नारीयोत्तम नैना
भाग-4
"लेकिन तुम्हारी सफलता में रक्षंदा का हाथ है इससे तुम इंकर नहीं कर सकते।" नूतन बोली।
"निश्चित ही मैं आज जो कुछ भी हूं वह रक्षंदा की बदौलत हूं। और इससे मुझे इंकार भी नहीं है।"
अजीत बोला।
"फिर तुम रक्षंदा से शादी क्यों नहीं करना चाहते? क्या तुम इससे अब प्रेम नहीं करते? " नैना ने पुछा।
"नहीं दी! मैं रक्षंदा से अब भी उतना ही प्रेमत करता हूं जितना कल करता था। मगर अब परिस्थितियां बदल गई है।" अजीत बोला।
"तुम बहुत धनवान बन गये हो क्या इसलिए या कोई दुसरी लड़की मिल गयी है तुम्हें इसलिए?" नूतन ने चिढ़ते हुये कहा।
अजित ने बनावटी हंसी बिखेर दी।
"नूतन! जब मैं रक्षंदा के पास अपने प्रेम का प्रस्ताव लेकर आया था तब अगर रक्षंदा मेरे प्रेम को स्वीकार कर मुझे क्रिकेटर बनने का कह देती तब मुझे अधिक प्रसन्नता होती? लेकिन रक्षंदा ने मुझसे कहा कि पहले में एक सफल क्रिकेटर बनकर आऊं! तब वह मुझे स्वीकार करेगी।" अजीत ने कहा।
नैना को अब अजीत की रक्षंदा के प्रति बेरूखी का कारण धीरे-धीरे पता चलने लगा था।
"क्रिकेटर बनने के लिए मैंने काॅलेज की एक्जाम नहीं दी। उसमें फैल हो गया। आठ-आठ घण्टे मैंने प्ले ग्राउंड पर प्रैक्टिस की। क्रिकेट के सीनियर खिलाड़ीयों से प्रताड़ित हुआ। सिलेक्शन कमेटी ने मुझे बहुत बार रिजेक्ट किया। फिर एक दिन आईपीएल फ्रेंचाइजी ने मुझे खरीद लिया। प्लेइंग इलेवन में एक खिलाड़ी के चोटिल होने पर मुझे मैदान पर खेलने का अवसर मिला। सौभाग्य से बल्ला चल निकला। कुछ नाम हो गया।" अजीत बता रहा था।
"यदि क्रिकेटर नहीं बन पाता तो मेरी स्थिति धोबी के कुत्ते के समान हो जाती। जो न घर का होता और न घाट का। पढ़ाई तो मेरी पहले ही छुट चूकी थी, उस पर क्रिकेट में असफलता मेरे लिए किसी सदमें से कम नहीं होती।" अजीत की बातों का किसी के पास कोई जवाब नहीं था।
"मैं अब भी रक्षंदा से विवाह करने को तैयार हूं लेकिन आपको पता होगा कि आज के समय में किसी भी क्रिकेटर का भविष्य सुरक्षित नहीं है। जब तक बल्ला चल रहा है, लोग सिर आंखों पर बैठा लेते है और जैसे ही फार्म गायब हुआ टीम के साथ-साथ फैन्स भी भुला देते है। कल को मेरा क्रिकेट कॅरियर आशानुरूप सफलता पर बना नहीं रह सका तो! तब रक्षंदा की अप्रसन्नता शायद मुझसे बर्दाश्त न हो! बस इसीलिए मैंने रक्षंदा को विवाह हेतु मना कर दिया था।" अजीत ने ह्रदय में छुपी सभी बातें बता दी।
रक्षंदा को अपने किये पर पछतावा था। यह अनुमान उसकी आंखों से बह रहे आँसुओं से को देखकर लगाया जा सकता था।
"अजीत! तुम्हारे मुंह से एक आदमी के मन की बात सुनकर अपने साधारण होने पर गर्व हो रहा है। तुम साधारण आदमी अवश्य हो लेकिन तुम्हारे विचार आकाश जितने उंचे है।" नैना ने अजीत के कांधे पर सहानुभूति पुर्वक हाथ रखते हुये कहा।
"निश्चित ही तुम्हें अपने सेलीब्रिटी बनने का घमंड नहीं बल्कि अपनी निजी पहचान खो जाने का दुःख है। हम सभी उस मध्यमवर्गीय परिवार से आते है जहां केवल सपनों में सफलता के शिखर पर पहूंचना ही प्रसन्नता का कारण बन जाता है। किसी अच्छे डांसर को को नाचते हुये देखा तो मन करता है कि डांसर बन जाये। फिल्मों में नायक के अभिनय से प्रभावित होकर अभिनेता के समान बनने का स्वप्न देखने लग जाते है। पोलिटीशियन के विलासिता पुर्ण जीवन को देखकर पोलिटीशियन बनने का मन करता है। लेकिन एक आम आदमी इनमें से कुछ नहीं बन पाता। वह केवल एक साधारण आदमी ही बनकर रह जाता है। और मजे की बात यह कि इसमें भी वह अपने मन को समझा लेता है।" नैना ने बताया।
"कहीं पढ़ा था कि ईश्वर को साधारण व्यक्ति अधिक पसंद थे, इसलिए उसने पृथ्वी पर सर्वाधिक साधारण व्यक्ति ही बनाये। साॅरी अजित हमने तुम्हें गलत समझा।" नूतन अजीत से बोली।
"आई एम साॅरी अजीत। मुझे माफ कर दो। मैं तुम्हें हृदयतल से प्रेम करती हूं। प्लीज! मुझे स्वीकार कर मेरे दोषों को भुला दो। तुम जैसे भी हो मुझे पसंद हो। मैं हमेशा तुम्हें इसी तरह प्रेम करती रहूंगी। ये मेरा वचन है।" रक्षंदा ने अजीत से कहा।
"हां अजीत! रक्षंदा तुमसे सच्चा प्रेम करती है। तुम क्रिकेटर रहो या नहीं, वो सदैव तुम्हें ही चाहती रहेगी। और तुम मानो या न मानो, तुम्हारे क्रिकेट मैच देखना रक्षंदा कभी मिस नहीं करती है। तुम्हारे विषय में कोई भी न्यूज हो, उसे बढ़े चाव से पढ़ती है। और वह तुम्हारा मंदिरा बेदी को दिया गया प्रसिद्ध इन्टरव्यूह! रक्षंदा वह इन्टरव्यूह पचास बार देख चूकी है। ये हमें भी प्रतिदिन फोन लगाकर तुम्हारे चौके और छक्कों की कहानियां सुनाया करती है। वाकई में रक्षंदा तुम्हारी बहुत बड़ी फैन है।" नैना बोली।
"माफी तो मुझे भी मांगनी चाहिये आप सभी से। मुझे इस ऊंचाई पर पहूंचाने में रक्षंदा का बहुत बड़ा योगदान है। यह मैं कैसे भुल गया? उसे थैंक्स बोलने के बजाये मैं उस पर नाराज था। आई एम साॅरी रक्षंदा!" कहते हुये अजित ने रक्षंदा को अपने गले से लगा लिया। हृदय में जमी मैल की परतें धुल चूकी थी। बिछड़े पुनः मिल गये। रक्षंदा की आंखो में नैना के प्रति धन्यवाद के भाव उभर आये थे।
अजित और रक्षंदा का मिलाप नैना के एक सुखद अनुभूति थी। नूतन के साथ नैना दोनों प्रेमीयों को अकेला छोड़कर वहां से चले गयी।
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विकास नगर में कुछ दिन छोड़कर युवा विधायक महोदय दौरा करने अवश्य पहूंच जाते। रहवासियों के साथ नैना ने भी ध्यान किया कि जितेंद्र की उस पर विशेष कृपा हो रही है। वह प्यार है या कुछ और? नैना यह समझने में लगी ही थी कि रहवासीयों ने विधायक महोदय और नैना के संबंध के विषय में चर्चा आरंभ कर दी।
"आदरणीय विधायक महोदय! कभी अमन नगर भी पधारे। वहां भी समस्याओं का अम्बार लगा है। आप हमेशा विकास नगर में ही पड़े रहते है।" अमन नगर रहवासी पिन्टू बोला। वह विकास नगर में विधायक जी को ढूंढते हुये वहा पहूंचा था। पिन्टू के साथ अमन नगर के कुछ रहवासी भी थे।
नैना के पिता महेश सोलंकी मुस्कुरा दिये। वे विधायक महोदय के साथ बाहर सड़क पर खड़े-खड़े चर्चारत थे। नैना अपने मकान के सेकण्ड फ्लोर पर खिड़की से खड़े-खड़े ये नजारा देखकर मुस्कुरा रही थी।
"हां हां क्यों नहीं! चलते है अमन नगर भी। क्या समस्या है अपकी वहां।" विधायक महोदय बोले।
"सर आप वहां चलेंगे तब ही बता सकेंगे न! अब यहां से कैसे बताये। आखिर हमने भी आपको वोट दिया है।" निर्भीक पिन्टू बोला।
अपने निज सहायक सचिव आकाश को लेकर विधायक महोदय अपनी कार में बैठकर अमन नगर की ओर चल दिये। विधायक जी नैना को पसंद करने लगे थे इसमें कोई संदेह नहीं था। कुछ ही महिनों में लगातार विकास नगर के सघन निरीक्षण में विधायक महोदय ने बदहाल विकास नगर की काया पलट कर दी थी। विकास नगर को आदर्श नगर घोषित करने में विधायक महोदय ने कोई कसर नहीं छोड़ी।
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ये नुतन का भाई राकेश ही था। जो अपनी बाइक की पिछली सीट पर कामिनी को बैठाकर सरपट दौड़े जा रहा था। कामिनी के विषय में नैना भलीभाँति जानती थी। शरीर पर कपड़ो की तरह लड़को को बदलने वाली कामिनी के प्रेम जाल में इस बार राकेश फंस चूका था। नैना को अपनी सबसे पसंदीदा सहेली के नूतन की भाई के लिए चिंता होने लगी थी। कामिनी के संबंध अन्डरवर्ड में कुछ बुरे लोगों से भी थे। धन लोभ में वह युवा लड़को को अपने सौन्दर्य वशीकरण का ऐसा मंत्र फेरती, जिससे युवक मदमस्त होकर अपनी सारी जमा पूंजी कामिनी पर सादर समर्पित कर देते थे। नैना को राकेश के धन से अधिक उसके सकुशल जीवन की अधिक परवाह थी। कामिनी द्वारा पुर्व में ठगी के शिकार हो चूके युवक या तो शर्म के मारे शहर छोड़कर अन्यत्र चले जाते अथवा कुछ युवक सब-कुछ सहते हुये बिना किसी को कुछ बताये अन्दर ही अन्दर घुटते रहते। प्रीतम नाम के युवा लड़के पर अपने बलात्कार का आरोप लगाकर कामिनी ने दस लाख रूपये वसुलकर प्रीतम को आत्महत्या करने पर विवश कर दिया था। प्रीतम की आत्महत्या पर कामिनी को कोई अंतर नहीं पड़ा था। कामिनी को अपने किये पर कभी कोई पछतावा नहीं हुआ। वरन वह पुर्व के कृत्य की सफलता से उत्साहित होकर अगले शिकार पर अपने मोह जाल में फंसाने की तैयारी में लग जाती। पुलिस महकमे में उसके विरूद्ध बहुत-सी शिकायतें लम्बित थी। कामिनी के सौन्दर्य के दीवानें वहां भी उपस्थित थे जो उसके हित का पुरा ख्याल रखते थे। कामिनी का मनोबल दिनों-दिन बढ़ता ही जा रहा था। राकेश को अपने हुस्न के जाल में फंसा कर वह अपनी पुर्व निर्धारित योजना पर कार्य कर रही थी। कामिनी के सहयोगतार्थ कुछ लोग भी थे, जो उसके समस्त कृत्यों में बराबरी के हिस्सेदार थे। कामिनी उन सभी की प्रधान थी।
"समझने की कोशिश करो भाई! वह लड़की तुम्हारे लिए ठीक नहीं है।" राकेश को उसकी बहन नूतन समझा रही है।
"जब यही बात मैंने पृथ्वी के लिए तुमसे कहीं थी कि पृथ्वी तुम्हारे लिए ठीक नहीं है तब तुमने कहां मुझे क्या कहा था? 'अपने काम से काम रखो। मेरे निजी कामों में दखल मत दो।' मैं भी तुम्हें यही कह रहा हूं कि अपने काम से काम रखो। मेरे निजी कामों में दखल मत दो।" राकेश क्रोधित होकर बोला।
"पृथ्वी मेरी भूल थी राकेश। मुझसे उनसे फ्लर्ट किया था। इसलिए समय रहते मैंने उसे छोड़ दिया ।" नूतन भी दहाड़ी।
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