अधुरे कार्य मेरी धर्मपत्नी वहिदा करेगी। और उसके बाद हम दोनों की संतान। मैं अपने संपर्क में आये सभी मानव जाति का धन्यवाद देता हूं जिन्होंने मुझे अपार स्नेह दिया। मैं वहिदा से क्षमा मांगता हुं जिसका साथ मुझे बीच रास्ते पर ही छोड़ना पड़ रहा है। मेरी मृत्यु के कारण कंय्यूम को मैं क्षमा करता हूं। और आप सभी से निवेदन करता हूं कि उसे जीवित छोड़ देवे। उसके कर्मों का दण्ड उसे पुलिस दूगी।" इतना कहकर प. कमल शांत हो गये। उनके प्राण पखेरू उड़ चूके थे। कुछ पलों के सन्नाटे के उपरांत रोने और चिखने की आवाज़े आकाश को गुंजायमान कर रही थी।

प. कमल की शवयात्रा किसी तीर्थ यात्रा के दर्शन से कम नहीं थी। लोगों का हुजूम देखते ही बनता था। 'पण्डित जी अमर रहे, पण्डित जी अमर रहे' के नारे हर उस मार्ग में लगाये जा रहे थे जिस-जिस मार्ग से प. कमल की शवयात्रा गुजर रही थी। लोग अपनी-अपनी छतों से, बालकनी से उस महापुरुष के शव पर पुष्पवर्षा कर रहे थे। वहिदा ने अपने पति की चिता को मुखाग्नि दी। वहिदा अपने छोटे से दाम्पत्य जीवन से निराश नहीं थी। उसके भीतर पण्डित जी का दिया हुआ अगाथ संबल था जिसकी बदौलत वह प. कमल के अधुरे रहे शेष कार्यों को सम्पन्न करने में जुट गयी। वहिदा के साथ सैकड़ो महिलाएं वेश्यावृत्ति में लिप्त महिलाओं को मुख्यधारा में जोड़कर उनके पुनर्वास का उत्तरदायित्व बखूबी निभा रही थी। प. कमल की मृत्यु ने वेश्यावृत्ति जैसी सामाजिक बुराई को समाप्त करने की दिशा में क्रांतिकारी परिवर्तन ला दिया। अब पहले से और भी अधिक लोग इस बुराई के प्रति जागरूक होने लगे। वेश्यावृत्ति छोड़ चूकी महिलाओं को शनै: शनै: समाज स्वीकारने लगा। उनके जीवन स्तर में सकारात्मक परिवर्तन देखा गया। वहिदा और उसकी टीम आज भी महिला पुनर्वास का कार्य संपूर्ण उर्जा के साथ कर रही थी। शासन ने वहिदा को प्रदेश आईकाॅन के रूप में महिला सशक्तिकरण का ब्रांड एम्बेसडर नियुक्त किया। पुष्पेन्द्र को मां वहिदा पर गर्व था। जब वह प. कमल से संबंधित प्रेरक घटनाएँ उनके पुत्र पुष्पेन्द्र को सुनाती तब पुष्पेन्द्र का सिर अपने पिता के सम्मान में आकाश तक उठ जाता। पुष्पेन्द्र के मन में अपने पिता के पदचिन्हों पर चलने वाले विचार धीरे-धीरे आकार लेने लगे थे।

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कथा ने जैकलीन को प्रेरणा उत्साह से भर दिया।

उसने डकाच्या दैत्य का खुलकर विरोध किया और अपनी अस्मत किसी गैर पुरूष को देने से मना कर दिया। संथाल को अपनी पत्नी पर गर्व था। वह नगर की अन्य स्त्रीयों की भांति नहीं थी जो मृत्यु के भय से सबकुछ करने को तैयार हो जाती थी।

जितेंद्र ठाकुर और तिलकरत्ने अट्टपटू डकाल नगर की ओर चल पड़े। उनके साथ बहुत से हथियार बंद सैनिक चल रहे थे। उनके सम्मुख सबसे बड़ी बाधा मुसलाधार वर्षा थी जो लगातार उन्हें आगे बढ़ने से रोक रही थी। घने वन को पार कर दलदली भूमी से पार पाना उनके लिए मुश्किल होता जा रहा था। दलदल में बुरी तरह फंसे पारून नाम के सैनिक को बचाने के सभी प्रयास असफल हो रहे थे। धीरे-धीरे वह दलदल में धंसता ही जा रहा था। उपस्थित सभी की आंखे नम हो गयी। पारून दलदल में समा चूका था। किचड़ के ऊपर हवा के बुलबुले बनना अब पुरी तरह से बंद हो गये थे। वीर पारून वीरगति को प्राप्त हुआ। पेड़ों की लताओं को पकड़े जितेंद्र ठाकुर और तिलकरत्ने अट्टपटू आगे चल पढ़े। समुद्री जीव 'मगर' की आहट से सभी सतर्क हो गये। तिलकरत्ने अट्टपटू ने सभी को पेड़ो पर चढ़ने का आदेश दिया। उन्होंने रस्सियों का रास्ता बनाने का संकल्प लिया गया। एक पेड़ से दुसरे पेड़ तक रस्सी बांधने का जोखिम से भरा कार्य अंजाम दिया गया।

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