औघड़ का दान - 3 Pradeep Shrivastava द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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औघड़ का दान - 3

औघड़ का दान

प्रदीप श्रीवास्तव

भाग-3

‘हूं .... तुम्हारी सोफी की ज़िंदगी में बड़े पेंचोखम हैं। मायका-ससुराल नाम की कोई चीज बची नहीं है। ले दे के जुल्फ़ी और जुल्फ़ी है। और वो इसी का फ़ायदा उठा रहा है।’

‘हां इसी का फ़ायदा उठा रहा है। जैसा चाहता है वैसा व्यवहार करता है। कल रात ऐसा मारा कि हाथ में फ्रैक्चर हो गया। रात भर कराहती रही सुबह हाथ सूजा हुआ देख कर भी एक बार न पूछा कि कैसे ऑफ़िस जाओगी। और वह भी न जाने किस मिट्टी की बनी है कि इस हालत में भी स्कूटी चला कर ऑफ़िस आ गई। ऑफ़िस में जब दर्द बहुत बढ़ गया तब रोने लगी। उस की हालत देख कर मुझ से रहा नहीं गया तो ले गई हॉस्पिटल। डॉक्टर ने देखते ही कह दिया फ्रैक्चर है। फिर मेरा फर्ज बन गया कि मैं उसकी मदद करूं।’

‘हां... फर्ज पूरा भी किया तुमने। उसको घर छोड़ने गई तो उसका वो जाहिल आदमी मिला था क्या ?’

‘हां दरवाजा उसी ने खोला। एक नज़र सोफी के प्लास्टर चढ़े हाथ को देखा फिर अजीब सी नजरों से मुझे देखा। उसे देख कर मुझे गुस्सा आ गई। मगर कंट्रोल करते हुए कहा ‘इनके हाथ में गहरा फ्रैक्चर है। डॉक्टर ने आराम करने को कहा है। देखिए मियां-बीवी में तकरार होती रहती है लेकिन ऐसा भी नहीं कि हाथ-पैर टूट जाएं।’

मेरे इतना कहते ही सोफी बोल पड़ी,

‘सीमा आओ अंदर बैठो मैं चाय बना कर लाती हूं।’

सोफी का मतलब मैं समझ गई थी कि वह अपने पति की आदतों के चलते नहीं चाहती थी कि मैं कुछ कहूं। मैंने भी तुरंत बात पलटी और कहा,

‘नहीं सोफी बहुत देर हो गई है। मैं तुरंत चलूंगी। अभी घर पहुंचने में घंटे भर से ज़्यादा लग जाएगा। मैं कल आऊंगी।’

इसके बाद मैं स्कूटी की तरफ चल दी। सोफी ने कई बार कहा लेकिन मैं नहीं रुकी। उसकी तीनों बच्चियां भी जुल्फ़ी के साथ खड़ी थीं। मैं उन सब को बॉय कर चल दी। रास्ते भर मेरी नज़रों के सामने कभी तुम लोगों का तो कभी सोफी की बच्चियों का चेहरा नज़र आता रहा। उनका चेहरा याद आते ही मैं उन मासूमों के बारे में सोचने लगती कि उनका भविष्य क्या होगा। जिनकी मासूमियत कुपोषण के चलते कुम्हला गई थी।’

‘तुम्हारी सोफी की हालत वाकई बड़ी गंभीर है, उसकी ज़िदगी में हर तरफ अंधेरा ही दिख रहा है। मुझे एक बात याद आ रही है। हालांकि मुझे कभी भरोसा नहीं था। लेकिन जब छुटकी होने वाली थी तो तुम्हारी हालत बड़ी खराब हो गई थी। कहने को उस समय मैटरनिटी मामलों का वह सबसे बड़ा हॉस्पिटल था। वहां की डॉक्टर नमिता अंचल पूरे शहर में जानी जाती हैं। तुम्हें तो उन पर अटूट विश्वास है।’

‘हां वो हैं ही इतनी काबिल। अपनी सीरियस कंडीशन से मैं बहुत डरी हुई थी लेकिन डॉक्टर नमिता का नाम सुना तो मुझे विश्वास हो गया वह मुझे बचा लेंगी। और मेरा विश्वास टूटा नहीं।’

‘मेरी नज़र में सच कुछ और है। सीमा नो डाउट कि डॉक्टर नमिता बहुत काबिल हैं लेकिन आज भी मेरा पूरा यकीन है कि उस दिन न सिर्फ़ तुम्हारी बल्कि छुटकी की भी जान उस औघड़ बाबा ने बचाई जिसके पास मैं उस दिन गया था।’

‘औघड़ बाबा ने!’

‘हां ..... जब डॉक्टरों ने कहा कंडीशन बहुत सीरियस है तो मैं घबरा गया। समझ में नहीं आ रहा था क्या करूं। तीन घंटे बाद ऑपरेशन होना था। इसी समय ऑफ़िस से सोम पांडे आ गए। हालत जान कर वो भी परेशान हो गए। अचानक उन्होंने मुझसे कहा,

‘नवीन, आदमी दवा, पूजा-पाठ सब करता है कि न जाने कौन सी चीज लग जाए।’

मैंने प्रश्न भरी दृष्टि से उसकी तरफ देखा तो उसने कहा ‘मोहान के पास एक औघड़ साधू बहुत दिन से आ कर रुका हुआ है। लोग उसके पास जाते हैं तो बिना कुछ बताए ही वह मन की बात जान जाता है और समाधान बता कर भेज देता है। आज तक कोई उससे निराश नहीं हुआ है। अभी तीन घंटे बाकी हैं। हम लोग वहां से होके आ सकते हैं।’ तुम्हारी हालत से मैं डरा था ही लेकिन कम समय के कारण मैंने कहा,

‘यार इस हालत में मैं गाड़ी नहीं चला पाऊंगा।’ तब वह बोले ‘मैं चलता हूं।’ मैं तुम को छोड़ कर जाना नहीं चाहता था। लेकिन जब अम्मा सहित बाकी सबने कहा तो मैं चला गया। बाबा के पास गया तो वह मेन मोहान रोड से करीब एक किलो मीटर दूर जंगल में मिले।

एक पेड़ के सहारे पुआल की एक छोटी सी झोपड़ी में, करीब बीस-पचीस मीटर दूर एक छोटा टीला था। आस-पास हर तरफ झाड़ झंखाड़। और टीले पर बीचो-बीच एक लकड़ियों का ढेर सुलग रहा था। उसके पास ही पुआल पर एक चिथड़ा कंबल पड़ा था। बाबा उसी पर एक दम नंगे औंधे मुंह पड़े थे। छः फिट से ज़्यादा एकदम पहलवानों जैसा जिस्म था। भभूत से उनका पूरा जिस्म काला हो रहा था। हम दोनों हाथ जोड़ कर उनके नजदीक खड़े हो गए। हमारे प्रणाम बोलने का उन्होंने कोई जवाब न दिया। मैं उनकी इस हरकत से आतंकित हो रहा था। वापिस तुम्हारे पास आने की व्याकुलता बढ़ती जा रही थी। कुछ देर बाद हमने और सोम ने एक दूसरे की तरफ देखा और फिर जैसे ही बाबा के और करीब पहुंचने के लिए क़दम बढ़ाने को हुए वह एकदम से उठ कर बैठ गए। उन्हें देख कर कुछ क्षण को हम दोनों सहम गए। नशे के कारण आँखें सुर्ख थीं। बड़ी-बड़ी जटाएं। दाढ़ी। वीभत्स रूप था। हम कुछ बोलें इसके पहले ही वह उठे और जो लकड़ियां सुलग रहीं थीं उसके किनारे पड़ी राख में से एक मुट्ठी निकाल कर मेरे में हाथ देते हुए कहा,

‘ले जा इसको, लगा दे जा कर उसे। कुछ नहीं होगा।’

हम उनका पैर छूने को बढ़े तो वह चीख पड़े ‘चल भाग यहां से वक़्त बहुत कम है तेरे पास, देर हुई तो जय महाकाल।’ उनकी चीख और बात से हम एकदम पसीने-पसीने हो गए। मगर फिर जितनी तेज़ हो सकता था हम उतनी तेज़ भागे वहां से। सोम इतनी तेज़ मोटर साइकिल चला रहा था कि कई जगह लड़ते-लड़ते बचे। मैंने पूरी ताकत से भभूत को मुट्ठी में जकड़ रखा था। मैं जब हॉस्पिटल पहुंचा तो तुम्हें सिजेरियन ऑपरेशन के लिए ऑपरेशन थिएटर ले जा रहे थे।

तुम स्ट्रेचर पर, आंखें बंद किए पड़ी थी, वार्ड ब्वाय, नर्स, सब जल्दी-जल्दी अंदाज में थे। मुझे लगा कि तुम्हारी हालत ज़्यादा गड़बड़ है इसीलिए सब तेज़ी से जा रहे हैं। तुम्हारा भाई अम्मा को पकडे़ हुए चल रहा था। तभी सोम बोला ‘जल्दी से लगाओ।’ मैं जो उस समय बहुत नर्वस हो गया था जल्दी से तुम्हारे माथे पर भभूत लगा दी। फिर उसके बाद जो हुआ उससे मैं क्या डॉक्टर नमिता भी चौंक गईं।’

‘क्यों ऐसा क्या हो गया था।’

‘हुआ यह कि भभूत लगते ही तुमने आंखें खोल दीं। मुझे देख कर हाथ मेरी तरफ बढ़ा दिया। मैंने तुम्हारा हाथ पकड़ लिया। मगर तभी ऑपरेशन थिएटर आ गया और फिर मैंने तुम्हें अंदर जाने दिया। तभी डॉक्टर नमिता मेरे सामने आ गईं और बोली ‘रियली इट्स ए मिरेकल, बाद में इस बारे में बात करती हूं।’

फिर वह जल्दी से चली गईं ऑपरेशन थिएटर में। बाहर अम्मा, मैं तुम्हारे भाई और सोम इंतजार करते रहे। एक-एक पल बहुत भारी बीत रहा था। मगर यह लंबा नहीं चला, मुश्किल से चालीस-पैंतालीस मिनट बीते होंगे कि डॉक्टर बाहर निकलीं। मैं तुरंत उनके पास पहुंचा तो वह बधाई देती हुईं बोलीं,

‘बधाई हो, लड़की हुई। मां-बच्ची दोनों ही बिल्कुल ठीक हैं। मगर जिस तरह से सब कुछ हुआ, उससे मैं आश्चर्य में हूं। मेरे इतने लंबे कॅरियर में इस तरह की यह पहली घटना है।’

फिर उन्होंने बताया कि अंदर जाते ही आश्चर्यजनक ढंग से तुम्हारी कंडीशन नॉर्मल होने लगी। जिस सिजेरियन के लिए उन्होंने सारी तैयारी कर रख थी वो शुरू करतीं उसके पहले ही छुटकी का जन्म हो गया। नॉर्मल डिलीवरी हुई थी। कुछ ही देर बाद हमने तुम दोनों को देखा, लग ही नहीं रहा था कि यह वही केस है जो कुछ देर पहले तक बेहद सीरियस था। अगले दिन डॉक्टर ने जब मुझ से भभूत के बारे में पूछा तो मैंने सारा वाक्या बता दिया। सुन कर वह बड़ी चकित हुईं। बोली,

‘बड़ी अजीब है यह दुनिया। न जाने कैसे-कैसे लोग पड़े हैं दुनिया में। क्या पता कौन किस रूप में मिल जाए।’

‘लेकिन आज से पहले तो तुमने यह सब कभी नहीं बताया।’

‘अं... यह कह लो कि डर। मैंने सोचा कि अगर बताऊंगा तो तुम हंसोगी कि अच्छा पहले तो बड़ा इन सबको गरियाते थे। कि ये पाखंडी होते हैं। ढोंगी ठग होते हैं। इन को कहीं गहरी नदी में डुबो देना चाहिए। जब सिर पर आन पड़ी तो दौड़े चले गए। इसी लिए नहीं बताया फिर बाद में धीरे-धीरे बात भी दिमाग में धूमिल होती गई।’

‘ऐसा कैसे सोच लिया तुमने। तुम मेरे, बच्चों के लिए इतना सोचते, करते हो और मैं तुम पर हसुंगी यह मैं सोच भी नहीं सकती। फिर ऐसी बात दिमाग में मत लाना। मगर यह घटना तुम्हें अभी क्यों याद आई।’

‘इसलिए याद आ गई कि मुझे लगा यदि सोफी वहां जाए तो उसकी समस्या भी शायद हल हो जाए। जिस तरह तुम उसके बारे में बता रही हो उससे मुझे उस पर बड़ा तरस आ रहा है।’

‘तुम्हें उस बाबा पर इतना यकीन है।’

‘हां .... पूरा यकीन है। जानती हो जिस दिन तुम्हें डिस्चार्ज किया गया उस दिन डॉक्टर नमिता ने मुझसे पूरी बात सुनने के बाद बाबा का पूरा ठिकाना नोट किया। जब मैंने कहा कि ऐसे उन्हें ढूंढ़ पाना मुश्किल है तो उन्होंने कहा ‘नहीं मिलेंगे तब आपको कष्ट दूंगी।’ बड़ा कुरेदने पर सिर्फ़ इतना ही संकेत दिया कि हॉस्पिटल में सीनियर चैन से नहीं रहने दे रहे हैं और घर पर पति और बेटी ने अपनी-अपनी हरकतों से परेशान कर रखा है। उनकी परेशानी का अंदाजा इसी से लगा सकती हो कि यह बात कहते-कहते उनकी आंखें छल-छला आई थीं।’

‘तो बाबा के पास वह गईं कि नहीं।’

‘पता नहीं बाद में उन्होंने कोई फ़ोन नहीं किया। हालांकि मेरा नंबर अपने सेल में फीड किया था।’

‘लेकिन सोफी से यह बताना ठीक रहेगा। वह मुस्लिम है। हिंदू बाबा की बात पर नाराज़ न हो जाए।’

‘कैसी बचकानी बात करती हो। ज़रूरत पड़ने पर आदमी हर जगह जाता है। ऐसे तमाम मुसलिम लोगों को मैं जानता हूं जो हिंदू स्थानों पर मन्नतें मांगने जाते हैं। हिंदू बाबाओं के शिष्य हैं। फिर तुम्हारा काम है उसकी समस्या के समाधान के लिए एक रास्ता बता देना। बाकी हिंदू-मुसलमान वह खुद तय कर लेगी। उसे ज़रूरत होगी तो जाएगी, नहीं तो नहीं जाएगी। तुम्हारा काम है उसकी जो मदद कर सकती हो वह कर देना, बस। अब मुझे नींद आ रही सवेरे जल्दी उठना है।’

‘हां ..... रोज वही बोरिंग लाइफ कुछ बचा ही नहीं है।’

‘अभी बहुत कुछ बचा है डॉर्लिंग आओ तुम्हें बताता हूं, तुम्हारी बजानी भी तो है। कहते हुए नवीन ने सीमा को बांहों में जकड़ लिया। उसने भी कोई प्रतिरोध नहीं किया।’

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