इस दश्‍त में एक शहर था - 4 Amitabh Mishra द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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इस दश्‍त में एक शहर था - 4

इस दश्‍त में एक शहर था

अमिताभ मिश्र

(4)

इधर गजपति बाबू ने काम के लिए हाथ पैर मारना शुरू किए तो कुछ ट्यूशन कुछ दुकानों के हिसाब किताब का काम मिला तो घर का कुछ ठीकठाक होने लगा। उन्होंने अम्मा से सामने के मकानों और खोलियों के किराए का पूछा तो पता चला कि वे सबसे छोटे यानि त्रिलोकीनंदन यानि तिक्कू वसूल रहे हैं और मजे कर रहे हैं। उन्हे कुछ इसलिए नहीं बोला जा सकता था क्योंकि वे अम्मा के लड़ैते पूत थे और बाप को कुछ गिनते ही नहीं थे। तिक्कू डॅाक्टरी की पढ़ाई कर रहे थे उनकी बात आगे करेंगे।

बड़े भैया की ही बात कर लें फिलहाल। विनायक मिश्र जी जैसा कि पहले ही जिकर हो चुका है बेहद ज़हीन तेजतर्रार और अवसरों का लाभ उठाने वाले व्यक्ति रहे। उन्होने दो शादियां की उस तरह नहीं जैसी उनके पिता और छोटे भाई ने की थी बल्कि चूंकि पहली पत्नी नहीं रही तो उन्होंने दूसरी शादी की। पहली पत्नी से पांच सन्तानें हुईं तीन बेटियां और दो बेटे, दूसरी से तीन एक बेटा और दो बेटियां। बिन्‍नू भैया की पहली पत्नी पढ़ी लिखी थीं। अंग्रजी हिन्दी और बांगला पढ़ी हुईं। तीनों भाषा पर अच्छा अधिकार था। बांगला के उपन्यास पढ़े हुए थे विषेश तौर पर शरत बाबू के। उन्होंने न सिर्फ अपने बल्कि अपने देवरों के बेटों के नाम भी शरत बाबू के उपन्यासों के चरित्रों के नाम पर रखें। मुकुल, शशांक, सव्यसाची, प्रद्युम्न, गगन, नीलोत्पल, अर्धेन्दु, अमिताभ, आशुताश शिवेन्दु (जिसे बाद में गलती से षिवेन्द्र कर दिया गया), कात्यायान, प्रभंजन, आलोक, अभय और लड़कियों के नाम पर ध्यान दें ऊषा, ज्योत्सना, ऊर्मि, नीहार, अल्पना, मृण्मयी, इला, राका, धृति, वर्षा, निरुपमा, चारुलता, अनुपमा।

विनायक का आतंक उनके घर पर भी रहा। परिणामस्वरूप उनके दोनों बेटे बहुत बड़े होने तक उनसे घबराते रहे। सामने नहीं आते। अंदर कमरों में घुसे रहते उनकी मां ही उनकी शरणस्थली थीं। मां के जाने के बाद वे दोनों न कायदे से पढ़ पाये और न ही कुछ कर पाए। बड़े यानि अनुराग भैया अपने पुश्‍तैनी घर और शहर में आकर कुछ टाइपिंग वगैरा सीखकर छुटपुट टाइपिंग कर अपना गुजारा चला लेते हैं। उनसे छोटे यानि अभिलाश जिनके पास कोई डिग्री नहीं थी पर कई हुनर थे मसलन बिजली के काम वे कर लेते थे, नल के काम वे कर लेते थे, बेहतरीन मिस्त्री थे वे और भी पता नहीं क्या क्या यानि बढ़ईगिरी से लेकर दर्जीगिरी का काम वे कर सकते थे यानि वे एक चलता फिरता कारखाना हुआ करते थे। वैसे ये दोनो भाई इस पूरे परिवार में सबसे कमजोर रहे पर चूंकि सब एक थे और पुश्‍तैनी घर सबका एक बड़ा सहारा था। संयुक्त परिवार का एक सबसे बड़ा लाभ यह है कि घर में कमजोर हो बच्चा या सहारा जब बाहर नहीं मिले तो परिवार एक मजबूत सहारा बन कर सामने आता है और वह भी बिना किसी अपमान के। तो अनुराग और अभिलाश ने इसीके मद्देनजर बजाय अपने बाप के साथ के संयुक्त परिवार में सबके साथ रहना स्वीकार किया। डर से दूर, अपमान से परे, मार पिटाई का कोई सवाल ही नहीं, जीने की आजादी थी यहां। बड़े वाले भैया को मंदिर के पास का कमरा मिल गया तो दोनों भाई कुछ दिन तो साथ रहे पर मिजाज एक दूसरे से उलट गुस्सैल अलग तो दोनों का एक साथ एक ही कमरे में रहना लगभग नामुमकिन था तो छोटे ने सामने की एक खाली खोली में ठीहा जमा लिया जिस पर तिक्कू चाचा ने आपत्ति ज़ाहिर की कि ”घर का कोई सदस्य किराएदारों वाली या काम करने वालों की खोली में कैसे रह सकता है।“

अभिलाश का कहना था ”ये देखो हम रह रहे हैं कि नहीं। और आपको क्या तकलीफ हो रही है हमारे रहने से।“

दरअसल तकलीफ तो थी चाचा को, उन्होंने किराएदार ढूंढ लिया था और उससे किराया भी अच्छा तय किया था। पर अब उसे सामने वाली खोली में कमरा दिया गया। दरअसल वो एक फैक्ट्री के लिए दी गई खोली थी। फैक्ट्री मिठाई के डिब्बे से शुरू होकर दवा की फैक्ट्री तक गई वो किस्सा आगे कभी। और उस फैक्ट्री में बाद को अभिलाश बाबू की महत्वपूर्ण भूमिका रही। उन्हें बगल वाली खोली में रहने को कहा गया और फैक्ट्री में उनको ढेरों काम दिये गये। मसलन डिब्बे की मशीनों को ठीक ठाक रखने से लेकर मजूरों पर नजर और डिब्बों के रोज के बनने से लेकर तो सही ठिकाने तक पहुंचने की व्यव्स्था की जिम्मेदारी अभिलाष की थी।

इस दरम्यान बड़े भैया यानि विनायक मिश्रा जी ने एक मौका ताड़कर समाचार भारती के राज्य के प्रमुख का पद हथिया लिया। वे राजधानी भोपाल पहुँच गये वहां उन्होंने पहाड़ी पर मालवीय नगर में अपना ऑफिस और घर चुना। ये वो समय था जब टेलीप्रिंटर आया ही आया था और उस टेलीप्रिंटर के जरिये उनका संपर्क सूत्र दुनिया भर की न्यूज एजेंसियों से हासिल कर लिया था। वे इन दिनों राज्य और केन्द्र के बीच एक महत्वपूर्ण सूत्र थे। उनके हर स्तर पर राजनैतिक, पत्रकारिता से संबंधी, यहां तक कि राजनयिक स्तर पर भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर संपर्क बन चुके थे। वे राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, विदेश मंत्री के दौरे कवर करने वाले दल के लगभग स्थायी सदस्य बन चुके थे अब उन्होंने भोपाल का जिम्मा अपने योग्य चेले जानकीप्रसाद को सौंपा अब दिल्ली उनका इंतजार कर रही थी। दिल्ली में वे समाचार भारती के मध्यपदेश के ब्यूरो चीफ थे।

पुश्‍तैनी घर पर वे शादी ब्याह के मौकों पर आते रहे एकदम वी आइ पी की तरह और घर के पचड़ों में पड़े बिना उनकी रुचि घर की संपत्ति में हिस्सेदारी से संबंधित रही। उनकी पहली पत्नी से जो संतानें थीं उनमें से दो बेटों ने तो अपना जुगाड़ जीने का कर लिया था वे दोनों अपने पिता के सामने आने से बचते रहे। पर कैसे भी हो वो दोनों अपने पैरों पर खड़े हैं। उन दोनों की शादियां हो चुकी थी। दोनों की शादियां उत्तरप्रदेश में की गई थी कारण वहां से मिलने वाला दहेज है। ये परिपाटी आज भी है, परंपरा कायम है आज भी है। दहेज विनायक भाई साहब ने गिन लिया और दोनों को परिवार बनाने के लिए बिना किसी साधन के दुनिया में छुट्टा छोड़ दिया। जिन्दगी दोनों की धीरे धीरे जम ही गई। दोनों संतोषी जीव थे तो कम में गुजारा कर रहे थे। दोनों का दो लड़के और दो लड़कियां हुईं। बड़े अनुराग के दो लड़के और अभिलाश के दो लड़कियां हुई। मजेदार ये भी है कि जिन अनुराग और अभिलाश की पढ़ाई बिलकुल नहीं हुई उन दोनों के बेटे बेटी जमकर पढ़़े और चारों इंजीनियर बने जिनमें से दो इन दिनों विदेश में हैं। और ओ हैदराबाद मे। इन सब को पढ़ाने में उन लोगों की दो बुआओं का हाथ रहा। विनायक बाबू की पहली पत्नी से तीनों लड़कियों में से दो के ब्याह परिवार के प्रयासों जिनमें मुख्यतः शंकरलाल और गणेशीलाल यानि खप्पू और छप्पू की भूमिका महत्वपूर्ण रही। एक ने जो प्रोफेसर थीं ने खुद शादी कर ली वो भी कनैाजिये से नहीं बल्कि मराठी से जो सेना में मेजर थे और इकहत्तर की लड़ाई में अपनी एक टांग गंवा बैठे थे जो सेना से रिटायर हो कर एन सी सी का काम देखते थे और हमारी प्रोफेसर इन्चार्ज थीं अपने कालेज की एन सी सी की सो वहीं मुलाकात हुई और चूंकि दोनों ही कमाते थे सो शादी में कोई दिक्कत नहीं हुई कुछ बातें दामाद जी की जाति पर और अपंगता पर उठीं पर दब गई।

यहां तक तो ठीक ही था और हुआ यूं कि उनके दो बच्चे हुए एक लड़की एक लड़का। दोनों ही पढ़ने में एकदम सामान्य। लड़की चित्रा थी चिंकी और बेटा था दिनेश। हालांकि दोनों पढ़े लिखे और चिंकी की शादी एक इंजीनियर से कर दी गई जो विदेश बस गया और उसके साथ गदगद हमारी चिंकी भी। पर दिनेश का किस्सा कुछ और ही रहा। वो कुछ इस तरह रहा कि हमारी चिंकी उनकी शादी की पांचवी सालगिरह पर हताश थीं ।

आज उसकी शादी की पांचवी सालगिरह थी और वो उसे शुभकामनाएं दे नहीं पा रही थी । पांच साल में ही दोनों में तलाक की नौबत आ गई । वो शादी कुछ ज्यादा ही धूमधाम से हुई थी । कार्ड ही बहुत मंहगा था । मनुहार की चिट्ठी आम शादी का कार्ड था । सब लोग बहुत खुश थे । दिनेश और अनुपमा की शादी से । दिनेश की मां तो कुछ ज्यादा ही उत्साहित । दिनेश की मां यानि ऊषा जिज्जी । वे उस जमाने में हिन्दी साहित्य में पीएचडी कर रही थी । कालेज की प्रोफेसरी के दौरान जब लड़कियां दसवी तक पढ़कर ब्याह दी जाती थीं । बहुत तेज तर्रार और सारी दुनिया अकेले नाप लेने वाली । गोरी चिट्टी सुंदर सुंदर पर जबान इतनी तेज थी कि बस । अच्छे खासों की हवा ढीली हो जाती थी जब वे अपनी वाली पर आती थी । उनकी पीएचडी जिस साहित्यकार पर थी वे रहते थे बिहार के किसी गांव में हमारी ऊषा जिज्जी वहां पहुंच गई उनका साहित्य इकट्ठा करने । उनकी औलादों से निकाल लिया उन्होंने सना साहित्य जो कुंडली मारकर बैठे थे उनकी किताबों पर । वो किस्सा वो ही सुनाती थीं । एक तो दस जगह की ट्रेन बदलकर दो जगह मिनी बस टेम्पो पकड़कर पहुंचीं उनके घर । घ्‍र भी अजीब सा था ऐंचक बेंचक । तीन मंजिला कच्चा घर । संकरी संकरी सीढ़ी । सिंह साहब तो गुजर चुके थे सो उनके बेटों से उनके बारे में पूछना था । साले एक नंबर के लालची और भिखमंगे । मैने कैसे उस नरक से किताब निकाली मैं ही जानती हूं बस । और हमारे गाईड महोदय उन्होंने तो पता नहीं कितनी पीएचडीयां आंख बंद करके पैर हिला हिला के करा दी सो हमारी भी हो ही गई और तीन इन्क्रीमेंट लगे थे हमाई तनखाह में । हमारी तनखाह हमारे पिता से ज्यादा हो गई थी । सो हमारे पांव जमीन पर नहीं थे

एक बार ऊषा जिज्जी शुरू हो जाए तो रफ्तार और जोर पर कोई कंट्रोल नहीं कर सकता । बस एक ही रास्ता होता है तब कि आप निकल लें वहाँ से ।

ऊषा जिज्जी उस जमाने में नारी शक्ति का झंडा उठाए थीं जब इन शब्दों के ज्ञानी अभी महानगरों में शुरू हुए ही थे । वे लड़कियों को आगे लाने की बहुत दमदार पक्षधर हुआ करती थीं । कई लड़कियों को पढ़ाया लिखाया नौकरी में लगवाया उन्होंने । कालेज में बैंक में और भी तमाम जगहों पर उन्होंने लड़कियों को नौकरी में लगवाने के प्रयास किये थे । ये बात कितनी मुश्किल थी उन दिनों यह आज समझ से परे है। पर ऊषा जिज्जी के लिये यह चुनौती बहुत सामान्य थी । बिना दहेज के शादी की पक्षधर पढ़े लिखे घरों में शादी की पक्षधर लड़का लड़की में समानता की पक्षधर वे बहुत वाचाल और लड़ाकू प्रवृत्ति की महिला हुआ करती थीं । उन्होंने खुद जो शादी की वह एक मिसाल है । दर असल वे अपने कालेज की एनसीसी की भी इंचार्ज थी । लड़कियों को एनसीसी में शामिल करना और उनके केम्प वगैरह लगवाने का काम उनके जिम्मे था । इसी दौरान उनकी मुलाकात मेजर राघवेन्द्र प्रताप सिंह से हुई उनके जिम्मे यह काम था । आरण्पीण् के नाम से मशहूर ठाकुर साहब 71 की जंग में लड़े थे और अपना पैर गंवा कर आए थे और नकली पैर था उनका । उनकी वीरता के किस्से थे मैडल वैडल मिला था उन्हें । दिखते बहुत आकर्षक थे उन्हें ऊषा पसन्द आई ऊषा को वे अच्छे लगे पर उस समय में जात बाहर की शादी । तौबा तौबा पर वे ऊषा जिज्जी यूं ही नहीं थी उन्होंने चार साल के बाद लड़ झगड़कर मेजर से शादी कर ही ली थी । घर के लोगों को कैसा लताड़ा सबको अपनी मर्दानगी का अहसास दिलाया और सबको अपने तर्कों से निरूत्तर कर शादी कर ही ली। दोनो एक दूसरे के विलोमए विपरीतए उलटए 36 का आंकड़ा भी कम पड़े ।

ऊषा जिज्जी बहुत बक बक करने वाली आरण्पीण् चुप्पा और शांत माहौल पसन्द करने वाले ।

. ऊषा जिज्जी प्याज लहसुन तक न छूने वाली और आरण्पीण् ठेठ ठाकुर मांस मछली मदिरा सब में छक कर खाने पीने वाले ।

. ऊषा जिज्जी हर नवाचार करने में आगे आरण्पीण् परंपरा का बहुत कड़ाई से पालन करने वाले ।

. ऊषा जिज्जी बेतरतीबी से जीवन जीने वाली और आरण्पीण् बेहद व्यवस्थित ।

. ऊषा जिज्जी ने अपने बाप का भी आधिपत्य स्वीकार नहीं किया और आरण्पीण् अपनी मां के हुकुम के गुलाम और बाहर सिर्फ हुकुम चलाने वाले बहुत कड़क । और भी तमाम फर्क थे दोनों में जो हनीमून अवधि तक ढंकते गये पर फिर सामने आते गए और समझौता यहां ऊषा जिज्जी को ही करते जाना था । कुछ तब्दीलियां दिखने लगीं । मसलन उन्होंने साड़ी ही पहनना चालू किया खाना तो नहीं पर मांस मच्छी बनवाना शुरू किया चौके में यानि किचन में ।

एक और दिलचस्प फार्मूला आरण्पीण् का था। शुक्रवार को बीबी की कुटाई करना चाहिये उससे शनिवारए रविवार अच्छे से निकलता है और अगला सप्ताह ठीक से गुजरता है सो वे नियम पर अमल करने वाले कड़क फौजी हैं ।

माॅ का हुकम ही चलता है घर में यह भी एक अजूबा है ऊषा जिज्जी के घर में । पहली उन्हें लड़की हुई जिस कारण मां बेटे दोनों ही नाराज थे । कई पीढ़ियों बाद यह मौका था कि पहली सन्तान लड़की हुई सो दोनो ने बकायदा नाराजगी जाहिर भी की । बेटी बहुत सुन्दर ऊषा जिज्जी पर गई पर दादी और बाप से प्यार बचपन में तो नहीं ही मिला उसे । बहरहाल दूसरी संतान लड़का हुआ तो दिवाली मनी ऊषा जिज्जी के घर पर बाकायदा पार्टियां हुईं दारू बही मांस मच्छी की खुली पार्टी थी वो जिसमें ऊषा जिज्जी भी बकायदा शामिल हुईं । अनुपमा बहुत ही सुषील घरेलू और विनम्र पढ़ी लिखी लड़की है । उसके आने से ऊषा जिज्जी के घर में सब चीजें और व्यवस्थित हो गईं । जिसे हम संस्कारवान बहू कहते हैं वह थी वह । ऊषा जिज्जी की एकदम विलोम सुबह उठकर सासू मां के चरण स्पर्ष ससुर जी को चायए दादी सास को पूजा का सामान सब कुछ बहुत ही तरीके से चलने लगा । इन दिनों स्वर्ग था कहीं तो वो महाकाली सोसाइटी के मकान नंबर 232 में । ऐसा लगा सबके इस जन्म केए पूर्व जन्म के और जो प्रारब्ध है वह सब ठीक थे तभी अनुपमा जैसी बहू मिली । दिनेश पढ़ने में कमजोर था सो वो जैसे तैसे बरहवीं कर पाया फिर इग्नू से कोई डिग्री वगैरह कर ली । ऊषा जिज्जी की लड़की भी यूं ही थी पढ़ने में पर उसका ब्याह ठीकठाक हो गया लड़का इंजीनियर था जिसने एक शादी में देखा था गुड्डी को और गोरेपन पर खूबसूरती पर लट्टू हो गया और प्रस्ताव लड़के वालों की तरफ से था । ठाकुर थे और पिता भी फौज में थे सो ब्याह हो गया और लड़का अमेरिका में सेटल हो गया सो बहन तो निकल ली अब बचे हमारे दिनेश भैया और अनुपमा परिवार के साथ । फौजी होने के कारण एक दो पेट्रोल पंप मिल गया आरण्पीण् को सो दिनेश को वो पेट्रोल पंप चलाने का काम मिल गया था । सब कुछ बहुत बढ़िया चल रहा था यकायक सारा परिवार अनुपमा को कोसने लगा । अनुपमा को मायके भेज दिया गया तत्काल ऊषा जिज्जी ने गंदी गंदी गलियां उसे आरण्पीण् ने पता नहीं क्या क्या कहा उसके बाप को और इस बीच दिनेश एकदम चुप उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था । वो कुछ बोलता भी था तो उसे एकदम चुप करा दिया जाता । बाद में ऊषा जिज्जी ने ही बताया ससुरी दो दो लड़कियां जनने वाली थी ये सोनोग्राफी में पता चला । मेजर साहब को तो बहुत बुरा लगा । मां जी परेशान रही ।एबार्षन का बोला तो नट रही थी । अब बताओ भला वंश चलाने वाला न हो और इसकी क्या गारंटी कि अगला लड़का हो । ये वो ऊषा जिज्जी बोल रही थी जो एक जमाने में लड़कियों की हिमायती थी जो जवाहरलाल नेहरू की इकलौती लड़की का हवाला देती थी और देती थी झांसी की रानी का हवाला और खुद का हवाला कि मेरे पिता के बेटों में से कौन किसको जानता है सब जानते हैं तो मुझे । और ये वंश वगैरह क्या होता है । अपने से चार पीढ़ी पहले वाले बुजुर्ग का नाम बताओं तो जानूं ।

पर आज वो आर पी की पत्नी दुर्गेश्‍वरी की बहू और ठाकुर खानदान की स्त्री थी जिन्हें सिर्फ और सिर्फ लड़का चाहिए था और अनुपमा दो लड़कियां पैदा करने का जघन्य अपराध कर रही है । अनुपमा मायके चली गई थी वहां उसके मां बाप ने पहले तो कोसा पर जब पता चला कि उसकी सास ससुर ने उसे पीटा और अबार्षन का बोल रहे हैं तो उन्होने उसे संभाला पर इसी बीच यात्रा के दौरान और तनावग्रस्त होने के चलते और कमजोरी की वजह से उसकी दोनों बेटियां गर्भ में ही नहीं रहीं । अनुपमा बहुत ही हताश निराश दुखी और उसके मां बाप उससे भी ज्यादा । पर ऊषा जिज्जी प्रसन्न भईं और दिनेश को भेज दिया उसे लाने को । ष्ष्जा बेटा ले आ बहू को बहुत दिन हुए गट्टे की सब्जी खाए हुए। “ दिनेश भी चल दिया उसे अच्छी लगती है अनुपमा और उसका साथ। अनुपमा ने उससे अच्छा व्यवहार किया पर जाने से इंकार कर दिया तब दिनेश ने बात कराई अपनी मां से जिन्होंने उससे बहुत प्रेम से बात की मनुहार की और बोला ष्ष्तू तो मेरी बेटी है वापस आ जा बेटी । ये तेरा घर है तू जो चाहेगी वो होगा ।” इस झांसे में आ गई अनुपमा और लौट आई दिनेश के साथ । इस बार घर के बाकी लोग ठीक थे पर दिनेश के तेवर बदले बदले थे मर्दाना । इस दौरान उसने अपने बाप से शुक्रवार वाला फंडा सीखा और साथ में उसकी मां भी थी बाप भी सो अनुपमा पर यहाँ बकायदा मार पिटाई चल रही थी और पढ़ी लिखी पीएचडी मां जो एक कालेज की प्रिन्सीपल थी और बाप बाकायदा फौजी पुत्र कामेष्ठि यज्ञ कर रहे थे । पर अनुपमा का मन उचट रहा था इस सबसे । उसे उस घर के लक्षण ठीक नहीं लग रहे थे । अब के फिर यदि लड़की हुई तो । वो लगातार सोच रही थी बहुत तनावग्रस्त । उसने एक दिन पूछ ही लिया दिनेश से कि यदि इस बार फिर लड़की हुई तो

“ हो ही नहीं सकती । इस बार सारी केयर ली गई है ।” यहाँ

“ फिर भी । “

“ तब की तब देखेंगे या सोनाग्राफी के बाद फिर गिरा देंगे और तुम ये सब बुरे विचार मन में मत लाओ । “

अनुपमा ने इन दिनों कुछ तय किया । उसने समय रहते बकायदा तलाक का नोटिस दिया और तलाक लेकर ही मानी । अब वो अपने मा बाप के घर है ।

एक सुंदर सी प्यारी सी बेटी को जनम दिया है और अब एक स्कूल खोल लिया है बच्चों को पढ़ाती है और अपने दम पर शान से जी रही है ।

***