सलीम-अनारकली Swati द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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सलीम-अनारकली

सामने कुर्सी पर शान से बैठा हुआ। रंग-बिरंगा स्वेटर और गले में मफलर पहनकर बड़ी-भूरी आँखों से इधर-उधर देखकर पूरे घर का जायज़ा ले रहा है । घर के सभी सदस्यों की गतिविधियों को ध्यान से देख रहा है । तभी दादाजी की आवाज़ आई "सलीमममम " बस फ़िर अपनी पूछ को हिलाता हुआ भागकर दादाजी के पास पहुँच गया और लगा उनके पैर चाटने । "मेरा सलीम चल बेटा छत पर चलते है बड़े दिनों बाद इतनी अच्छी धूप आई है ।" "चल बेटा चल " दादाजी उसकी भूरे बालों वाली पीठ पर हाथ फेरते हुए सलीम को लेकर छत पर आ गए ।

इस पालतू कुत्ते का नाम सलीम क्यों पड़ा ? इसके पीछे भी मज़ेदार किस्सा है । एक बार दादाजी अपने जवानी के दिनों में दादी को घुमाने ले गए । किसी गाइड से लालकिले के इतिहास को सुनते हुए दादी की मुगलों में अच्छी ख़ासी दिलचस्पी हो गई और दादाजी जी को उसी वक़्त मुगले-ए-आज़म दिखाने का फ़रमान सुना दिया । फ़िल्म में दिलीप कुमार का क़िरदार इस कदर पसंद आया कि सोच लिया अपने बेटे का नाम सलीम रखेंगे। मगर चार लड़कों की माँ दादी फिर लड़के का सुख नहीं भोग पायी और दो लड़कियों के बाद दोबारा बच्चा पैदा करने में सक्षम नहीं रहीं । उदास दादी की हालत दादाजी से देखी नहीं गई और वह उनके लिए एक प्यारा सा कुत्ता ले आये और उसका नाम रखा सलीम । जवानी से लेकर बुढ़ापे तक दो तीन पीढ़ी सलीम की निकल चुकी है मगर नाम हमेशा यही रखा जाता सलीम। अब दादी गुजर चुकी है । और दादा के पास यह सलीम ही रह गया । इसे भी कितनी शानो -शौकत से पाला गया है। दादा के साथ उनके बिस्तर पर सोता है । घरवाले बाद में खाये पहले इसकी थाली लग जाती है । हर त्योहार में इसे भी सदस्य की तरह कपड़े दिए जाते हैं । इसका शैम्पू साबुन सब अलग है, हर फरमाइश दादा ऐसे मानते है, जैसे दादी का हुकम हों। सलीम भी दादा के साथ दादी की यादों में आँखो से आँसू बहाकर उनका पूरा साथ देता है।

तभी सामने वाले के घर का कुत्ता भी छत आ गया और ज़ोर -ज़ोर से भोंकने लगा अब यह पशु अपनी भाषा तो समझते ही है । "आ गया तू" और फिर अपना सलीम भी भोंकने लगा। जब भी दादा को कोई भी बाहर का व्यक्ति परेशां कर रहा होता है तो फौरन वह सलीम को उसके पीछे छोड़ देते हैं । सलीम भी हर गली को युद्ध का मैदान समझ बस शुरू हो जाता है। अपने भौ-भौ का शौर्य दिखाने । सामने वाले मेहता अंकल से दादाजी की नहीं बनती है। सच तो यह है कि गली में रह रहे दीपांकर अंकल को छोड़ उनकी मोहल्ले में ज़्यादा नहीं बनती दीपांकर अंकल उनके बचपन के दोस्त है शायद वो तभी गुस्सैल दादाजी को झेल लेते हैं । बाकि गली के आवारा कुत्ते तो सलीम और मेहता जी के कुत्ते भीरू से डरते हैं । मेहता जी ने दादाजी के सलीम से टक्कर लेने के लिए ही भीरू को पाल रखा है। दोनों जब भी आमने-सामने होते है तो मज़ाल है कि दोनों में से कोई भी पीछे हट जाए ।

साथ वाले कमलेश अंकल मकान किराये पर देकर अपने बेटों के पास कनाडा चले गए । और वहां आ गई सिल्की जिसके सफ़ेद बाल और काले कान और हरी सी आँखे सचमुच बहुत सुन्दर थीं । छत पर चारपाई पर बैठी धूप सेंक रही थी और उसके साथ एक बूढ़ी सी आंटी भी लेटी हुई थी । सलीम ने सिल्की को देखा तो भीरू को भी देखकर भोंकना भूल गया । बस नज़रे सिल्की से हटती नहीं थी सिल्की भी इतराती हुई सलीम को जलाने के लिए भीरू को देखकर पूछ हिला रही थी मगर नज़रे उसकी सलीम पर ही थी । अब जब भी सिल्की बूढ़ी आंटी के साथ बाहर निकलती तो वह भी दादाजी को धोती से पकड़ बाहर घुमाने ले जाता । सलीम को इश्क़ हो गया था । भीरू को भी सिल्की अच्छी लगने लगी थी, लगता था फिर कोई घमासान युद्ध होगा। मगर सिल्की को सलीम की तरफ आकर्षित देख, वह मेहता अंकल के बेटे के दोस्त की कुतिया रोज़ी के साथ सेट हो गया । अब तो सिल्की और सलीम अकसर छत पर मिलने लगे और प्यार भरी बातें भी शुरू हो गई ।

"मुझे तुम्हारा नाम सलीम खास पसंद नहीं है, थोड़ा मॉडर्न नाम रखते क्या यह पुराना सा नाम रख लिया" सिल्की कहती । "दादी को पसंद था न इसलिए दादा ने रख दिया वैसे मेरा नाम इतना बुरा नहीं है, सिल्की माय लव। सलीम ने कहा । "तुम गली के उस शेरू कुत्ते से कल क्या बात कर रही थी? देखो! मुझे यह सब पसंद नहीं सभी गली के कुत्ते छिछोरे और आवारा है उनसे दूर रहो" सलीम सिल्की की आँखों में देखकर बोला। "बस वो मुझे गुडनाइट कह रहा था ।" और मुझे भी तुम्हारे दादा पसंद नहीं है सड़ो और गुस्सैल आई डोंट लाइक हिम। "सिल्की नज़रे फेरते हुए बोली । "सिल्की प्लीज ऐसे मत बोलो । चलो अब जल्दी से एक गुडनाइट किस दू ।" गुडनाइट कह सलीम छत से चला गया ।

अब तो रोज़ यह सिलसिला चल निकला और एक दिन दादा जब रात को सलीम को ढूंढ़ते हुए छत पर आए तो दोनों को साथ में चिपककर बैठे देख हंगामा मचा दिया । सुबह बुढ़िया को खूब सुनाया कि "संभाल कर रखो अपनी कुतिया को देखो उसकी हिम्मत कैसे हुए अच्छे कुल के कश्यप के सलीम से इश्क़ लड़ाने की ।" "उसका नाम सिल्की है, अपने उस भूरे कुत्ते को संभाल लो वरना सारी ऊँचे कुल की अकड़ निकाल दूँगी ।" बुढ़िया भी बोली जा रही थी । सामने छत पर खड़ा भीरू भी हँस रहा था । "देखा सलीम तूने चमारो की कुतिया से आँख मटका कर हमारी जग हँसाई करवा दी । बेटा तू मुझे कहता मैं अपने कुल की सुशील ख़ानदानी कुतिया से तेरी बात करवाता यह सिल्की ही बची थी हम तो इन चमारों से बात न करे, पता नहीं कमलेश भी किसको घर दे गया। दादाजी यह बोलकर सिर पकड़कर बैठ गए । "अरे ! यह इंसानों ने तो हमें भी इस जात-पात के चक्कर में फँसा दिया । अपने बेटों को अपनी पसंद की शादी नहीं करने दी अब मेरे पीछे पड़ गए"। आज पहली बार सलीम ने दादाजी से थोड़ा दूर बैठना ही ठीक समझा ।

रात को छत पर ताला लगा दिया जाता । मुझे सख्त हिदायत दी कि मैं दोनों पर नज़र रखो और मैं दादाजी का वफादार पोता सोनू करता भी यही था । पर सलीम बहुत उदास हो गया था और सिल्की भी मोबाइल पर गाने 'पहले प्यार का पहला गम' सुनती मिलती । मुझे तो और भी खा जाने वाली नज़रों से देखती अब सलीम किसी पर भौंकता नहीं था भीरू पर भी नहीं । "इश्क़ ने सलीम तुम्हें निकम्मा कर दिया वरना तुम भी कुत्ते काम के थे"। अब भीरू सलीम को यह कहकर उसके साथ उसका गम सुनने बैठ जाता । एक दिन दादाजी ने कहा कि "सलीम को अपने भाई के पास जबलपुर लेकर जाएंगे और सलीम का रिश्ता अपने खानदान की किसी कुतिया से करवाएँगे ।"

मगर इससे पहले दादाजी जबलपुर जाते सलीम तो मौका देख घर से भाग गया । और सिल्की को भी अपने साथ ले गया । आखिर प्यार बगावत करना सीख गया। कई दिन बीते गए पर दोनों का कुछ पता नहीं चला । दादाजी रोज़ सलीम को ढूँढ़ने निकल पड़ते मगर मायूस लौट आते उस सिल्की की बुढ़िया को भी खूब सुनाते। आख़िर एक दिन दादा ने चारपाई पकड़ ली । "हाय! मेरा सलीम क्यों भाग गया? तेरा रिश्ता तो ऊँचे ख़ानदान में तय किया था ।" दादाजी रोज़ यहीं कहते रहते । एक दिन मुझसे दादा की हालत देखी नहीं गई और मैं खुद सलीम को ढूँढ़ने निकल पड़ा। आखिर एक हफ्ता धक्के खाने के बाद सलीम का पता लग गया । मेरे दोस्त पिंटू ने हमारे घर से तीन-चार किलोमीटर दूर झुग्गी झोपड़ी में सलीम-सिल्की को देखा। दोनों पहचान में आ नहीं रहे थे, इतने मैले कुचले मगर खुश । मुझे देखकर दोनों ने दौड़ लगा दी । अरे! सलीम सुन यार ! करते है कुछ, रुक तो सही ।" मैं उसकी पूछ पकड़कर बोला। वो रुका और मेरे गले लग गया ।

पिंटू की तरक़ीब से इस प्रेम कहानी में नया मोड़ आ सकता था । इसीलिए घर आकर मैंने दादाजी को कहना शुरू किया "कल दादी सपने में आकर कह रही थी कि आखिर तेरे दादा प्यार के दुश्मन ही निकले उस अकबर की तरह भगा दिया न मेरे सलीम को । आने दे ऊपर इन्हें दीवार में न चुनवाया तो ।" क्या !!!!!! सचमुच सोनू तेरी दादी ने यही कहा?" दादा ने हैरान होकर पूछा । और यह भी कहा, "बुड्ढा बीमार होगा तो जल्दी मरेगा ।" मैंने यह कहा ही था कि दादाजी उठकर बैठ गए । "प्यार किया तो डरना क्या !!!!" गीत दादाजी की आँखों के सामने चलने लग गया । "नहीं सोनू मैं प्यार का दुश्मन नहीं बन सकता ।।।" "मेरे सलीम तू घर आजा" दादाजी की इस दहाड़ को पूरे मोहल्ले ने सुना।


सलीम सिल्की के साथ वापिस आ गया। सिल्की की बुढ़िया तो मकान खाली कर वहाँ से चली गई । दादाजी ने दोनों का विवाह कर दिया और शादी में दादी की फ़ोटो लगवाई गई और दादा ने कहा "देखा लक्ष्मी मैं प्यार का दुश्मन नहीं हूँ ।" भीरू और गली के कुत्ते बारात में शामिल हुए और मोहब्बत ज़िंदाबाद कहकर गली के बच्चे चिल्लाने लग गए । दादाजी ने सिल्की को अनारकली कहना शुरू कर दिया। सभी मोहल्ले वाले आज भी सलीम और अनारकली की कहानी यह कहकर दूसरों को सुनाते है कि "इस बार अनारकली दीवार में चुनवाई नहीं गई ।"