(१)
जब रक्षक भक्षक बन जाए
तुम्हें चाहिए क्या आजादी , सबपे रोब जमाने की ,
यदि कोई तुझपे तन जाए , तो क्या बन्दुक चलाने की ?
ये शोर शराबा कैसा है ,क्या प्रस्तुति अभिव्यक्ति की ?
या अवचेतन में चाह सुप्त है , संपुजन अति शक्ति की .
लोकतंत्र ने माना तुझको , कितने हीं अधिकार दिए ,
तुम यदा कदा करते मनमानी , सब हमने स्वीकार किए .
हाँ माना की लोकतंत्र की , तुमपे है प्राचीर टिकी ,
तेरे चौड़े सीने पे हीं तो , भारत की दीवार टिकी .
हाँ ये ज्ञात भी हमको है , तुम बलिदानी भी देते हो ,
हम अति प्रशंसा करते है , कभी क़ुरबानी भी देते हो .
जब तुम क़ुरबानी देते हो , तब तब हम शीश नवाते हैं ,
जब एक सिपाही मर जाता , लगता हम भी मर जाते हैं .
पर तुम्हीं कहो जब शक्ति से , कोई अनुचित अभिमान रचे ,
तब तुम्हीं कहो उस राष्ट्र में कैसे ,प्रशासन सम्मान फले.
और कहाँ का अनुशासन है , ये क्या बात चलाई है ?
गोली अधिवक्ताओं के सीने पे, तुमने हीं तो चलाई है.
हम तेरे भरोसे हीं रहते , कहते रहते तुम रक्षक हो ,
हाय दिवस आज अति काला है , हड़ताल कर रहे तक्षक हैं ,
एक नाग भरोसे इस देश का , भला कहो कैसे होगा ?
जब रक्षक हीं भक्षक बन जाए , राम भरोसे सब होगा.
(2)
बहुत तेज तेरा एंटीना
बहुत तेज तेरा एंटीना, आसां कर दे सबका जीना।
काम न कोई तुझको भाय, नित दिन कैसे करे उपाय।
काम से पीछा छुटे कैसे, बिल्ली काटे दरवाजा जैसे।
नहीं समय पर तुम आते हो, सही समय पर आ जाते हो।
मालिक कहाँ शहर मिलते हैं, एंटीना सब नजर रखते हैं।
मालिक के मन जो भी भाते, एंटीना सब वोही बताते।
कौन फ़िल्म है कौन सा गाना, सेक्रेटरी को भी पहचाना।
ड्राईवर, गेटकीपर से सेटिंग, जाने किससे कैसी मीटिंग।
आज समय किस होटल में हैं, सब नजर में टोटल में हैं।
किस दिन मालिक बाहर जाता, एंटीना सब खबर बताता।
जब मालिक न ऑफिस होते, काम अधूरे पूरे होते।
मालिक को ना मालूम होता, कौन खिलाये कैसा गोता।
कि आफिस मालिक जब होते, तुम भी हम भी कब न होते?
तो तेरी जय हो मेरे बंधु, तारण हार हे आफिस सिंधू।
तेरी एंटीना की जय हो, अजय, अमर हो, ये अक्षय हो।
(३)
देशभक्त
हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई ,
या जैन या बौद्ध की कौम,
चलो बताऊँ सबसे बेहतर ,
देश भक्त है आखिर कौन।
जाति धर्म के नाम पे इनमें ,
कोई ना संघर्ष रचे ,
इनके मंदिर मुल्ला आते,
पंडा भी कोई कहाँ बचे।
टैक्स बढ़े कितना भी फिर भी,
कौम नहीं कतराती है ,
मदिरालय से मदिरा बिना,
मोल भाव के ले आती है।
एक चीज की अभिलाषा बस,
एक चीज के ये अनुरागी,
एक बोतल हीं प्यारी इनको,
त्यज्य अन्यथा हैं वैरागी।
नहीं कदापि इनको प्रियकर,
क्रांति आग जलाने में ,
इन्हें प्रियकर खुद हीं मरना,
खुद में आग लगाने में।
बस मदिरा में स्थित रहते,
ना कोई अनुचित कृत्य रचे,
दो तीन बोतल भाँग चढ़ा ली,
सड़कों पर फिर नृत्य रचे।
किडनी अपना गला गला कर,
नितदिन प्राण गवाँते है ,
विदित तुम्हें हो लीवर अपना,
देकर देश बचाते हैं।
शांति भाव से पीते रहते ,
मदिरा कौम के वासी सारे,
सबके साथ की बातें करते ,
बस बोतल के रासी प्यारे।
प्रतिक्षण क़ुरबानी देते है,
पर रहते हैं ये अति मौन ,
इस देश में देशभक्त बस ,
मदिरालय के वासी कौम।