कहानी के पिछले भाग में आपने पढ़ा कि खुसफुस पुर गांव में दो दिन से बिजली ना आने के कारण पानी की बड़ी किल्लत है, ऐसे में सिर्फ मिश्राइन का घर है जहां बाहर नल में थोड़ा-थोड़ा पानी आ रहा है पड़ोस में रहने वाली ठकुराइन और वर्माइन भी दो दो बाल्टी पानी लेने आ जाती हैं और तीनों औरतें जुट जाती हैं, पूरे गांव की खबर सुनाने में….
अब आगे…
" हाय राम… अब उस मुए लड़के को भरी जवानी में वो मोटी गुप्ताइन भाई है, अरे उससे तो अच्छी मैं ही हूँ " ठकुराइन ने कहा |
वर्माइन ने झटपट अपनी बाल्टी नल के नीचे लगाई और बोलीं," अरे जिजी तुम भी ना, ऊ गुप्ताइन के लिए नहीं उनकी बेटी के लिए घर के चक्कर लगावत है, घर में बड़ा खींचातानी मची है, बनिया की तो ना बीवी सुने ना बेटी, सुबह की चाय भी नसीब ना होती है बेचारे को"| दोनों औरतों ने चुटकी लेते हुए वर्माइन से कहा, "तुम्हें बड़ा तरस लागे है गुप्ता जी पर, का बात है " वर्माइन सकपका गई |
" अरे तुम्हारी चर्चा खत्म हो गई हो, तो दो कप चाय बना दो.. " उधर से आते हुए वर्मा जी ने कुछ गुस्से में कहा |
" हां.. हां.. सुबह से यहां पानी भर भर के कमर टूट गई इन्हें चाय चाहिए, सही बात कर्म फूट गए हैं मेरे तो इनसे ब्याह करके ", वर्माइन अपनी बाल्टी हटाते हुए बोली |
तभी मुंह सिकुड़ते हुए ठकुराइन बोली," हम औरतें जरा देर आपस में बातें कर ले तो इन मर्दों के कलेजे पर सांप लोट जाते हैं"|
" अरे भागवान.. बिजली कब की आ गई, अब सभा समाप्त भी कर दो और पानी अंदर भर लो आकर", मिश्रा जी दाढ़ी बनाते हुए बोले |
तीनों औरतें बड़बड़ाती और अपनी किस्मत को कोसती हुई अपनी अपनी बाल्टी लेकर अपने अपने घर में घुस गई और पानी का नल यूं ही खुला बहता रहा |
थोड़ी देर बाद नंदू घर से बाहर निकला तो खुला नल देखकर बोला," अरे मम्मी बिजली आ गई ठीक है पर नल तो बंद कर देते" |
मिश्राइन चाय का भगोना पटक कर गैस पर रखते हुए बोली, "बाप कम था दिमाग काटने को जो अब यह नंदू भी.. हे भगवान कहां जाऊं मैं" तभी मिश्रा जी ने नंदू को बुलाते हुए कहा, "अरे नंदू ये रेडियो पर सुबह से गाने की बजाए बड़बड़ आने की आवाज कहां से आ रही, कौन सा स्टेशन लगाया तूने" |
यह कहकर मिश्रा जी और नंदू हंसने लगे, मिश्राइन ने चाय का गिलास पटकते हुए कहा," हां.. हां.. आज रेडियो पर बिजली भी गिरेगी, तुम दोनों बचे रहना.." |
नंदु यह सुनकर बाहर चला गया और मिश्रा जी बोले," अरी भागवान, हम तो कब से चाहत रहे हैं कि हमारे ऊपर बिजली गिरे तो, पर कमबखत गिरती नहीं" |
मिश्रा जी की बात सुनकर मिश्राइन खुशी से फूलकर टमाटर हो गई और अपना हाथ छुड़ाते हुए बोली," तुम भी ना बड़े वो हो.. अब तो जाने दो.." | मिश्राइन किसी हिरनी सी इठलाती हुई कमरे से बरामदे में चली गई |