अधूरी हवस - 21 Baalak lakhani द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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अधूरी हवस - 21


अलमारी के ऊपर के बर्तन नीचे गिरते हैं, ओर उसकी आवाज से राज ओर कविता दोनों नींद मे से जाग जाते हैं, दोनों को हडबडी मे जागते देख मिताली की जोर से हसी निकल आती हैं,

राज : क्या हुवा?..
साथ मे कविता भी क्या हुवा?

मिताली : कुछ नहीं बिल्ली रानी थी.

राज : तुम जाग रही हो? कितने बजे? आके मुजे जगाने वाली थी जगाया नहीं?

मिताली : हा नींद नहीं आ रही थी, चार बजने को आए हैं, और आप अच्छी नींद मे सो रहे तो जगाने का दिल नहीं किया.

कविता : अरे तू तो नहीं सोई मुजे तो सोने दे.

मिताली : अरे बाबा सो जा तूजे कोन मना कर रहा है.

कविता : इतनी जोर से बाते करेंगे आप लोग तो नींद कहा आएगी (इतना बोलकर कंबल खिंचकर सो गई.

राज : तुम्हें सो जाना चाहिये था, कल पूरा दिन थकान होगी, थकान के कारन तुम्हारा चेहरा मुरझाए मुरझाए लगेगा, अभी भी वक़्त हे थोड़ा आराम कर लो, चलो सो लो थोड़ा.

मिताली : नहीं मुजे नींद नहीं आने वाली, आप को सोना हो तो सो जाइए, मुजे एक घंटे बाद वेसे भी जागना हे.

राज : ठीक है , तो मे भी नहीं सोता चलो.
(मिताली के सामने आके बैठते हुवे)

मिताली : पागलदास सो जाइए.

राज : अब मुजे भी नींद नहीं आयेगी, एक बार टूट जो गई.

मिताली : एक बार टूट जाए तो फिर वोह बात कहा जो टूटे पहेले होती है.

राज : ए तो हमारी सोच पर निर्भर करता हे, बात करके गलतफेमि हो वोह दूर होती है,
ऎसे क्यू ताना मार रही हो साफ साफ कहो ना मे सुन रहा हू.

मिताली : मे भला आपको ताना मारने वाली होती कोन हू?

राज : अच्छा? ए तो तुमसे भला और कोन बता सकता है. अच्छा तुम उस दिन की बात को लेके अभी भी नाराज हो?

मिताली : (राज की आँखों में आँखे डालते हुवे, कहना तो चाहती थी पर बात को घुमाते हुवे ) नहीं नाराज़ आप से थोड़े रहे सकती हू मे बहोत बहोत तो दो या चार घंटा, फिर अपने आप को समजा ही तो लेती हू हर वक़्त.

राज : हा यहि तो तुम मे खास बात हें, जो मुजे सबसे ज्यादा भाति है. अच्छा तुम मुजे कुछ कहने वाली थी ना?

मिताली : क्या ये सही फेसला हे? में केसे वहा सेट हो सकूंगी? मुजे बहोत ही एक अजीब सा डर लगा रहेता है, अभी भी सब खत्म हो सकता है, एक फोन घुमाव और तमाशा खत्म.

राज : (मिताली के हाथो को अपने हाथो मे पकडते हुवे) कुछ करने की जरूरत नहीं ये जो सब हो रहा है ना? सब सही हो रहा है, इस मे ऊपर वाले की मर्जी छुपी ही, तुम मे कितने भी उबाल मारे होता वहीं हे जो मंजूर खुदा होता है.

मिताली : (तिलमिला के) क्या अच्छा हो रहा है, सब कुछ तो छूट रहा है, रेत की तरह फिसल रहा है, और मे उस भंवर मे फंसी देख रही हूँ अपने आप को.

राज : नहीं नहीं ऎसा मत सोचों, एसा सोचना
ही गलत है, अलग होने से कोई मर नहीं जाता, ब्लकि और मजबूत होते हे जो एक रिश्ते से निकले कर दूसरा रिश्ते मे जुड़ते हे, नए रिश्ते को सम्भाल ने की दुगनी ताकत मिलती हे.

मिताली : आप तो मुजे बातों मे डूबा ही देते हो मे क्या कहु और आप कहा ले के चले जाते हैं, बातों से तो आपसे जीत ही नहीं सकती.

राज : कभी कभी हरना जरूरी हो जाता है.
किसी खास के लिए.

मिताली : छोड़ ये बताये के आप आज मुजसे ज्यादा बात नहीं कर रहे थे? बार बार उठ कर दूर भागते रहते थे, नजरे चुरा रहे थे?
क्यू?

राज : कहा तुम्हारे साथ ही तो था पूरा दिन.

मिताली : हा थे पर दिल से तो नहीं, क्या आपकी बीवी के पास था दिल?
( मस्ती करते हुवे)

राज : कहा एसा तुम्हें लगता हे पर एसा कुछ नहीं था.

मिताली : मेरी आँखों मे देख कर बात करिए ना पलके क्यू झुका ली आपने?

राज : अरे बाबा तुम बात का बतागड़ बना रही हो.

मिताली : खेर आपकी आदत ही हे बात को घुमा देने की. अच्छा बताये आप अब रोज बात करते हे ना आपकी पत्नी से? मेने आपको रोज बात करने को कहा था, उसकी तबीयत तो ठीक हे ना दोनों की?

राज : हा ठीक हे बिल्कुल मस्त है.

मिताली : जूठे फिर से झूठ ही बोल रहे हो आप, अगर सच होता तो मेरे सामने देख कर बात करते, देखिए मेरे सामने आंखो मे, रोज एक बार ही सही पर कुछ पल के लिए भी बात करना उनसे, आप आदत डालिए अब, मेरे वहा जाने के बाद मे बात कर पाऊँगी या नहीं आपसे ये वक़्त ही बतायेगा, वेसे तो मुजे बड़े समझाते फिरते हे आप, और आप ख़ुद वोह गलती करते रहते हों तो आप सुधारे पहेले वोह गलती फिर किसीको सलाह देने बैठिए. चलिए वादा कीजिए.

राज : हा बाबा वादा बस?

मिताली : नहीं ऎसे नहीं मेरी आँखों मे आँखे डालकर कीजिए.
राज : हा बाबा अब खुश वादा बस.

मिताली : हा, नहीं.. अभी और भी हे..कल आप मेरी बिदाई तक मेरी आँखों के सामने ही रहेंगे कविता के साथ ही बैठना, फिर कल मुजे आप अपने हाथो से मंडप तक छोड़ने आयेंगे...

राज : ये क्या पागलपन वाली बाते कर रही हो? ए अच्छा नहीं लगेगा सब क्या सोचेंगे?

मिताली : समज लीजिए ये मेरी आखिरी इच्छा है, और क्या मे आपसे कुछ मांगने का हक़ नहीं रखती?

राज : हा हे तुम्हारा हक बनता है.

मिताली : कल मे हमारे इस रिश्ते से दूर , आप मेरी माँ और भाई की खबर लेते रहना, ज्यादा नहीं तो महीने मे एक बार तो उन से बात करते रहना, और आपको भी अपनी पत्नी से ज्यादा बात करने की आदत डालनी होगी. ( अपना फोन नीचे गिराते हुवे, उठाने के बहाने राज पर छू लेती है, पेर छूते वक़्त मिताली के आँखों से आंसू की बूंद राज के पेर पर गिर जाती है, राज अपने पेर पीछे हटाते हुवे)

राज : अरे तुम उठो एसा नहीं करते (मिताली को अपने हाथो से ऊपर उठाता है) खडी हो जाओ मुजे एसा अच्छा नहीं लगता.
(मिताली के आँखों से आंसू पोछते हुवे राज मिताली का माथा चूम लेता है,) तुम बहोत खुश रहना सब से मिलजुल कर प्यार बनाए रखना अपने ससुराल मे, और एक खास बात तुम वहा जाकर मुजे कोल मत करना, हाँ अगर कोई भी तकलीफ लाइफ मे आ जाती है, तो बेधड़क कोल करना.

मिताली : मुजे तकलीफ हो तो ही आपसे बात कर सकती हू? वर्ना नहीं? हमसे ये नहीं हो पायेगा.

राज : नहीं तुम्हें ये करना ही होगा वहाँ ससुराल से मुजे कॉल नहीं करोगी मतलब नहीं करोगी.

( मिताली रोने लगती हे और राज के गले लग जाती है, उतने मे कविता अपना कंबल उठाकर बोलती है,)
कविता :मुजे भी तुम दोनों गले लगाओ अकेले अकेले अब रोया नहीं जाता आप की बाते सुनकर, बहोत हो चुका मे आ रही हू.

राज ने हाथो से पास आने का इशारा किया कविता दोड़ कर दोनों के गले लग गई, और दोनों को सान्त्वना देता हे,
और जेसे बैकग्राउंड मे गाना बजता हों " लंबी जुदाई....." बड़ी मुस्किल से कविता और मिताली को अपने से अलग करता हे और चुप कराता है.

राज : चलो चलो घड़ी मे देखों सुबह हो गई पार्लर मे नही जाना क्या? चलो नहाने जाइए तो दोनों आप राजकुमारी जी.

(मिताली और कविता हस्ते हुवे)
मिताली :जी राजा साहब आपका हुकुम सर आँखों पर.
(कहेके दोनों राज के कमरे से बहार निकल गई.)

राज भी रेड्डी होकर दोनों को पार्लर के लिए लेके जाता हे उन्हें, दुल्हन को सज़ाकर जहा शादी होने वाली होती है उस होल मे लेके आता हे. और दुल्हन के कमरे मे बिठाकर बाहर चला आता है, बैंड बाजे के साथ बारात भी पहुंच जाती है, पूजा विधि के लिए पंडित जी लड़की को बुला रहे हैं, पर मिताली नहीं जा रही होती है, उसकी आँखे राज को ढूंढती हे पर राज वहा पर नहीं दिखता, उसके भाई को कहती हे, मुजे राज मंडप तक छोड़ एसी मेरी तमन्ना हे, उसका भाई तुरंत राज को ढूंढ़ने चला जाता है, कविता भी ढूंढने जाती है, राज होल के बाहर होता है, उसका भाई उसे पकड़ कर मिताली के पास लेकर जाता है.

मिताली : कहा चले गए थे आप? आपको कहीं नहीं जाना हे आपको बोला तो था.

राज :कोल आ गया था तो बाहर था. (बहाना बता दिया)
मिताली राज का हाथ पकड़ कर मंडप की ओर बढ़ती ही, होठों पे बनावटी मुस्कराहट हे दोनों के चहरे पे, ऐक्टिंग मे दोनो एक दूसरे को टक्कर दिए जा रहे हैं.
मिताली : चलिए हो सके तो मुजे माफ करना मेरे कारण आपका दिल दुखा हो तो नादां समझकर मुजे माफ करना,पर नफरत कभी मत करना, हमेशा के लिए जा रही हू मेरी नई जिंदगी मे.

राज : खुशी खुशी जाओ.

मिताली को मंडप मे छोड़कर नीचे उतर गया और कविता के पास जाके बेठ गया, मिताली थोड़ी थोड़ी देर मे राज को देखती रहती थी, शायद वोह उस आखिरी लम्हे को कैद कर रही थी.

कविता : एक बात पूछूं क्या?

राज : हा हा पूछ बिंदास.

कविता : इस वक़्त आप के दिल मे क्या महसूस हो रहा है.

राज : (हस्ते हुवे) किसी गूंगे गो पेड़ा खिलाकर पूछो के बेटा बता ये केसा हे?
बस उसके जेसा लग रहा है.

कविता : इससे तो अच्छा होता नहीं आए होते आप एसा लगता हे ना?

राज : हा पर नहीं आता तो इसकी हसी नहीं देख पाता. (मिताली की तरफ़ इशारा करते हुवे, उधर मिताली को भी एसा लगा कि दोनों मुजे देखकर कुछ कहते हें, तो वोह भी आँखों के इशारे से ही पूछती हे, पर राज सर हिला कर ठीक है बोलता है.)


धीरे धीरे विदाई का वक़्त नजदीक आ रहा होता है, और राज वहा से उठ कर जाने का बहाना बना रहा होता है मिताली का ध्यान नहीं होता तभी राज वाह से गायब हो जाता है.

उधर मिताली की आँखे उसे ढूँढती है, कविता को बुलाकर कहती हे बुला कर ला पर राज उस वक़्त कहीं दिखता ही नहीं, कविता नहीं लेकर वापस लौटती है,

राज दूर से सब देख रहा था पर राज को कोई नहीं देख रहा था, कार मे बैठते वक़्त भी मिताली की आँखे राज को ढूँढती थी पर राज सामने नहीं आया.

बिदाई करके सब अब महमान घर लौट रहे हैं थे, राज भी अपना समान मिताली के घर से लेने जाता है, तो कविता उनका समान लिए राज की कार के पास खडी थी.

राज : ओह तुम यहा खडी हों कुछ बाकी रहे गया क्या?

कविता : हा आपकी उसका हुकुम था तो निभाना पड़ता है, अखिर कर वोह भी तो मेरी जान हे.

राज: हा हे ही और होनी भी चाहिए.
(दोनों हसने लगते हैं, राज कार की डिक्की खोलता है, और सारा सामान कार मे रखता है, कविता को कहता है, में सबको अन्दर मिलकर अलविदा कहे कर आता हू)

कविता : जिसको अलविदा कहना तो उसे तो कहा नहीं और वोह आपको कार मे बैठते वक़्त भी पूछा कहा हो आप पर आप तो छूमंतर ही हो गए.

राज : हा मालूम हे मुजे, उस वक़्त वहा आना मुजे सही नहीं लगा, अगर होता तो वोह सबके सामने गले लग कर रोती और हालातों को सम्भालना मुस्किल हो जाता.

कविता : अच्छा इसीलिये आप नहीं रहे वहा?
राज :में आया दो ही मिनिट मे तुम जाना मत.

राज अंदर मिताली के भाई और माँ को मिलने जाता है और सबको अलविदा कहेके वहा से जाने की अनुमती लेता है.

उसका भाई राज का शुक्रिया अदा करता हे, और कहता हे दीदी आपको बहोत मानतीं है, इसलिये आप उनकी कोई बातों का बुरा मत मानना.

राज : आरे एसा कुछ नहीं ए तो मेरा फ़र्ज़ था. तो अब मुजे आज्ञा दीजिए मे भी बिदा लेता हू, और कोई काम हो तो मुजे कोल जरूर करना.

मिताली का भाई : ठीक हे आराम से जाइएगा.

राज : जी शुक्रिया.

कहेके वहा से बहार आता हे और कविता को कहता हे चलो तो मे निकलता हू अब.

कविता : एक मिनिट कुछ हे आपके लिए मिताली ने दिया था.
(कहे कर एक लिफाफा राज के हाथ मे थमा देती है,) इसे आप घर जाकर पढ़ना बीच मे मत पढ़ लेना, बस इतना ही सम्भाल कर जाना और आप जब भी वहा पहुंचे तब फोन जरूर कर दियों.

राज : ठीक हे.
कविता को अलविदा कहेके राज कार लेकर निकल जाता है, अपने घर जाने को, लंबा रास्ता बहोत ही लंबा हुवे जारहा था मानो एक पल युगों जेसा लग रहा था, मंजिल कटती ही नहीं, उसके सामने वोह सारे पल चलते थे वोह बहुत बेचने किए जा रहे थे राज को जेसे तेसे वोह घर पहुँचा और सो गया, बहोत थक हुवा था बिस्तर पर गिरते ही सो गया, सोया सो सोया सीधा शाम को उठा, और रेड्डी होकर ऑफिस को निकल जाता है, रास्ते मे, आकाश को कोल करके ऑफिस पे बुलाता हे.

थोड़ी देर बाद आकाश आता है, और चिल्लाता हे, पागल अकेले गया इतना दूर, मुजे साथ ले जाता, मे माना थोड़े ही करता तूजे, राज आकाश को ठंडा करता हे.

आकाश : केसी रही शादी?
राज : बहोत अच्छी रही.
आकाश : तुम्हें जाना नहीं चाइये था वहा, तुम्हें नहीं लगा तुमने गलती की?
राज : हा जाने नहीं चाहिए था पर अच्छा ही हुवा मे वहा गया वर्ना.

आकाश : वर्ना? वर्ना क्या?

राज : चल ठेके पे जाते हे वहा बात करेंगे.

आकाश समज़ जाता है, कि भाई आज टल्ली होने के मूड मे हे.

"टूटे हुवे आशिक और उजड़ी हुई रियासतों के सुल्तान का एक ही आखिरी ठिकाना मयखाना होता है."

वहा जाकर राज बहोत ही नशा करता हे, आकाश के माना करने के बाद भी, और डीजे वाले को बार बार एक ही सोग बाजने की फर्माइश पे फर्माइश किए जाता है,
"और इस दिल मे क्या रक्खा हे... "
केसे भी करके आकाश उसे वहा से लेकर उसको उसकी ऑफिस पर छोड़ देता है, और वोह निकल जाता है, राज के घर कोल करके बता देता हे कि वोह ऑफिस पर ही सो गया हे उसका इंतजार ना करे,

उधर राज को कविता ने दिया हुवा लिफाफा याद आता है मिताली का , और उसे ढूंढ के पढ़ता है,

लिफाफा पढके राज पागल सा हो गया वोह फिर अकेला नशे की हालत मे ठेके पे चला जाता है.

क्रमशः.........

आख़िर ऎसा क्या मिताली ने लिखा था अगले पार्ट मे...

कहानी अच्छी लगती है तो आप रेटिंग जरूर देते रहिए 🙏🙏🙏🙏🙏