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अनचाही

यह कहानी एक स्त्री की कहानी है। वह स्त्री जो अपने घर परिवार के लिए अपना सारा जीवन होम कर देती है और बदले में क्या पाती है अपमान तरिस्कार न जाने क्या कुछ झेलकर खुद को बार बार समेट कर उसके हाथ यदि कुछ लगता है तो वह होता है केवल बिखराव जिसका दर्द उसकी आँखों से आँसू बनकर बहता है और लोग उसे दिखावा समझकर उसके उन अश्रुओं का मजाक उड़ाते है। उसे कमजोर बताते है।

जबकि वास्तविकता में घर की वही स्त्री उस घर की नींव सिद्ध होती है। मगर अफसोस कि जब तक उसकी सिद्धि का वो वक्त आता है तब तक बहुत देर हो चुकी होती है और वह स्त्री अपने आपसे अपने संघर्ष पूर्ण जीवन से और इस सब से ज्यादा अपने अपनो से लड़ते लड़ते अपनी अंतिम सांस लेती है और थककर सो जाती है उस चिर निंद्रा में जिसमें सो जाने के बाद कोई लौटकर वापस नही आता।
इन्ही विचारों से बनती है लता की यह कहानी।

लता एक गांव की लड़की है जो अपने संयुक्त परिवार के साथ रहती है। लता के परिवार में उसके माता पिता के अतिरिक्त उसकी दो बड़ी बहने और दो चाचा चाची भी साथ ही रहते है। लता के पिता गाँव के ही एक स्कूल में मास्टर है। आमदनी कम होने के कारण घर का खर्च बहुत मुश्किल से चल पाता है। लता की बड़ी बहने कहने को लता से बड़ी है किंतु अभी इतनी भी बड़ी नही है कि पिता के साथ हाथ बटाकर घर खर्च में सहयोग कर सकें।

बात शरू होती है लता के जन्म से कम आमदनी में तीसरी बेटी का जन्म जैसे लता के माता पिता को बेहद खल गया था। बेटी के जन्म का सुनकर लता के पिता मुंह ढककर जैसे सो ही गए थे मानो जैसे कुछ हुआ ही नही। उनका ऐसा व्यवहार देख लता की माँ ने भी अपना सिर पकड़ लिया था कि अब आगे क्या होगा। इतनी कम आये में कैसे बियाह करेंगे वह अपनी तीन बेटियों का यह चिंता लता के माता पिता को अंदर ही अंदर खाये जा रही थी। भविष्य की चिंता में लता के जन्म पर खुशी मनना तो दूर उसे ढंग से देखा तक नही गया था।

यूँ भी बेटी हमारे समाज पर हमेशा से बोझ ही मानी जाती आरही है। यह सब देख लता की चाची से रहा नही गया और उन्होंने अपनी जेठानी के पास आकर लता को अपनी गोद में उठाकर कहा अरे दीदी तुम किस चिंता में पड़ी हो। देखो तो एक बार भगवान ने तुम्हें इस बार कितनी प्यारी चाँद सी गुड़िया दी है रंग तो देखो इसका कितना साफ है जैसे मैदा की पीढ़ और आंखें देखो कितनी प्यारी जैसे बटन तुम नाहक ही इनके जन्म को लेकर चिंतित हो। देखना कैसे चट पट सब हो जाएगा इसका कुसुम और सुमन का होने में जरा देर लग सकती है क्योंकि उनका रंग सांवला है लेकिन इसका रंग रूप तो किसी राजकुमारी से कम न है।

अपनी देवरानी की ऐसी बातें सुनकर जब लता की माँ सुमित्रा ने अपनी बच्ची को देखा तो देखती ही रह गयी। उसे यकीन ही नही हुआ कि उसने एक परी जैसी बिटिया को जन्म दिया है। उसकी भोली मुस्कान और नरम स्पर्श से लता की माँ का मन पसीज गया और उसने अपनी बच्ची को अपने सीने से लगा कर बेहद प्यार किया। यह सब दूर खड़ी लता की बहने कुसुम और सुमन दोनो देख रही थी। जिसके चलते उन्हें यह अहसास हुआ कि उनके लड़की होने और रूपरंग की कमी के चलते उनके माता पिता उनसे पहले ही प्यार नही करते थे और अब तो लता के आजाने से उनके हिस्से का रहा सहा प्यार भी अब उन्हें नही मिलेगा।

इसलिए उन्होंने काबिल बनकर अपने माता पिता का प्यार हासिल करने का सोचा। चुकी उनके पिता गांव के मास्टर थे इसलिए वह शिक्षा के महत्व को अच्छी तरह समझते थे। इसलिए पूरे गांव के विरुद्ध जाकर भी उन्होंने अपनी तीनों बेटियों को शिक्षित बनाया ताकि कल को शादी के बाद यदि जरूरत पड़े तो उनकी बेटियां अपने पैरों पर खड़ी होकर अपने परिवार की आये में अपना योगदान देकर अपना जीवन अच्छे से व्यतीत कर सकें।

यूँ तो लता के पिता ने अपनी तीनों बेटियों को एक सी शिक्षा ही प्रदान की थी किन्तु लता सब से छोटी और सुंदर होने के कारण अधिक लाड़ प्यार मिलने की वजह से अत्यधिक जिद्दी बन चुकी थी। इस बात का एहसास कहीं न कही लता की माँ को हो चुका था। लेकिन उन्होंने कभी उसे समझाने की कोशिश ना कि थी। धीरे धीरे समय गुजरा और समय के साथ साथ लता के पिता को यह बात समझ आगयी की अत्याधिक पढ़ाई लिखाई लता के बस की बात नही किसी तरह लता को (बी.ए ) पास करा कर उन्होंने उसे घर के कामकाज सिखाने के लिए उसकी माँ से कहा और अपनी अन्य दो बेटियों की उच्च शिक्षा की ओर ध्यान देना प्रारम्भ किया।

कुसुम और सुमन ने भी पिता की बात मानी एक ने (एम.ए) और दूसरी ने (एम.एड) किया। कुसुम को जल्द ही शहर में अध्यापिका की नॉकरी लग गयी और उसने अपने पिता की आय में अपना सहयोग देना शरू कर दिया। पिता को भी अपनी बेटी पर बहुत गर्व महसूस हुआ। पिता के चहरे की खुशी को देखते हुए कुसुम ने अपने पिता के लिए एक बेटी होते हुए भी एक बेटे का रूप धारण कर सदा माता पिता की सेवा में रहना का फैसला किया जिसके चलते उसने कभी शादी न करने का निर्णय लिया।

जिसे सुनकर सभी घर वाले दंग रह गये और सभी ने मिलकर कुसुम को समझाने का बहुत प्रयास किया। मगर कुसुम ने किसी की एक न सुनी। थोड़े दिन बीते धीरे धीरे सभी ने कुसुम से शादी के विषय में बात करना छोड़ दिया। यह वह समय था जब लता के साथ साथ उसकी दोनो बहने शादी लायक हो चुकी थी। अब लता के माता पिता को चिंता थी सुमन और लता के बियाह की हालांकि कुसुम ने अपने पिता को आश्वासन दिया था कि वह अपनी बहनों की शादी के खर्च में यथा सम्भव सहायता करेगी। फिर भी चिंता तो चिंता ही होती है।

तभी लता के चाचा जी जो उन दिनों शहर में काम करते थे गांव आये हुए थे। उन्होंने लता के पिता से लता के रिश्ते की बात की जिसे सुनकर लता के पिता सन्न रह गए और उनके मुंह से निकला "हाय राम कैसी बात करते हो रघु" लता के चाचा का नाम राघव था उन्हें प्यार से घरवाले रघु कहा करते थे। "बड़ी बेटी के होते मैं सबसे छोटी बेटी का बियाह सबसे पहले कैसे कर सकता हूँ।" लोग क्या कहेंगे? बिरादरी में कितनी बदनामी हो जाएगी। तुम ने सोचा भी है कभी यह गांव है गांव कोई तुम्हारा शहर नही है।

हाँ... हाँ मैं जानता हूँ। यह शहर नही है गांव है। लेकिन तुम कब से बदनामी के विषय में सोचने लगे गए दादा? और हम तो अपनी बिटिया के बियाह की बात कर रहे है ना बियाह में कैसी बदनामी अपनी अपनी बेटियों का ब्याह तो सभी करते है ना ? अब अगर जो तुमने बड़ी छोटी का सोचा तो बेटियां बैठी ही रह जाएंगी तुम्हारी....! सोच लो में जिसका रिश्ता लाया हूँ अपनी लता के लिए बहुत ही अच्छे और बड़े लोग है लड़का शहर में डॉक्टर है। खूब नॉकर चाकर हैं घर में राज करेगी अपनी बिटिया। ऐसा रिश्ता बार बार नही आता दादा। देखलो भाला परिवार है।

अच्छा तुम कैसे जानते हो ? अरे मेरे दोस्त का साला है। मैं खुद मिलचुका हूँ उससे, हां लड़के का रंग जरूर काला है लेकिन उससे क्या फर्क पड़ता है रंग रूप तो थोड़े समय की बात होती है। आगे तो रुतबा और पैसा कोड़ी ही काम आता है। लता के मन की बात जाने बिना ही अब उसकी शादी के विषय में सोचा जाने लगा था। लेकिन इधर अपने जीवनसाथी को लेकर लता के सपने तो कुछ ओर ही थे। उसे तो गठीली कद काठी वाला गोरा चिट्टा सजीला नोजवान चाहिए था। जो उसके रंगरूप से मेल खाता हो।

अपनी ऐसी पसंद के चलते लता को अपनी एक दूर की बुआ के बेटे से प्यार हो गया था। लेकिन गांव की लड़के लड़की में ऐसी हिम्मत न हुआ करती थी कि वह एक दूजे से अपने प्रेम का इज़हार कर पाते इसलिए दोनों ही अपनी भावनाएं अपने दिल मे दबाकर रखते क्योंकि वह दोनों ही भली भांति यह बात जानते थे कि उनके प्यार को कभी शादी की मंजिल नही मिल सकती थी।

इसी बीच लता के पिता जी ने विवश होकर और अपनी दूसरी बेटी के विषय में सोचकर अपने भाई रघु की बात मानते हुए लता का रिश्ता तय कर दिया। पिता की यह विवशता देख सुमन ने अपने जीवनसाथी को लेकर कोई सपने संजोय बिना ही यह तय किया कि जहां उसके पिता चाहेंगे वह वहीं चुप चाप शादी कर लेगी। यह उन दिनों की बात थी जब लड़का लड़की एक दूजे को देखे बिना ही अपने माता पिता की पसंद अनुसार बियाह कर लिया करते थे। लता को भी बारात आने से पहले तक यह बताया नही गया था कि उसका होने वाला पति देखने में कैसा है। किन्तु जब बारात दरवाजे पर आयी और लता के छोटे चचेरे भाई बहनों ने दूल्हे को देखा और लता के निकट आकर उसे बताया कि अरे जीजी लड़का तो एकदम काला है।

सुनकर लता का दिल धक्क कर के रह गया। उनके सारे सपने वहीं चूर चूर हो गए और उसकी आंखों से गंगा जमुना बह निकली अपने भाई बहनों की बात पर एक पल को उसे यकीन ना हुआ तो उसने खुद उठकर बारात को देखा लड़के रंग सावला भी नही बल्कि बेहद काला था ऊपर से उसे उसके घरवालों ने पान खिलाया हुआ था जो उस पर बेहद रचा हूआ था।

यह नजारा देख लता जैसे सन्न रह गयी थी। यूँ समझ लो कि बस दिल का दौरा ही नही पड़ा उसे उस वक्त, बाकी सब हो ही गया था। फिर भी अपनी इच्छाओं को मारकर लता ने अपने बाउजी की इज्जत को अधिक महत्व देना ज्यादा जरूरी समझा और चुप चाप उस लड़के से बियाह कर लिया जो उसके पिता ने उसके लिए चुना था। जब विदा का समय आया तब लता की माँ ने लड़के से धीरे से कहा बेेटा लड़की जरा जिद्दी है यह सुनकर लड़का आश्चर्य चकित हो उठा को शादी हो जााने के बाद उसे यह बात बताई गयी यह तो शादी से पहले बताने वाली बात थी

लेकिन अपने टूटे दिल के होते लता कभी अपने पति को पूरे दिल से अपना नही पायी फिर भी उसने पत्नी धर्मों का पूरा पालन तो किया मगर मन से वह कभी अपने पति की हो नही पायी। यह भी कम ना था कि लता को ऐसी कमज़र्फ सास मिली जिसने उसका जीना मुहाल कर दिया।

इतनी सुंदर रूपवान गुणि बहू पाकर भी उसके ससुराल वालों ने उसे बहुत प्रताड़ित किया। घरेलू हिंसा की शिकार लता ने अपने सास ससुर से बचकर कई बार अपने मायके आने का प्रयास किया। किंतु समाज के डर से उसे अपने गांव के घर में कभी पनाह नही मिली। किसी तरह अपने पति को मनाकर लता ने अपने सास ससुर से अलग होने का फैसला लिया और वह लोग अलग हो गए। समय बीतता रहा। सास ननद के ताने उलाहने दूर रहकर भी लता तक पहुंचते रहे। किन्तु अब लता को इस सब से फर्क नही पड़ता था।

अब वह समय था जब लता के आंचल में दो बच्चों का आगमन हो चुका था। बीच बीच में लता है सास ससुर उनके पास आते जाते रहते थे। लता की ननद का भी उसी शहर में घर था लेकिन लता की सास के गुजर जाने के बाद से दूरियां और बढ़ गयी थी। कभी कभी लता के पति को अपने अपनो की अपने परिवार की कमी बहुत खला करती थी। ऐसे में वह अक्सर अपने पिता को अपने पास बुला लिया करता था। बच्चे भी दादा जी से हिले हुए थे। लता को उसके जिद्दी स्वभाव के चलते उनका आना रास नही आता था लेकिन परिवार के सदस्य होने के नाते लता अपना विरोध दर्ज नही करा पाती थी।

लता ने भी अलग होने के बाद से अपने जिद्दी व्यवहार के चलते अपने परिवार की कमान अपने हाथों में ले रखी थी। लाता के घर में सिर्फ लता की चलती थी जैसा वो चाहे वैसा ही सब किया करते थे। फिर चाहे पति हो या बच्चे लता के व्यवहार से उन दिनों सभी दुखी थे परंतु किसी में इतनी हिम्मत न थी कि उसके विरुद्ध कोई कुछ बोल सके। ऐसे ही दबाव भरे जीवन में लता और उसके बच्चों का समय बीता लेकिन ऐसे में भी लता ने अपने बच्चो का जीवन बना दिया था। इतना ही नही लता ने अपनी बेटी की शादी भी उसी दबाव में करदी थी तब उसने एक बार भी यह नही सोचा कि यदी उसके साथ उसके माता पिता ने ना इंसाफी की तो कम से कम वह तो अपनी बेटी के साथ इंसाफ करे।

लेकिन उसके ज़िद्दी स्वभाव और अहम ने उसे ऐसा सोचने ही नही दिया। दिन बीते बेटी और बेटे दोनो की शादी हो गयी अब समय था लता और उसके पति का एक बार फिर अकेले रहने का समय के साथ दोनो का बुढापा आया लता के पति के हाथ पैर लता की तुलना में जल्दी शीतल पड़ने लगे। लता ने जी जान लगाकर अपने पति की सेवा की मगर अंत समय में लाता के पति ने लता के लिए जो शब्द कहे वह लता को अंदर तक थोड़ गए।

अपना सारा जीवन अपने परिवार के लिए होम करने के पश्चात भी अंत समय में लता के पति ने लता के लिए उसके जिद्दी व्यवहार से तंग आकर यह कहा कि भगवान ऐसी घरवाली कभी किसी को ना दे। अपने पति के इन कठोर शब्दों ने लता को गहरा सदमा पहुंचाया और कुछ समय बाद अंत में गहन अवसाद का शिकार होकर लता ने भी अपनी अंतिम सांस ली।


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