नारीयोत्तम नैना - 10 Jitendra Shivhare द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

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नारीयोत्तम नैना - 10

नारीयोत्तम नैना

भाग-10

नैना से क्रोधित जितेंद्र ठाकुर का पुर्व प्रेम जागृत हो चुका था। सबकुछ दरकिनार कर नशे में धुत्त राजेंद्र ठाकुर के पीछे-पीछे उसने भी अपनी कार दौड़ा दी।

रात धीरे-धीरे मध्यान्तर की ओर बड़ रही थी। नैना के परिवार में नैना की शादी होने जा रही थी, इन सबके बाद भी वहां नीरस वातावरण देखकर नूतन और कुछ सहेलीयों ने गाना-बजाना शुरू महौल को कुछ हल्का-फुल्का करने में सफलता प्राप्त कर ही ली। राजेंद्र ठाकुर की कार का पीछा करते हुये जितेंद्र ठाकुर नैना के घर पहूंचे। राजेंद्र ठाकुर से बलपूर्वक जितेंद्र रिवाल्वर छीन ही रहे थे की गोली की आवाज ने सभी को चौंका दिया। नैना बेहोश होकर पृथ्वी पर थी। उसके दायें हाथ के कन्धे से गोली लगकर निकल गयी थी। खुन की धार बह निकली। लेकिन जब राजेन्द्र ने गोली चलाई ही नहीं तो फिर नैना को गोली किसने मारी? पास ही के कुछ रहवासीयों ने बहादुरी का परिचय देते हुये तनुश्री को पकड़ लिया। नैना को जो गोली लगी थी वह तनुश्री की ही रिवाल्वर से रीलिज की गई थी। पुलिस ने मौके पर पहूंचकर तनुश्री और राजेन्द्र ठाकुर को गिरफ्तार कर लिया। दोनों की रिवाल्वर भी जब्त कर ली गई। नैना को तुरंत हाॅस्पीटल पहुंचाया गया।

तमाम मुश्किलों के बाद नैना की शादी जितेंद्र ठाकुर से अंततः हो ही गयी। जितेंद्र और नैना के बीच के मतभेद कुछ कम होने लगे थे। एक आदर्श पत्नी के रूप में नैना, ठाकुर परिवार को संभाल रही थी। जितेंद्र ठाकुर के राजनीतिक कॅरियर पर मंडराते संकट के बादल शनैः शनैः छटने लगे थे। परिवार के सदस्यों से दुःखी होकर लम्बी बीमारी सह रहे यशवंत ठाकुर नैना के समर्पण और सेवा से स्वास्थ्य लाभ ले रहे थे। सास-ससुर की प्यारी नैना ने अपनी जेठानी के क्रोध को अपने लिए प्यार में बदल ही दिया। उस पर नैना के गर्भ में पल रहे बच्चें की आहट के श्रवण मात्र से ठाकुर परिवार आनंदित था। राजेंद्र ठाकुर के विवाह को दस वर्ष उपरांत भी वह पिता नहीं बन सका था। नैना के गर्भ में पल रहे जुड़वा बच्चों की सुचना ने राजेंद्र ठाकुर की पत्नी के मन में आस जगा ही दी। नैना ने अपनी जेठानी की मनःस्थिति जानकर अपनी एक संतान का पालन-पोषण करने का दायित्व देकर उन्हें कृतार्थ कर दिया था।

"जो लड़की विवाह पुर्व अपने होने वाले पति से संबंध बनाने के लिए शादी होने तक की प्रतिक्षा नहीं कर सकी, उसने अन्य किसी पुरुष से संबंध नहीं बनाया होगा? यह सिर्फ ठाकुर परिवार के समान बढ़े लोग ही स्वीकार कर सकते है। लेकिन मैं होता तो कभी ऐसी अधीर लड़की से शादी नहीं करता।" ठाकुर परिवार के बागान का माली चोरी-छिपे घर के ड्राइवर और बावर्ची से ये सब कह रहा था। बगीचें में टहलते समय स्वयं जितेंद्र ठाकुर ने नैना के संबंध में यह सुन लिया। उसके शांत जीवन में आम जनता पार्टी की और से मिले निर्देशों ने भूचाल ला दिया।

माली की बातों ने

"भाईसाहब! क्या इस युग में भी सीता को अग्नि परिक्षा देनी होगी?" नैना ने अपने जेठ राजेन्द्र ठाकुर से पुछा । राजेन्द्र ठाकुर ने नैना को सहारा देकर सोफे पर बैठाया। गर्भावस्था में चक्कर आने की प्रकृति वश नैना नीचे गिरते-गिरते बची थी। जितेंद्र ठाकुर द्वारा उसका अघोषित परित्याग नैना के दिए किसी सदमें से कम नहीं था। राजेंद्र ठाकुर की सांत्वना नैना पर बेअसर सिध्द हो रही थी। बंगले पर कार्यरत बुजुर्ग महिला ने नैना को संभाला। मां समान स्नेह पाकर नैना बिलख पड़ी। समुची धरती नैना के आसूंओं में डूब जाती यदि राजेंद्र उसके गर्भ में पल रहे दोनों बच्चों का वास्ता उसे नहीं देता।

"भैया! भाभी से कहना। मैं अपना वचन मरकर भी निभाऊंगी। उनकी गोद में मेरा शिशु अवश्य किलकारी मारेगा।" जाते-जाते राजेंद्र ठाकुर को नैना ने अपना वचन दोहरा दिया।

नम आंखों से राजेंद्र ठाकुर नैना की जिम्मेदारी बुजुर्ग केयर टेकर 'अम्मा जी' पर सौंपकर भारत लौट आया।

"अम्मा जी! सदियों पहले माता सीता श्रीलंका में रावण द्वारा अपहरण कर लायीं गई थी। उन्होंने अग्नि परिक्षा और वनवास के साथ-साथ रावण की यातनाएं अलग-अलग स्थानों पर सही। मेरा दुर्भाग्य देखीये! अग्नि परिक्षा, वनवास और पति का परित्याग एक साथ सहने पर विवश हूं।" बिस्तर पर लेटे-लेटे नैना अम्मा जी से बोल रही थी।

"बेटी! नारी को हर जन्म में इस तरह के अनेक कष्ट सहन करने होते है। पुरूष अपनी अत्याचारी प्रवृत्ति नहीं छोड़ता और नारी अपनी सहन शक्ति नहीं छोड़ती। हम चाहे कितने भी आधुनिक हो जाये! युगों-युगों से ये रीत चली आ रही है और आगे भी यही सब होता रहेगा। लेकिन बेटी नारी की यही विचारधारा के आगे संसार अपना शिश झुकाता है। सभ्यता, संस्कृति नारी के बिना किसी काम के नहीं है। नारी है तो समाज है , देश है। उच्च आदर्शों और संस्कारों की अपनी संतान में प्राण-प्रतिष्ठा और परिपालन की सक्रियता तथा कर्मठता नारी के ही वश में है। पुरूष भौतिक रूप से नव पीढ़ी को समृद्ध कर सकता है किन्तु आन्तरिक संस्कारों और संस्कृति की शिक्षा-दीक्षा उन्हें मां के रूप केवल नारी से ही प्राप्त हो सकती है।" अम्मा जी का उद्बोधन नैना के दुःखी ह्रदय में प्रसन्नता का नव प्रकाश प्रज्ज्वलित कर गया।

अस्सी वर्ष की आयु पुर्ण कर चूकी विधवा अम्मा जी के जीवन की संघर्ष गाधा ने नैना को और भी अधिक बाहरी और आन्तरिक रूप से बलशाली बनाने में महती भूमिका निभाई।

खेलने खाने की छोटी सी उम्र में भुटान देश की रहने वाली अति दरिद्र परिवार की मनिषा को पिता ने कुछ रूपयों के लिए बेच दिया। किशोर वय अवस्था में ही वेश्यावृत्ति के मकड़जाल में मनिषा ऐसी उलझी की वर्षो तक बाहर नहीं आ सकी। आयु के साथ बुढ़ापा शरीर को घेरने लगा। धीरे-धीरे पुरूष ग्राहक मनीषा से कतराने लगे। अंततः एक दिन वेश्यावृत्ति समाज से मनीषा को दुध में गिरी मक्खी के समान निकाल बाहर कर दिया। पचास वर्ष की आयु में मनिषा श्रीलंका की सड़कों पर भीख मांगने लगी। एक दिन अचानक एक बुड़े बुजुर्ग शांताराम की नज़र मनिषा पर पढ़ी। उन्होंने बूढ़ी मनिषा को घरेलू कामकाज करने का प्रस्ताव दिया। रहना और खाना सब कुछ फ्री था। मनिषा ने सहर्ष मंजूर कर लिया। शांताराम जी अनाथ थे। वे बहुत सालों से इस बंगले की देखभाल कर रहे थे। शांताराम ने एक दिन अपने हृदय की बात मनीषा को बताई। शांताराम कुंवारे नहीं मरना चाहते थे। सो उन्होंने मनीषा के सम्मुख शादी का प्रस्ताव रख दिया। वृद्धावस्था में अपनी मांग में सिन्दूर भरने का यह अनुठा अवसर ईश्वर ने मनीषा को दिया था। शांताराम और मनीषा ने मंदिर में शादी कर ली। कुछ वर्ष साथ रहने के बाद वयोवृद्ध शांताराम स्वर्गीय हो गये। कल की मनिषा आज की "अम्मा जी' बनकर आज भी इसी बंगले में अपनी सेवाये अनवरत रूप से दे रही थी।

अम्मा जी की जीवन कहानी नैना के लिए किसी प्रेरणा से कम नहीं थी। कुछ दिनों के बाद अम्मा जी ने नजदीक ही के अस्पताल में नैना का उपचार करवाना आरंभ कर दिया। गर्भावस्था के दौरान पालन की जाने वाली सभी सावधानियां अनुभवी अम्मा जी बरतने लगी। नैना के गर्भ को पांचवा माह चल रहा था। डाक्टर्स ने नैना का परिक्षण कर सबकुछ ठीक-ठाक होने की तसल्ली प्रदान कर नैना को प्रसन्न कर दिया।

बंगले से कुछ दुरी पर ही एक हिन्दू आश्रम पर अम्मा जी अपने साथ नैना को ले गयी। पूजन और भजन कीर्तन से ऐसा लगाव हुआ की नैना प्रतिदिन वहां जाने लगी। आश्रम के आचार्य भगवती प्रसाद ने नैना को अपना आशिष और स्नेह प्रदान दिया। नैना के विषय में जानकार उसके गर्भ में पल रहे बच्चों की शिक्षा-दीक्षा का दायित्व अपने ऊपर लेकर नैना को मानसिक संबल प्रदान किया।

"ये क्या कह रही हो नैना? जितू से मैं शादी कर लूं?" फोन पर बातचीत में पहला स्वर तनुश्री का था।

"अभी हमारी शर्त पुरी नहीं हुई है तनु। पांचवीं शर्त में मुझे अपनी नापसंद की लड़की से जितेंद्र ठाकुर की शादी करवानी है। तुम भुल गयीं क्या?" फोन पर अगली आवाज नैना की थी।

"हां मैं सबकुछ भुल गयी हूं। तुम भी भुल जाओ। थोड़े ही समय में जितु तुम्हें अपने पास बुला लेगा। तुम बस थोड़ा ध्येर्य रखो।" तनुश्री ने कहा।

"शर्त का तो बहाना है तनु। मैं जान चूकी हूं कि तुमने जितेंद्र जी को मुझे सहर्ष सौंप दिया है। मगर बात कुछ और है तनु!" नैना का स्वर गंभीर हो चूका था।

"तनु! अब मेरा और जितेंद्र जी का पुनर्मिलन कब होगा यह तय नहीं है? ये भी हो सकता है कि कुछ ही दिनों में सबकुछ ठीक हो जाये! या फिर मुझे चौदह वर्ष का वनवास देखना भी पड़े? राजनीति में सबकुछ इतनी जल्दी ठीक होने के आसार दूर-दूर तक दिखाई नहीं दे रहे है।" नैना बोलते-बोलते रूक गयी।

"तुम आखिर मुझसे चाहती क्या हो नैना!" तनुश्री बोली।

"तनु! मैं जितेंद्र जी से बहुत प्रेम करती हूं। इन सबके बाद भी मैं अपने पति को खुश देखना चाहती हूं। मुझे ये भी पता है कि वे मेरे बिना नहीं रह सकते ठीक मेरी ही तरह। जब मैं उनके विरह में बिन पानी की मछली की तरह तड़प रही हूं तो यह भी समझ सकती हूं कि उनका हाल भी मेरे जैसा ही होगा। ऊपर से मेरे पेट में उनके दो बच्चें पल रहे है ये जानकर भी उन्होंने मूझे अपने से दूर करने का कठोरतम निर्णय कैसे लिया होगा? मै समझ सकती हूं।" नैना ने बताया।

"मैं अब भी नहीं समझी की तुम क्या कहना चाहती हो नैना?" तनुश्री नैना की मन की बात जानने को अधीर हुये जा रही थी।

"तनु! मैं जानती हूं कि तुम भी जितेंद्र जी से बहुत प्यार करती हो। उसकी खुशी के लिए तुम कुछ भी कर सकती हो। मैं चाहती हूं की तुम जितेंद्र ठाकुर से शादी कर ठाकुर निवास पर रहकर उनका और उनके परिवार का ध्यान रखो। इसके साथ ही वर्षो से दबी अपनी अभिलाषा को पुरी करो।"

नैना ने स्पष्ट बता दिया। नैना ने राजेंद्र ठाकुर और उनकी पत्नी कौशल्या को सबकुछ बताकर अपने विश्वास में ले लिया था। दोनों ने नैना की अभिलाषा पूर्ण करने का वचन उसे दे दिया था। नैना को तनुश्री से अधिक विश्वास किसी अन्य लड़की पर नहीं था जो अपने प्राणों से अधिक जितेंद्र ठाकुर से प्रेम कर सके।

स्मिता का नैना के बिना रो-रोकर बुरा हाल था। महेश सोलंकी और तरूणा सोलंकी ठाकुर निवास के चक्कर लगा-लगाकर थक गये थे। नैना का उन्हें कूछ भी पता नहीं चल रहा था। यशवंत ठाकुर, अपने होने वाले पोते-पोतियों के विरह में प्राण त्याग चूके थे। माला ठाकुर लम्बी तीर्थ यात्रा पर निकल चूकी थी। जितेंद्र ठाकुर से मिल पाना महेश सोलंकी के लिए टेढ़ी खीर बनता जा रहा था। कौशल्या से नैना के विषय में उन्हें ठीक-ठाक उत्तर नहीं मिल रहा था। नैना ने स्वयं कौशल्या को उसका पता उसके मायके वालों से छुपाकर रखने को कहा था। स्मिता और तरूणा सोलंकी की दयनीय स्थिति देखकर कौशल्या ने नैना से कहा कि वह स्वयं अपने माता-पिता से बात कर ले। ताकी नैना की कुशलता जानकर नैना के माता-पिता और छोटी बहन को मानसिक तसल्ली प्राप्त हो सके।

नैना से रहा नहीं गया। उसने अपने माता-पिता से मोबाइल पर बात कर उनका और अपना मन हल्का कर लिया। स्मिता अपनी नैना दीदी से मिलना चाहती थी क्योंकि नैना देवास आने से इंकार कर दिया था। स्मिता ने नूतन को सभी विवरण कह सुनाया। श्रीलंका जाकर नैना से मिलना और उसे समझा बुझाकर भारत ले आना नूतन के लिए कोई सरल कार्य नहीं था। स्मिता ने नूतन का मनोबल बढ़ाने के बहुत प्रयास किये। उसे नैना से उसकी दोस्ती का वास्ता देकर श्रीलंका चलने के लिए रजामंद कर ही लिया। महेश सोलंकी नहीं चाहते थे स्मिता और नूतन श्रीलंका अकेले जाये। किन्तु तरूणा सोलंकी की नाजुक शारीरिक हालत के आगे वे विवश हो गये। नूतन ने अकेले ही श्रीलंका जाकर नैना को सकुशल भारत ले आने की बहादुरी दिखाने का संकल्प ले लिया। ताकी स्मिता अपनी बीमार मां का ख्याल रख सके। महेश सोलंकी आयकर ऑफिस में क्लर्क होने के कारण ज्यादा छुट्टी भी नहीं ले सकते थे। महेश सोलंकी की अनुपस्थिति में तरूणा सोलंकी का ध्यान रखने के लिए स्मिता का घर रूकना बहुत जरूरी था। वीजा और पासपोर्ट बनवाकर नूतन श्रीलंका जाने के लिए तैयार हो गयी। नैना की दोस्ती के समर्पण को देखकर उसका मंगेतर विक्रम नैना के साथ श्रीलंका जाने के लिए तैयार हो गया। विक्रम की उपस्थिति से नूतन का मनोबल सांतवे आसमान पर पहुंच गया।

जितेंद्र ठाकुर तनुश्री से विवाह करने के लिए हरगिज तैयार नहीं थे। तनुश्री और कौशल्या द्वारा जितेंद्र को समझाने के सभी प्रयास असफल होते जा रहे थे।

"जितू! अगर उपमुख्यमंत्री की बनना है तो तुम्हे तनुश्री से शादी करनी होगी।" राजेन्द्र ठाकुर ने अपने छोटे भाई जितेंद्र को समझाया।

"नहीं बनना भैया मुझे उपमुख्यमंत्री। नैना के अलावा में किसी से शादी के बंधन में नहीं बंध सकता।" जितेंद्र ने अपना मत रख दिया।

"समझने की कोशिश करो, जितू! यहां बात तुम्हारी और नैना की नहीं है। बात यहां हमारे देवास की है। पिताजी ने जिस स्वर्णिम देवास का सपना देखकर मुझे छोड़कर तुझे विधायक बनाया। क्या तु उनके भरोसे का यह फल देगा? उनको लगता था कि उनके स्वप्न को तु ही पुरा कर सकता है।" राजेन्द्र ठाकुर बोलते हुये जज्बाती हो गये।

"जितू! अगर तु उपमुख्यमंत्री नहीं बना तो कोई और उपमुख्यमंत्री बन जायेगा। हो सकता है कि वह हमारे देवास के लिए कुछ भी न करे। और यह सिर्फ उपमुख्यमंत्री का ही सवाल नहीं है। याद रख! आगे भविष्य में तुझे पुरे प्रदेश का मुख्यमंत्री बनना है। और यह बिना राधेश्याम भुल्लर के सहयोग से नहीं होगा।" राजेन्द्र ठाकुर बोला।

"मगर भाईसाहब! नैना के साथ बेवफाई कैसे करूं?" विधायक महोदय बोले।

"उसी नैना ने तुझे तनुश्री से शादी करने के लिए मुझे कहा है।" राजेन्द्र बोले!

"क्या।" जितेंद्र ठाकुर ने आश्चर्य प्रकट किया।

"हां जितू। नैना चाहती कि पिताजी की अभिलाषा हर कीमत पर पुरी होनी चाहिए। इसी लिए नैना तुझसे दूर रहने को भी तैयार हो गयी। पिताजी और नैना ने के बलिदान की लाज अब तुम्हारे हाथ में जितू!" राजेन्द्र ठाकुर बोलकर जा चूके थे।

कौशल्या भाभी का भी यही अभिमत सुनकर जितेंद्र तनुश्री से विवाह करने की दिशा में विचार करने पर विवश हो गया।

जितेंद्र आत्मचिंतन में खो गया। आज के अपने सारे कार्यक्रम निरस्त कर वह विचार मग्न हो गया।

राधेश्याम भुल्लर ने राजेंद्र ठाकुर को देवास शहर से सांसद का टीकीट दिलवाने का अपना वादा पुरा कर दिया। जितेंद्र और तनुश्री की शादी पुरे देवास शहर में चर्चा का विषय बन चूकी थी।

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