फ़ैसला - 14 - अंतिम भाग Rajesh Shukla द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

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फ़ैसला - 14 - अंतिम भाग

फ़ैसला

(14)

आज शायद इस मुकदमे का आखिरी दिन हो। यही बैठे-बैठे कमरें मंे सिद्धेश सोच ही रहा था कि अचानक उसका मोबाइल बजा। उसने उठाकर देखा तो डा. के.डी. लाइन पर थे।

हैलो ! डा. साहब! सिद्धेश बोल पड़ा।

हां-हां! सिद्धेश मैं डा. के.डी. बोल रहा हूं और बताइये क्या हाल हैं।

सुगन्धा कैसी है। वह ठीक तो है ना।

अरे डाक्टर साहब! सब ठीक है और सुगन्धा भी। अब तो उसका केस भी आपके सहयोग के कारण निर्णायक स्थिति में आ गया है। आज ही तो उसका फैसला होना है। देखो क्या होता है। सिद्धेश ने कहा।

होना क्या है इसमें तो 100ः सुगन्धा को न्याय मिलेगा क्योंकि इस केस में सुगन्धा का पक्ष बहुत मजबूत और सत्य ही है। केडी बोल रहे थे।

डाक्टर साहब! यही मैं भी चाहता हूं कि उसको न्याय मिले और गुनाहगारों को सजा। वो भी ऐसी वैसी नहीं सीधे फांसी। बोलते हुए सिद्धेश कुछ अधिक ही भावुक हो गया था।

बातें करते-करते समय का अंदाजा ही न रहा। लगभग 20 मिनट के बाद तो डाक्टर साहब ने फोन काटा था। सिद्धेश की नजर घड़ी पर गयी तो वह सुगन्धा को तैयार होने के लिए आवाज देने लगा। उधर उसने अपने कमरे से ही कहा-कि मैं तैयार हो रही हूं। आा तैयार हो जाइये। मुझे याद है कि आज कोर्ट जाना है मैं इसे भूल कैसे सकती हूं।

कुछ देर बाद दोनों तैयार होकर नीचे पोर्च पर खड़ी कार के पास पहुंच गये। सुगन्धा को देखते ही भोला दौड़ा-दौड़ा पास आकर बोला-बेटी! थोड़ा ýकना! कहकर वह अन्दर चला गया। कुछ ही मिनट बाद लौआ तो हाथ में दही की कटोरी थी। कटोरी दोनों के सामने बढ़ाते हुए बोला - एक-एक चम्मच खा लीजिए! यह सगुन होता है। भगवान सुगन्धा बिटिया को विजयी बनाएं। भोला के चेहरे पर जा खुशी के भाव थे उन्हें व्यक्त नहीं किया जा सकता।

दोनों दही खाकर कार में बैठकर कोर्ट जाने वाली सड़क की ओर चले गये। कुछ देर कार सड़क पर दौड़ी लेकिन वह समय सिद्धेश को जैसे बहुत लग रहा था। वह तुरन्त कोर्ट पहुंच जाना चाहता था। कोर्ट दिखते ही उसने सुगन्धा से कहा कि देखो कोर्ट आ गया। सुगन्धा तो खुश थी ही। सिद्धेश ने कार को साधानी से पार्क करते हुए सुगन्धा से कहा कि हमें सबसे पहले खन्नाजी के पास चलना है। फिर दोनों खन्ना जी के पास पहुंच गये। खन्ना ने सिद्धेश देखते ही उठकर हाथ मिलाया और बोले - मैं अभी कोर्ट से होकर आ रहा हूं। हम लोगों को 11ः30 बजे का समय मिला है। तब तक आप लोग यही बैठिए।

थोड़ी देर में इन्स्पेक्टर शर्मा और डा. केडी भी आते हुए नजर आए। उन लोगों के पहुंचते ही सिद्धेश ने सभी से हाथ मिलाया। सभी लोग वहीं खन्ना के पास बैठ गये। सुगन्धा भी एक ओर बैठी सबकी भाव भंगिमा देख रही थी। खन्ना जी से सभी लोग बातचीत कर रहे थे। क्योंकि 11ः30 बजने का सभी बेसब्री से इंतजार था। कुछ देर बाद एडवोकेट खन्ना की दृष्टि हाथ में बंधी घड़ी पर गयी। वे अचानक बोल पड़े - चलिए! सभी लोग चलिए। केवल 5 मिनट ही बचे हैं। जज साहब के बैठने से पहले सभी लोगों को पहुंचना है।

खन्ना के इतना कहते ही सभी लोग उठकर चल दिये। सुगन्धा सबके पीछे चल रही थी। कोर्ट के हाल के पास पहुंचते उसकी नजर अचानक अभय और उसके साथियों पर पड़ी। जिन्हें पुलिस जेल से न्यायालय ला रही थी। उसकी आंखों के सामने वही अतीत की घटना का दृश्य आने लगा। इसलिए उसने तुरन्त उधर से मुंह फेर लिया और जल्दी से बढ़ती हुई कोर्ट के अन्दर जाकर बेंच पर बैठ गयी।

कुछ ही क्षणें में जज साहब अपनी चेयर पर आसीन हो गये। दोनों तरफ के वकील अपनी-अपनी जगह खड़े थे। जज साहब के आते ही सभी ने खड़े होकर उनका अभिवादन किया। उसी समय पुलिस भी अभय व उसके साथियों को लेकर हॉल में आ गयी। हॉल खचाखच भरा हुआ। परन्तु सभी की निगाहें चेयर पर विराजमान जज साहब पर टिकी हुई थीं। कुछ लोग आपस में खुसर-फुसर कर रहे थे। उसी समय हथौड़े के ठोकने की आवाज कानों में टकरायी। उसी के साथ जज साहब ने सबको शान्त रहने का आदेश दिया।

दोनों पक्ष के वकीलों के अल्प वार्तालाप के मध्य कोर्ट की कार्यवाही आरम्भ हो गयी। दोनों पक्षों के वकील बारी-बारी से एक कुशल योद्धा की वाणी के तीक्ष्ण बाण एक दूसरे पर छोड़ रहे थे। साक्ष्य पर साक्ष्य प्रस्तुत किये जा रहे थे। खन्ना जी भी शहर के माने-जाने एडवोकेट थे। उनके सामने बड़े-बड़े वकीलों की घिघ्घी बंध जाती है और वही आज कोट में सुगन्धा को केस लड़ रहैं। तो बहस तो सुनने वाली होगी ही। परन्तु जायसवाल साहब जो अभय की ओर से वकील हैं वे खन्ना के सामने बोलने में जैसे अटकने लगे। मगर केस लड़ना और अपनी रोजी-रोटी तथा मान-सम्मान बचाना है तो सामने मैदान में जमकर खड़े रहना तो होगा ही। जब उनके ऊपर से खन्ना जी का तर्क बॉउन्सर हो जाता तो अपने कोट के कॉलर को हिलाने लगते। जायसवाल साहब की यह दशा देख लोग ठहाके मार कर हंसते, उस समय जज साहब शान्ति स्थापित करने और न्यायालय के सम्मान के लिए मेज ठोंक कर जनता-जनार्दना को चुप कराना पड़ता।

इधर केडी और इन्स्पेक्टर शर्मा के साथ बैठा सिद्धेश मन ही मन सुगन्धा के अपराधियों को सजा हो यही ईश्वर से विनती कर रहा था। इधर के साक्ष्य प्रस्तुत करने के बाद एडवोकेट खन्ना कुछ क्षणों के लिए शान्त हो गये। एडवोकेट जायसवाल इसके बाद कुछ बोलने वाले थे कि जज साहब ने मध्यान्ह अवकाश की घोषण कर दी। पुनः 2ः00 बजे केस पर चर्चा करने आदेश देकर अपने विश्राम कक्ष में चले गये।

जज साहब के जाते ही धीरे-धीरे हॉल खाली होने लगा। सुगन्धा भी सिर झुकाये सिद्धेश के पीछे-पीछे निकल गयी। सभी लोग लंच करने के लिए न्यायालय परिसर में ही रेस्टोरेंट में पहुंच गये। खन्ना, केडी और सिद्धेश ने लंच किया। परन्तु सुगन्धा ने लंच करने से मना कर दिया। वह बोली मुझे भूख नहीं है। मैं केवल चाय पी लूंगी। वह चाय पीते-पीते अभय के बारे में सोचने लगी कि एक ऐसे इन्सान के साथ मेरे मां-बाप ने मेरा विवाह कर दिया जिसने बाद में मुझे कहीं का न रखा। न तो मैं एक पत्नी रही और न तो उसके साथियों ने मुझे मां ही रहेने दिया। मेरी जिन्दगी से इन दोनों शब्दों को जैसे नोंच कर फेंक दिया हो। मुझे तो उसे देखकर अब घिन आती है। वाह रे! अभय ! तुम इतना शराब के नशे में धुत थे कि तुम्हें बेटी की चीख भी न सुनाई पड़ी। जिनको तुम अपना कहते थे। उन्होंने ही अपनी हवस के कारण बेटी को मेरी आंखों के सामने लहू-लुहान करते हुए शान्त कर दिया। छिः! इससे गिरा इन्सान दूसरा हो नहीं सकता। जिसने कभी भी मेरी एक न सुनी वह मुझसे कहीं अधिक उस मयंक पर विश्वास करता था।

खाना खाकर सभी लोग उठ खड़े हुए तो सिद्धेश ने सुगंधा से चलने को कहा - वह समझ गया था कि वह चाय पीते पीते हो न हो उस अभय के बारे में सोच रही थी। उसने सबकी आंखें बचाकर धीरे से सुगन्धा की हथेली दबाकर सांत्वना दी; कि चिन्ता मत करो। ईश्वर सब ठीक ही करेगा। इसके बाद सुगन्धा सबके साथ कोर्ट हॉल की ओर चल दी। आज वह अन्तर्मन से बहुत अधिक दुःखी थी। इस समय उसकी मुस्कान जैसे कहीं खो गयी थी।

सभी लोग धीरे-धीरे हॉल में पड़ी बेंचों पर बैठ गये। सुगन्धा भी चुपचाप एक किनारे बैठ गयी। उसे बार-बार उठना पड़ सकता था। इसलिए उसने एक किनारे जगह चुनी। खन्नाजी अपना काला चोंगा पहनकर पुनः आ गये। इधर जायसवाल भी अपनी तोंद पर हाथ फेरते नजर आ रहे थे। पेशकार सहित अन्य सरकारी कर्मचारी पुनः अपनी-अपनी जगह पर मुस्तैद थे। सब लोगों की दृष्टि न्यायाधीश के आसन पर ही थी। जब घड़ी की सूइयों ने दिन के 2ः00 बजाये। उसी समय न्यायाधीश महोदय अपनी चेयर पर आकर बैठ गये।

केस की कार्यवाही आरम्भ की जाय। न्यायाधीश महोदय ने अपनी शैली में आदेश दिया। एक ओर कटघरे में अभय और उसके साथी खड़े थे और दूसरी ओर खड़े होने के लिए सुगन्धा को कहा गया। वह सिर झुकाये हुए साधारण भारतीय नारी की भांति आकर खड़ी हो गयी। सुगन्धा के खड़े होते ही - एडवोकेट जायसवाल अपना कोट ठीक करते हुए उसके सामने खड़े हो गये। उनका सबसे पहले यही सवाल था कि सारी घटना का सुगन्धा अपने मुंह से दुबारा वर्णन करे। इस सवाल पर - एडवोकेट खन्ना जो सुगन्धा के वकील हैं उन्होंने आपत्ति जतायी कि बार-बार उस घटना का वर्णन मेरे क्लाइन्ट के मुंह से कराकर आखिर जायसवाल क्या साबित करना चाहते हैं। न्यायाधीश महोदय ने भी इस बात का समर्थन किया और आदेश दिया कि सुगन्धा से कोई ऐसा प्रश्न न किया जाय। जिस कारण उसका मानसिक कुप्रभाव पड़े।

एडवोकेट तो एडवोकेट ठहरे। उनमें एडवोकेट जायसवाल जो इसी बात के लिए मशहूर हैं कि उन्हें कुरेदना ज्यादा अच्छा लगता है इसलिए उन्होंने न्यायाधीश महोदय से पुनः आज्ञा मांगी कि मैं सुगन्धा से इस केस से सम्बन्धित कुछ मुख्य पहलुओं को जानना चाहती हूं जो आपके समक्ष प्रस्तुत हो सकें। अनुमति मिलने के बाद एडवोकेट जायसवाल फिर शुरू हो गये। एक-एक बात को चार-चार बार घुमाकर पूंछने लगे। इस पूरी जानकारी के दौरान उन्होंने कहीं-कहीं आपत्तिजनक शब्दों का भी प्रयोग किया। जिसके लिए एडवोकेट खन्ना के आपत्ति जताने पर उन्हें न्यायाधीश महोदय से क्षमा भी मांगनी पड़ी। इस प्रकार दोनों पक्षों के वकीलों की बहस लगभग 2 घंटे चलने के बाद केस लगभग सीसे की तरह साफ हो गया। अब अगर बाकी बचा था तो न्यायाधीश महोदय द्वारा अपराधी पक्ष को आइना दिखाना।

न्यायाधीश महोदय भी अत्यन्त गम्भीरतापूर्वक केस के महत्वपूर्ण पहलुओं को ध्यान से सुन रहे थे। जब उन्होंने देखा कि अब इस पर अधिक बहस करना ब्यर्थ है क्योंकि सारे पहलू उजागर हो गये हैं। उन्होंने वकीलों को शान्त रहने का आदेश देते हुए केस का निर्णय सुनने को कहा -

सुगन्धा के साथ हुए दुराचार और उसकी अबोध बच्ची की दुराचार में मृत्यु इस केस के मुख्य कारण थे। इस आपराधिक मामले से जुड़े अभय और उसके दोस्त इसके अभियुक्त हैं जिसमें अभय स्वयं पीड़िता का पति और उस बेटी का पिता है जिसकी बलात्कार के दौरान मृत्यु हो गयी। यह अन्याय एवं अपराध हुआ अभय के सामने। इसमें इनकी सहमति पाये पाने के कारण न्यायालय इनको दोषी मानता है। इन्होंने इस मामले में शामिल होकर पति धर्म और पिता धर्म दोनों को कलंकित किया है। इसलिए ये भविष्य में कभी भी सुगन्धा के पति होने का दावा नहीं कर सकते और नहीं इन्हें उसका पति माना जायेगा। इनके अपराध को देखते हुए न्यायालय इसको कठोर आजीवन कारावास की सजा सुनाता है।

इस अपराध में मुख्य रूप से भागीदार मयंक और उसके साथी ने अत्यन्त जघन्य अपराध किया है। इस प्रकार के लोग इस समाज के लिए खतरा है। इसमें मयंक ने कई बार सुगन्धा का यौन शोषण किया है तथा उसके ने सुगन्धा और उसकी बेटी के साथ दुराचार किया। इसी बलात्कार के मध्य उस अबोध बालिका की मृत्यु हो गयी। न्यायालय यह मानता है कि इन दोनों की भावनायें मर चुकी हैं। यह समाज में स्त्री जाति को मात्र एक भोग की वस्तु समझते हैं। इसलिए न्यायालय की दृष्टि में यह एक घृणित और जघन्य अपराध है। इस मामले में यह मुख्य रूप से दोषी होने के कारण न्यायाल इन्हें फांसी की सजा सुनाता है। समय और तारीख रिपोर्ट में अंकित है। इतना कहते हुए - न्यायाधीश महोदय ने हस्ताक्षण करके पेन को तोड़े दिया।

समूचा हॉल तालियों की गड़गड़ाहट के साथ गूंज उठा। वहां उपस्थित लोगों ने इस निर्णय की मुक्त स्वर से सराहना की। इस प्रकार भारतीय दंड विधान की धाराओं के तहत सुगन्धा के अपराधियों को सजा हो गयी।

सुगन्धा के आंखों में आंसू भर आये थे। हॉल धीरे-धीरे खाली हो रहा था। हॉल में कुछ देर बाद सिद्धेश, सुगन्धा बचे थे। उधर पुलिस अभय को ले जा रही थी। एक बार अभय ने सुगन्धा की ओर मुड़कर देखा। शायद आज वह अपने अपराध के लिए उससे क्षमा मांग रहा था। मगर सुगन्धा ने अपना मुह दूसरी ओर घुमा लिया और सिद्धेश के पीछे-पीछे जीवन की दूसरी राह पर चलने के लिए न्यायालय के दरवाजे से बाहर निकल गयी।

समाप्त