अधूरी हवस - 19 Baalak lakhani द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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अधूरी हवस - 19


तुम्हे क्या लगता है तुम्हारा प्रेमी या प्रेमिका तुमसे प्रेम करते हैं नहीं वह प्रेम तो स्वयं से भी नहीं करते फिर भला तुमसे कैसे करेंगे, तुम जिसे प्रेम समझते हो वह अपने भीतर के सूनेपन को भरने की एक क्रियाभर है और तुम उसके लिये एक साधनभर हो।

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कहानी मे आगे आपने पढ़ा कि मिताली आत्महत्या की कोशिश की .. पर राज टस से मस नहीं होता अखिर राज के दिमाग में क्या चल रहा होता है, राज मिताली से बात करने की कोशिश करता रहता है,
पर दो दिन बाद मिताली का कोल लगता है,

राज : हेय केसी हो?

मिताली : ठीक हू आपकी दूवा से..

राज : ये क्या हरक़त आपने कर दी?
ऎसा करने से आपको क्या हासिल होगा?
तुमने किसीके बारे मे कुछ सोचा भी नहीं?

मिताली : जो भी हुवा अच्छा ही हुवा...और आपको अब फिक्र करने की जरूरत नहीं, अब कोई पागलपन नहीं होगा, मेने फेसला कर लिया है अब.. में परिवार वालो ने तय किए हुवे रिश्ते के साथ ही आगे बढुंगी.

( मिताली के बोलने के भाव बदल चुके थे..)

राज : अच्छा है ना कितने दिनों से समजा रहा था, पर तुम समझ नहीं रही थी..

मिताली : हा आपकी बात को समझने के लिए मुजे मोत की दहलीज तक जाना पड़ा.. तब जाके बात समझ पाई.

( राज चुपचाप सुनता रहेता हे उसके पास कोई शब्द नहीं कहने को.. अंदर ही अंदर उसे बहोत ही घृणा होती है आपने आप से पर कुछ नहीं कहता )

राज : चलो तुम आराम करो वेसे भी डॉक्टर ने तुम्हें आराम करने को कहा है..

मिताली : हा सही कहा आपने
(बहोत ही छोटे वार्तालाप से बात को खत्म करके फोन कट करते हैं दोनों)

बातों का सिलसिला दोनों मे चालू हे पर अब वोह जिद्द नहीं, वोह पागलपन उस हादसे के बात मानो ईद का चाँद ही हो गया,
आग आज भी मिताली के अंदर पनप तो रहीं थीं पर उस आग की लपटें, राज की ओर आने ही नहीं देती थी, कहीं और तो मोड़ देती होंगी ही, पर कहा इस बात का तो राज सिर्फ अंदाजा ही लगाता रहेता था.

कुछ ही दिनों मे मिताली की शादी की तारीख तय हो जाती है, ए बात मिताली राज को बताती है.

मिताली : हैलो मेरी शादी की तारीख तय हो गई है.

राज : अच्छा है कब की तारीख निकली है?

मिताली : आज से पूरे 25 दिनों बाद हमारा जनाज़ा उठेगा हो सके तो कंधा देने का वक़्त निकाल ना.

राज : क्या? फिरसे कहो क्या कहा तुमने?

मिताली : कुछ नहीं 25 दिनों बाद की तारीख निकली हे.

राज : नहीं तुम कुछ और बकैती कर रही थी.

मिताली : कुछ नहीं यही कहा शायद आपके कान कुछ और सुनना चाहते हैं,

राज : अब हमारे कानो से भी शिकायत होने लगी है.

मिताली : शिकायत करके क्या फायदा, जब फेसला तय हो तो. और हम होते भी कोन हे जो आपसे शिकायत करे?

राज : अच्छा एसा भला हमने क्या गुनाह कर दिया जो तुम तू से आप पे अटक गए, हम आपके शिकायतों के लायक नहीं रहे?खेर छोड़ी ही देते हैं. इस बात पे हम बहस ही क्यू कर रहे हैं?

मिताली : हा वहीं तो आपसे एक काम बखूबी होता है, छोड़ने का.
(धीरे से कहती है, पर राज वोह शब्द सुन लेता है, पर कोई पलट के जवाब देना टाल देता है.)

राज : जो तुम्हारी मर्जी. मुजे काम हे तो हम बाद मे बात करते हैं, ठीक है?

मिताली : हा मे तो फोकट ही बैठी हू मुजे कोई काम काज ही नहीं होगा. माफ करना आपको परेशान किया काम के वक्त अब नहीं करूंगी तंग ज्यादा, थोडे दिन की तो बात है बाद मे कहा आपको तंग करने वाली हू.

राज : तुम फिर शुरू मत करो प्लीज़ मे फ्री होके बाद मे कोल करता हू फिर आराम से बात करते हैं और तुम्हें जितना बुरा भला सुनाना हो वोह सुना लेना ओके?

मिताली : नहीं मे आपको कोल करूंगी सामने से, आप मत करना महमान आने वाले हे, तो जेसे ही फ्री हो जाऊँगी मे कोल करूंगी आप नहीं.

राज : ठीक है खयाल रखना अपना बाइ.

नाराजगी साफ साफ नज़र आ रही थी मिताली की बातों मे, पर राज इस सील सिले को एसे ही सही करना पड़ेगा, अगर सामने जवाब देने मे राज थोड़ा भी कमजोर हुवा तो समझो सैलाब आ जाएगा ये उसे अच्छे से पता था.

इसी तरह जेसे जेसे मिताली के शादी के दिन नजदीक आ रहे थे तो मिताली भी अपनी शादी की तैयारीओ मे जुट गई होती हे तो इस तरफ राज भी सामने से बात नहीं करता जब तक मिताली का कोल नहीं आता. फिर भी मिताली रोज राज को दिन मे उसके बाहर आने जाने के टाईम खाने के वक्त,उठने बैठने के सब वक़्त जो एक सेकेंड की देरी नहीं होती बात जरूर करती. भले ही पहेले जेसे नहीं पर रूटीन तो उसने नहीं छोड़ा.

ऎसे ही शादी मे रहे दे के कुछ ही दिन बचे थे
एक दिन दोनों फोन पे.

राज : अच्छा मिताली बताओ तुम्हें क्या चाहिए?

मिताली : सही मे? मुजे मिलेगा? जो मे मांगू वोह?

राज : अरे पगली मे तुम्हारी शादी में तोहफ़ा क्या चाहिए? उसकी बात कर रहा हू.

मिताली : तो कहा कुछ और बात कर रही हू.
आप क्या सोच रहे मुजे क्या पता?
वेसे आपको क्या लगा? मे क्या मांगने वाली हू?

राज : कुछ नहीं, छोड़ो सही सही बातोंओ ना क्या चाहिए?

( बड़ बड़ा हे मिताली तुम्हारे अलावा कुछ चाह ही नहीं ही पर आप तो मिलने से रहें ओर पूछते हैं, क्या चाहिए बड़े भोले बनकर बातों को घुमाते हे)

(राज भी समज जाता हे कि तुम्हें हर हाल में मे ही चाहिए ये बात मे जनता हू पर तुम्हें मिलने से रहा इस जन्म मे)
हैलो क्या सोच रही हो बोलो?

मिताली : कुछ नहीं चाहिए मुजे सिवाय के आप आना बस इतनी तम्मना तो पूरी मेरी करना, कोई बहाना बनाकर टाल मत देना, बस सिर्फ दो दिन आपसे मांग रही हू..
(मिताली की आवाज भारी हो जाती है, गले मे कितने दिनों से रोके रक्खा हुवा वोह ठहका आज नहीं रोक सकीं वेसे तो रोती तो हर रोज थी पर उस हादसे के बाद राज के कानो तक सिसकियाँ पड़ने ही नहीं देती थी, पर वोह नाकाम रही बाँध टूट ही गया )

राज : अरे पगली रोना बंध करो मे कोई बहाना नहीं करूंगा, मे आऊंगा पक्का आऊंगा कोई बहाना नहीं...

मिताली : आप अपने आप को साथ लेते आना उन्हें कहीं भूल मत जाना, पिछले कई दिनों से वोह ख़फ़ा है मुजसे रूठा है पर मे जानती हूं अच्छी तरह से उसे और उसकी...

(आधी ही बात पे मिताली कोल काट देती है, रोते रोते, उधर राज मिताली को कोल करता हे पर मिताली फोन बंद कर के बेठि होती हे, राज परेशान तो हो जाता है, फिर कविता को कोल करके उसके पास भेजता है, पता लगाने को जाके देखे कि क्या वोह ठीक तो हेना, ज्यादा दिन तो नहीं हुवे उस हादसे को, एक डर लगा रहेता था राज को हर वक़्त कुछ अनहोनी नहीं होनी चाहिए.)

कुछ ही देर बाद कविता के फोन से फोन आता है, पर मिताली बोल रही होती है. चिल्ला कर

मिताली : नहीं कोई कदम उठूंगी, क्या मे अपनी मर्जी से रो भी नहीं सकती, और मुजे ए भी पता हें मेरा रोना आपसे सहे नहीं जाता इसीलिए मोबाइल बंध किया है... अब खुश? रखिए फोन हमे आपसे कोई बात अभी नहीं करनी.
(कहेके कविता को दे देती हे)

कविता : मे यही पर हू आप परेशान ना हो, अगर एसी कोई बात होगी तो मे जरूर बताऊंगी आपको.

राज : ठीक है सम्भाल ना उसे.

(कहेके फोन पे बात खत्म करते हैं दोनों)

इधर राज उलझन मे हे कि मिताली की शादी मे क्या करे वोह जाए या ना जाए, अगर गया तो मुजे देख कर मिताली कमजोर हो जाएगी, या इस बार मे खुद कमजोर हो गया तो और अगर मे कमजोर हो पड़ा तो मिताली तो फिर सम्भल ने से रही, वोह तो पक्का..
ऎसे ऎसे ख्याल उसके दिमाग में दौडते है कि पूरी रात करवते बदलता रहता है, पर आँखों में नींद ने मानो आने का नाम ही नहीं आता.

कुछ दिनों बाद अखिर कर जिस दिन का डर था वोह आ ही गया मिताली के शादी की तारीख आ गई थी, अगर राज को जाना हो तो अगले दिन उसे निकल ना होगा, राज का दिल रेडी ही नहीं था कि जाके मिताली की शादी अटेंड करे, फोन पर मिताली को तसल्ली देता रहेता था मे आऊंगा.. आऊंगा..
पर अब जाने का वक़्त आया तो उसके पर नहीं उठ रहे थे, फिरभी फेसला तो लेना ही था राज को जाए या नहीं....

क्रमशः........

देखेंगे कहनी मे आगे हम क्या होता हे डॉली या जनाज़ा..

मेरे प्यारे दोस्तों आपको कहानी मजा आ रहा होगा,और मे आपको कहानी मे निराश भी नहीं करूंगा मुजसे जितना बहतरीन होगा इतना बहतरीन लिखने की कोशिश करता रहूंगा.

आप कहनी पढ़ते हो पर रेटिंग देने मे आपकी उंगलिया सिकुड़ने लगती हे एसा क्यू लगता है आप लोगों के रेटिंग से मुजे ज्यादा अच्छा लिखने का या कहनी को और बहतरीन बनाने पे मजबूर करेगी आपकी रेटिंग तो भले ही आधा स्टार ही सही पर पढ़ने के बाद आप रेटिंग एवश्य दे इतनी उम्मीद हे दोस्तों.

❤️💕बालक