चली है बारात Dr Narendra Shukl द्वारा हास्य कथाएं में हिंदी पीडीएफ

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चली है बारात

27 नवंबर को विवाह समारोह में शामिल होने के लिये मैं चार स्थानों से आमंत्रित था । शादियां क्रमश ; ‘घमासान भवन , ‘संग्राम भवन , ‘मेलमिलाप भवन , तथा ‘ दिल्लगी भवन ,‘ में थीं । भवनों के नाम पढ़कर , मैं मंद - मंद मुस्कराया - पटठों ने स्थान भी चुन-चुन कर रखे हैं । मज़े की बात यह थी कि ‘संग्राम भवन‘ को छोड़कर सभी भवन एक ही सैक्टर तथा एक ही पंक्ति में थे । ‘संग्राम भवन‘ शहर से दूर , पास लगते जंगल में था । मैंने श्रीमती जी से कहा - सुनती हो , इस बार 27 नवंबर की चार शादियां हैं और हैं भी करीबी लोगों की । क्या किया जाये ?

श्रीमती जी अभी - अभी ब्यूटी पार्लर से आईं थी । बोलीं - इसमें इतना सोचने की क्या बात है ? सभी जगह चलेंगे । तुम्हें याद नहीं , इस बार मैंने राशन भी कम मंगवाया है । और यह देखो , अपने साथ लाये , पांच - सात लिफाफे खोलते हुये बोलीं - मैंने पूरा प्रबंध कर लिया है । यह हरी साड़ी मैं नीरज़ की शादी पर पहनूंगी । यह पिंक , राधा की रिबन कटाई पर और यह मज़ैडा , पिंकी के फेरों पर । यह देखो , मैचिंग सैंडल व बैंगल्स भी लाई हूं । वे एक के बाद एक साड़ियां , सैंडिल व आर्टिफिशियल ज्वैलरी दिखाने लगीं । मैंने माथा पीट लिया - घर की सारी जमा- पूंजी लुटा आईं । अरे , इतनी परचेजिंग तो मैंने अपनी शादी में भी नहीं की थी । श्रीमती जी मुंह बनाते हुये बोलीं - तभी तो मेरी सहेलियां कह रही थीं कि तुम्हारा पति फकीर है । शर्ट - कमीज़ में आया है ।

मैं बोला - भोला - भाला नहीं कहा ?

वे मुस्कराईं - भोला - भाला नहीं ‘भोंदू‘ कहा था । यू नाटी । तभी तो मैंने तुमसे शादी की थी । तुम में यह गुण न होता तो वहां से बैरंग न लौटा देती ।

वे अपनी पहुंच से बाहर , एक बड़ा सा अटैची घसीटती हुई बोलीं - चलो ।

मैं खुश हुआ - मायके जा रही हो मोना ?

वे बोलीं - शादी में चल रही हूं ।

मैंने पूछा - पर , ये अटैची ?

वे बोलीं - भूल गये । चार - चार शादियां अटैंड करनी हैं । कपड़े और मेकअप का सामान है ।

मैंने हथियार डालते हुये स्कूटर स्टार्ट कर लिया ।

स्थानीय सरकारी स्कूल और सरकारी अस्पताल के बिल्कुल सामने स्थित , ‘घमासान भवन ‘ के गेट पर लड़कियां रिबन बांधे , दूल्हे का इंततार कर रही थीं । इससे पहले कि मैं वहां तक पहुंचता , सामने चैक से बैंड की आवाज़ सुनाई दी । मेरे मित्र राधेश्याम ,बारात के स्वागत के लिये , भवन के गेट पर खड़े थे । वहां पहुचकर मैंने कहा - राधे , लो बारात दरवाजे़ तक पहुंच गई ।

उन्होंने गले में अटकी सांस छोड़ते हुये कहा - हां, बस शादी ठीक-ठाक निपट जाये ।

मैं हैरान हुआ - तुम्हें शक है क्या ?

वे बोले - यह देखो , मैंने टी. वी . , फ्रिज़ और यह सफेद रंग की मारुति पहले ही ले रखी है । आगे भगवान देखेगा ।

मैंने पूछा - लड़का ‘आई ए एस‘ है क्या ? अगर आई ए एस‘ है, तो भी क्या ? दहेज़ तो अक्सर लोग विदाई के अवसर पर या शादी के चार- छ महीनों के बाद देते हैं । तुम पहले क्यों दे रहे हो ?

उन्होंने कोई उत्तर नहीं दिया । बारात बिल्कुल नज़दीक आ गई थी । बैड की टयून पर मस्त बाराती नाच रहे थै और दूल्हे मियां बुदबुदा रहे थे - मैं हूं डान । मैं हूं डान ।

राधेश्याम डरते हुये बोले - देखा । अगर पहले नहीं दिया तो बाद में जान भी जा सकती है । मैं निशब्द हो गया । सोचा , जब तक यहां आगे की कार्यवाही हो मुझे ‘मेलमिलाप भवन‘ जाकर नीरज़ की शादी भी निपटा लेनी चाहिये ।

वहां जाकर देखा , अज़ब ही नज़ारा था । दूल्हा - दुल्हन जयमाला पहने स्टेज़ पर इस प्रकार मुंह लटकाये बैठे थे जैसे दोनों की सपनों की दुनिया लुट गई हो । बैकग्राउंड गीत बज रहा था - इक दिल के टुकड़े हजार हुये । कोई यहां गिरा । कोई वहां गिरा ।

मैं अचंभे पड़ गया । क्या किया जाये ? मैंने साथ खड़े बाबू से पूछा - साहब , शादी के अवसर पर यहां क्या हो रहा है ?

वे बोले - प्यार का रोग है हुज़ूर । अच्छों - अच्छों को फ़नाह कर जाता है । लड़का - लड़की किसी और को चाहते हैं । मां - बाप ने शादी कहीं और तय कर दी है । अब ये दोनों अपने प्रेम का मातम मना रहे हैं ।

मैंने वहां अधिक देर ठहरना उचित न समझा और पिंकी की शादी की ओर चल पड़ा ।

‘ दिल्लगी भवन‘‘ में पुलिस आई हुई थी । वहां पहुंचकर मैंने एक साहब से पूछा - भाई साहब , क्या दूल्हा फ्रार्ड हैं जो पुलिस इतनी छान-बीन कर रही है ।

वे टिक्की खाते हुये बोले - कुछ नहीं साहब । उपरली मंज़िल और निचली मंज़िल में हो रही शादी के दूल्हे आपस में बदल गये थे । लेकिन घबराइये नहीं । अब सब ठीक हो गया है ।

मैं भवन में जाकर , सदा की तरह सबसे पीछे , खाली पड़ी सीट पर बैठ गया । लड़के के संबंधी आर्केस्ट्रा की तर्ज़ पर , शाराब की बोतले उठ़ाये गा रहे थे - सब नूं इक मौका दियांगे । इक सोने दा कोका दियांगे ।

मैंने सोचा - ये लोग 500 लोगों को एक- एक सोने का ‘कोका ‘ देने का दावा कर रहे हैं । जरुर कोई लुटेरों की टोली है । जो लूट से पहले शराब पिलाकर लोगों को मस्त कर देना चाहती है ।

उपर वाली मंज़िल से गीत की आवाज़ आ रही थी - सानूं कटिया वांग कसाइयां । साडे दिल ते . . साडे दिल ते छुरियां चलाइयां ।

गीत उपर बज रहा था । असर नीचे हो रहा था । मुझे लगा , जयमाला की कुर्सी पर जमा लड़का , सहमा - सा मुर्गे की तरह बुदबुदा रहा है - हम आपके दिल में रहते हैं । पिंकी बचपन से ही तेज़-तर्रार थी । मुझे आभास हुआ जैसे वह मंद - मंद मुस्कराते हुये कह रही है - हम दिल दे चुके सनम ।

मेरे पेट में चूहों ने हमला कर दिया था । लिहाज़ा , उदघोषक की उदघेषणा का इंतज़ार न करते हुये हम पति - पत्नी खाने की ओर इस प्रकार भागे जैसे कई दिन की भूखी बिल्ली चूहे की ओर भागती है ।

खाना खाकर बाहर आये ही थे कि सामने से एक और बारात बाती हुई दिखी । लेकिन , इस बार , दूल्हा 50 साल का दंत- विहीन युवक था ।

श्रीमती जी ने पूछा - सुनो जी , इन बूढ़े मियंा से कौन शादी करेगा ?

मैंने हंसते हुये कहा - पिंकी के कमरे के साथ , जो 50 साल की हसीना बैठी हुई थी । वही इनकी लैला है ।

श्रीमती जी को यकीन नहीं हुआ - वही । जिसे मैंने सहारा देकर उठाया था !

मैंने कहा - हां हां वही ।

श्रीमती जी हंसने लगीं - इस उम्र में शादी कर रहे हैं तो बच्चे कब होगे !

मैंने कहा - अगले जन्म में । और फिर सात जन्मों तक यह प्रोसेस चलता रहेगा ।

सामने सड़क पर एक और बारात चली आ रही थी ।

श्रीमती जी बोलीं - आज़ तो बहुत शादियां हैं । लगता है आज़ कोई जवान कुंवारा नहीं बचेगा ।

मैं मुस्कराया - तुम जवानों की छोड़ो । इस फैशन व परोसी अश्लीलता की बाढ़ में पंद्रह - सोलह वर्ष का बच्चा भी अगर कुंवारा रह जाये तो मैं अपनी मूंछें मूंड लूंगा ।

उन्हें मेरी मूंछ से नफ़रत थी । सिर झटक कर बोलीं - हज़ारों बार हारते हो । पर , ज़नाब की मूंछ ज्यों की त्यों है । इस दफ़ा लगता है मुझे ही कुछ करना पड़ेगा ।

रात हो रही थी । संग्राम भवन जाने का समय अब नहीं था ।

- डा. नरेंद्र शुक्ल