परिवर्तन की लहर Anju Gupta द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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परिवर्तन की लहर

मुक्ता लगभग 25 वर्ष की थी और शहर के नामी कॉलेज में अंग्रेजी विभाग में लेक्चरर थी l विभाग में ज्यादातर लोग बड़ी उम्र के थे , इसलिए उसका मन अभी तक कॉलेज में रम नहीं पाया था । नए सत्र में कुछ नई नियुक्तियां हुईं थीं, उसी के चलते अनुभा ने अंग्रेजी विभाग में ज्वाइन किया था । चुस्त साड़ी, ढीला-सा जूड़ा, आंखों पर महंगा सा चश्मा और आत्मविश्वास से भरी चाल … सच में, अनुभा के व्यक्तित्व में आधुनिकता और शालीनता का अद्भुत सामंजस्य था । हमउम्र होने की वजह से कुछ ही दिनों में अनुभा और मुक्ता में अच्छी खासी बनने लगी थी । अपनी क्लास खत्म होने के बाद दोनों या तो कैंटीन में बैठ कर बातें करतीं रहतीं या फिर लाइब्रेरी में बैठ कर नोट्स बनातीं । सबसे बड़ी विशेषता अनुभा में यह थी कि उसमे कोई दुराव नहीं था, जो चीज उसे गलत लगती, बड़ी शालीनता और स्पष्टता से वह उसे सामने ला देती । सच कहें तो अपने छोटे चाचा के लिए मुक्ता ने लड़की पसंद कर ली थी ।

मुक्ता की ज्वाइंट -फैमिली थी । घर में दादी का एकछत्र राज था । उसके मम्मी -पापा घर में बड़े थे और वह पूरे परिवार की लाड़ली बेटी थी । पापा आर्मी में थे, उसकी पढ़ाई की वजह से उसकी मम्मी और वह अधिकतर ददिहाल में ही रहे । दूसरे नंबर के चाचा का देहांत हो चुका था और पत्नी रानी उन सबके साथ ही रहतीं थीं । रह क्या रहीं थीं, बेचारी बस जिंदगी के दिन काट रहीं थीं। चाचा के जाने के बाद वे पूरा दिन काम में ही लगी रहती थीं । छोटे चाचा शहर में नौकरी कर रहे थे और आजकल उनके लिए एक अदद लड़की की तलाश जारी थी । छोटे चाचा मुक्ता से कुछ ही साल बड़े थे और उनसे मुक्ता की काफी छनती थी । घर में चहल पहल छोटे चाचा के घर आने के बाद ही आती थी वरना जिंदगी एक नियमित ढर्रे पर चल रहती थी ।

बात मुक्ता के जन्मदिन की है। कुछ खास सहेलियों के साथ-साथ उसने अनुभा को भी घर पर बुलाया था । दरअसल, वह अनुभा को अपने घर वालों से मिलवाना चाहती थी । अनुभा बारे में इतना तो पता चल ही चुका था कि उसके घर में उसके बड़े भैया और भाभी ही हैं और उन्होंने अनुभा को अपनी बेटी की तरह पाला है । मुक्ता के जन्मदिन पर चाचा का आने भी निश्चित होता था, सो एक पंथ दो काज हो जाते। और हुआ भी कुछ ऐसा ही... सभी को अनुभा बहुत पसंद आयी थी । चाचा तो मानो उसपर लट्टू हो गए थे । अपनी ही जाति की थी इसलिए शादी में कोई अड़चन न थी और कुछ ही दिनों में अनुभा मुक्ता की छोटी चाची बन के उनके घर की शोभा बन गयी।

शादी के समय ही तय हो गया था कि अनुभा यह समेस्टर पूरा करके छोटे चाचा के साथ चली जाएगी । मुक्ता और अनुभा अब इकठे ही कॉलेज आती - जातीं थीं । अनुभा ने महसूस किया था कि घर में इतने लोगों के होने के बावजूद रानी भाभी घर में अकेली और चुपचाप सी रहती थीं । किसी के घर में आ जाने पर, वो उनका सामना करने से घबरातीं थीं । यह बात उसे बुरी तो लगी, पर नई नवेली होने की वजह से वह कुछ बोली नहीं ।

अनुभा ऑनलाइन काम भी करती थी । एक दिन बातों ही बातों में मुक्ता ने उसे बताया कि रानी चाची को कंप्यूटर की भी जानकारी है तो मानो अनुभा को एक राह मिल गयी । उसने रानी भाभी को अपनी मदद के बहाने ईमेल करना और सोशल साइट्स पर काम करना सीखा दिया । रानी भाभी अब अनुभा के आने तक उनका टायपिंग का काम कर कर देती थीं ।

उस दिन तो मानो भूचाल आ गया जब अनुभा ने रानी भाभी को चटक रंग की ड्रेसेस ला कर दीं।

गुस्से में उसकी सास बोलीं , "छोटी बहू, ये क्या लगा रखा है ? अच्छा भरा घर चल रहा है , क्यों रानी को बिगड़ रही हो? "

"क्या हुआ माँ जी", अनुभा बोली ।

"रानी विधवा है । फिर क्यों तुम रानी के लिए इतने चटक रंग की पोशाकें ले कर आई हो ? क्या इस तरह के चटक रंग और इस तरीके की पोशाकें पहनना एक विधवा को शोभा को शोभा देता है ?"

फीकी हसीं हसते हुए अनुभा बोली," माँ जी, विधवा होना किस्मत में हो सकता है, पर यह कोई अभिशाप नहीं। और हाँ.... यह क्या बात हुई, जब एक आदमी पत्नी की मौत के बाद पहले जैसी जिंदगी गुजार सकता है, तो औरत क्यों नहीं ? वो क्यों चटक रंग नहीं पहन सकती ?"

दोनों की बातें सुनकर घर के लोग आसपास जुटने लगे थे और उनकी चिंतनशील मुद्राएं बता रही थीं कि घर में परिवर्तन की लहर उठ चुकी है।

अंजु गुप्ता