Is Dasht me ek shahar tha - 3 books and stories free download online pdf in Hindi

इस दश्‍त में एक शहर था - 3

इस दश्‍त में एक शहर था

अमिताभ मिश्र

(3)

हुआ दरअसल यूं था कि आजादी के आन्दोलन के दौरान गांधी के संघर्ष के तरीके से जो सहमत नहीं थे और जो आजादी के आंदोलन में हिस्सा भी नहीं ले रहे थे ऐसे यथास्थितिवादी उच्च वर्ग के हिन्दूओं ने अपने आप को राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के करीब पाया, जिनके लिए अंग्रेजों या उपनिवेशवादी साम्राज्यवाद से ज्यादा बड़े दुश्‍मन विधर्मी थे खासतौर पर मुसलमान जो देश में ही रह रहे पीढि्यों से उन्‍हीं के आस पडौ्स में । और वे धर्म की रक्षा के लिए हिन्दू महासभा से जुड़े और जुड़े 1925 में गठित राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से और आर एस एस की शाखाओं में जा रहे थे कवायद करने और हिन्दुओं को संगठित करने उन सबसे संपर्क स्थापित करने और नफरत के नाम पर एक होने के लिए। तो इन भाइयों में से भी दो भाई गणपति और गजपति निष्ठा से शाखा जा रहे थे। तीसरे यानि गणेशीलाल या छप्पू भी कभी कभार इन लोगों के साथ जाते। जो बाद को मुकम्मल तौर पर इनके मजदूर संघ से जुड़ गए थे। गणपति ठेठ पहलवान थे पहलवानी पर उनका ध्यान ज्यादा था। शाखा के बौद्धिक के बजाए उनका ध्यान कसरत और वर्जिश पर था। पर गजपति यानि गज्जू बकायदा प्रचारक बनने की तैयारी में थे। वे बौद्धिक और प्रचारक बनने का तरीका ढूंढ रहे थे । बल्कि हो ही गये। उनकी उमर रही होगी बीसेक साल की और इसी दौरान देश आजाद हुआ, विभाजन हुआ और कत्ले आम हुआ, बहुत सी मजारें मिटाकर शिवलिंग स्थापित किए गए। इसी दौरान वह हुआ जो नहीं ही होना था मतलब महात्मा गांधी की हत्या जैसी शर्मनाक और दर्दनाक घटना हुई और पता चला कि हत्या आर एस एस से जुड़े शख्स ने की थी। उसी के साथ आर एस एस पर पाबंदी के साथ गिरफ्तारियां शुरू हुईं। यहां वारंट निकला गजपति का और जब पुलिस घर पहुंची तो गजपति के बजाए गणपति मिले पुलिस के लिए दोनों में कोई फर्क नहीं था उन्होंने गणपति को ही पकड़ा और जेल में डाल दिया। गज्जू जी फरार हो गए और बाद को गलती मानकर पुलिस ने गणपति को रिहा कर दिया गया। सो गज्जू को तब पनाह दी थी विनायक भाई साहब ने और उन्हें प्रेस में काम करने को कहा। गजपति ने ये काम संभाल लिया। आर्डर लेने से कंपोजिंग, प्रूफ रीडिंग और छपाई तक का काम उन्होंने अपने जिम्मे ले लिया। पर यह सिलसिला अधिक दिन तक चला नहीं। जैसे ही आर एस एस से प्रतिबंध हटा वैसे ही गजपति जी का भूमिगत रहने का समय खतम हो चुका था और उन्होंने बिन्नू भैया से हम्माल की तरह काम करने से इन्कार कर दिया। जब विनायक भैया ने उन्हें तलब किया तो गज्जू भई की शर्त थी कि उन्हें पढ़ने दिया जाए। इंटर वे कर चुके थे बी ए करना चाह रहे थे। उन्होंने अपनी इच्छा जाहिर की और इसी शर्त पर वे काम करने को तैयार थे। बिन्नू भैया ने बहुत सोचा और बहुत चीख पुकार, घर छोड़ने की धमकी वगैरा के बाद उन्होंने गज्जू की यह बात मान ली। यहां से उनकी पढ़ाई शुरू हुई। पढ़ाई के दौरान कालेज में उनकी मुलाकातें बहुत से लोगों से हुई। उनके दिमाग का ढक्कन खुलना शुरू हुआ और कुछ वामपंथी गुरुओं खास तौर पर एक नामी गिरामी प्रगतिवादी कवि के संपर्क में आने से हुआ यूं कि गज्जू बाबू के जाले साफ हुए और उन पर से आर एस एस की अधकचरी और एकतरफा और साम्प्रदायिक सोच का असर खतम हुआ और वे दांये से बांये आ चुके थे। वैसे भी गांधी हत्याकांड के बाद से उन्होंने शाखा से संपर्क छोड़ दिया था। वे गांधी के अनुयायी थे और बावजूद शाखाओं मे जाने के प्रचारक होने को उन्होंने गांधी का अनुसरण नहीं छोड़ा था और अंततः वे आर एस एस को छोड़ कर बाहर निकल आए। उनके गुरूजी जो हिन्दी के प्रगतिवादी कवि थे वे उनके प्रेरणा स्त्रोत बने। उन नामी गिरामी प्रगतिवादी कवि के खिलाफ शराबी कबाबी और दुष्चरित्रता की भी आरोप लगाते हुए गजपति को उनसे दूर करने की कोशिश की गई पर अब भगवा रंग छूट चुका था और वे अब असलियत की जमीन पर मजबूती से खड़े थे।

इस बीच विनायक भई साहब ने फीस और किताबों के पैसे को ले कर आना कानी की तो वे प्रोफेसर साहब के पास पहुंचे और अपनी समस्या बताई तो उन्होंने उस महीने की फीस तो दे दी और अगले महीने की फीसों और किताबों के लिए कुछ जगह ट्यूशन लगवा दीं बस फिर क्या था गज्जू भैया स्वतंत्र थे अब। जब उन्हें प्रेस जाना होते जाते जब नहीं जाना होता तब नहीं जाते। उन्हें यह सोचकर ताज्जुब होता रहा वे उन्हीं बड़े भैया से जबान से लड़ा रहे हैं या उनकी बात नहीं मान रहे हैं जिनका आतंक सारे छोटे भाईयों पर बाप से भी ज्यादा रहा। कोई न कोई भाई उनका काम ही करता था जैसे उनके जिम्मे था उनके जंगल या कहें दिशा मैदान जाने के पहले लोटा भरना और लौट के आने तक उनका पानी गरम हो जाना चाहिए और उनके फारिग हो कर लौट कर आने के पहले आंगन में रखा जाना चाहिए ताकि वे हाथ मुंह धो कर नहा सके। वे बारहों महीने गरम पानी से नहाने वाले जीव थे। चूक होने पर एक दहाड़ गूंजती थी

गज्जू

इतने पर तो गज्जू कहीं भी हों पिटने को हाजिर हो जाते थे। इसी तरह दूसरे नंबर यानि गणपति भैया का काम था दातैान तोड़ कर छील कर तैयार रखना, तीसरे नंबर यानि गणेशीलाल या छप्पू के जिम्मे उनके कपड़े धोने का काम था, चौथै शिवानंद यानि शिब्बू के मत्थे था कपड़ों में प्रेस करना पांचवें यानि गज्जू का महत्वपूर्ण कार्य का जिकर हम ऊपर कर ही चुके हैं, छठे मने पार्वतीनंदन यानि पप्पू को उनके जूतों की पॅालिश करना पड़ती थी। सात आठ नौ छोटे थे इसलिए इन चक्करों से बचे हुए थे।

उस समय चूक मतलब तड़ाक से झापड़ हुआ करता था। इस बार भी बड़े भैया ने रौद्र रूप धारण किया तो था पिटाई भी हुई थी पर गज्जू अड़े रहे तो ढीले पड़े बिन्नू भैया। सब कुछ बी ए तक तो ठीक ही चला। बी ए पूरा होते ही बिन्नू भैया ने उनसे प्रेस का काम पूरी तरह से संभालने को कहा और साथ में नौकरी ढूंढने को भी कहा।

इस पर गज्जू बोले ”मुझे तो एम ए करना है।“

आंख दिखाते हुए बड़े भैया ” क्यों क्या जरूरत है एम ए फेमे करने की। कोई कलेक्टर बनना है क्या और उसके लिए भी बी ए ही काफी है। मुझे देखो मैं तो बस बी ए ही हूं बस। तो तुम्हें एम ए क्यों करना है। तुम क्या हमसे भी ज्यादा पढ़ोगे। हम तुम्हारी नौकरी लगवा देते हैं क्लर्की की। हमारी बात भी हो चुकी है और तुम प्रेस का भी काम करो। आगे तरक्की भी है नौकरी में और ऊपरी आमदनी भी।“

”मैं क्लर्की फ्लर्की नहीं करने वाला। अभी तो मुझे एम ए करना है।“

”पैसे कोई कालिका प्रसाद नहीं दे रहे या झाड़ पर भी नहीं उगते और देखो जरा इन्हें तो एम ए करना है।“

”मैं आपसे पढ़ने के पैसे मांग भी नहीं रहा हूं पर मुझे तो एम ए करना है। मैं अपना काम ट्यूशन वगैरा से चला लूंगा।“

”तो दो साल के रहने खाने के पैसे क्या विश्‍वभरनाथ देंगे।“

”ये बात है कि अब हमारा रहना सहना भारी पड़ रहा है बड़े भैया। तो हम चले अब हमारा दाना पानी उठ गया यहां से।“

गजपति ने सामान उठाया अपना और वापस अपने घर निकल पड़े। उनका इस तरह मय सामान के आ धमकना बाकी भाइयों और मां के लिए अचरज की बात थी। उनका स्वागत हुआ खुशी खुशी। इस दौरान उन्होंने पाया कि घर की हालत बहुत ही खस्ता थी। उन्हें एक समय का तो कुछ खाना पानी आया पर शाम को उन्होने पाया कि चूल्हा नहीं जला क्योंकि घर में कुछ था ही नहीं। उन्होंने अम्मा से पूछा तो वो बोली ”तुम तो वहां बड़े भैया के यहां मजे में थे काहे हियां आ गए। हियां तो सब भूखे मर रहे हैं।“

” छोड़ो अम्मा काहे का मजा। और हमें तो कौनो खबर ही नहीं थी।“

”चलो अब आ गए हो तो कुछ करो। पर तुम वापस काहे आ गए। बिन्नू ने तुम्हें छोड़ कईसे दिया। वो तो तुम्हें बंधुआ गुलाम बना कर ले गए रहे। हम तो चीन्ह गए थे। चलो तुम मुक्त हो गए ये अच्छा भया। पर ये हुआ कैसे बेटा।“ सिर पर हाथ फेरते हुए अम्मा ने पूछा।

गज्जू अम्मा की सोच समझ पर दंग रह गए। उन्होंने पूरा किस्सा सुनाया तो उन्होंने सांस भर कर बोला ”अब ये तो नीक हुआ पर अब तुम्हरा वो का कहते हो एमे कैसे होगा भला“

गज्जू भी यही सोच रहे थे कि उन्होने अम्मा के खुर्राटों की आवाज सुनी तो वे भी सोने की तैयारी करने लगे। इसी दौरान बल्कि पहले ही दिन या कहें पहली ही रात पाया कि गन्नू भैया बहुत देर रात लौटे तो उनकी और भैाजाई में बहुत देर तक झंझट चली और फिर गन्नू भैया तमक कर बाहर निकले और साइकिल उठा कर निकल गए। लगा कि निकम्मेपन पर झाड़ पड़ी होगी और भैया वैसे भी मिजाज के गरम हैं तो निकल लिए होंगे पर सुबह होने पर स्थिति साफ हो गई। दरअसल वे अपने बाप का अनुसरण कर रहे थे। एक दूसरी औरत के साथ संबंध बना कर रह रहे थे। इन बाप बेटों में अद्भुत समानताएं थीं। दोनों का कंठ बहुत अच्छा था भजन बहुत बढ़िया गाते थे दोनों। रामचरितमानस कंठस्थ थी दोनों को। गन्नू भैया तो बकायदा भजन मंडली चलाते थे जो पूरे शहर में अखंड रामायण और मंगल और शनि को घर के मंदिर में बिलानागा सुंदरकांड का पाठ करती थी। बाप कालिका प्रसाद महाभारत और रामायण के ढेरों प्रसंगों का उदाहरण देते हुए आचार व्यवहार की शुद्धता पर बहुत बात करते थे । इन दोनों भक्तों की फिसलन देखकर गज्जू दंग थे।

***

अन्य रसप्रद विकल्प

शेयर करे

NEW REALESED