Pashuo me mrugraj sinh hu aur machhliyo me ghadiyal books and stories free download online pdf in Hindi

पशुओं में मृगराज सिंह हूँ और मछलियों में घड़ियाल

गीता-विभूति योग


श्रीभगवानुवाच


"प्रह्लादश्चास्मि दैत्यानां कालः कलयतामहम्।


मृगाणां च मृगेन्द्रोऽहं वैनतेयश्च पक्षिणाम्।।"


मैं दैत्यों में प्रह्लाद और गणना करने वालों का समय हूँ तथा पशुओं में मृगराज सिंह और पक्षियों में मैं गरुड़ हूँ।

पवन: पवतामस्मि राम: शस्त्रभृतामहम्।


झषाणां मकरश्चास्मि स्रोतसामस्थि जाह्नवी।।

सर्गाणामादिरन्तश्च मध्यं चैवाहमर्जुन।

अध्यात्मविद्या विद्यानां वाद: प्रवदतामहम्।।


और मैं पवित्र करने वालों में वायु और शस्त्रधारियों में राम हूं तथा मछलियों में मगरमच्छ हूं और नदियों में श्री भागीरथी गंगा जाह्नवी हूं।

पशुओं मैं कृष्ण का मृगराज सिंह और मछलियों में घड़ियाल को चुनना कई सारे सवाल पैदा करता है , कृष्ण मृगराज सिंह को हीं चुनते है, अपनी विभूति को दर्शाने के लिए , पशुओं में हाथी हैं , डायनासोर हैं, बाघ है , चीता है , ऊंट है , घोडा है , गाय है , मृग है , कुत्ते हैं , खरगोश है , पशुओं की हज़ारों प्रजातिओं में कृष्ण का मृगराज सिंह को हीं चुनना सोचने वाली बात है . जब मछलियों में श्रेष्ठतम की बात आती है तो कृष्ण घड़ियाल चुनते है , व्हेल नहीं , डॉलफिन नहीं . अगर कृष्ण ने ये बात कही है तो निश्चित हीं रूप से ये महत्वपूर्ण बात है . आखिर क्या कहना चाहते है कृष्ण . जब पशुओं की बात हो रही है तो कृष्ण गाय को , घोड़े को , हाथी को , जलचर को , पक्षी को अलग श्रेणी में रख देते है .

ख्याल में लेने वाली बात ये है कि ये बात भगवान कृष्ण बोल रहें । ये वाक्य निश्चित ही महावाक्य है । निश्चित ही पूर्ण वाक्य है । परन्तु समझ आने में दुरूह । ये तो कहना अनुचित ही है कि कृष्ण जैसे व्यक्तित्व को डायनासोर या व्हेल के बारे में जानकारी नहीं होगी ।


जिन लोगो के सामने कृष्ण बात कर रहें है , उनके समय के ही उदाहरण देने होंगे जो उस समय के लोगो को ज्ञात हो । उस समय के लोगो को डायनासोर या व्हेल के बारे में जानकारी नहीं होगी इसीलिए कृष्ण ने उनका उदाहरण नहीं दिया ।


ध्यान देने योग्य बात ये है कि कृष्ण गाय को , घोड़े को , हाथी को , जलचर को , पक्षी को अलग श्रेणी में रख देते है . गाय भी पशु है पर उसमे पशुता नहीं है । वो ममतामयी है । हाथी शांत जानवर है इसलिए उसको अलग रखा गया है । घोडा उपयोगी है इसलिए उसको भी अलग रखा गया है । कृष्ण खूबसूरती का चुनाव नहीं करते इसलिए खरगोश का चुनाव नहीं करते ।वफादारी का चुनाव नहीं करते इसलिए कुत्ते को नहीं चुनते है।


जलचर और पक्षी अलग प्रजाति के जीव हैं।


असंख्य पशु है , सबकी अपनी अपनी विशेषताएं है।चपलता , उपयोगिता , मृदुता , चालाकी , वफादारी पर जब पशुता की बात हो रही है तो ताकत की बात हो रही है , हिंसा की बात हो रही है ,वर्चस्व की बात हो रही है।

सिंह को पशुओं का राजा कहा जाता है । इसीलिए सिंह को मृगराज सिंह के नाम से सम्बोषित करते हैं । मृगराज सिंह के सम्बोधन में मृग तो एक उदाहरण है। मृगराज सिंह मतलब पशुओं का राजा सिंह ।


घड़ियाल भी इतना ताकतवर होता है कि पानी मे हाथी तक पे भारी पड़ता है । घड़ियाल और हाथी की लड़ाई जग जाहिर है । पुरानी कथा है कि एक गज को तालाब में जब एक घड़ियाल ने पकड़ लिया तब गज कि प्रार्थना पर भगवान विष्णु को आना पड़ा बचाने के लिए । इतना ताकतवर होता है घड़ियाल ।


जब कृष्ण ये कहते हैं कि पशुओं में मृगराज सिंह और मछलियों में घड़ियाल हूँ तो जाहिर सी बात है , पशुता को चुनते है , ताकत तो चुनते है । उस ज़माने में पशुओं में मृगराज सिंह और मछलियों में घड़ियाल हैं सबसे ताकतवर हैं । इसीलिए उनका चुनाव करते हैं । जो सबसे ताकतवर है वहां भी भगवान का वास है , ये कहना चाहते हैं कृष्ण ।

महा कवि श्री रामधारी सिंह दिनकर ने भी क्या खूब लिखा है :

“क्षमा शोभती उस भुजंग को, जिसके पास गरल हो,


उसको क्या जो दंतहीन, विषरहित, विनीत, सरल हो.

तीन दिवस तक पंथ मांगते, रघुपति सिन्धु किनारे,

बैठे पढ़ते रहे छन्द, अनुनय के प्यारे-प्यारे.

उत्तर में जब एक नाद भी, उठा नहीं सागर से,

उठी अधीर धधक पौरुष की, आग राम के शर से.

सिन्धु देह धर त्राहि-त्राहि, करता आ गिरा शरण में,

चरण पूज दासता ग्रहण की, बँधा मूढ़ बन्धन में.

सच पूछो, तो शर में ही, बसती है दीप्ति विनय की,

सन्धि-वचन संपूज्य उसी का, जिसमें शक्ति विजय की.

सहनशीलता, क्षमा, दया को, तभी पूजता जग है.

बल का दर्प चमकता उसके, पीछे जब जगमग है.“

अर्थात केवल विनम्रता काफी नहीं है . विनम्र है अच्छी बात है पर ताकत होने के बाद विनम्रता अपनी अलग पहचान बनाती है . कृष्ण संत है , राजा है , गृहस्थ भी है और समाजिक भी . इसीलिए उनका चुनाव व्यावहारिकता की धरातल पर होता है न की कल्पना की ऊँची उड़ान .

एक बात और मृगराज सिंह और घड़ियाल कभी भी अपने बल का दुरूपयोग नहीं करते । सिंह और घड़ियाल तभी हिंसा करते हैं जब भूख लगती हैं । इनकी हिंसा न्यायसंगत हैं । अर्थात भगवान का वास वहां भी है जहाँ सर्वश्रेष्ठ ताकत का का न्यायसंगत उपयोग है । यही कारण है कि कृष्ण चीता या लोमड़ी का चुनाव नहीं करते है । चालाकी या धूर्तता का चुनाव नहीं करते है ।


अजय अमिताभ सुमन


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