व्योमवार्ता/ ईमरजेंसी की इनसाईड स्टोरी : व्योमेश चित्रवंश की डायरी, 17 जनवरी 2020
जब देश मे इमरजेंसी लगी थी तो हम चार पॉच साल के उमर के रहे होगें। ईमरजेंसी खत्म होने के बाद चुनावों मे अपने परिजनों के जोश की हल्की हल्की यादें है हमारे जेहन में। जब अपने चाचा के साथ गॉव वालों को चक्र मे हलधर का पीला हरा झण्डा उठाये साथ मे हम लोग भी जोर जोर से नारा लगाते थे "जेपी, जनता जयप्रकाश'और ' जयप्रकाश का विगुल बजा है, हवा नही यह ऑधी है'। थोड़े बड़े हुये तो इमरजेंसी मे हुये सरकारी दमनतंत्र के ढेरों किस्से सुनते थे पर कोई प्रामाणिक इतिहास नही पढ़ा । ईमरजेंसी के बीस साल , पचीस साल और तीस साल पूरे होने पर अखबारों मे इन घटनाओं और कई लोगों का संसमरण पढ़ने को मिला तो उत्सुकता और बढ़ती गई। हाल मे ही प्रख्यात पत्रकार कुलदीप नैय्यर की लिखी पुस्तक "ईमरजेंसी की इनसाईड स्टोरी" मिली तो उसे पढ़ने से खुद को रोक नही पाया। हालॉकि दिसंबर मे खूब किताबें पढ़ने के बाद जनवरी मे पता नही क्यों किताबें पढ़ने की गति अत्यंत धीमी होगई है, शायद ठंड के काऱण या छुट्टियों के पश्चात काम के बोझ से, फिर भी जब ईमरजेंसी के बारे मे पढ़ने बैठा तो पूरा कर के ही उठा। ईमरजेंसी हमारे लोकतंत्र मे
सत्तर के दशक का कड़ुआ इतिहास है , जिसे परत दर परत नैय्यर जी ने बेहद खूबसूरती से ईमरजेंसी के पीछे की सच्ची कहानी को शब्दों मे पिरोया है। इमरजेंसी के घटनाओं की शुरुआत उड़ीसा में 1972 में हुए उप-चुनाव से हुई। लाखों रुपए खर्च कर नंदिनी सत्पथी को राज्य की विधानसभा के लिए चुना गया था। गांधीवादी जयप्रकाश नारायण ने भ्रष्टाचार के इस मुद्दे को प्रधानमंत्री के सामने उठाया। उन्होंने बचाव में कहा कि कांग्रेस के पास इतने भी पैसे नहीं कि वह पार्टी दफ्तर चला सके। जब उन्हें सही जवाब नहीं मिला, तब वे इस मुद्दे को देश के बीच ले गए। एक के बाद दूसरी घटना होती चली गई और जे.पी. ने ऐलान किया कि अब जंग जनता और सरकार के बीच है। जनता जो सरकार से जवाबदेही चाहती थी और सरकार जो बेदाग निकलने की इच्छुक नहीं थी।’
आखिर क्यों घोषित हुई इमरजेंसी और इसका मतलब क्या था, यह आज भी प्रासंगिक है, क्योंकि तब प्रेरणा की शक्ति भ्रष्टाचार के मुद्दे पर मिली थी और आज भी सबकी जबान पर भ्रष्टाचार का ही मुद्दा है। एक नई प्रस्तावना के साथ कुलदीप नैयर जी ने वर्तमान पाठकों को एक बार फिर तथ्य, मिथ्या और सत्य के साथ आसानी से समझ आनेवाली विश्लेषणात्मक शैली में परिचित कराया है। वह अनकही यातनाओं और मुख्य अधिकारियों के साथ ही उनके काम करने के तरीके से परदा उठाया है। भारत के लोकतंत्र में 19 महीने छाई रही अमावस पर रहस्योद्घाटन करनेवाली एक ऐसी पुस्तक, जिसे पढ़ कर राजनेताओं और उनके चाटुकार अधिकारियों के काकस के कुतंत्र की सच्चाई पता चलती है। किताब के अंत मे परिशिष्ट रूप मे दिये मात्र मारूति के संदर्भ मे लिखें खण्ड को ही पढ़ लिया जाय तो यह कटु सत्य सामने आता है कि एक परिवार के लिये किस तरह पूरे शासनतंत्र को बौना कर के येन केन प्रकारेण लाभान्वित किया गया। सरकार मे बिना किसी पद पर रहे संजय गांधी के समक्ष किस तरह चाटुकार नेताओं और चमचे अफसरान घुटने टेके रहते थे यह सोच के भी आज हैरानी होती है।
कुल मिला कर अपने उद्देश्यों को पूरा कर इमरजेंसी के कटु इतिहास को बेनकाब करने मे सफल रही है नैय्यर जी की यह किताब।
(बनारस, 17 जनवरी 2020, गुरुवार)
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