फ़ैसला
(12)
आज वह दिन आ गया जब उसे खन्ना जी के कोर्ट जाना था। सिद्धेश ने सबेरे ही उनको फोन करके याद दिला दिया। फिर नौ बजे घर से निकलने के लिए तैयार हो गया। उसके घर से निकलने के समय फिर सुगन्धा सिद्धेश की ओर प्रश्नवाचक मुद्रा में देखा लेकिन बोली कुछ नहीं। सिद्धेश भी इस बात को समझ गया कि यह कुछ पूंछना चाहती है परन्तु उसको अधिक महत्व न देते हुए वह शीघ्रता से कार के पास पहुंच गया। प्रतिदिन की तरह भोला ने उसका बैग लाकर गाड़ी में रखा इसके बाद वह कोर्ट के लिए निकल पड़ा।
कार को पार्क करते समय ही खन्ना ही उसे स्टैंड पर मिल गये। बस चलते-चलते थोड़ी सी बातचीत के बीच ही खन्ना ने सिद्धेश से सारे कागजात ले लिये और तेज कदमों से दोनों पारिवारिक न्यायालय की ओर चल पड़े। सिद्धेश ने दूर से ही देख लिया कि बरामदे में खम्भे के पास मृदुला खड़ी है। उसके कुछ दूरी पर उसके बाबू जी एडवोकेट से कुछ बात कर रहे हैं। सिद्धेश के मन में सोया हुआ प्यार अब करवटें लेने लगा। मन उससे बार-बार कह रहा था कि अपनी पत्नी से बार बात करके तो देखो। वह तुम्हारे सारे गिले-सिकवे भूलकर तुम्हारी बाहों में समाने को बेताब हो जायेगी। आखिर तुम उसके पति हो। कोई गैर तो नहीं। हो न हो अन्तःकरण में भी तुम्हारे प्रति प्रेम की चिन्गारी दबी होगी, बस उसे हवा देने की जरूरत है। आगे बढ़ो पहल तुम्हें ही करनी होगी। अधिक सोचो मत। आज आखिरी मौका है अगर अब देर कर दी तो सिर्फ पछतावा ही हाथ लगेगा।
तब तक बुद्धि ने अपना अंकुश लगाते मन को काबू कर लिया। अपनी लगाम खींचते हुए कहा देखा अभी मृदुला क्रोध में है उसे लग हरा है तुमने उसके साथ विश्वाघात और अन्याय किया है। तुम उसकी बातों पर ध्यान नहीं देते थे। इसलिए वह तुमसे घृणा करने लगी और वह घृणा का बीज अंकुरित होकर एक बड़ा पौधा बन गया है। जिसमें केवल कांटे ही कांटे लगे हैं। अब अगर उसे जरा भी छुआ तो घायल होने के अतिरिक्त और कुछ नहीं होगा। वह घायल नागिन की तरह इस समय है। अगर इस समय तुमने उसको छेड़ा तो वहां तुम्हें अपमान, तिरस्कार और क्रोध की फुफकार ही दिखाई देगी। जो ज्वाला बनकर बाहर निकलेगी और तुम्हारा अन्तःकरण झुलस जायेगा।
मृदुला की ओर बढ़े सिद्धेश के कदम एकाएक रूक गये और वह अपनी जेब से रूमाल निकालकर माथे पर छलकी पसीने की बूंदों को पोंछते हुए एडवोकेट खन्ना के पीछे-पीछे आगे बढ़ गया। खन्ना जी ने टाइपिस्ट के पास जाकर एक एप्लीकेशलन टाइप करवाई और सारे कागज फाइल में रखकर सिद्धेश का नाम पुकारे जाने का इंतजार करने लगे। सिद्धेश भी उनके साथ वहीं बैंच पर बैठा रहा।
सिद्धेश और मृदुला हाजिर हो! इसी वाक्य को दुहराते हुए दरबान ने पुकार लगायी। आवाज सुनते ही सिद्धेश और मृदुला अपने-अपने वकीलों के साथ कोर्ट के अन्दर पहुंच गये। न्यायाधीश महोदय अपने आसन पर विराजमान थे। उनके ठीक सामने दूर श्रोताओं की भीड़ भी कम नहीं थी। क्योंकि इस समाज में दूसरे की दबी-छिपी देखने और सुनने वालों की कमी नहीं है। इनमें कुछ प्रतिशत तो ऐसा जो कि केवल वादी-प्रतिवादी की कमियां सुनने के बाद केवल हंसी उड़ाते हैं। लेकिन अब इन सबको सिद्धेश को तो झेलना ही था।
कुछ ही मिनटों में न्यायालय की कार्यवाही आरम्भ हुई। दोनों पक्षों के वकीलों ने अपने-अपने तर्क रखे। कुछ बातें तो सही थी तथा कुछ केवल मनगढ़ंत। फिर भी न्यायाधीश महोदय को दोनों की बातें सुननी तो थीं। सर्वप्रथम मृदुला के वकील ने सिद्धेश पर कटाक्ष भरी कर्कश वाणी से आरोप लगाये। जिनमें आपत्तिजनक और अपमान से भरे हुए अधिक शब्दों का प्रयोग था। लेकिन दूसरी ओर भी कुछ कम न था एडवोकेट खन्ना ने भी मृदुला के साथ कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। जो नहीं पूंछना चाहिए व भी उस न्यायालय के खचाखच भरे हाल में पूंछने का प्रयास किया और जब एक ओर प्रश्न उठा तो उसका उत्तर देना भी आवश्यक था। यहां वकीलों की बहस कुछ कम न थी। जैसा पारिवारिक केस था उसे हिसाब से बहस लम्बी छिड़ी। यहां पर न्यायाधीश महोदय ने दोनों पक्षों की बातें और वकीलों की जिरह सुनने के बाद अपना निर्णय सुनाने के लिए वकीलों और हॉल में बैठे लोगों को शान्त रहने का आदेश दिया।
दोनों पक्षों की बातें सुनने के बाद और दोनों पक्षों के वकीलों के तर्क देने के बाद न्यायालय इस निर्णय पर पहुंचा है कि मृदुला और सिद्धेश के रिश्तों में तनाव लगभग शादी के कुछ समय बाद ही आरम्भ हो गया था। जिस कारण मृदुला ने सिद्धेश के साथ संबंध विच्छेद इच्छा अपने पिता से व्यक्त की। उन्होंने ने भीा उसे समझाने की जगह उसके फैसले का साथ दिया। दूसरी ओर सिद्धेश की हार्दिक इच्छा थी कि यह पति-पत्नी का रिश्ता न टूटे और उसके लिए वह समय-समय पर भरसक प्रयास करता रहा। लेकिन उसे कामयाबी नहीं मिली। वह एक सरकारी कर्मचारी होने के साथ एक सामाजिक कार्यकर्ता भी है। इसलिए वह रिश्ते को जोड़कर रखना चाहता था परन्तु मृदुला के घमंड और जिद के सामने वह विवश था।
सिद्धेश और मृदुला दोनों की बातों के आधार पर न्यायालय ने देखा कि इन दोनों का पति-पत्नी का सम्बंध अधिक समय चलने की कोई सम्भावना नहीं है। इसलिए अब इन दोनों का समय और धन का अपव्यय बचाने के दृष्टिकोण से तलाक होना ही उचित होगा। इसी में दोनों पक्षो की भलाई है। ऐसा कहते हुए न्यायाधीश महोदय सरकारी वकील से तलाक के कागजों पर दोनों के हस्ताक्षर लेने को कहा।
फिर क्या था मृदुला और सिद्धेश ने बारी-बारी कोर्ट के समक्ष उन कागजों पर हस्ताक्षर कर दिये। हस्ताक्षर करते समय एक बार सिद्धेश की कलम ýकी और उसका मन उसे ऐसा करने से रोकने लगा। लेकिन हस्ताक्षर तो करने ही थे। आज अग्निवेदी के सम्मुख दिये गये सारे वचनों की इतिश्री हो गयी। लेकिन इसका प्रभाव मृदुला के चेहरे पर बिल्कुल नही पड़ा। वह तो जैसे इस समय प्रतिक्षा ही कर रही थी। हस्ताक्षर करने के बाद वह तो खुश थी जैसे वह इस बंधन से मुक्त हो गयी। परन्तु सिद्धेश अत्यंत दुखी और आंखों में छलक आये आंसू। जिन्हें वह रूमाल के सहारे सुखाने का प्रयास कर रहा था। इसी बीच उसके समर्थन में तालियों गड़गड़ाहट ने उसका ध्यान भंग किया। वह कुछ झेंप सा गया और अपनी गर्दन झुका ली। इसके बाद वह खन्ना जी के साथ और मृदुला अपने पिता के साथ दरवाजे से बाहर निकले एक नदी के दो किनारों की तरह जो मिलना तो दूर तलाक रूपी सागर के सामने ठहर ही गये।
खन्ना ही के साथ सिद्धेश पार्किंग में पहुंचा उसी बीच बात-चीत करने के बाद अपनी कार निकाल कर चल दिया। आज उसे ऐसा लग रहा था कि बरसों पास रहने वाली कोई चीज यहीं रही जा रही हैं। बार-बार इस कारण ध्यान भंग होता था। न्यायालय से निकलने के बाद वह घर की ओर चल दिया। उसकी कार पहुंचते ही गेट खुला उसने गाड़ी पोर्च पर खड़ी की और उसे लॉक कर मोबाइल हाथ में पकड़े सीधे अपने कमरे की ओर चला गया। भोला और सुगन्धा दोनों ने देखा परन्तु किसी की उससे कुछ कहने की हिम्मत नहीं पड़ी। बस दोनों अपने ही मन में उठे प्रश्नोत्तरों में उलझ गये।
सिद्धेश ने कमरे का दरवाजा खोला और अपने कपड़े बदलने के बाद वह सीधे बिस्तर पर दरवाजा बन्द करके लेट गया। कुछ देर बाद सुगन्धा भी कमरे की ओर आयी लेकिन केवल एसी की आवाज सुनायी देने के कारण वापस अपने कमरे में चली गयी। इसी तरह कुछ देर बाद भोला चाय लेकर आया, परन्तु दरवाजा न खुलने के कारण निराश वापस लौट गया। इधर सुगन्धा से अब रहा नहीं गया। इसलिए वह नीचे किचने में काम कर रहे भोला के पास पहंुच गयी।
दोनों एक दूसरे को मूक अवस्था में देख रहे थे लेकिन सिद्धेश को लेकर प्रश्न दोनों के मन में उठ रहे थे। आखिर सुगन्धा ही बोल पड़ी कि आज सिद्धेश बाबू को क्या हो गया है। सबसे बातें करने वाला व्यक्ति इतना चुप कैसे रह सकता है। जरूर कोई न कोई कारण तो अवश्य है। तभी तो आज गाड़ी खड़ी कर सिद्धेश बाबू सीधे अपने कमरे में चले गये। किसी से कोई बात तक नहीं की।
हां-हां! बिटिया! मैं भी यही सोचता हूं कि हो न हो कोई बात है जिस कारण बाबू जी ने कमरा तक बन्द कर लिया है। किसी से बात भी नहीं की। लेकिन बिटिया मुझे लगता है कि इसमें बीबी जी की कोई बात जरूर है। इसके बाद खाना बनने के बाद काफी देर में भोला हिम्मत करके फिर सिद्धेश को बुलाने गया। कुछ देर दरवाजे के पास खड़े रहने के बाद जब दरवाजा नहीं खुला तो निराश वापस डायनिंग टेबल के पास आकर खड़ा हो गया। जहां सुगन्धा बैठी इन्जार कर रही थी। कुछ देर दोनों ने सिद्धेश की और प्रतीक्षा की। इसके बाद भोला ने कहा - बिटिया आप तो कुछ खा लो। नहीं काका मुझे भी भूख नहीं है। सुगन्धा ने कहा।
सिद्धेश के मूक रहने के कारण दोनों ने खाना खाने से मना कर दिया। सुगन्धा और भोला दोनों ने भूख न होने के कारण एक दूसरे के सामने रख अपने-अपने कमरे में चले गये। सुगन्धा तो काफी देर बैठी रही। आज उसने टी.वी. भी नहीं ऑन किया। उसके बाद बिस्तर पर लेट गयी और सिद्धेश के विषय में ही सोचती रही। कब नींद आयी पता ही नहीं चला।
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