देस बिराना - 4 Suraj Prakash द्वारा प्रेरक कथा में हिंदी पीडीएफ

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देस बिराना - 4

देस बिराना

किस्त चार

आगे कोतवाली के पास ही नंदू का होटल है।

चलो, एक शरारत ही सही। अच्छी चाय की तलब भी लगी हुई है। नंदू के हेटल में ही चाय पी जाये। एक ग्राहक के रूप में। परिचय उसे बाद में दूंगा। वैसे भी वह मुझे इस तरह से पहचानने से रहा।

नंदू काउंटर पर ही बैठा है। चेहरे पर रौनक है और संतुष्ट जीवन का भाव भी। मेरी ही उम्र का है लेकिन जैसे बरसों से इसी तरह धंधे करने वाले लोगों के चेहरे पर एक तरह का घिसी हुई रकम वाला भाव आ जाता है, उसके चेहरे पर भी वही भाव है। बहुत ही अच्छा बनाया है होटल नंदू ने। बेशक छोटा-सा है लेकिन उसमें पूरी मेहनत और कलात्मक अभिरुचि का पता चल रहा है। दुकान के बाहर ही बोर्ड लगा हुआ है - आउटडोर कैटेरिंग अंडर टेकन।

वेटर पानी रख गया है। मैं चाय का आर्डर देता हूं। चाय का पेमेंट करने के बाद मैं वेटर से कहता हूं कि ज़रा अपने साहब को बुला लाये। एक आउटडोर कैटरिंग का आर्डर देना है।

नंदू भीतर आया है। हाथ में मीनू कार्ड और आर्डर बुक है - कहिये साहब, कैसी पार्टी देनी है आपको? उसने बहुत ही आदर से पूछा है।

- बैठो। मैंने उसे आदेश दिया है।

उसके चेहरे का रंग बदला है और वह संकोच करते हुए बैठ गया है।

मैं अपने को भरसक नार्मल बनाये रखते हुए उससे पूछता हूं

- आपके यहां किस किस्म की पार्टी का इंतजाम हो सकता है?

वह आराम से बैठ गया है - देखिये साहब, हम हर तरह की आउटडोर कैटेरिंग के आर्डर लेते हैं। आप सिर्फ हमें ये बता दीजिये कि पार्टी कब, कहां और कितने लोगों के लिए होनी है। बाकी आप हम पर छोड़ दीजिये। मीनू आप तय करेंगे या..

वह अब पूरी तरह दुकानदार हो गया है - आप को बिलकुल भी शिकायत का मौका नहीं मिलेगा। वेज, नॉन-वेज और आप जैसे खास लोगों के लिए हम ड्रिंक्स पार्टी का भी इंतजाम करते हैं।

तभी उसे ख्याल आता है - आप कॉफी लेंगे या ठंडा?

- थैंक्स। मैंने अभी ही चाय पी है।

- तो क्या हुआ? एक कॉफी हमारे साथ भी लीजिये। वह वेटर को दो कॉफी लाने के लिए कहता है और फिर मुझसे पूछता है

- बस, आप हमें अपनी ज़रूरत बता दीजिये। कब है पार्टी ?

- ऐसा है खुराना जी कि पार्टी तो मैं दे रहा हूं लेकिन सारी चीजें, मीनू, जगह, तारीख मेहमान आप पर छोड़ता हूं। सब कुछ आप ही तय करेंगे। मैं आपको मेहमानों की लिस्ट दे दूंगा। उनमें से कितने लोग शहर में हैं, ये भी आप ही देखेंगे और उन्हें आप ही बुलायेंगे और ....।

- बड़ी अजीब पार्टी है, खैर, आप फिक्र न करें। आप शायद बाहर से आये हैं। हम आपको निराश नहीं करेंगे। तो हम मीनू तय कर लें ..?

- उसकी कोई ज़रूरत नहीं है, आप बाद में अपने आप देख लेना।

मैं बड़ी मुश्किल से अपनी हँसी रोक पा रहा हूं। नंदू को बेवकूफ बनाने में मुझे बहुत मज़ा आ रहा है। उसे समझ में नही आ रहा है कि ये पार्टी करेगा कैसे...।

कॉफी आ गयी है।

आखिर वह कहता है - आप कॉफी लीजिये और मेहमानों के नाम पते तो बताइये ताकि मैं उन्हें आपकी तरफ से इन्वाइट कर सकूं,.. या आप खुद इन्वाइट करेंगे? वह साफ-साफ परेशान नज़र आ रहा है।

- ऐसा है कि फिलहाल तो मैं अपने एक खास मेहमान का ही नाम बता सकता हूं। आप उससे मिल लीजिये, वही आपको सबके नाम और पते बता देगा। मैं उसकी परेशानी बढ़ाते हुए कहता हूं।

- ठीक है वही दे दीजिये। उसने सरंडर कर दिया है।

- उसका नाम है नंद लाल खुराना, कक्षा 7 डी, रोल नम्बर 27, गांधी स्कूल।

यह सुनते ही वह कागज पैन छोड़ कर उठ खड़ा हुआ है और हैरानी से मेरे दोनों कंधे पकड़ कर पूछ रहा है - आप .. आप कौन हैं ? मैं इतनी देर से लगातार कोशिश कर रहा हूं कि इस तरह की निराली पार्टी के नाम पर आप ज़रूर मुझसे शरारत कर रहे हैं। कौन हैं आप, ज़रूर मेरे बचपन के और सातवीं क्लास के ही दोस्त रहे होंगे..!

मैं मुस्कुरा रहा हूं - पहचानो खुद !

वह मेरे चेहरे-मोहरे को अच्छी तरह देख रहा है। अपने सिर पर हाथ मार रहा है लेकिन उसे समझ नहीं आ रहा, मैं कौन हो सकता हूं।

वह याद करते हुए दो-तीन नाम लेता है उस वक्त की हमारी क्लास के बच्चों के। मैं इनकार में सिर हिलाता रहता हूं। उसकी परेशानी बढ़ती जा रही है।

अचानक उसके गले से चीख निकली है - आप .. आप गगनदीप, दीप.. दीपू..!

वह लपक कर सामने की कुर्सी से उठ कर मेरी तरफ आ गया है और ज़ोर-ज़ोर से रोते हुए तपाक से मेरे गले से लग गया है। वह रोये जा रहा है। बोले जा रहा है - आप कहां चले गये थे। हमें छोड़ कर गये और एक बार भी मुड़ कर नहीं देखा आपने। सच मानिये, आपके आने से मेरे मन पर रखा कितना बड़ा बोझ उतर गया है। हम तो मान बैठे थे कि इस जनम में तो आपसे मिलना हो भी पायेगा या नहीं।

मैं भी उसके साथ सुबक रहा हूं। रो रहा हूं। अपने मन का बोझ हलका कर रहा हूं।

रोते रोते पूछता हूं - क्यों बे क्या बोझ था तेरे मन पर। और ये क्या दीप जी दीप जी लगा रखा है ?

- सच कह रहा हूं जब आप गये थे, तुम .. ..तू गया था तो हम सब के सब तेरे चारों तरफ भीड़ लगा कर खड़े थे। तुझे रोते-रोते सुबह से दोपहर हो गयी थी। हम सब बीच-बीच में घर जा कर खाना भी खा आये थे लेकिन तुझे खाने को किसी ने भी नहीं पूछा था। तेरे घर से तो खाना क्या ही आता। तेरे भाई भी तो वहीं खड़े थे। सिर्फ मैं ही था जो बिना किसी को बताये तेरे लिए खाने का इंतज़ाम कर सकता था। तेरे लिए अपने बाऊ की हट्टी से एक प्लेट छोले भटूरे ही ला देता। लेकिन हम सब बच्चों को जैसे लकवा मार गया था। हम बच्चे तेरे जाने के बाद बहुत रोये थे। तुझे बहुत दिनों तक ढूंढते रहे थे। बहुत दिनों तक तो हम खेलने के लिए बाहर ही नहीं निकले थे। एक अजीब सा डर हमारे दिलों में बैठ गया था।

हम दोनों बैठ गये हैं। नंदू अभी भी बोले जा रहा है - मुझे बाद में लगता रहा कि मार खाना तेरे लिए कोई नई बात नहीं थी। तेरे केस कटाने की वज़ह भी मैं समझ सकता था लेकिन मुझे लगता रहा कि सारा दिन भूखे रहने और घर वालों के साथ-साथ सारे दोस्तों की तरफ से भी परवाह न किये जाने के कारण ही तू घर छोड़ कर गया था। अगर हमने तेरे खाने का इंतज़ाम कर दिया होता और किसी तरह रात हो जाती तो तू ज़रूर रुक जाता। हो सकता है हमारी देखा-देखी कोई बड़ा आदमी ही बीच बचाव करके तुझे घर ले जाता। लेकिन आज तुझे इस तरह देख कर मैं बता नहीं सकता, मैं कितना खुश हूं। वैसे लगता तो नहीं, तूने कोई तकलीफ भोगी होगी। जिस तरह की तेरी पर्सनैलिटी निकल आयी है, माशा अल्लाह, तेरे आगे जितेन्दर-पितेन्दर पानी भरें।

उसने फिर से मेरे दोनों हाथ पकड़ लिये हैं - मैं आपको बता नहीं सकता, आपको फिर से देख कर मैं कितना खुश हूं। वैसे कहां रहे इतने साल और हम गरीबों की याद इतने बरसों बाद कैसे आ गयी?

- क्या बताऊं। बहुत लम्बी और बोर कहानी है। न सुनने लायक, न सुनाने लायक। फिलहाल इतना ही कि अभी तो बंबई से आया हूं। दो दिन पहले ही आया हूं। कल और परसों के पूरे दिन तो घर वालों के साथ रोने-धोने में निकल गये। दारजी तेरे बारे में बता रहे थे कि तू यहीं है। सबसे पहले तेरे ही पास आया हूं कि तेरे ज़रिये सबसे मुलाकात हो जायेगी। बता कौन-कौन है यहां ?

- अब तो उस्ताद जी, सबसे आपकी मुलाकात ये नंद लाल खुराना, कक्षा 7 डी, रोल नम्बर 27, गांधी स्कूल ही कराएगा और एक बढ़िया पार्टी में ही करायेगा।

वह ज़ोर से हँसा है - अब आप देखिये, नंद लाल खुराना की कैटरिंग का कमाल। चल, बीयर पीते हैं और तेरे आने की सेलिब्रेशन की शुरूआत करते हैं।

- मैं बीयर वगैरह नहीं पीता।

- कमाल है। हमारा यार बीयर नहीं पीता। तो क्या पीता है भाई?

- अभी अभी तो चाय और कॉफी पी हैं।

- साले, शर्म तो आयी नहीं कि चाय का बिल पहले चुकाया और मुझे बाद में बुलवाया।

- मैं देखना चाहता था कि तू मुझे पहचान पाता है या नहीं। वैसे बता तो सही, यहां कौन-कौन हैं। यहां किस-किस से मुलाकात हो सकती है?

- मुलाकात तो बॉस, पार्टी में ही होगी। बोल कब रखनी है?

- जब मर्जी हो रख ले, लेकिन मेरी दो शर्तें हैं।

- तू बोल तो सही।

- पहली बात ये कि पार्टी मेरी तरफ से होगी और दूसरी बात यह कि सबको पहले से बता देना कि मेरे इन चौदह बरसों के बारे में मुझसे कोई भी किसी भी किस्म का सवाल नहीं पूछेगा। सबके लिए इतना ही काफी है कि मैं वापिस आ गया हूं, ठीक-ठाक हूं और फिलहाल किसी भी तरह की तकलीफ़ में नहीं हूं।

- दूसरी शर्त तेरी मंज़ूर लेकिन पार्टी तो मेरी ही तरफ से और मेरे ही घर पर होगी। परसों ठीक रहेगी?

- चलेगी। अब चलता हूं। सुबह से निकला हूं। बेबे राह देखती होगी।

- खाना खा कर जाना।

- फिर आऊंगा। अभी नहीं।

बेबे के पास बैठा हूं। मेरे लिए खास तौर पर बेबे ने तंदूर तपाया है और मेरी पसंद की प्याज वाली तंदूरी परौंठिया सेंक रही है। मैं वहीं बैठा परौंठियों के लिए आटे के पेड़े बनाने के चक्कर में अपने हाथ खराब कर रहा हूं।

तभी बेबे ने कहना शुरू किया है - वेख पुत्तरा, हुण तूं पुराणियां गल्ला भुला के ते इक कम कर। बेबे रुकी है और मेरी तरफ देखने लगी है। तंदूर की आग की लौ से उसका चेहरा एकदम लाल हो गया है।

मैं गरमागरम परौंठे का टुकड़ा मुंह में डालते हुए पूछता हूं - मैंनु दस ते सई बेबे, की करना है। हलका सा डर भी है मन में, पता नहीं बेबे क्या कह दे।

- तेरे दारजी कै रये सी कि हुण तां तैनूं कोई तकलीफ नईं होवेगी अगर तूं गुरूद्वारे विच जा के ते अमरित चख लै। रब्ब मेर करे, साडी वी तसल्ली हो जावेगी अते बिरादरी वी तैंनू फिर तों ...। बेबे ने वाक्य अधूरा ही छोड़ दिया है।

मैं हंसता हूं - वेख बेबे, तेरी गल्ल ठीक है कि मैं अमरित चख के ते इक वार फिर सिखी धरम विच वापस आ जावां। त्वाडी वी तसल्ली हो जावेगी ते बिरादरी वी खुश हो जायेगी। अच्छा मैंनु इक गल्ल दस बेबे, इस अमरित चक्खण दे बाद मैंनू की करना होवेगा।

बेबे की आंखों में चमक आ गयी है। उसे विश्वास नहीं हो रहा कि मैं इतनी आसानी से अमरित चखने के लिए मान जाऊंगा - अमरित चखन दे बाद बंदा इक वारी फिर सुच्चा सिख बण जांदा ए। इस वास्ते केस, किरपाण, कछेहरा, कंघा अते किरपाण धारण करने पैंदे ने ते इसदे बाद कोई वी बंदा केसां दा अपमान नीं कर सकता, मुसलमानां ते हत्थ का कटेया मांस नीं खा सकता, दूजे दी वोटी दे नाल..

- रैण दे बेबे। मैं तैंनू दस देवां कि अमरित चक्खण दे बाद कीं होंदा है। मैं तैंनू पैली वारी दस रेंया हां कि मैं इन्ना सारियां चीजां नूं जितना मनदां हां ते जाणदा हां, उतना ते इत्थे दे गुरुद्वारे दे भाईजी वी नीं जाणदे होणगे।

- मैं समझी नीं पुत्त। बेबे हैरानी से मेरी तरफ देख रही है।

- हुण गल्ल निकली ई है तां सुण लै। मैं ए सारे साल मणिकर्ण ते अमरितसर दे गुरूद्वारेयां विच रै के कटे हन। तूं कैंवे ते मैं तैनूं पूरा दा पूरा गुरु ग्रंथ साहिब जबानी सुणा देवां। मैं नामकरण, आनंद कारज, अमरित चक्खण दियां सारियां विधियां करदा रेया हां। बेशक मैं कदी वी पूरे केस नीं रखे पर हमेशा फटका बन्न के रेया हां। गुरूग्रंथ साहिब दा पाठ करदा रेया हां। जित्थे तक अमरित चख के ते बिरादरी नूं खुश करण दी गल्ल है, मैं इसदी जरूरत नीं समझदा। बाकी मैं तैंनू विश्वास दिला दवां कि मैं केसां वगैरा दा वादा ते नीं कर सकता पर ऐ मेरे तों लिख के लै लै कि मैं कदी वी मीट नीं खावांगा, कदी खा के वी नीं वेखया, दूजे दी वोटी नूं अपणी भैण मन्नांगा, सिगरेट, शराब नूं कदी हत्थ नीं लावांगा। होर कुज..?

बेबे हैरानी से मेरी तरफ देखती रह गयी है। उसे कत्तई उम्मीद नहीं थी कि सच्चाई का यह रूप उसे देखने का मिलेगा। वह कुछ कह ही नही पायी है।

- लेकन पुत्तर, तेरे दारजी..बिरादरी..

- बिरादरी दी गल्ल रैण दे बेबे, मैं दो चार दिन्नां बाद चले जाणा ए। बिरादरी हुण मेरे पिच्छे पिच्छे बंबई ते नीं ना आवेगी। चल मैं तेरी इन्नीं गल्ल मन्न लैनां कि घर विच ई अस्सी अखण्ड पाठ रख लैंने हां। सारेयां दी तसल्ली हो जायेगी।

थोड़ी हील हुज्जत के बाद बेबे अखण्ड पाठ के लिए मान गयी है, लेकिन उसने अपनी यह बात भी मनवा ली है कि पाठ के बाद लंगर भी होगा और सारी बिरादरी को बुलवाया जायेगा।

मैंने इसके लिए हां कर दी है। बेबे की खुशी के लिए इतना ही सही। दारजी का मनाने का जिम्मा बेबे ने ले लिया है। वैसे उसे खुद भी विश्वास नहीं है कि दारजी को मना पायेगी या नहीं।

  • आज अखण्ड पाठ का आखिरी दिन है।

    पिछले तीन दिन से पूरे घर में गहमागहमी है। पाठी बारी-बारी से आकर पाठ कर रहे हैं। बीच बीच में बेबे और दारजी की तसल्ली के लिए मैं भी पाठ करने बैठ जाता हूं। बेशक कई साल हो गये हैं दरबारजी के सामने बैठै, लेकिन एक बार बैठते ही सब कुछ याद आने लगा है। दारजी मेरे इस रूप को देख कर हैरान भी हैं और खुश भी।

    बेबे ने आस-पास के सारे रिश्तेदारों और जान-पहचान वालों को न्योता भेजा है। वैसे भी अब तक सारे शहर को ही खबर हो ही चुकी है। लंगर का इंतजाम कर लिया गया है। बेबे सब त्योहारों की भरपाई एक साथ ही कर देना चाहती है। मैंने बेबे को बीस हजार रुपये थमा दिये हैं ताकि वह अपनी साध पूरी कर सके। आखिर इस सारे इंतजाम में खरचा तो हो ही रहा है। उसकी खुशी में ही मेरी खुशी है। पहले तो बेबे इन पैसों को हाथ ही लगाने के लिए तैयार न हो लेकिन जब मैंने बहुत ज़ोर दिया कि तू ये सब मेरे लिए ही तो कर रही है तब उसने ले जाकर सारे पैसे दारजी को थमा दिये हैं। दारजी ने जब नोट गिने तो उनकी आंखें फटी रह गयी हैं। वैसे तो उन्होंने मेरे कपड़ों, सामान और उन लोगों के लिए लाये सामान से अंदाजा लगा ही लिया होगा कि मैं अब अच्छी खासी जगह पर पहुंच चुका हूं। बेबे से दारजी ने जरा नाराज़गी भरे लहजे में कहा है - लै तूं ई रख अपणे पुत्त दी पैली कमाई। मैं की करणा इन्ने पैसेंया दा।

    मुझे खराब लगा है। एक तरफ तो वे मान रहे हैं कि उनके लिए ये मेरी पहली कमाई है और दूसरी तरफ उसकी तरफ ऐसी बेरुखी। बेबे बता रही थी कि आजकल दारजी का काम मंदा है। गोलू और बिल्लू मिल कर तीन चार हजार भी नहीं लाते और उसमें से भी आधे तो अपने पास ही रख लेते हैं।

    अरदास हो गयी है और कड़ाह परसाद के बाद अब लोग लंगर के लिए बैठने लगे हैं। मुझे हर दूसरे मिनट किसी न किसी बुजुर्ग का पैरी पौना करने के लिए कहा जा रहा है। कोई दूर का फूफा लगता है तो कोई दूर का मामा ताया.... कोई बेबे को सुनाते हुए कह रहा है - नीं गुरनाम कोरे, हुण तेरा मुंडा दोबारा ना जा सके इहदा इंतजाम कर लै। कोई चंगी जई कुड़ी वेख के इन्नू रोकण दा पक्का इंतजाम कर लै, तो कोई जा के दारजी को चोक दे रहा है - ओये हरनामेया... इक कम्म तां तू ऐ कर कि इन्नू अज ही अज इन्नू इत्थे ई रोकण दा इंतजाम कर लै।

    दारजी को मैं पहली बार हंसते हुए देख रहा हूं - फिकर ना करो बादशाहो ... दीपू नूं रोकण दा अज ही अज पक्का इंतजाम है।

    मुझे समझ में नहीं आ रहा कि ये सब हो क्या रहा है। मुझे रोकने वाली बात समझ में नहीं आ रही।

    मुझे लग रहा है कि इस अखण्ड पाठ के ज़रिये कोई और ही खिचड़ी पक रही है। तभी बेबे एक बुजुर्ग सरदारजी को लेकर मेरे पास आयी है और बहुत ही खुश हो कर बता रही है - सत श्री अकाल कर इन्ना नूं पुत्तर। अज दा दिन साडे लई किन्ना चंगा ऐ कि घर बैठे दीपू लई इन्ना सोणा रिश्ता आया ए..। मैं ते कैनी आं भरा जी, तुसी इक अध दिन इच दीपे नूं वी कुड़ी विखाण दा इंतजाम कर ई देओ।

    - जो हुकम भैणजी, तुसी जदो कओ, असी त्यार हां। बाकी साडा दीपू वल के आ गया ए, इस्तों वड्डी खुशी साडे लई होर की हो सकदी है।

    - ये मैं क्या सुन रहा हूं। ये कुड़ी दिखाने का क्या चक्कर है भई। बेबे या दारजी इस समय सातवें आसमान पर हैं, उन्हें वहां से न तो उतारना संभव है और न उचित ही। पता तो चले, कौन हैं ये बुजुर्ग और कौन है इसकी लड़की। .... कमाल है .. ..मुझसे पूछा न भाला, मेरी सगाई की तैयारियां भी कर लीं। अभी तो मुझे यहां आये चौथा दिन ही हुआ है और इन्होंने अभी से मुझे नकेल डालनी शुरू की दी। कम से कम मुझसे पूछ तो लेते कि मेरी भी क्या मर्जी है। कुछ न कुछ करना होगा.. जल्दी ही, ताकि वक्त रहते बात आगे बढ़ने से पहले ही संभाली जा सके।

    ***