फ़ैसला
(9)
देर रात में सोने के बाद भी सिद्धेश सबेरे 8 बजे ही उठ गया। उसने सबसे पहले सुगन्धा के कमरे को जाकर देखा। वह नहाकर आते हुए उसे दिख गयी। फिर वह अपने कमरे में आकर डा. के.डी. को फोन मिलाने लग गया। कई बार तो फोन इंगेज जा रहा था। लेकिन डा. के.डी. को यह बताना आवश्यक था कि सुगन्धा की जो मनोस्थिति हुई इसका कारण क्या था। कुछ देर बाद काफी प्रयासों के डा. के.डी. का फोन मिल गया। फिर सिद्धेश ने सुगन्धा का अतीत डा. के.डी. को बताया। दोनों की आपसी बातचीत से यही निष्कर्ष निकला कि शीघ्राति शीघ्र किसी अच्छे लॉयर से मिलने के पहले थाने में एफ.आइ.आर. की जाये। जिससे सुगन्धा के दोषियों को कड़ी से कड़ी सजा दिलायी जा सके।
इधर सुगन्धा अपने अतीत के सम्बंध में सिद्धेश को सब कुछ बताने के बाद मानसिक स्तर पर रिलैक्स महसूस कर रही थी। लेकिन उसे अपनी बेटी की मृत्यु का अत्यन्त दुःख हो रहा था। इस कारण वह अपने कमरे में चेयर पर बिल्कुल शान्त बैठी हुई थी। उसी समय सिद्धेश की आवाज ने उसके ध्यान को भंग किया। वह चाय पीने के लिए उसे अपने कमरे में बुला रहा था। पहली बार उसके आवाज देने पर तो सुगन्धा ने उस पर ध्यान नहीं दिया। लेकिन जब उसने दूसरी बार उसे आवाज दी तो वह एकाएक अपनी चेयर से उठकर सिद्धेश के कमरे में चली गयी।
कमरे में सिद्धेश चाय की टेबल पर सुगन्धा का इंतजार कर रहा था। सुगन्धा को देखते ही वह चेयर से उठते हुए बोला- आओ सुगन्धा! मैं काफी देर से आपका इंतजार कर रहा था। मैंने सोचा चाय साथ में ही पी जाय।
इसीलिए मैं भी तुम्हारी आवाज सुनते ही जल्दी से तुम्हारे कमरे में आ गयी। सुगन्धा ने कहा!
जल्दी से ! अरे !मैं दो-तीन बार तुम्हें आवाज दे चुका हूं। तुमने सुना ही नहीं। क्या कुछ सोच रही थी? अब ज्यादा सोचना बन्द करो। केवल सोचने से कुछ हल नहीं निकलने वाला। अब कुछ करना पड़ेगा।
पहले तो सुगन्धा ने नकारात्मक अंदाज में सिर हिलाया। परन्तु उसके सिर हिलाने मात्र से सिद्धेश संतुष्ट नहीं हुआ। वह उससे आग्रह करने लगा कि वह क्या सोच रही थी?
मैं अपनी स्वर्गवासी बेटी के विषय में सोच रही थी कि उन दुराचारियों के कारण मेरी फूल सी हंसती खेलती बच्ची के प्राण चले गये औ मेरी गोद सूनी हो गयी। कहते हुए सुगन्धा की आंखों से आंसू बहने लगे।
अरे! यह क्या? मैंने तुमको चाय पीने के लिए बुलाया है तुम रोने लगी। देखो अब रोने से बेटी वापस तो आ नहीं जायेगी। अब हमें यह सोचना है कि उन दुष्टों को कितनी जल्दी उनके किये की सजा मिले। जब तक ऐसा नहीं होता, तब तक न हम सबको चैन मिलेगी और न तो बेटी आस्था की आत्मा को शान्ति। ऐसा कहते हुए सिद्धेश ने अपनी चेयर धीरे से सुगन्धा के पास सरकाई।
कुछ देर बाद दोनों चाय पी चुके और सिद्धेश भी तैयार होकर घर से निकल गया। सुगन्धा अपने कमरे में चली गची। वह अपने कमरे में जाकर चेयर पर बैठी हुई थी परन्तु उसक मन बहुत बेचैन हो रहा था। वह जितना अपने मन को समझाने का प्रयास करती फिर वह उन्हीं बातों में जाकर उलझ जाता। जिससे उसे आत्मिक कष्ट हो। अपनी चेयर से उठकर उसने टी.वी. ऑन कर दिया और अपने मन को एकाग्र करके टी.वी. के प्रोग्राम देखने लगी। इस तरह कुछ समय बीता और उसे समय का ध्यान नहीं रहा।
उधर भोला काफी देर से दरवाजे के पास खड़ा सुगन्धा के देखने का इन्तजार कर रहा था कि कब वह इधर देखें तब वह उनसे पूछे की आज दोपहर खाने में क्या बनेगा। कुछ देर बाद सुगन्धा की दृष्टि दरवाजे पर खड़े भोला पर गयी। वह भी उसे काका कहकर ही बुलाती थी। उसने तुरन्त उठकर कहा - काका आइये ! आइये ! आज मुझे समय का ध्यान ही नहीं कि आपको खाने के बारे में भी बताना है। फिर सुगन्धा भोला काका को बताते हुए कमरे को बन्द कर साथ ही किचन की ओर चली गयी। वह भी अपना मस्तिष्क किचन के काम में लगाना चाहती थी। वैसे जब से वह यहां आयी उसके कुछ समय बाद से ही वह किचन के काम में भोला का हाथ बटाने लगी थी। इससे काम भी शीघ्र हो जाता था और सुगन्धा का समय भी पास हो जाता था।
भोला किचन में सुगन्धा से पूंछकर तैयारी करना आरम्भ कर दिया। वह काम करते-करते कुछ सोचने लगा। वह काफी दिन से सुगन्धा के बारे में जानना चाहता था लेकिन वह उससे पूंछने की हिम्मत नही कर पा रहा था। भोला सब्जी काटते हुए एकाएक रूका और आज शायद वह उसके विषय में जानने की हिम्मत जुटा चुका था।
क्या मैं आपको बेटी कह सकता हूं? एकाएक सुगन्धा की ओर मुंह घुमाकर भोला ने कहा।
हां-हां क्यों नहीं। सुगन्धा ने भी ठीक बिना कुछ सोचे हुए जवाब दे दिया।
बेटी आज तक इतने दिन हो गये कभी आपने अपने विषय में यह नहीं बताया कि आप कहां की रहने वाली हैं, आपके पिताजी का क्या नाम? आपके पिताजी गांव में ही रहते हैं आखिर आज भोला ने सुगन्धा से पूंछ ही लिया।
पहले तो यह सुनकर सुगन्धा को अचम्भा हुआ कि आज भोला हमसे क्यों पूंछ रहा है। पुनः अपने ऊपर नियंत्रण करते हुए उसने कहा - भोला काका ! आप मुझे नहीं जानते। मैं सिद्धेश साहब के गांव की ही रहने वाली हूं। तुम रामेश्वर सिंह को तो जानते होगे। मैं उन्हीं के बेटी हूं।
हां-हां! ठीक बोली बिटिया। मैं रोमेश्वर सिंह को बहुत अच्छी तरह से जानता हूं। हम उनको गांव में ठाकुर दादा ही कहते थे। बिटिया हमारा गांव भी तुम्हारे गांव के पड़ोस में ही तो है। अरे बिटिया! अब तो हम दोनों गावं की ओर से भी पड़ोसी निकले। बिटिया किसी भी चीज की कभी जरूरत हो, तो संकोच बिल्कुल मत करना। हमारे रहते तुमको कुछ भी चिन्ता करने की जरूरत नहीं है। अरे काका ! हमको चिन्ता किस चीज की। मैं सिद्धेश साहब के यहां फिलहाल रह ही रही हूँ।
अरे बिटिया! फिलहाल क्यों? अरे जब तक मर्जी हो तब तक यहां रहो। सिद्धेश बाबू बड़े अच्छे आदमी हैं। बेचारे बहुत ही सज्जन किस्म के आदमी हैं। तभी तो देखो मैं उनके बाबूजी के समय से इस घर की सेवा में लगा हूं। कभी उन्होंने मुझे नौकर नहीं माना। लेकिन अपनी बीवी की ओर से बेचारे बहुत...। कहते हुए भोला एकाएक से रूक गया।
काका! तुम कुछ कहते हुए रूक क्यों गये। आप तो कुछ कह रहे थे।
अरे! बिटिया कुछ नहीं।
फिर सुगन्धा ने विश्वास दिलाते हुए कहा कि वह यह बात सिद्धेश से कभी नहीं कहेगी।
अरे बिटिया! सिद्धेश बाबू! अपनी बीबी की तरफ से बहुत दुःखी हैं। वह अपने मायके में जाकर बैठी हैं। यहां आने का नाम ही नहीं लेतीं। और ऊपर से धमकी यह कि मैं तलाक दे दूंगी। लेकिन इस घर में वापस कभी नहीं आऊंगी। सिद्धेश बाबू के सीधेपन का नाजायज फायदा उठा रही हैं वो। कहीं भला ऐसा भी होता है। अभी तक तलाक देते आदमियों को सुना था। यहां पर औरत ही तलाक मांग रही है। इसीलिए बाबूजी बहुत परेशान रहते हैं। बस किसी से कुछ कहते नहीं। ये बात और है। इस तरह भोला एक सांस में ही बताता चला गया।
यह सुनकर सुगन्धा तो मानो अपना दुःख भूल ही गयी। उसे अब सिद्धेश के विषय में सोचकर बहुत कष्ट होने लगा। वह भोला के साथ मिलकर दोपहर का खाना निपटाने के बाद अपने कमरे में चली गयी। धीरे-धीरे शाम से रात हो गयी लेकिन सुगन्धा के मस्तिष्क में सिद्धेश के वैवाहिक जीवन में लगे ग्रहण वाली बात पर मन्थन चल ही रहा था। वह इस कारण अत्यन्त व्यथित दिखाई दे रही थी। उसका टी.वी. के कार्यक्रम देखने में भी मन नहीं लग रहा था।
उसी समय अचानक कार के हार्न की आवाज ने सुगन्धा को जैसे नींद से जगा दिया। वह हड़बड़ा कर खिड़की से झांकने लगी। बाहर की लाइट जलने की वजह से वह सिद्धेश को पहचान गयी। वैसे सिद्धेश आज कुछ प्रतिदिन के हिसाब से देर में घर आया था। उसका बैग लेकर भोला उसके कमरे में रख गया। वह नीचे ही किसी से मोबाइल पर बात करने लगा। बातें समाप्त करके कुछ देर बाद सिद्धेश अपने कमरे में ऊपर पहुंचा। उसने अपने कपड़े बदलने के बाद तुरन्त सुगन्धा को आवाज लगायी। वह आवाज सुनते ही उसके कमरे में पहुंच गयी।
क्या कर रही थी? सिद्धेश ने कहा।
कुछ नहीं बस कमरे में बैठी हुई टी.वी. देख रही थी। सुगन्धा ने भी उसके प्रश्न का उत्तर दे दिया।
तुम आज कुछ अधिक गुमसुम दिखाई दे रही हो। देखो अधिक सोचना ठीक बात नहीं।
नहीं! नहीं मैं गुमसुम कहां हूं। वैसे मैं सोचती तो नहीं। लेकिन फिर भी दिमाग अतीत की ओर मुड़ ही जाता है। कहते हुए सुगन्धा की आंखों में आंसू आ गये और वह लगभग रोने लगी।
अरे यह क्या? तुम तो कह रही थी कि मैं अधिक सोचती नहीं। फिर भी रो रही हो। अभी-अभी नीचे मेरी खन्ना वकील से बात हुई है। उन्होंने मुझे दो दिन आगे का समय दिया है। खन्नाजी बहुत ही अच्छे वकील है। उनसे बात करने पर तुम्हारी हालत को समझते हुए थाने में एफ.आई.आर. कराने की सलाह दी है और यह भी कहा - कि उससे कहो कि इसी प्रकार हम उसके दोषियों को न्यायालय के द्वारा दंडित कर सकते हैं।
तो अब अधिक चिन्ता करने की आवश्यकता नहीं है। दो दिन बाद एडवोकेट खन्ना साथ चलकर उन दुराचारियों के अन्त का आरम्भ कर देंगे और उनको हर हाल में उनके किये की सजा मिलकर ही रहेगी, यह तुम निश्चित समझो। इस तरह अल्प वार्तालाप के बाद सुगन्धा भी अपने कमरे में चली गयी और सिद्धेश टी.वी. खोलकर न्यूज देखने लगा। वह आज काफी फ्रेश लग रहा है। क्योंकि उसके मानसिक हटाने तनाव का माध्यम उसे मिल गया है।
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