अमर प्रेम - 14 - अंतिम भाग Pallavi Saxena द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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अमर प्रेम - 14 - अंतिम भाग

अमर प्रेम

(14)

कभी राहुल विदेश चला जाता है तो कभी अंजलि भारत आजती है बस इसी तरह गुज़र रही है दोनों कि ज़िंदगी और इसी तरह चलते हुए करीब करीब दो साल होने को आए अब तो नकुल भी दोनों को अलग –अलग जीते देखकर थक चुका है। इतना अकेला तो वह सुधा के जाने बाद भी महसूस नहीं करता जितना राहुल कभी-कभी अंजलि के होते भी खुद को अकेला महसूस करने लगता है। ऐसे में नकुल दोनों के लिए ऐसा करे कि दोनों फिर से एक होकर एक ही स्थान पर एक साथ रहने लगें। अभी नकुल ऐसा सोच ही रहा है कि वसुधा फिर एक गीत गुण गुनाती हुई उसके सामने आखड़ी होती है और वो गीत होता है “चुप चुप बैठे हो ज़रूर कोई बात है पहली मुलाक़ात है जी पहली मुलाक़ात है है” सुधा को देखते ही नकुल के मुख मंडल पर एक बड़ी सी मुस्कुराहट आजाति है। और वह कहता है तुम नहीं सुधरोगी न कभी तुम्हें कैसे पता चल जाता है कि मैं चुप हूँ या गुमसुम हूँ या किसी समस्या से ग्रसित हूँ जो तुम झट से चली आती हो मुझे मेरी परेशानियों का हल ढूँढने में मेरी मदद करने के लिए हुम्म॥!

सुधा कि और से फिर एक गीत आता है तू जहां जहां चलेगा मेरा साया साथ होगा....मेरा साया .....

अब बोलो भी क्या समस्या है किस चिंता में गुम हो।

अरे वही यार यह अपने राहुल और अंजलि सदी तो कर्ली इन नदानों ने मगर जीवन साथी का साथ रहना क्या होता है यह अभी तक समझ नहीं पाये दोनों एक यहाँ है दूसरा वहाँ साथ समंदर पार जब दोनों में से किसी एक को भी दूसरे कि सबसे ज्यादा जरूरत है तब दोनों ही एक दूसरे से इतने दूर होते है कि चाहकर भी एक दूसरे को सांत्वना या प्यार के दो मीठे बोल बोलकर समझा नहीं सकते।

सबसे ज्यादा जरूरत से क्या मतलब है क्या तुम्हारा...!! आँख मारते हुए सुधा ने नकुल से पूछा सुधा तुम भी न नकुल भी शरारत भरी हँसी से हँसता हुआ कहता है हाँ हाँ तुम्हें जो समझना है तुम समझ लो मगर मुझे इनकी समस्या का हल तो बताओ कि यह दोनों फिर से एक दुसरे के करीब आजायें। तो लो यह भी कोई समस्या है भला तुम भी पुराने बूढ़े आड़े लोगों कि तरह धारणा देकर बैठ जाओ कि अब बहुत होगया तुम्हें भी पोते या पोती का मुँह देखना है बस थोड़ा मजबूर करना होगा तुम्हें दोनों को एक बार यह लोग दो से तीन हो जाएँ तो फिर एक साथ रहने के लिए राजी भी हो ही जाएँ गए बच्चे में जान जो बस्ती है माता-पिता कि जैसे हमारी बसा करती थी राहुल में जब राहुल छोटा बच्चा था। हाँ तुम सही कह रही हो सुधा लेकिन अब यह वो ज़माना नहीं है अब हम बच्चों पर संतान पैदा करने क लिए दबाव नहीं बना सकते यह उनकी ज़िंदगी है इसलिए कब वह यह ज़िम्मेदारी उठाने को तयार होंगे यह भी उनका ही निर्णय होगा न मैं कैस कहूँ कि इस मामले में उन्हें क्या करना चाहिए क्या नहीं।

सुधा फिर नकुल को समझते हुए कहती है अरे मेरे मिट्टी का माधव बच्चा है कोई खिलौना नहीं है कि आज मांगा और कल तुम्हारे हाथ में आजयेगा तुम उनके कान में यह बात दाल तो सही कि अब तुम भी अपने बाकी मित्रों कि तरह अपने पोते पोतियों संग खेलना चाहते हो तब जाकर वह इस विषय में सोचना प्रारम्भ करेंगे और तब भी 9 महीने तो लग ही जाएँ गए न हाँ बात तो सही है तुम्हारी मैं कल ही नकुल से इस विषय में बात करता हूँ देखें वह क्या कहता है। अभी नकुल अपना वाक्य पूरा भी नहीं कर पाया था कि सुधा उसकी आँखों से ओझल हो गयी। नकुल हमेशा कि तरह मुस्कुराकर रह गया।

अगले दिन सुबह जब दोनों नाश्ते कि टेबल पर बैठे नाश्ता कर रहे थे तब राहुल पाप को फलन के जूस के लिए पूछता हुआ कहता है पापा और जूस लेंगे या नकुल मना करते हुए नहीं बेटा बस होगया फिर ओनों अपना अपना नाश्ता करने लगते है तभी नकुल राहुल से कहता है बेटा यदि तुम्हें ऑफिस जाने में देर न हो रही हो तो मैं तुम से कुछ बात करना छाता हूँ हाँ पापा कहिए न अभी तो मुझे समय लगेगा और वैसे भी क्या फर्क पड़ता है एक आद दिन देर भी होगाई तो रोज़ तो समय पर नीयक ही जाता हूँ ना आप कहिए न क्या बात है। बेटा वो ना मेरा भी अब मन करता है कि मैं भी अपने अन्य मित्रों कि तरह अपने पोते पोती के साथ खेलूँ। तो मैं यह जानना चाह रहा था कि तुमने और बहू ने इस विषय में क्या सोचा है। अब तो तुम दोनों कि शादी को दो साल हो गए। फिर नकुल को अचानक ऐसा लगा जैसे वो अपने बेटे पर दबाव डाल रहा है वैसे ही उसने बात संभालते हुए कहा ना ना मुझे कोई जल्दी नहीं है और न ही मैं तुम पर या बहू पर ऐसा कोई दबाव डालना चाहता हूँ लेकिन तुम तो जानते ही हो कि तुम दोनों क सिवा इस दुनिया में मेरा तो कोई और है नहीं सो जैसा मुझे लगा मैंने तुम्हें बता दिया आगे तुम्हारी मर्ज़ी क्यूंकी देखो बेटा जीवन में नौकरी या ऐसा तो सारी ज़िंदगी सभी को कमाना पड़ता है तभी जीवन चलता है लेकिन जीवन में और भी कुछ जिम्मेदारियाँ ऐसी होती हैं जिनके लिए इंसान के पास एक निश्चित समय होता है आगे तुम खुद समझदार हो घर का बड़ा होने के नाते तुम्हें समझाना मेरा काम था सो मैंने कर दिया आज यदि तुम्हारी मा ज़िंदा होती तो यह बात सास बहू के बीच में कब कि हो चुकी होती। लेकिन अब वो तो है नहीं इसलिए मजबूरन मुझे ही तुम से यह बात कहनी पड़ी।

हाँ हाँ पापा आप सही कह रहे हैं। इसमें इतना हिच्चकिचाने वाली कोई बात नहीं है आप घर के बड़े हैं हम दोनों लेकर आपने जो भी सोचा है अच्छा हे सोचा होगा और आप सही भी कह रहे हैं जीवन में हर चीज़ का एक टाइम होता है सही समय पर सही चीज़ हो जाये वही सभी के लिए अच्छा होता है अभी तक तो हम दोनों ने इस विषय में कुछ सोचा नहीं है लेकिन मैं जल्दी ही अंजलि से बात कर के आप को बताऊंगा। कहते हुए राहुल अपनी बाइक कि चाबी उठता हुआ बाहर निकल जाता है।

देर रात अंजलि का फोन आता है। क्या कर रहे हो कुछ नहीं बस तुम्हारे बारे में ही सोच रहा था। अच्छा चल झूठे, झूठ नहीं सच अच्छा सच्ची हाँ, क्या सोच रहे थे ज़रा मैं भी तो जानू अंजलि आई मिस यू क्या हुआ राहुल सब ठीक है न हाँ अंजलि वैसे तो सब ठीक है लेकिन तुम्हारी बहुत याद आती है अब और नहीं रहा जाता अकेले न जाने वह दिन कब आएगा जब हम सब एक साथ एक छत के नीचे रह सकेंगे। बहुत जल्द ही वह दिन आएगा राहुल तुम चिंता मत करो मैंने अपने बॉस से बात कि है इंडिया में कोई प्रोजेक्ट हो तो बतायें।

सच्ची क्या बात कर रही हो हाँ राहुल सच्ची मैं भी अब तुम्हारे बिना और नहीं रह सकती अकेली आखिर यूं दूर दूर रहने के लिए थोड़ी न कि थी हमने शादी, हाँ और क्या और पता है पापा आज क्या कह रहे थे। क्या कह रहे थे। पापा कह रहे थे कि अब उन्हें भी अपने बाकी दोस्तों कि तरह अपने नाती पोतों के साथ खेलने का मन होने लगा है धत बेशर्म कहीं के अंजलि शरमा जाती है।

अरे साची मैं झूठ नहीं बोल रहा हूँ। आज सुबह ही उन्होने मुझे इस विषय में बात की थी हाँ हाँ जैसे मैं तुम्हें जानती ही नहीं वैसे तुम्हारी क्या इच्छा है?पापा की बात सुनकर तो मुझे भी लगता है की अब हमें इस विषय में सोचना चाहिए। हाँ अच्छा चल अब सोते हैं इतनी जल्दी अरे जड़ी तुम्हारे यहाँ के हिस्साब से होगी यहाँ तो बहुत देर हो चुकी है सुबह ऑफिस भी जाना है मुझे हाँ वो तो मुझे भी जाना है। लेकिन आज तो नींद आने से रही दोनों ने एक साथ कहा सपना जो दे दिया तुमने मुस्कुराकर दोनों ने फोन रख दिया फिलहाहल एक रात तो दोनों की सपनों में कटी

फिर कुछ दिन बीते तो दोनों ने इस विषय में गंभीरता से सोचना शुरू किया राहुल को तो कोई परेशानी नहीं है लेकिन अंजलि अभी असमंजस में है कि बच्चे के भविष्य के लिए कौनसी जगह रहना उचित होगा। कहीं ऐसा न हो जाए कि उसकी नौकरी के चक्कर में कहीं यहाँ वहाँ रहने में बच्चे कि शिक्षा पर तो असर नहीं पड़ेगा उसे कुछ समझ नहीं आरहा है क्या सही होगा क्या गलत शायद अब उसके जीवन में वह मोड आगया है जब उसे देश या विदेश में से किसी एक को हमेशा के लिए चुनना ही होगा। यह सब सोचते हुए उसने वहाँ के स्कूल से भी सभी आवशयक जानकारी एकत्रित कर के रख ली है अब इस बात को अंजलि कि खूबी कहें या नादानी उसे हमेशा से ही बहुत दूर कि सोचने कि आदत सी रही है। अंजलि आज में जीने वालों में से नहीं है। एक वह यह सब सोचते –सोचते इतनी परेशान हो गई कि उसने इस विषय पर बात करने के लिए राहुल हो आधे दिन कि छुट्टी लेने क लिए कहा राहुल कि भी समझ नहीं आया कि आखिर ऐसी क्या बात है जो उसे छुट्टी लेकर अंजलि से बात करनी होगी। लेकिन फिर अगले ही पल उसे लगा कुछ तो खास बात होगी वर्ण अंजलि उसे छुट्टी लेकर बात करने के लिए ना कहती।

खैर राहुल ने छुट्टी ली और दोनों ने लंबे समय तक फोन पर बात कि राहुल ने अंजलि को बहुत समझाया कि हम अपनी संतान को दुनिया में लाकर जीवन में आगे बढ्ने कि सोच रहे हैं ना कि जीवन में ठहर जाने कि तुम इतनी चिंता क्यूँ कर रही हो अभी से पहले उसे इस दुनिया में आने तो दो इतना बड़ा तो होने दो कि उसकी शिक्षा आरंभ हो पाये तब तक जीवन रुक थोड़ी न जाएगा जब उसकी शिक्षा प्रारम्भ होगी तब कि तब देखेंगे कि उस समय हमें क्या करना है और यूँ भी जो भी आएगा वह अपनी किस्मत भी तो अपने साथ लाएगा और होगा वही जो उसकी किस्मत में लिखा होगा हम और तुम तब चाहकर भी कुछ ना कर सकेंगे जानती हो क्यूँ क्यूंकि “हुई है वही जो राम रच राखा” राम जी के आगे किस कि चली है भला उन्होने उसके लिए भी कुछ अच्छा ही सोच रखा होगा तुम चिंता न करो बस कोशिश करती रहो कि जितनी जल्दी हो सके उतनी जल्दी तुम भारत वापस आजाओ फिर यहाँ हम तुम और पापा मिलकर सब संभाल लेगे इतना भरोसा है न तुम्हें मुझ पर हाँ भरोसे वाली कोई बात नहीं है राहुल खुद से ज्यादा भरोसा तो मैं हमेशा से तुम पर ही करती आई हूँ। लेकिन जब से इस विषय में सोचना शुरू किया है न तब से मन में अजीब-अजीब खयाल आते हैं।

अजीब ख्याल बोले तो, बोले तो ऐसे कि जब वो बड़ा हो जाएगा या हो जाएगी और तब वो जहां भी रहेगा/रहेगी तब कहीं ऐसा न हो कि वो यहाँ रहे तो उसके मन में यह अफसोस रहे कि जब आप लोग मुझे बाहर पढ़ा सकते थे तब आप लोगों ने मुझे बाहर क्यूँ नहीं पढ़ाया या फिर यदि वह बाहर रहे /विदेश में तब कहीं ऐसा न हो कि वह वहाँ से वापस अपने देश आना ही ना चाहे और हमे भी अपने साथ न रखना पसंद करे तो हमें मन मार कर यहीं रहना होगा या फिर उसकी खुशी के लिए वहीं रहना होगा। तब क्या होगा राहुल.... अंजलि कि बातें सुनकर राहुल को एकदम से हँसी आजाति है और वह अंजलि से कहता है ओ मेरी अंजलि अभी तो भैंस ने दूध दिया भी नहीं है और तुम दहि जमाकर बेचने कि फिराक में हो....अंजलि क्या मतलब ?

अरे बाबा अभी उस नन्ही सी जान को इस दुनिया में आने तो दो, अभी तो हमने उसके विषय में सोचा भर है यार अभी तो दुनिया में आना तो दूर अभी तो वह तुम्हारे अंदर भी नहीं आई हैऔर तुमने पता नहीं क्या क्या सोच डाला देखो अंजलि दूर का सोचकर चलना अच्छी बात है लेकिन हमे कभी कभी इतना भी दूर का नहीं सोचना चाहिए कि उस आने वाले कल के चक्कर में हम अपना आज ही बिगड़ बैठे हाँ क्या...! लग तो मुझे भी यही रहा था कि मैं शायद कुछ ज्यादा ही सोच रही हूँ इसलिए तो तुमसे कहा था कि छुट्टी लेकर फुर्सत से बात करो मुझसे मुझे कुछ समझ ही नहीं आरहा है। नहीं आरहा है मतलब ? अब भी कोई असमंजस है क्या तुम्हारे मन में नहीं अब तो ऐसी कोई बात नहीं है तुमसे बात करके अब मेरा मन शांत है, बहुत बढ़िया तो चलो अब अपने काम पर ध्यान दो और जल्द से जल्द इंडिया आने कि जुगाड़ करो डार्लिंग अब मुझसे नहीं रहा जा रहा तुमसे और दूर तुम जल्दी नहीं आयीं न तो मैं वहाँ आजाऊंगा फिर कोई बहाना नहीं चलेगा।

हाँ तो आजाओ न मैंने कहाँ रोका है मैं तो खुद तड़प रही हूँ यहाँ अकेली तुम से मिलने को आतुर हेय अंजलि क्या होगया है तुम्हें अभी ऑफिस टाइम है डियर जाओ जाओ दोनों हँसते मुसकुराते हुए चिंता मुक्त होकर फोन रखते हैं और अपनी अपनी दुनिया में व्यस्त हो जाते हैं।

समाप्त