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गुरप्रीत

धीरे-धीरे दिन हफ्ते महीने बीत चले है। अब साल खत्म होने को है। जैसे-जैसे परीक्षा का समय निकट आ रहा है, वैसे-वैसे मेरे दिल की धड़कनों में इज़ाफ़ा होता जा रहा है। बचपन से ही मुझे परीक्षा के इस माह से बहुत डर लगता आया है। अब फिर से होली के साथ यह महीना किसी काल सर्प की भांति अपना मुँह बॉय खड़ा है। वो गरिमियों की लू के थपेड़ों वाली सुनसान सड़कें जिस पर सिर्फ आइस क्रीम वाले की डुगडुगी की आवाज गुंजाये मान रहा करती है। वह दोपहर शायद किसी अमावस की रात से भी ज्यादा भयानक होती है। जिसमें किताबों में गुस्से बच्चे आने वाली परीक्षा के डर से कांप रहे होते है। ऐसा नही है कि यह डर केवल ना पढ़ने वाले या कम पढ़ने वाले बच्चों को ही सताता है। बल्कि यह वो बला होती है, जिससे बहुत अधिक पढ़ने वाले बच्चे भी थरथर कांपते है। इसलिए मुझे परीक्षा से ज्यादा परिणाम के रूप में आने वाली आंधी से डर लगता है। जो परिणाम के बाद होने वाले हादसों में नजाने कितने ही घरों के चिरागों को अपने साथ डूबा ले जाती है। ऐसे ही एक अनुभव से उपजी है यह कहानी "गुरप्रीत"
अरे क्या बात है आज कल गुरप्रीत बड़ा चुप चुप सा रहता है। न किसी से कुछ बोलता है, न बात करता है ? सब ठीक तो है। मौहोल एक काका ने गुरप्रीत के दोस्तों से पूछा। तो उनमें से एक ने उत्तर देते हुए कहा कुछ नही काका वो परीक्षा शुरू होने वाली है न बस इसलिए आजकल खेलने भी नही आता।
अच्छा मगर यह तो गलत बात है। पढ़ाई लिखाई के साथ-साथ खेलना कूदना भी तो उतना ही जरूरी है भई, है कि नही...! अब तुम लोग भी तो परीक्षा में बैठोगे ही पर तुम लोग तो आये हो न ? तो उसे भी बुलालो उसका भी जरा मन बहल जाएगा। हाँ काका हम सब तो गए ही थे उसे बुलाने पर...एक दोस्त से जरा उदास मुख बनाते हुए बोला पर...पर क्या ? बूढ़े काका ने फिर पूछा पर उसके माता-पिता ने उसे बाहर आने नही दिया और हम लोगों को भी डाँटकर भागा दिया। कहा कि जाओ तुम सब भी अपने घर जाकर पढ़ाई लिखाई करो जिससे कुछ भले दिन हो गुरप्रीत को इस साल बहुत अच्छे अंकों से पास होना है। वह तुम्हारे साथ आकर नही खेल सकता। जब परीक्षा खत्म हो जाएगी तब आना समझे,?
अभी सब जाओ। कहते हुए उन्होंने दरवाजा बंद कर लिया। हमें मिलने तक नही दिया गुरप्रीत से खेलना तो बहुत दूर की बात है। जरा देर चुप रहने के बाद बूढ़े काका बोले हां तो ठीक ही तो किया। तुम लोग कौन सा हाथ पैरों वाला या शरीर की कोई वर्जिश वाला कोई खेल खेलते हो। दिन भर मोबाइल और लेपटॉप के आलावा तुम्हारे पास है ही क्या खेलने के लिए। कुछ ऐसा खेलो जिसमें शारीरिक श्रम भी हो तब तो कोई बात है। सारा-सारा दिन मोबाइल और कम्प्यूटर में आंखे फोड़ने से भला क्या लाभ उल्टा परीक्षा के समय आंखें और खराब होगयी तो पढोगे कैसे ?
अरे काका....उन में कोई एक बोला माँ ने मन किया है। बोली यदि थक गये तो थककर सो जाओगे, तो पढोगे कब ? इसलिए कोई ज़रूरत नही है ऐसा कोई खेल खेलने की जिसके बाद पढ़ाई न हो सके। अब आप ही बताओ हम करें तो क्या करें। आखिर हमे भी ब्रेक की जरूरत होती है। तो सोचा चलो दोस्तों के साथ मिलकर कुछ देर बतिया कर ही अपना मनोरंजन कर लें। उस पर भी गुरप्रीत की मम्मी ने उसे बाहर आने से मनाकर दिया।
हम्म...! यह भी कोई बात हुई। अच्छा तो यह बात है। तब तो फिर कुछ सोचना पड़ेगा की ऐसा क्या किया जा सजता है जिस से गुरप्रीत की मम्मी उसे घर से निकलने दें, ताकि वो तुम सब से मिल सके। चलो साथ में मिलकर सोचते है। सब ने बहुत सोचा किसी ने घर पर पार्टी रखकर उसे बुलाने की कोशिश कि तो किसी ने कुछ और बहाना बनाकर उसे घर से बाहर लाने की कोशिश की मगर उसकी माँ ने उसे किसी कीमत पर बाहर नही जाने दिया। फिर एक में सामूहिक पढ़ाई के बहाने उसे अपने घर बुलाया तब कहीं जाकर जरा देर के लिए उसके पापा ने उसे घर से बाहर जाने दिया उसके आते ही सारे दोस्तों ने उसे गले से लगा लिया और पूछा कैसा है दोस्त।
तूने तो अब तक सब पढ़ लिया होगा ना ??? अब तो तेरा रिवीजन का समय होगा। हम ने तो कुछ पढ़ा ही नही यार बहुत टेंशन हो रही है। इसलिए तो आज हमने यह ग्रुप स्टडी का प्लान बनाया, ताकि तू हम सब को गाइड कर सके। नही यार सच्ची बोलूं तो मैन भी अब तक कुछ खास नही पढ़ा है। मम्मी पाप ने इतना दबाव डाला हुआ है मुझ पर कि मैं चाहकर भी नही पढ़ पा रहा हूँ। जैसे ही पढ़ने की कोशशि करता हूँ, मेरे दिमाग में उनकी बातें घूमने लगती है की इस साल यदि मेरे अच्छे नंबर नही आये तो मुझे होस्टल भेज देंगे। या फिर पापा के लंदन वाले दोस्त के घर भेज देंगे। यार में दोनो ही जगह जाना नही चाहता। मैं यहीं रहना चाहता हूँ तुम लोगों के साथ लेकिन उनकी धमकी से डरता हूँ।
मम्मी पापा तो यहां तक बोल देते हैं कि इस बार फेल होकर या सिर्फ बॉउंड्री पर पास होकर हमारी नाक मत कटाना सब क्या कहेंगे। यह साल बहुत महत्व रखता है तुम्हारे लिए समाज में अपनी इज्जत बनाये रखना चाहते हो तो पढ़ाई करो और पास होकर दिखाओ वो भी प्रथम श्रेणी में, वरना दुनिया के सामने तुम्हारी कोई ओकात नही रह जाएगी। कहीं के नही रहोगे, कोई साथ नही बैठेगा न कोई साथ रहना चाहेगा तुम्हारे, इस सब को झेलने से अच्छा है पढ़ो। यार कैसे भी कर के मुझे इस साल प्रथम श्रेणी में पास होना ही है।
पर कैसे मैं इतना तनाव महसूस कर रहा हूँ इन दिनों की मेरे दिमाग में पढ़ाई के नाम पर कुछ घुस ही नही रहा है। ऐसा लग रहा है कि यदि में पास न हुआ तो दुनिया वहीं खत्म है। खैर मेरी छोड़ो तुम लोग अपनी कहो अभी गुरप्रीत अपने मन की बात अपने दोस्तों को बता ही रहा था कि उसके पापा आ गए और बोले यह है तुम लोगों की सामूहिक पढ़ाई इससे तो अच्छा होता, मैन इसे यहां भेजा ही नही होता। सारा समय खराब कर दिया तुम लोगों ने मेरे बच्चे का चलो गुरप्रीत घर चलकर पढ़ना इन निक्कमों को तो कोई फर्क पड़ता है नही, पास हों या फेल मगर तुमको हर हाल में पास होना ही है कहते हुए उसे उसके पापा अपने साथ घर ले गए गुरप्रीत के मन का हाल जानकर सभी दोस्त उसके प्रति चिंतित भी थे तो दूजी और घबराए हुए भी थे कि यदि वह पास न हुए तो उनके मा-पापा उनके साथ क्या करेंगे इस कल्पना ने ही सभी बच्चों के हाथों में किताब पकड़ा दी थी। इसी जगदो जहद में सभी ने परीक्षाएं दी।
अब सभी अपने अपने दादा-दादी, नाना-नानी से मिलने अपने अपने होम टाउन जा चुके थे। अब सबको इंतेजार था परिणाम का गुरप्रीत के मम्मी पापा कहीं नहीं गए थे क्योंकि उनके मन में डर था कि कहीं गुरप्रीत फेल होगया तो वह सबको क्या मुँह दिखायेंगे। मोबाइल और लैपटॉप के ज़माने में आजकल सभी कुछ घर बैठे उपलब्ध है सो परीक्षा परिणाम भी नेट पे ही दिख जाना था। परीक्षा के बाद सभी दोस्तों के अपने-अपने होम टाउन चले जाने के बाद एक नेट ही तो सहारा रह गया था गुरप्रीत के लिए। जिसके जरिये वह अपना टाइमपास किया करता था।
जिसमें उसने कुछ अच्छी तो कुछ बुरी चीजें भी सीख ली थी क्योंकि गुरप्रीत कहीं ना कहीं यह जानता था कि उसके पेपर कैसे गए है। अक्सर अकेले में गुरपित के दिमाग में अपने मा-बाप के द्वारा कही हुई बातें ही घुमा करती थीं। जो उसे सारी-सारी रात चैन से सोने नही देतीं थी। जिनसे परेशान होकर हंसता खेलता गुरप्रीत अब उदास रहने लगा था। चिड़चिड़ा पन अब उसके व्यवहार में शामिल होगया था, उसकी आंखों के नीचे काले घेरों ने अपना अड्डा बना लिया था।
आखिर परिणाम का दिन आ ही गया और गुरप्रीत के माता-पिता उसका रोल नंबर लेकर जब तक उसका परिणाम देखते उससे पहले ही गुरप्रीत अपना परिणाम स्वयं देख चुका था। इधर हर घर में कहीं जश्न का माहौल था तो कहीं नाकामयाबी की उदासी उसके सभी दोस्त आपस में फोन कर के एक दूजे को बधाई दे रहे थे। गुरप्रीत को भी उसके सभी दोस्तों ने फोन किया था किन्तु उसके माता-पिता ने तब भी उसके दोस्तों से उसकी बात नही कराई क्योंकि अभी तक वह गुरप्रीत का परिणाम खुद देखकर उस बात की तस्सली नही कर पाए थे की गुरप्रीत कौन सी श्रेणी में पास हुआ है।
यदि प्रथम में नही हुआ होगा तो वह दुनिया को क्या मुह दिखायें गे क्या कहेंगे के डर से उन्होंने अब तक किसी को गुरप्रीत से ना तो मिलने दिया ना बात करने दी। चूंकि गुरप्रीत यह सब होगा यह जानता था और उसकी वहज से उसके माता-पिता की नाक कटे और वह समाज में मुँह दिखाने लायक ना रहें, उसने पंखे से लटक कर अपनी ज़िन्दगी का खेल खत्म कर लिया था। इसलिए नही की वह फेल होगया था।
बल्कि इसलिए कि वह प्रथम श्रेणी में पास ना हो सका था। और जब यह बात उसके मा-बाप को पता चली तब तक बहुत देर हो चुकी थी। जब तक उन्हें यह एहसास हुआ कि उन्होंने झूठी शान की खातिर अपना सब कुछ खो दिया। तब तक बहुत देर हो चुकी थी....माना कि पढ़ाई जरूरी है। लेकिन कोई सी भी पढ़ाई जिंदगी से ज्यादा ज़रूरी नही होती। खोये हुए अंको को तो दुबारा हासिल किया जा सकता है। किन्तु खोये हुए लोगों को दुबारा वापस पाया नही जा सकता.....!

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