औघड़ का दान - 2 Pradeep Shrivastava द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

औघड़ का दान - 2

औघड़ का दान

प्रदीप श्रीवास्तव

भाग-2

जब काम निपटा कर पहुंची बेडरूम में तो साढे़ ग्यारह बज रहे थे। बच्चे, पति सोते मिले। एक-एक कर दोनों बच्चों को उनके कमरे में बेड पर लिटाने के बाद वह खुद आकर पति के बगल में लेट गई। अब तक थक कर वह चूर हो चुकी थी। पति को सोता देख उसने सोचा चलो कल करेंगे बात। फिर आंखें बंद कर ली। उसे बड़ा सुकून मिला दिन भर की हांफती दौड़ती हलकान होती ज़िंदगी से। उसे अभी आंखें बंद किए चंद लम्हे ही बीते थे कि पति की इस बात ने उसकी आंखें खोल दीं।

‘देवी-मइया को फुरसत मिल गई क्या ?’

इस पर वह तिलमिला कर बोली,

‘क्या हो गया है आज। तभी से देवी-मइया, देवी-मइया लगा रखा है। रास्ते में वो शोहदे माता जी बोल रहे थे और तुम हो कि तभी से ...।’

इसके बाद सीमा ने उसे जाम में फंसने और शोहदों के फिकरे वाला वाक्या बताया तो नवीन बोला,

‘बेवकूफ रहे होंगे। उनको रात में ठीक से दिखता नहीं होगा। नहीं तुम बीस साल की कमसिन हसीना लगती हो। कहीं से माता जी तो लगती ही नहीं।’

‘अच्छा, तो फिर क्यों तब से देवी-मइया, देवी-मइया किए जा रहे हो।’

‘नहीं वो समाज सेवा पूरी करने के बाद तुम्हें घर का होश आया था न इस लिए। लोग अपना घर तो देख नहीं पा रहे हैं और तुम पूरा समाज देख रही हो तो महान हुई न।’

‘पूरी बात जानने के बाद तुम्हें गुस्सा होना चाहिए। तुम तो ऐसे बोल रहे हो जैसे कि मैं रोज नौ-दस बजे घर आती हूं। आज सोफी ने जो बताया सुनकर मैं दंग रह गई कि इंसान कैसे अपनी पत्नी को इतनी बर्बरता से पीटता है। वो भी उस बात के लिए जो इंसान के हाथ में है ही नहीं और ईश्वर के आगे किसकी चली है।’

‘लेकिन वो उसे इतना क्यों मारता है। वह विरोध क्यों नहीं करती।’

‘अभी हर पत्नी विरोध करने लायक ताक़त कहां पा पाई है, सोफी भी उन्हीं में से एक है जो मार खा कर चुप-चाप आंसू बहाती रहती है।’

‘मगर तुम्हें उसको इस बात के लिए तैयार करना चाहिए। तुम तो हर बात का विरोध करती हो।’

‘अच्छा! कह तो ऐसे रहे हो जैसे कि मैं हमेशा लड़ती ही रहती हूं और तुम चुप-चाप सुनते रहते हो।’

‘मैंने बात विरोध की की है न कि लड़ने की। लड़ाई और विरोध में फ़र्क करना भी जान लो देवी-मइया, समझी चलो आगे बताओ, नवीन ने व्यंग्य करते हुए करवट ली और अपना एक हाथ सीमा के वक्ष पर रख दिया। सीमा इस पर बोली ‘सीधे रहो तो आगे बोलूं ..... ।’

‘बोलो न।’

‘उसका आदमी उसे इसलिए मारता है कि वह तीन लड़कियों को जन्म दे चुकी है, लड़का क्यों नहीं पैदा करती।’

‘क्या मूर्खता है, इसमें औरत का क्या दोष, वो क्या कर

सकती है ?’

‘ये तुम या तुम्हारे जैसे लोग समझते हैं न। उसके पति जैसे जाहिल नहीं।’

‘क्या वो इतना भी पढ़ा लिखा नहीं है। करता क्या है वो।’

‘ओफ्फो .... पहले तुम ये जो कर रहे हो इसे बंद करो तब तो बोलूं। दर्द होता है यार समझते क्यों नहीं।’

सीमा ने अपने वक्ष से नवीन के हरकत कर रहे हाथ को हटाते हुए कहा

‘चलो समझ गया अब बोलो मगर जल्दी। मुझे अभी और भी कई काम करने हैं।’

‘मैं जानती हूं अभी तुम्हें और कौन से काम करने हैं।’

सीमा ने नवीन का आशय समझते हुए कहा फिर आगे बोली,

‘असल में उसके आदमी की पढ़ाई-लिखाई, पारिवारिक बैकग्राऊंड कोई बहुत अच्छी नहीं है। वह नौ भाई-बहन है, उसके पिता ने मोटर साइकिलों की रिपेयरिंग का वर्कशॉप खोल रखा था। बच्चों को ज़्यादा पढ़ाने-लिखाने के बजाए जैसे-जैसे वे बड़े हुए उन्हें वर्कशॉप में लगाते गए। इसका शौहर भाई-बहनों में छटे नंबर पर था और किसी तरह ग्रेजूएशन कर लिया। फिर लैब टेक्नीशियन का भी कोर्स कर लिया और संयोगवश अचानक ही के.जी.एम.यू. में नौकरी लग गई।’

‘और सोफी का परिवार ?’

‘सोफी का परिवार पढ़ा लिखा समझदार परिवार है।’

‘तो इसके चक्कर में कैसे पड़ गए। वो इतना मारता-पीटता है तो अपने मायके में क्यों नहीं बताती।’

‘उसके साथ यह एक और बड़ी मुश्किल है।’

‘क्यों ऐसा क्या हुआ ?’

‘असल में इन दोनों ने अपने-अपने घर वालों के बहुत ज़्यादा विरोध के बावजूद लव मैरिज की है। बाद में सोफी ने अपने घर वालों से संपर्क करना चाहा लेकिन घर वालों ने दुत्कार दिया। उसकी सारी कोशिश बेकार हो गई। तो उसने भी हमेशा के लिए नाता तोड़ लिया। यही हाल पति का भी है। दोनों का अपने-अपने घरों से बरसों से कोई संबंध नहीं है। उसका पति तो जब पिछले साल उसके फादर की डेथ हुई तो उनके अंतिम संस्कार में भी नहीं गया।’

‘समझ में नहीं आता कि ऐसे उजड्ड, जाहिल के चक्कर में कैसे फंस गई तुम्हारी सोफी।’

‘फंस नहीं गई धोखे से फंसा ली गई।’

‘क्या मतलब?’

‘मतलब यह कि सोफी के फादर एच.ए.एल. में सर्विस करते थे। सोफी के एक भाई एक बहन है। सोफी सबसे बड़ी है। इससे छोटी एक बहन बचपन में ही किसी बीमारी की वजह से मर गई थी। सोफी पढ़ाई-लिखाई में ठीक थी। जूनियर हाई स्कूल के बाद पैरेंट्स ने उसका एडमिशन एच.ए.एल. के स्कूल से निकाल कर निशातगंज के किसी स्कूल में करा दिया।’

‘क्यों ?’

‘क्यों कि वे नहीं चाहते थे कि सोफी को-ऐड वाले किसी स्कूल में पढ़े। वो सोचते थे लड़कों के साथ पढ़ेगी तो बिगड़ जाएगी।’

‘ये तो मुर्खतापूर्ण सोच है बिगड़ने वाले तो कहीं भी बिगड़ सकते हैं।’

‘हां... एक्चुअली हुआ भी यही, इंटर के बाद सोफी को महिला कॉलेज अमीनाबाद में डाल दिया गया। वहीं इसकी मुलाकात जुल्फी यानी इसके हसबैंड से हुई। लड़कियों के कॉलेज के पास जैसे तमाम शोहदे लड़के मंडराया करते हैं वैसे ही यह भी मंडराया करता था। महीनों सोफी यानी सूफिया का पीछा करता रहा, दोस्ती करने की बात करता रहा। आखिर उसकी मेहनत रंग लाई और सोफी फंस गई उसके चंगुल में। सोफी बताती है कि तब वह सभ्य शालीन नज़र आता था। पढ़ाई के बारे में बताता कि मैकेनिकल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा कर रहा है। फादर को बैंक में मैनेजर बताया। भाइयों को अच्छी-अच्छी जगह पर बताया। झूठ यह भी बोला कि वह केवल चार भाई-बहन है। और जब भी आता तो हर बार बदल-बदल कर बाइक लाता। वास्तव में यह वह गाड़ियां होती थीं जो उसके यहां बनने आती थीं। वह कुछ देर के लिए उन्हें ले लेता। इन सब बातों ने सोफी को प्रभावित कर दिया। वह घर से निकलती स्कूल के लिए लेकिन पूरे समय उसके साथ घूमती ,मटर-गस्ती करती।’

‘मतलब कि पैरेंट्स ने जिस डर से को-ऐड से पीछा छुड़ाया वही हो गया।’

‘हां .... ।’

‘एक बात बताओ हसीन और चंचल तो तुम भी बहुत थी तुम्हारे पीछे लड़के नहीं पड़ते थे क्या ?’

‘पड़ते क्यों नहीं थे। मैं दुनिया से कोई अलग थी क्या ?’

‘तो तुम क्यों नहीं फंसी ?’

‘मां... अपनी मां की वजह से। पापा तो ऑफ़िस से कभी फुरसत ही नहीं निकाल पाते थे। जब घर पर रहते तब भी बच्चों पर कोई ध्यान नहीं देते थे। मगर मम्मी पूरा ध्यान देती थीं। हम लोगों की पढ़ाई-लिखाई से लेकर एक-एक गतिविधि पर पूरा ध्यान रखती थीं। हर विषय पर खुल कर बात करती थीं। दोस्त बन कर सारी बात सुनतीं बतातीं जिस से हम लोग संकोच में कुछ छिपाए नहीं।

,मुझे अच्छी तरह याद है कि कपड़े कैसे पहनना है यह बताने से लेकर यह तक बतातीं थीं कि देखो बड़ी हो गई हो। रास्ते में लड़के मिल कर बात करना चाहेंगे। दोस्ती करके तुम्हारा मिस यूज करेंगे। पेपर, टी.वी. की तमाम ऐसी घटनाओं का ब्योरा देकर बतातीं कि हमारा समाज ऐसा है कि लड़कों का तो कुछ नहीं होता लड़कियां बरबाद हो जाती हैं। ये शोहदे सिर्फ़ लड़कियों से उनका शरीर खेलने पाने के लिए दोस्ती करते हैं। खुद उन्हें लूटते हैं अपने दोस्तों के सामने भी डालते हैं। मन का नहीं हुआ तो मार डालते हैं। तेजाब डालते हैं।

बचने का रास्ता बतातीं कि घर से स्कूल से कई लड़कियों के साथ निकलो। यदि कोई लड़का मिलने की कोशिश करे तो सख्ती से पेश आओ। कभी डरो मत। ऐसे वह सब कुछ हम सब को खुल कर बतातीं थीं। यही कारण था कि तमाम शोहदे पीछे पड़े लेकिन उनको जो जवाब मिलता था उससे वह दुबारा मिलने की हिम्मत नहीं कर पाते थे। और हम लोग ऐसे मूर्खतापूर्ण कामों से दूर अपनी पढ़ाई पूरी करने में सफल रहे।’

‘तो तुम यह सोफी को भी तो समझा सकती थी।’

‘उस समय तो मैं उसे जानती भी नहीं थी। हमारा परिचय तो ऑफ़िस में हुआ।’

‘उसके घर वाले क्या करते रहे। लड़की बाहर आवारागर्दी कर रही है उनको इसकी खबर भी नहीं थी क्या ?’

‘खबर होती तो वो उसके हाथ-पैर तोड़ कर घर बैठा देते। लेकिन जुल्फ़़ी इतना शातिर था कि दोनों ने शादी कर ली उसके बाद घर वालों को पता चला। बड़ी हाय तौबा-मची पुलिस फाटा सब हुआ लेकिन सब व्यर्थ। कानूनन उनका कुछ नहीं किया जा सकता था। दोनों एडल्ट थे।’

‘ये सख्ती पहले दिखाते तो शायद ये नौबत ही न आती।’

‘ऐसा नहीं है। सोफी जैसा बताती है उस हिसाब से उसके पैरेंट्स बहुत सख्त थे। वो तो सोफी को चौदह-पंद्रह साल की उम्र में ही बुर्का पहनने के लिए कहने लगे थे। लेकिन उसकी जिद और जैसा बताती है कि कॉलोनी का माहौल ऐसा था कि वह बुर्का से बची रही। और सबसे बड़ी बात यह है कि घर के चोर को रखाया नहीं जा सकता। कोई कुंए में कूदने की जिद किए बैठा हो तो कब तक बचाओगे उसे। मैं तो उस समय उससे यह सुन कर दंग रह गई जब उसने यह बताया कि बी.ए. फर्स्ट ईयर में जब इन दोनों की दोस्ती हुई तो उसके तीन महीने बाद ही दोनों के शारीरिक संबंध बन गए थे।’

‘जब तुम्हारी सोफी इतनी उतावली थी, सेक्स की इतनी भूख लगी थी उसे तो अकेले जुल्फ़़ी को दोष कैसे दे सकते हैं।’

‘ये भी कह सकते हो। लेकिन मुझे लगता है कि वह इतनी इनोसेंट थी कि जुल्फी जैसे शातिर को समझ न पाई। वह कितना धूर्त और शातिर था इसका अंदाजा इसी एक बात से लगा सकते हो कि पहली बार सेक्स के बाद उसने सोफी से कॉपर टी लगवाने की बात कर डाली। जब सोफी डर गई, मना कर दिया इन चीजों के लिए तो उसने तरह-तरह से ऐसे समझाया जैसे कोई मेच्योर आदमी हो। उसने डराते हुए कहा कि ऐसे वह प्रिग्नेंट हो गई तो मुश्किल हो जाएगी।

सोफी ने इस पर कहा ठीक है आज के बाद हम लोग शादी के बाद ही सेक्स करेंगे। जुल्फ़ी को लगा कि यह तो हाथ से निकल जाएगी। तो उसने तरह-तरह से डराया मनाया और अंततः इसके लिए सोफी को तैयार कर लिया। इसके बाद वह उसे जब उसका मन न होता तब भी ले जाता अपने साथ। इससे पढ़ाई पर बड़ा असर पड़ा। हमेशा फर्स्ट आने वाली सोफी किसी तरह बी.ए. पास कर पाई।’

***