अधूरी हवस - 14 Baalak lakhani द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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अधूरी हवस - 14

(14)

कहानी आगे बढ़ाते हैं, राज और आकाश 600km की सफर करके थके हारे सो जाते हैं,

*******

उधर मिताली को कुछ सूज ही नहीं रहा क्या करे राज के मिलन की वोह बावरी हो जा रही है, घर के काम निपटाने की जल्दी हे उसे,
घर के रेडियो पे गाना बज रहा है
"सजना हे मुजे सजना के लिए......."

जेसे उसके दिल की फर्माइश रेडियो वालो को पता चल चुकी हो, ग्यारह कब बजे और कब राज से बात हो, बार बार घड़ी की और देखे जा रही है, एक एक पल सदियों सा लगता है, जेसे घड़ी की सुई ग्यारह पर आती हे तुरन्त राज को कोल लगाती है,
(राज नींद मे ही कोल रिसीव करते हुए)

राज : हैलो.

मिताली : उठो कितने ग्यारह बज चुके हैं, इधर मे आपसे बात करने को मरे जा रही हू, और आप हे कि घोड़े बेच के सो रहे है.

राज : हा उठ रहा हू बाबा, अच्छा बताओ कब लेने को निकलू?

मिताली : आप फटक से रेडी हो जाए मे तो कब से रेडी हू, अच्छा क्या खाना हे आपको मे बनाकर साथ ले लुंगी.

राज : ओ हैलो ऎसा कुछ करना नहीं है, में इधर ही चाय नास्ता कर लेता हूं, हाँ खाना हम साथ मे खाएंगे किसी होटल में.

मिताली : बाहर का खाना खा के सेहत क्यू खराब करनी हे, आप रेडी हो जाए तब तक मे तो बना लुंगी, आप कहिये तो सही क्या क्या खाना हे आपको?

राज : कुछ नहीं बनाना हे तुम्हें तुम फोन रखों मे रेडी होने जाता एक घंटे मे तुम्हें लेने आता हू.

मिताली : पर सुनिए तो सही

राज : पर वर कुछ नहीं चलो रखो जल्दी.

मिताली : ठीक हे आइए जल्दी जल्दी.

राज रेडी होके मिताली के गाव उसे लेने के लिए निकल पड़ता है, उसे फोन करके बता दिया होता है, मे निकल चुका हू, मिताली उसे गाव के बस स्टॉप के पहेले ही रुक जाने को सूचित करती है, थोड़ी ही देर मे कार तय की गई जगह पर रुकती है, मिताली पहले से ही वहा मौजूद खडी थी साथ मे उसकी सहेली भी आई थी,

दूर से ही मिताली हस्ती हुई कर की ओर जल्दी कदम बढ़ाते आती रहती है, उसका गाव था शायद इसी लिए वर्ना मिताली को देखकर लग तो एसा रहा था वोह दोड़ कर आना चाहती थी पर मुमकिन नहीं था एसा लग रहा था आकाश कार चला रहा था राज बाजू की सीट से नीचे उतरता है, और पीछे वाला डोर खोल कर मिताली और उसकी सहेली को कार मे बैठने का इशारा कराता.

राज को देख कर मिताली की मुस्कान रुकी नहीं जा रही थी अंदर ही अंदर तो गले लगने के लिए मरें जा रही थी, फिरभी खुद को रोक नहीं पाई गाड़ी मे बैठते वक़्त राज के गाल को खिंचते हुवे गाड़ी मे बेठ गए दोनों,

मिताली अपनी सहेली कविता का परिचय दोनों से करवाती है और उसकी सहेली को राज ओर उसके दोस्त आकाश का भी राज ओर मिताली एक दूसरे को देखने मे ही खो गए उनको ये भी इल्म ना रहा के दो और लोग भी गाड़ी मे हे,

आकाश कहेता आप दोनों का अंखियों का मिलाप खत्म हुवा हो तो बताओं कार को कहा लेके जाना हे, दोनों का ध्यान टूटता हे और चारो हसने लगते हैं,

राज : यार अब तो यहा की राजकुमारी हमारे साथ हे तो सारथी वोह कहे उस तरफ रथ लेलो, ( फिरसे सब हसने लगते हैं)

मिताली : खाना खाने जाएंगे ना पहेले आकाश भैया?

आकाश : हा बहोत भूख लगी हे, इसने तो बिस्किट भी खाने नहीं दिया, ठीक से नहाने भी नहीं दिया,

राज : अरे सही हे यार दो मिनिट भी नहीं हुई और चुगली शुरू भी करदी

आकाश : जी सरकार ये राज्य की राजकुमारी हे तो जो शिकायतें हो वोह उसको ही तो सुनानी पड़ेगी ना
(फिर सब हसने लगते हैं)

मिताली : आप कार को अगले मोड़ से मोड़ देना फिर सीधे चलते रहिए बीस मिनिट मे रेस्टोरेंट आ जाएगा वहा रखिए,

आकाश : जो हुकुम राजकुमारी साहिबा.
(राज को देखते हुए)

मिताली : नींद अच्छे से पूरी हो गई आपकी.

राज : हाँ भी और नहीं भी.

मिताली : तो और सोना चाहिए ना दो तीन घंटे बाद मिलते

आकाश : ओह सही मे? अरे शुक्रिया आप का ग्यारह बजे तक भी आपने सोने दिया, आपका बस चलता ना तो आप सीधे होटल ही सूरज निकल ने से पहेले आ जाती मुजे तो एसा लगा, क्यू कविता जी सही कहा ना मेने?

कविता : हा आकाश जी ये बात तो आपने सही कहीं, सुबह 6am बजे को तो मुजे उठा दिया था कॉल करके वोह आ गए वोह आ गए हमे जाना हैं हमे जाना हैं,
( मिताली कविता को चुप रहने का इशारा करते हुवे)

मिताली : नहीं आकाश जी ये ऎसे ही मेरी टांग खींच रही है बाकी एसा कुछ नहीं है.

थोड़ी ही देर मे रेस्टोरेंट आ जाती है चारो खाली टेबल देख कर बेठ जाते हैं, राज और मिताली बगल मे बैठते हैं, टेबल के नीचे से दोनों ने एक दूसरे के हाथ थामे हुवे है, मिताली खाने का औडर करती है,

आकाश : क्या बात है सभी राज की पसंद का, हमे तो पूछ लिया होता.

मिताली : माफ करना मे भूल ही गई आप बताये आपके लिए कौनसा औडर करू

आकाश : नहीं नहीं मे तो मज़ाक कर रहा हूं आप ने सही औडर किया है.

थोड़ी ही देर मे खाना आ जाता है राज ओर मिताली एक प्लेट मे खाना खाते हैं, मिताली खुद अपने हाथो से राज को खाना खिलाती है, आकाश और कविता उन दोनों को ही देख रहे हैं बार बार केसे प्यार से खा रहे हैं दोनों, एसा सीन उन दोनों ने फ़िल्मों में ही देखा था आज सामने देख भी लिया उन्होंने.

खाना खाने के बाद थोड़ा आगे मंदिर होता है वाह सब जाते हैं दर्शन कर के आकाश कविता को इशारा कर देता हे दोनों को अकेला छोड़ कर हम कहीं और जाके बेठे. कविता भी समझ गई,

आकाश : राज हम थोड़ा इधर बेठे है आप लोगों को जाना हो तो जाके आइए मे तो वोह पेड़ के नीचे सोने जा रहा हूं खाना ज्यादा खा लिया और तुम ने नींद भी तो पूरी नहीं होने दी,

राज : ठीक है कविता तुम तो चलो.

कविता नहीं मे भी यही पर हू मेरे भी पाव दर्द करने लगे हैं तो थोड़ी देर बेठ जाती हू.

मिताली : हा सही है (कविता के सामने आंख मारते हुवे)

राज : अरे गज़ब हो तुम क्या उनके साथ हाँ मे हाँ मिलाए जा रही हो

मिताली : मेरे बुद्ध समझो थोड़ा वोह दोनों समाज गए हैं पर आप नहीं (शरारत भरी निगाह से देखते हुवे) ठीक है हम वोह तालाब की ओर जा रहे हैं आप जाग जाए या बोर होने लगे तो वहा आ जाना

कविता : हा ठीक है.

मिताली : आकाश जी मेरी सहेली का खयाल रखना वोह जल्दी बोर हो जाती है, और ज्यादा तंग भी मत करना,

आकाश : नहीं बोर होने दूँगा पक्का वाला प्रॉमिस, मेरे भाई को भी आप ज्यादा मत सताना भोला हे वोह तो नादां है.

मिताली : हा मुजे पता हें कितने नादा हे.

सम्भाल कर जाना तालाब की ओर दोनों,
दोनों एक दूसरे का हाथ थामे चले जाते हैं बाते करते करते, तालाब पे अच्छी जगह देख कर बेठ जाते हैं, मिताली ने राज का हाथ पकडा होता है और राज के कंधे पर सर रख कर राज बाते किए जाता है और मिताली उसकी बातों मे हामी भरते कब सो जाती है, उसको पता ही नहीं चलाता, राज की नजर मिताली पर पड़ती है तो मन ही मन कहता है, लो मे कब से बके जा रहा हू ओर ये तो सो गई है, बहोत सुकून से सो रही हो जेसे सदियों की नींद बाकी हो ओर आज सोने को मिला हो, कभी हवा से उड़ती लटे उसके गालों को चूमती तो उसकी उँगलियों से हटा देता था.

******

और उधर कविता और आकाश बाते करते हें, इधर उधर की फिर राज ओर मिताली के बारे में,

आकाश : कविता जी आपको नहीं लगता ऊपर वाला नाइंसाफी कर रहा है?

कविता : हा उनको आज देख कर तो मुजे भी अब एसा लगता है, में तो मिताली को बचपन से जानती हू, जब से राज से मिलके वहा से आई है पूरी बदल गई है मंगनी के पहेले जेसे खुश थी वैसी हो गई है,

आकाश : वोह उसकी मंगनी से खुश नहीं है?

कविता : हा नहीं है उसके परिवार वालो ने सिर्फ अमीरी देख कर तय कर लिया है, वेसे तो लड़का हें बड़ा हेंडसम, पर मिताली को नहीं पसंद.

कविता आकाश को सारे हालातों से अवगत करा देती है,

उधर राज ओर मिताली एक दूसरे के साथ इसे खोए हुए हैं कि उनको वक़्त का पता ही नहीं है, क्या वक़्त हुए जा रहा है घंटों से बिना बात किए एक दूसरे का हाथ थामे कंधों पर सर रख कर सोये हुवे होते हैं
आकाश और कविता दोनों उनको खोजने निकलते हैं और उनको कहते हैं बहोत देर हो चुकी है हमे अब जाना चाहिए, तब जाके उनको इल्म होता है वक़्त का, सब घर की और निकल पड़ते हैं, राज ओर मिताली पीछे वाली सीट पर साथ बेठे हुवे है, जेसे जेसे गाव नजदीक आ रहा था मिताली के हाथो की पकड़ और आँखे आंसू से भरे जा रही होती है जेसे कहे रही हो मुजे घर नहीं जाना, आपके साथ आना हें, ये हाथ आप कभी मत छोड़ना, राज भी जेसे पूरी बाते आँखों से ही समझ जाता है, जेसे कहे रहा हो मे हमेशा तुम्हारे साथ रहूंगा, मिताली का गाव आ जाता है, दोनों के अलग होने का वक़्त अपने अपने घर जाने का वक़्त.

राज : तुम्हारा गाव आ गया.

मिताली : सर हिलाकर माना करती है, (आँखों मे आंसू हे दोनों हाथो से दोनों हाथो से राज की बाजू थामी हुई है, छोड़ ने का नाम ही नहीं लेती, राज उसके माथे को चुमते हुवे कहेता हे मे जल्द ही वापिस मिलने आऊंगा
मिताली : नहीं आप मत जाइए, मुजे भी साथ ले चले, मे नही रहे सकती आपके बिना आप समझ नहीं सकते,
(मिताली के होठों पर होठ रख देता है, और मिताली को चुप करा देता है)

उसने होठों पे होंठ रख कर मुस्कुरा के कहा

यहि तम्मना थी या और भी कोई ख़्वाहिश थी दिल मे

तमन्ना तो ख़्वाहिशो का सैलाब बने बेठि हे, आप हे कि मझधार पे छोड़ कर निकल जा रहे हैं

वापिस मिलने का वादा करके मिताली को घर भेजा वोह भी रोते हुवे ही गई,

कार मे सन्नाटा छा जाता है कार होटल की और बढ़े जा रही होती है राज आँखे बँध करके मिलती से जुदा होने के गम था शायद
अचानक से धड़ाम से बड़ी जोर की आवाज आती है......

क्रमशः....

आगे पढ़ेंगे क्या हुवा राज ओर आकाश के साथ? , राज ओर मिताली की ए मुलाकात आखिरी हो जाएगी क्या?