"पापा, पर्स होने का तो साफ़ मतलब है कि वो चुड़ैल नहीं थी । " संकेत पापा से मुखातिब था ।
"लगता तो ऐसा ही है, ऐसा भी हो सकता है कि चुड़ैल ही हो और उसने मर्ज़ी से पर्स छोड़ा हो या लड़की हो और निकलते टाइम वो जल्दबाज़ी में पर्स भूल गई हो ।" पापा बोले ।
"कुछ समझ नहीं आ रहीं आपकी बातें पापा । या तो वो लड़की है या चुड़ैल । दोनों तो नहीं हो सकती न ।" संकेत बोला ।
"तेरा ज़वाब तेरे पास ही है । पर्स खोल तुझे तेरे कुछ ज़वाब तो मिल जायेंगे ।" पापा बोले ।
संकेत ने काँपते हाथों से पर्स की चेन खोली । अधजले उस पर्स में एक जली हुई आई डी थी जिस पर कुछ साफ़ साफ़ दिख नहीं रहा था । बस महाजन नाम का सरनेम समझ आ रहा था । किसी ऑफिस की आई डी महसूस हो रही थी । संकेत ने फिर से पर्स में हाथ डाला तो एक आई लाइनर पकड़ में आया । लिप्सटिक, बिस्किट के पैकेट, एक सेनिटरी नैपकिन जो इस्तेमाल भी नहीं हुआ था, कुछ अधजले कागज़ और 4 अंगूठियां । अचानक संकेत को ध्यान आया कि लड़की की उंगलियों से अंगूठियां गायब थीं ।
"पापा कागजों से तो कुछ समझ नहीं आ रहा पर चुड़ैल सेनिटरी नैपकिन तो इस्तेमाल नहीं कर सकती ........वो लड़की थी पापा ।" संकेत खड़े खड़े उछल पड़ा था ।
"चल पहला सवाल तो हल हो गया कि वो लड़की थी । नाम, पता, हालात कुछ बताया था मिस महाजन ने?" पापा बोले ।
"पापा, कुछ बात हो ही कहाँ पाई, वो बैठी और एक्सीडेंट हो गया ।" संकेत बोला ।
"हम्म ! तो फिर से हम जीरो लैंड पर हैं ।" चल ज़रा गाडी़ का मुआयना कर के आते हैं ।" पापा ऐसे आगे बढे जैसे कुछ तो पकड़ में है उनके । संकेत पीछे पीछे चलता जा रहा था ।
"फ्रंट पैसेंजर सीट और गेट का मुआयना कर ज़रा ।" पापा ने संकेत को आगे कर दिया ।
"अबे अब पीछा छोड़ दे उस मनहूस गाडी़ का ।" सुशान्त ठीक पीछे ही खड़ा था । "अंकल आप इस कबाड़ को या तो वर्कशॉप में दे दो या जन्क में । घर में अपशगुनी चीज़ें रखनी नहीं चाहिए ।" सुशान्त पापा से मुखातिब था ।
"हां, जल्दी ही हटवा देंगे । संकेत जाओ सुशान्त को ड्राइंग रूम में बैठाओ मैं अभी आता हूँ ।" इतना बोल पापा हाथ में पकडे उस रहस्यमय पर्स को लेकर अपने बेडरूम की तरफ बढ़ लिए ।
"अरे आज तो सोनम भी आई है..... तूने बताया क्यों नहीं ।" संकेत सुशान्त से बोला और फिर सोनम की तरफ मुड़ गया । "कैसी हो सोनम? एग्जाम कैसा हुआ?"
"एग्जाम नहीं था इंटरव्यू था ।" तुनकती आवाज़ में सोनम बोली ।
"अरे हां! सोनम तो अब बड़ी हो गई है, एग्जाम नहीं इंटरव्यू देती है ।" संकेत सोनम को चिढा रहा था । बचपन से जानते थे संकेत और सोनम एक दूसरे को ।
"भैया देखो न ! समझा लो अपने दोस्त को, नहीं तो भूल जाउंगी कि ये हॉस्पिटल से आया है ।" जीभ निकालते हुए सोनम बोली ।
"अरे अरे.... ये तुम लोग लड़ते क्यों रहते हो ? वैसे भी एक दूसरे को झेलने की आदत भी डाल लो ।" सुशान्त मुस्कुराते हुए बोला ।
"हैं.....?" संकेत के मुंह से बस इतना ही निकला ।
"एक्चुअली, सोनम इंटरव्यू की तैयारी के चलते तुझे हॉस्पिटल में मिलने आ नहीं पाई तो मैं और ये दोनों चाह रहे थे कि कुछ दिन ये तेरे घर पर रुक कर तेरी देख रेख कर ले और अंकल आंटी की मदद ।" सुशान्त बोला ।
"तो तू क्या करेगा उस भूत बंगले में अकेले, तू भी यहीं आजा ।" संकेत बोला । "अरे यार चाय शाय तो भूल ही गया । रुक अभी आया ।" इतना बोल संकेत किचन की तरफ बढ़ गया ।
"देख अच्छे से रहना । अपने घर जैसे ज्यादा नाज़ नखरे मत करना । जब मैं वापस आऊं तो शिकायत नहीं मिलनी चाहिये तेरी ।" सुशान्त सोनम को पिता की तरह समझा रहा था ।
हाथ में ट्रे और उसपर पानी के 3 गिलास के साथ मिठाई का वही 20 साल पुराना डब्बा लेकर संकेत कमरे में था ," वापस आऊं! कहाँ जा रहा तू?"
"अबे ऑफिस के काम से मलेशिया जाना है ।" सुशान्त बोला ।
"अच्छा इसीलिए सोनम मैडम को यहाँ छोड़कर जा रहा है.....ले मिठाई खा ।" मिठाई का डब्बा आगे करता संकेत बोला । "वापस कब आएगा?"
"15 दिन लगेंगे.... और ये बता साले कंजूस कब फेकोंगे ये हङप्पा की खुदाई से निकला डब्बा ।" सुशान्त बोला ।
"चल भाग, ऐतिहासिक अमानत है हमारी ये ।" संकेत बोला ।
कुछ देर की बातों के बाद सुशान्त सोनम को छोड़कर निकल गया । अब कमरे में सोनम और संकेत अकेले थे । दोनों बस एक दूसरे को देखने में लगे थे ।
सन्नाटे को तोड़ने का काम माँ की आवाज़ ने किया । "अरे सोनम बिटिया, तुम कब आई ?"
"माँ, सुशान्त भी आया था, उस अब्रॉड जाना था 15 दिन के लिये तो अभी 15 दिन सोनम हमारे साथ ही रहेगी ।" संकेत माँ से बोला ।
"ये तो बड़ी अच्छी बात है, मुझे भी कोई बात करने वाला मिलेगा । तुझे प्रॉब्लम न हो तो तेरे बगल के कमरे में ठहरा दूँ इसे ।" माँ बोली ।
"नहीं, मुझे क्या प्रॉब्लम होगी । ठहरा दो ।" संकेत ने कंधे हिलाते हुए बोला ।
इतने में पापा की ज़ोरदार आवाज़ आई,"संकेत अंदर आ.....।"
PTO