चुड़ैल वाला मोड़ - 11 VIKAS BHANTI द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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चुड़ैल वाला मोड़ - 11

पापा से बातें करते हुए रात कब गुज़र गई पता ही नहीं चला । अगली सुबह उठा तो देखा एक लिफाफा ड्राइंग रूम में कांच की उस सेण्टर टेबल के बीचों बीच रखा हुआ था । सलीके से चिपकाया हुआ वो लिफाफा किसी चिट्ठी सा लग रहा था ।

संकेत ने माँ को आवाज़ दी,"माँ ये चिट्ठी किसकी आई है ?"

"पता नहीं बेटा खोल के देख ले ।" माँ ने किचेन से ही आवाज़ लगा दी ।

पापा कमरे से निकल कर संकेत के पास आ गए । अब तो हर पल लगा करता था कि कब कौन सी घटना घट जाए । संकेत ने लरजते हाथों से लिफाफे को खोला ।

लाल रंग की स्याही या खून से लिखा हुआ एक सन्देश जो काँपते से हाथों से लिखा गया था,"मैं तुम्हारे बहुत करीब हूँ ।"

संकेत भीतर तक हिल गया तभी सोनम की चीख आई । संकेत और पापा उस ओर भागे तो सिर्फ टॉवल ओढ़े भीगी हुई सोनम बाथरूम के दरवाज़े पर खड़ी डर से काँप रही थी ।

संकेत ने तुरंत उसे पहनने को ओवर कोट दिया और वो बिना कुछ सोचे समझे संकेत से लिपट गई और चिल्लाने लगी कि "बाथरूम में कोई है.... बाथरूम में कोई है.....उसने हाथ रखा मेरे कंधे पर......"

सोनम की छुअन से अजीब सा एहसास जाग गया था संकेत के मन में । उसने सोनम को धीरे से खुद से दूर किया उसके सर पर हाथ रखा और माँ को आवाज़ दे दी ।

माँ आई और सब जानने के बाद बोली,"संकेत एक काम कर, हम इस घर में नहीं रहेंगे । किसी भूत प्रेत का साया है इस घर पर। भले किराये पर ढूंढ पर मुझे इस घर में नहीं रहना ।"

अब वो माँ को कैसे समझाता कि साया घर पर नहीं बल्कि उस पर है । डरा हुआ तो हर कोई था पर कोई भी इस डर को स्वीकार नहीं कर पा रहा था ।

नहा धोकर तैयार होकर संकेत ऑफिस चला गया । पर ऑफिस में भी वो बस घर में होने वाली अजीब घटनाओं के बारे में सोचता रहा ।

"वाश्नेय जी, भूत प्रेत बदला लेते हैं क्या?" संकेत ने बगल की सीट पर बैठने वाले वाश्नेय जी से सवाल किया ।

"क्यों भैआ, कउनो भूत चुड़ैल को छेड़ दिए हैं का ? हे हे हे...... वैसे सुने तो हैं अगर उनके आराम मा खलल डाल दिओ तो नाराज़ हुई जाती है और बहुतै डैंजरस भी ।"

शाम को थक कर घर आया तो पता चला माँ को तेज़ बुखार है और पापा दोपहर से बाहर हैं । कमरे के बाहर से माँ को सोता देख संकेत ड्राइंग रूम में चला आया । माँ के सिरहाने रखा पानी का कटोरा और उसमे पड़ा कपडा भी संकेत ने देख लिया था । ड्राइंग रूम में बैठे पांच मिनट ही बीते थे कि सोनम संकेत के लिए चाय बना लाई । संकेत खिंचा सा जा रहा था सोनम की तरफ ।

डोर बेल बजी और सोनम दरवाजे की तरफ लपक ली । हर एक ज़िम्मेदारी को बड़ी ख़ुशी ख़ुशी निभाती थी सोनम । दरवाज़ा खुला तो पापा थे । हाथ में एक पीले रंग का कपडे का थैला लिए ।

"कहाँ गए थे पापा?" मैंने आते ही सवाल कर दिया ।

"कहीं नहीं बेटा, बस हड्डियाँ कुछ वर्जिश मांग रहीं थीं तो कुछ दोस्तों से मिलने चला गया था । तुम बताओ कैसा रहा ऑफिस आज?" पापा बोले ।

"कुछ ख़ास नहीं , अरे माँ को फीवर आ गया है । सोनम ने ठन्डे पानी की पट्टियाँ भी रखी हैं ।" संकेत सोनम को देखते हुए बोला ।

"तुमको कैसे पता चला?" सोनम बिना एक पल की देरी किये बोली ।

"सिरहाने रखा पानी का बर्तन पीने के लिए तो रखा नहीं होगा ! वैसे थैंक यू सो मच सोनम ।" संकेत ने सोनम की आँखों में झाँकते हुए बोला और सोनम ने नज़रें नीची कर लीं ।

"अरे मैं भी बैठा हूँ यहाँ कोई मुझसे भी बात कर लो ।" पापा अचानक बोल उठे और हंसी की एक फुहार छूट पड़ी ।

इस कठिन वक़्त में यही सब पल थे जो सबको हिम्मत दे रहे थे नहीं तो अकेला संकेत फिर टूट गया होता । डिनर और वाक के बाद संकेत अपने कमरे में आ गया । माँ का बुखार भी अब उतर गया था ।

अकेले कमरे में लेटे हुए आज संकेत को रेनू की याद आने लगी थी । उसका वो मासूम सा चेहरा आँखों के आगे रह रह कर तैर रहा था । वो साथ खाये हुए डोसे, देखी हुई फिल्मे, घूमी हुई जगहें सब घूम रहा था आज संकेत के मन में ।

अक्सर बोला करती थी रेनू कि संकेत के बिना लाइफ को इमैजिन भी नहीं कर सकती पर आज संकेत को उसके बिना न सिर्फ जीना पड़ रहा था बल्कि खुश भी रहना पड़ रहा था ।

PTO