कैरियर
रात्रि एक बजे घर पहुंची | स्मरण हो आया कि बेटी से बात करनी थी पर अब वहां तो रात के तीन बज रहे होंगे | इस समय बात करूँ या ना ? दिन में उसका फ़ोन आया था | कितना चहक रही थी ? चहकती क्यों नहीं ? कोई भी लड़की ख़ुशी से उछलती है जब सपनों का राजकुमार मिल जाए...ना ना अब तो ज़माने के साथ भाषा भी बदल गई, अब उसे ‘डूड’ कहते है | नाम कुछ भी दो क्या फ़र्क पड़ता है ? सपना तो अब भी वही की एक अच्छा लड़का मिले | उससे भी बड़ा सपना, जीवन का सर्वाधिक सुखद अहसास होता है कि वह माँ बनने जा रही है | कितनी खुश लग रही थी वो ? समाचार सुनाते हुए की अभी अभी डॉक्टर ने बताया, वह प्रेग्नेंट है | सबसे पहले यह न्यूज़ मैं आपको दे रही हूँ |
मैं ठीक से बात भी नहीं कर पाई | सिर्फ इतना ही कहा बेटा बाद में बात करती हूँ | फिर दिन भर ऐसी उलझी की अब फ्री हुई | उस समय बात कैसे करती, ऊपर दस लोग तो खड़े थे, मेम डेलीगेट पहुँच गए है, ये तैयार नहीं, वह अधुरा है, प्रेजेंटेशन एक बार देख तो लो आदि आदि | ऐसे में कोई क्या बात करे | स्वयं का बिज़नेस तो किसी को करना ही नहीं चाहिए | सरकरी नौकरी होनी चाहिए, समय होते ही ऑफिस के ताले और फिर अपना घर अपने बच्चे |
अपनी पहली प्रेगनेंसी पर मैंने भी तो माँ को फ़ोन किया था | फ़ोन पर ढाई घंटे कब निकले अहसास भी नहीं हुआ | अगले ही दिन लड्डू लेकर पापा पहुँच गए थे मेरे ससुराल | जब मैंने पापा को कहा आप को तो हार्ट प्रॉब्लम है आप क्यों आए तो बोले बेटा ऐसे ख़ुशी के मौके पर भी नहीं आता तो फिर मेरा और इस हार्ट का रहने का अर्थ ही क्या ? मुझे तो विश्वास नहीं हो रहा था कि ये वही पापा थे जिन्हें हम बचपन से हिटलर पापा कहते आए है | मैंने कहा याद है पापा मैं शायद आठवीं या नवीं में थी और घर के सामने स्टेशनरी की दुकान पर पेन्सिल लेने जा रही थी, आप ने डांट कर बिठा दिया था, कोई जरुरत नहीं शाम को में निकलूंगा तब ले आऊंगा | आपके आगे किसकी चलती ? मम्मी भी कुछ नहीं कह पाती थी | आज मेरे एक फ़ोन पर यहाँ ? बेटा, वो सब भी तुम्हारे लिए जरुरी था | इसके बाद कई घटनाएँ हुई जिनसे अहसास हुआ हिटलर पापा कितने नरम दिल थे |
मम्मी का रोते रोते अचानक फ़ोन आया था कि पापा को हार्ट अटैक हुआ है | दादाजी, चाचाजी, उनके फ्रेंड्स सभी ने बहुत समझाया पर वे सर्जरी के लिए तैयार नहीं थे | बस यही कहते है कि रिटायर हो गया, पोते दोहिते है, अभी बच गया, अब दो चार साल निकल भी जाए तो ठीक और न भी निकले तो क्या | आप सबको परेशान करने का क्या मतलब |
मैं उसी समय पहुंची | दादाजी बोले मुझे तो पता है बचपन से ही ऐसा जिद्दी है, किसी की नहीं सुनेगा | हम तो थक गए अब तू जाने और तेरा बाप, समझा इस भले आदमी को की तुम्हे हो न हो पर हमें तेरी जरुरत है | उसके बाद सन्नाटा और फिर सब उठकर बाहर चले गए | अस्पताल के कमरे में सिर्फ मैं और पापा | मैंने कांपती आवाज़ में कुछ बोलने की कोशिश की तो आँखें भर आई, बोली पापा आपको सर्जरी तो करवानी ही है | उनकी आँख के किनारे से आंसूं लुढ़का, मेरा हाथ पकड़ा और बोले बेटा दादा पोती सोच कर बता दो कब | उस दिन के बाद मैंने महसूस किया अक्सर मैं आदेश के लहज़े में कहती थी और पापा हँसते हुए मान जाते थे | पापा की बजाय मैं कब हिटलर बन गई पता ही नहीं चला |
पापा को मैं आदेश देती पर ससुराल में पति देव के आदेश मेरे लिए होते | चाय बना कर रखती और बोलती ठण्डी हो रही है, पी लो पर हाँ हूँ करते रहते और आधे घंटे बाद आदेश होता चाय ठण्डी हो गई, गर्म कर दो | शुरू शुरू में लगता परेशान कर रहे है फिर आदत सी हो गई | गर्म करके ले जाती पास बैठ बोलती अब पी लो अब और गर्म नहीं करुँगी | तभी अपनी बाहों में ले लेते और बोलते ऐसी प्यारी बीवी जिसकी बाँहों में हो उसे चाय ठण्डी हो या फ़ीकी इससे क्या फर्क पड़ता ? ऐसी ही छोटी छोटी परेशानियों, लड़ाई झगड़ों, शरारतों, हंसी ठिठोलियों के साथ गृहस्थी आगे बढ़ी | समय के साथ समझ आया कड़क दिखने वाले पापा या पति भीतर से कितने नरम थे |
बस एक ही परेशानी थी मेरा प्रमोशन नहीं हो रहा था | हालाँकि कोई आर्थिक परेशानी नहीं थी फिर भी लगता था अच्छा कैरियर भी तो होना चाहिए | तभी किसी दूसरी कम्पनी से अच्छा ऑफर आया, पैसा और पद दोनों पहले से कहीं बेहतर, परेशानी यही की पोस्ट यू.एस. में रिक्त थी | आश्वासन दे रहे थे अवसर आने पर भारत भेज देंगे पर ऐसा कब होगा कह नहीं सकते | पति देव ने ना नुकुर तो किया पर इतना अच्छा मौका न छोड़ने की मेरी जिद्द देखकर जाने दिया | वहां कुछ समय बाद बेहतर के चक्कर में कई कम्पनी बदलते हुए अपना बिज़नेस प्रारम्भ किया | उसे आगे बढ़ाया इस बीच कब पंद्रह बीस वर्ष निकल गए पता ही नहीं चला |
पति के एक दिन टूर का कहते ही मेरी आँखों में आँसू आ जाते, बिटिया स्कूल जाती तो पीछे घंटों रोटी रहती थी | उन दोनों से दिनों के अन्तराल से होते हुए कब महीनों के अन्तराल में बात होने लगी पता ही नहीं चला, इस बीच कितनी ही बार पति ने जिद्द की वापसी की | यह सोच कर की बस यह काम हो जाए तो आती हूँ, वो हो जाए फिर आती हूँ पर नहीं निकल पाई | कार्य करने वाले भी सभी यही समझाते थे कि मेम इतने फ़ैल चुके बिज़नेस को छोड़कर जाना तो निहायत ही बेवकूफ़ी है | आज आप यहाँ हो, कल हो सकता है टॉप पर पहुँचो, सबकी नज़रें आपकी तरफ होंगी |
अकेलापन कब किसको निगल जाता है हम कल्पना भी नहीं कर सकते, हादसा होने पर ही समझ आता है | एक दिन अचानक से पति का फ़ोन आया उन्हें हार्ट अटैक हुआ है | ऑफिस के लोग अस्पताल ले जा रहे है |
रोते हुए मैं बोली पहली फ्लाइट लेकर आ रही हूँ |
उधर से अवसाद में डूबी धीमी सी आवाज़ आई, व्यर्थ में परेशान होगी और बिज़नेस भी अफेक्ट होगा, रहने दो |
अस्पताल पहुँचने के बाद मोबाइल बंद हो गया था और मेरे पास किसी और का नंबर था नहीं | हालाँकि अब भी कम्पनी में सभी ने रोकने की बहुत कोशिश की, मेम कल कि मीटिंग बहुत जरुरी है |
तुम समझते क्यों नहीं वो मेरे हस्बैंड है |
ऐसा लग रहा था वे कहना चाह रहे हों मेम हस्बैंड तो दूसरा मिल सकता है पर ऐसी डील का अवसर बार बार नहीं आता | अगले दिन जब मैं पहुंची तो पता लगा उन्हें आभास हो गया था तभी कहा, आकर व्यर्थ में परेशान होगी | मैं उस समय उन शब्दों के मर्म को समझ नहीं पाई | मेरे पहुँचने तक वे इस दुनिया को अलविदा कह चुके थे |
वो ही नहीं रहे तो अब बिज़नेस छोड़ कर यहाँ आने का कोई अर्थ नहीं रह गया | बिटिया के डिग्री का अंतिम वर्ष था | उसे अगले वर्ष साथ ले जाने का कह वापस निकल गई | मेरे जाने के बाद पहली बार उसने पापा या मम्मी दोनों के बिना अकेले बर्थडे मनाया | मैंने नेट से आर्डर करके केक तो भेजा था पर ऐसे केक स्वादहीन होते है | याद आया वह केक जो बिटिया सातवीं में थी तब उसने मेरे बर्थडे पर बनाया था | थोड़ा सा जल गया था, सोडा डालना भूल गई थी तो इतना कठोर था की तोड़ना भी मुश्किल था फिर भी सभी ने कितने आनन्द के साथ खाया था, हँसते हुए पेट के बल पड़ गए थे | उस एक दिन की जितनी तो इन बीस सालों को मिलाकर भी नहीं हंसी |
अब तो इन्तजार था कितना जल्दी एक साल निकले, बिटिया कि डिग्री पूरी हो और हम साथ हों | साल तो निकला पर इन्सान की योज़नाओं का क्या ? वे तो रेत के महल है, पलक झपकते ही ढहने लगते है | साथ रहने का सपना टूट गया | बेटी ने दो बधाई साथ दी | एक डिग्री पूरी होने की और दूसरी उसने लड़का पसन्द कर लिया है | आप कब फ्री होंगी ? विवाह की तारीख तय करनी है | जिस माँ के पास इतना भी वक़्त ना हो की उसके दिमाग में यह बात तक नहीं आई कि बेटी बड़ी हो गई है, अब अच्छा घर, लड़का देखना चाहिए, वह किस अधिकार से हाँ या ना कहती ? यह तो उसका बड़ा दिल था कि ख़ुशी के इन पलों में शामिल करने का तो सोचा |
अलार्म बजा, उन्नीदी आँखों से चारों तरफ़ देखा, पता लगा पलंग की बजाय सोफ़े पर ही रात निकल गई | मेरे लिए तो पापा लड्डू लेकर आए थे | बिटिया के लिए मैं नेट से आर्डर करूँ ? औपचारिकताओं का क्या मतलब ? पैसे या लड्डू की कमी तो उसे भी नहीं | उन लड्डुओं में एक भाव होता था कि हम कितने चिन्तित है, आज भी कितना ख्याल है तेरा | महत्त्व पापा के आने का था लड्डुओं का नहीं | मेरे लिए जाना सम्भव न था | उलझनों में सात माह का समय निकल गया | मुझे पापा सातवें माह में ससुराल से ले गए थे | मैं लाती भी तो घर पर किसके भरोसे छोड़ जाती ? वक़्त फिर आगे बढ़ गया | दुर्भाग्य से दो माह बाद मैं ऐसी बीमार हुई की किसी भी बेटी को, जब माँ की सबसे ज्यादा जरुरत होती है, उस वक़्त भी नहीं पहुँच पाई | उसके बेटे के जन्म की साक्षी भी नहीं बन पाई |
आज पहली बार जीवन में इतना पछतावा हुआ | बिज़नेस, पैसा, पद, कैरियर सब परिवार के लिए होता है पर मैंने उसे पाने के लिए परिवार ही खो दिया | किस काम की यह ऊंचाई जहाँ सब लोग यस मेम करते है, बिज़नेस क्लास में एक देश से दूसरे देश जाना, बड़े बड़े लोगों के साथ बात करना, करोड़ों डॉलर की डील साइन करना सब कुछ कितना खोखला है ? आज मैं बीमार हूँ तो डॉक्टर है, सर्वेन्ट्स भी है पर वो प्यार भरे हाथ कहाँ है जो सिर दबाते थे और सुबह पता लगता था मैं उनकी गोद में सिर रखे सोती रही, वो जागते रहे | परेशानी में जब वो अपनी बाँहों में भर कहते, चिन्ता मत करो तो लगता था दुनिया के सबसे मजबूत किले में सुरक्षित हूँ | वो चाहते थे ठीक हो जाऊं ताकि साथ जिएँ, ये भी चाहते है जल्दी से ठीक हो जाऊं पर इसलिए कि बिज़नेस और उनकी नौकरी सुरक्षित रहे | हल्का सा बुखार भी होता था तो पति सबसे पहले कहते थे ऑफिस से छुट्टी लो, यहाँ गम्भीर बीमार होऊं तब भी इनकी इच्छा होती है कैसे भी ऑफिस पहुँच जाऊं | पढ़ी लिखी होने के बावजूद जब पूछती थी अभी ग्रीन, रेड या वाइट टेबलेट लेनी है ? तो गुस्सा भी होते थे पर जानते थे मैं ऐसा जानबूझ कर करती ताकि वो अपने हाथ से गोली दे | उसमें गोली से अधिक असर उन हाथों के प्रेम भरे स्पर्श का होता था | एक अकल्पनीय आनन्द मिलता था | उस अविस्मरणीय आनन्द के सामने बुखार का दुःख विस्मृत हो जाता था |