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फ़ैसला - 5

फ़ैसला

(5)

सुगन्धा ने अपने का सिद्धेश की बांहों से छुड़ाते हुए कहा कि इस तरह का जीवन जीते हुए लगभग मुझे दो महीने बीत ही रहे थी कि एक दिन उसी अभय ने निर्लज्जता और नीचता की सारी हदें पर कर दीं। वह शाम को लगभग 8 बजे अपने उसी दोस्त मयंक के साथ शराब की बोतलें लिए हुए घर आया। उन दोनों के साथ में एक लड़की भी थी। वह सभी आकर बरामदे में रखी चेयरों पर बैठ गये। फिर क्या था! अभय ने मुझ पर आर्डर जमाना शुरू किया। मैं भी पानी, गिलास और प्लेंटे किचन से उठाकार उन लोगों के सामने रखी मेज पर रख दिया।

उसके बाद उनका वही पीने पिलाने का दौर शुरू हुआ। मैं अपने कमरे में अन्दर चली गयी। इसीलिए मुझे तो उनकी आवाजें ही सुनायी पड़ती थीं। परन्तु उस लड़की को देखने के बाद कुछ आशंका हो गयी थी। इस कारण मेरा दिल जोर-जोर से धड़क रहा था। पहली बात तो यह कि ये लोग लड़की को साथ क्यों लाये। अगर वह स्वयं इच्छा से इन शराबियों के साथ आयी तो यह दूध की धुली तो हो नहीं सकती। जरूर इसके चरित्र में कहीं न कहीं खोट है।

इसी प्रकार ने अनेकों प्रश्न मेरे मन में उस लड़की के प्रति पैदा होने लगे। लेकिन कोई सार्थक उत्तर समझ में नहीं आ रहा था। एक ओर मैं वैसे ही डरी सहमी थी क्योंकि जब से मेरे पति ने मयंक का पक्ष बिल्कुल खुलकर लेना शुरू कर दिया था। तब से मुझे मयंक को देखकर अन्दर ही अन्दर बहुत डर लगने लगता था। वही आज भी मेरे साथ हो रहा था। मैं उसको देखते ही सहम सी गयी थी। मैं उससे अपने को बचाने के उपाय ढूंढ़ ही रही थी। उसका कोई भरोसा नहीं कि वह किस नीचता पर उतर आये। और फिर चरित्र से गिरे हुए व्यक्ति के लिए किसी के साथ दुर्व्यवहार करने में कोई लज्जा आने से रही।

थोड़ी देर में वे दोनों उस लड़की को जबरदस्ती शराब पिलाने लगे। जब कि वह बार-बार पीने से मना कर रही थी कि मुझे शराब नहीं पीना। मैं आपके ऑफिस में नौकरी करती हूं इसका यह मतलब तो नहीं कि मैं शराब भी आपके कहने से पी लूं। आपने तो कहा था कि कोई काम है फिलहाल आप मुझे काम बताइए और मैं अपने घर जाऊं। आप उसके बाद बैठ कर पीजिए या जो मर्जी हो करिए। इस तरह वह लड़की तो बोले जा रही थी। लेकिन उन दोनों की आवाज नहीं सुनाई दे रही थी।

मुझसे रहा नहीं गया और मैंने परदे के पीछे से झांक कर देखा कि मयंक हाथ में शराब का गिलास लिए बार-बार उसकी ओर बढ़ा रहा था और वह इस प्रकार बोलते हुए हाथ से दूरकर रही थी। अचानक मयंक उठ खड़ा हुआ और बोला क्या तमाशा बना रखा है अभी तो प्यार से पिला रहा हूं नहीं पिओगी तो मेरे पास और भी रास्ते हैं। इतना कहते ही अभय ने उसके हाथ पकड़ लिए और मयंक ने उस लड़की के मुंह में शराब से भरा गिलास उड़ेल दिया।

अब दोनों उसको देखकर ठहाके लगाते हुए हंस रहे थे। वह लड़की एकदम चेयर से उठी और बोली - यह आपने ठीक नहीं किया। मैं अपने घर जा रही हूं। इसी तरह वह लड़खड़ाती आवाज़ में बोल रही थी। वह अपना पर्स उठाकर जाने लगी, तब तक शायद शराब का नशा उसे मस्तिष्क को अपने वश में कर चुका था और उसे पैर डगमगाने लगे थे। थोड़ी देर वह खड़े रहने की स्थिति में नहीं थी। लगभग उसकी हालत शराबियों जैसी हो गयी। वह जमीन पर गिरने को हुई, कि लपक कर मयंक ने उसे अपनी बांहों में लेतु हुए चेयर पर बैठा दिया। इसके बाद मैं भी दरवाजे के पास से अपनी बेटी के पास जाकर बैठ गयी। तथा इस नीचता में भागीदार बने अपने पति को मन ही मन कोसती जा रही थी।

उसी समय एक कड़कदार और लड़खड़ाते हुए स्वर ने मेरे ध्यान को भंग कर दिया। यह आवाज अभय की थी वह मुझे अपने पास बुला रहा था। मुझे अब उन लोगों के पास जाने में डर लगने लगा था। इसीलिए मैं कांपती हुई धीरे-धीरे उसके पास पहुंची। उसी समय मयंक मेरे पति के कान में कुछ कह रहा था। जिस कारण मैं कुछ सहम गयी। पास पहुँचते ही अभय ने मेरा हाथ पकड़कर तेज स्वर में कहा - इस लड़की को सहारा देकर आराम से उस बगल वाले कमरे में लिटा दो। इसकी तबियत ठीक नहीं है। तभी मेरी नजर उस लड़की पर पड़ी। देखने में वह सभ्य परिवार की लग रही थी। उसने कपड़े भी ढंग के पहन रखे थे। उसे देखते ही मैंने सोचा कि इन नशेड़ियों के चक्कर में यह बेचारी कैसे पड़ गयी। मैं ईश्वर से यही मनाने लगी कि ये लोग इसका कोई अनिष्ट न करें। तब तक अभय फिर चिल्लाया। सुन क्यों नहीं रही है जल्दी से इसको कमरे में ले जा।

एक आज्ञाकारी नौकर की तरह मुझे भी उसके आदेश का पालन तो करना था ही। मैं उसे पकड़कर कमरे की ओर ले जाने लगी, देखा वह पैर ही ठीक से नहीं रखा पा रही थी। उसकी स्थिति लगभग अर्ध निद्रा जैसे थी। किसी तरह से मैंने उसे कमरे में पड़े बेड पर लिटाकर जाने लगी। उसी समय देखा कि पीछे से अभय भी आ गया। उसने मेरा हाथ पकड़कर रोकते हुए कहा - कहां जा रही हो? यहीं रूको। मैंने बेडरूम के दरवाजे बाहर से बंद कर दिये हैं। मैं यहां पर रूककर क्या करूंगी। मैं अपनी बेटी के पास जा रही हूँ। मैने भी तपाक से जवाब दिया। क्या बेटी-बेटी लगा रखा है। एक बार कहने पर बात समझ में नहीं आती। इतना कहते ही तड़ाक से एक झापड़ मेरे गाल पर अभय ने मार दिया। मेरी आंखों में आंसू छलक आये। लेकिन मैं करती भी गया? अब तो मार खाने की आदत पड़ गयी थी और अधिक विरोध करने में भी अब डर लगने लगा था कि वह कहीं मेरा गला ही न दबा दे।

अतः मैं चुपचाप बगल में रखे स्टूल पर अपने आंसुओं को पोछते हुए बैठ गयी। लेकिन किसी बड़ी आशंका से मेरा शरीर अन्दर ही अन्दर आज कांप रहा था। क्योंकि आज के पहले ऐसा कभी नहीं हुआ कि अभय किसी लड़की के साथ घर आया हो। थोड़ी देर में मयंक भी उसी कमरे में आ गया। और कमरे के दरवाजे भिड़ा दिये। यह देख मैं घबड़ा गयी। मैं अपनी जगह से उठी कि फिर उसी सयम अभय ने हाथ पकड़ लिया और बैठने का इशारा किया। मयंक ने अभय को आंखों से इशारा करते हुए कुछ धीरे से कहा। फिर क्या अभय लपककर उस लड़की के पास पहुँच गया। और उसके शरीर को सहलाते हुए कपड़े उतारने लगा। इतने में इधर मयंक आकर मेरे पास चेयर पर बैठ गया। मैंने अपना मुंह उधर से घुमा लिया क्योंकि इस समय मुझे अभय पर इतना गुस्सा आ रहा था कि अगर मेरे हाथ में कुछ होता तो मैं उसके सिर पर मार देती। यह कैसा पति है जो अपनी पत्नी की आंखों के सामने ही किसी दूसरी स्त्री से शारीरिक संबंध की इच्छा रखता है।

उधर अभय अपनी कामवासना से वशीभूत उस लड़की की अस्मिता से खेल रहा था और इधर मयंक भी करीब आने के प्रयास में था। उसने अपने हाथ को मेरी कमर में डाल दिया था। किसी पर- पुरूष की छुअन का आभास होते ही मैंने उसका हाथ पकड़ झिटक दिया और उठ खड़ी हुई। मेरे मुंह से उसके शब्द रूपी अंगार निकलने लगे। उधर अभय उस लड़की की इज्जत को तार-तार कर चुका था। वह लगभग अर्धनग्न अवस्था में बिस्तर पर सिसकियां भर रही थी। इन दरिन्दों के आगे उसके द्वारा किये गये विरोध की एक न चली और उसने जुर्म के आगे घुटने टेक दिये।

लेकिन मुझे इस रूप में देखकर शायद अभय ने अपना आपा खो दिया। वह बिस्तर से उछलकर मेरे करीब आ गया। वह लगभग निर्वस्त्र ही था। उसने पकड़कर मेरी साड़ी खींच ली जो लगभग मेरे शरीर से अलग हो फर्श पर गिर गयी थी। इसके बाद पास में कम कपड़ों में खड़े मयंक की ओर धकेल दिया। फिर क्या था मयंक ने मुझे अपनी बांहों पर कस लिया। मैं जाल में फंसी चिड़िया की तरह छटपटाने लगी। लेकिन मेरी एक न चली। क्योंकि जब मेरा पति कहे जाने वाला पुरूष ने अपनी पत्नी को किसी के सामने परोस दिया हो, तो भोग करने वाले की लज्जा, डर इन सबकी तो समाप्ति ही हो गयी। वह बेझिझक अभय की आंखों के सामने मेरे शरीर से खेल रहा था और उधर वह उस लड़की को बांहों में समेटे खुश हो रहा था। ठहाके लगाते हुए कह रहा था क्यों मयंक मजा आ रहा है ना, बहुत उछलती थी यह। अब इसकी अक्ल ठिकाने हो गयी होगी।

वह बोलते ही जा रहा था देखो मैंने तुमसे जो वादा किया था वह तो पूरा कर दिया। अब तुम भी अपना वादा जल्दी से पूरा कर देना। वह केवल हूं-हूं में जवाब दे रहा था क्योंकि वह तो मेरे शरीर को दुर्दान्त भेड़िये की तरह नोच रहा था। उसने मेरे अंगों को तार-तार कर दिया था। लेकिन मैं छटपटाने के सिवा कुछ नही कर सकी। वे दोनों मुझे पुरूष रूप में दुर्दान्त भेड़िया ही नजर आ रहे थे। जिन्होंने आज दो नारियों की मर्यादा को अपनी हवस से वशीभूत तहस-नहस कर दिया था। इतने से भी इन दोनों का मन नहीं भरा। उन्होंने अपनी शारीरिक भूख के लिए दो-दो बार मेरे और उस लड़की के साथ अपना मुंह काला किया। फिर इच्छा भर जाने के बाद दोनों कपड़ों सहित कमरे से बाहर निकल गये।

अब कमरे में केवल सन्नाटा भांय-भांय कर रहा था। उस सन्नाटे में अगर कुछ सुनायी पड़ता था तो केवल सिसकियां। वह लड़की अपनी जगह बिस्तर पर दोनों हाथों से अपना मुंह बंद करके सिसक रही थी और इधर फर्श पर बैठी मैं अपने मुंह को ढककर अपने भाग्य पर रो रही थी। मैंने अपने को संभालते हुए कपड़े ठीक किये उस लड़की की ओर मुंह कर देखा, जो अपने ही हाथों अपना मान मर्दन करवाने इन भेड़ियों के साथ चली आयी थी। वह अभी भी लगभग अर्धनग्न अवस्था में बैठी थी। मैंने उसके पीठ पर हाथ फेरते हुए उसको ढांढ़स बंधाया कि अब रोने से क्या होने वाला है। अब तुम्हारी लुटी हुई इज्जत रोने से वापस तो नहीं आ जायेगी। तुम्हें तो अब यह सोचना है कि ये जो पुरूष रूप में भेड़िये तुम्हारे आस-पास हैं इनसे कैसे अपने शरीर को बचाना है। क्योंकि यह थोड़ा सा भी समय मिलते ही तुम्हारे शरीर को नोचने आ धमकेंगे। इस लिए तुम्हें पहले से ही चौकन्ना रहना होगा। अगर तुम मेरी बात करो, तो मैं अपनी बेटी के कारण मजबूर हूं नहीं तो मैं कभी का ऐसे पति रुपी दलाल को लात मार देती। लेकिन क्या करूं मुझे तो यह सब सहन करना मेरी नियति बन गयी है। वो सात फेरों का बन्धन मेरे पैरों में बेड़ी बनकर पड़ा है।

मैं यह उस लड़की से कह ही रही थी कि बाहर से मयंक की तीखी आवाज ने मेरी आवाज को दबा दिया। उसने उस लड़की को चलने के लिए पुकारा था। वह जल्दी अपने कपड़े पहनकर कमरे से बाहर निकल गयी। कुछ ही देर में वे दोनों घर से बाहर चले गये। घर का गेट अभय ने ही जाकर बन्द किया। मैं उस कमरे से बाहर निकलकर अपने बेडरूम में चली गयी। मेरे अन्दर क्रोधाग्नि भट्ठी की तरह मेरे तन-बदन को जला रही थी। मुझे अपने शरीर से घृणा हो रही थी। मुझे अपना शरीर बोझ के समान लग रहा था।

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