ऋषभ किसी गुफामे खडा था। चारो ओर अंधेरा छाया हुआ था। कहा जाए कुछ पता नही, मगर सभी ओर से आवाज टकराकर उसके कानो मे जोर जोरसे सुनाई दे रही थी। ऋषभ ऋषभ..., साधुजी उठीये। वह ये आवाज सह नही पाया और दर्दके मारे उछल पडा। और क्या देखता है ?
वह पलंग पर पडा हुआ है और चारो ओर उसके शिष्य, वीलाश और वृदाका परीवार उसे देखे जा रहा है। सबके चहेरे पर चीन्ता छाई हुई है। तो किसी के मन मे सवाल, की गुरुजी को चक्कर कैसे आ गए और क्यू ?
ऋषभको होशमे आते देखकर वीलाश बोला, गुरुजी को होश आ गया है। अब आप सब बाहीर जाईए। गुरुदेव थोडी देरमे आएगे। ( और सब बाहर चले गए)
वीलाश- ऋषभ ये सब क्या हो रहा है ? ये वही लडकी तो नही, पायल वाली ? और तेरा नाम मीत है उसे कैसे पता ?
ऋषभ- पता नही, मैने भी आज ही उसका चहेरा देखा है। और ये वही लडकी है मंदीर वाली। मगर ये समझ नही आया, वह बालोका बंध उसके पास कैसे आया ?
वीलाश- वही बंध जो तुने पांखीको दीया था।
ऋषभ- हा।
वीलाश- हो सकता है, उसने भी एसा कही से खरीदा हो !
ऋषभ- नही हो सकता। क्योकि ये बंध हमारे आश्रमकी वोर्डनका खानदानी बंद है। और पीढीयो से वह एक-दुसरे को देते आये है। मगर वोर्डनने शादी नही की इसलीए उन्होने मुझे दे दीया था। मेरी बिवी के लिए। जिसे मैंने पांखीको दीया था।
वीलाश- अबतो ये उसी लड़की से पुछना पड़ेगा की, वह बंध उसके पास कैसे आया।
ऋषभ- ठिक है, बातों-बातों में ये भी पता लगा लेंगे। चलो अब बहार चलते हैं। सब हमारा इंतज़ार कर रहे होंगे।
बहार नीकलते ही वीलाश बोला हवनकुंड सुलगावो। अब पुजा होगी।
तरु- मगर गुरुजी को हुआ क्या था ?
वीलाश- लगातार उपवास के कारण गुरूजी को चक्कर आगए थे, मगर अब सब ठिक है। चलो सब पुजा के लिए बैठो।
फिर सब मंत्रोच्चार हुए और काफी ढौग के बाद ऋषभने वृदासे पुछा, बताओ तुम्हारे साथ क्या हो रहा है ?
वृदा- मुझे आपने दवाई दी थी उससे पहले एक डरावना सपना रोज आता था। जो इस प्रकार होता था।
सपनेमें मैं एक गाढ वनमें खड़ी हु। मेने काफी भरावदार ओर किंमती कपड़े पहन रखे थै। मगर मैं काफी डरी हुई थी। माथे पर पसीना आ रहा था। क्योंकि में एक भयानक वनमें अकेली थी। शायद अपने साथीयो से अलग हो गई थी। सभी ओर से जंगली जानवरों की आवाजें मुझे औरभी भयभीत कर रही थी।
तभी मेरे कानों में एक जोरदार आवाज पड़ी। वह पक्का किसी शेर की थी। और आवाज से पता चल रहा था की, वह कहीं आसपास है। मेरे पैर भागने को तैयार खड़े थे मगर किस ओर भागु, ये समझ मे नहीं आ रहा था।
तभी मेरे पीछे की ओर कुछ आवाज सुनाई दी। मैं पीछे मुड़ी और क्या दैखती हु ? एक आदीवासी इन्सान मेरे सामने तीर और कमान लिए खड़ा है। और उसका निशाना मैं ही थी। मैं कुछ समझु उससे पहले वो मुझ पर तीर चला देता है। और मैं डरके मारे चीखकर हर बार उठ जाती थी।
ऋषभ- अच्छा तो ये बात है, तो फिर मेरी दवाईके बाद क्या फर्क पडा ?
वृदा- आपकी दवाई के बाद ही तो, मुझे असल में सपने की सच्चाई समझ आई। असलमें ये कोई सपना नहीं था। बल्की मेरे पीछले जन्म की यादें थी।
और ये सुनते ही वहां बैठा हरेक इंसान चौक पड़ा। तरुतो बोल पड़ी, बेटा ये क्या बोल रही हो ?
तभी ऋषभने तरुको रोका और कहने लगा। उसे बोलने दो। फिर वृदाकी ओर देखकर बोला- बताओ आगे की क्या कहानी है ?
वृंदा अभी आगे बोलने ही जा रही थी की घर में पड़े दोनों टेलीफोन एकसाथ बज उठे। उसकी आवाज सारे घर में गुंज उठी और सबका ध्यान उसी ओर हो लिया।
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जोधपुर, समय दोपहरका हो रहा है। रजवाडी आलीशान महल किसी दुल्हन की तरह सजा हुआ है। क्यो न हो, आखीर दुल्हनकी शादी हो रही हो तो महल को भी तो दुल्हनकी तरह ही सजाना पड़ेगा न।
उसी महल के एक आलीशान होलमे राजभा और राजवीरभा साथ में खड़े हैं। वैसे तो पुरा होल ही लोगों से भरा हुआ है। इसकी सजावट भी देखते ही बनती थी। सारे शो-पीस जो इस होल रखें गए हैं। वह सारे के सारे एन्टीक और किंमती है। यह राजभाके मीत्रकी हैसीयत दिखाती है। सारी दीवारो, खंभे पर राजस्थानी कारीगरी की गई है। ऊपर की ओर देखे तो ये क्या ? छत है ही नहीं। सिर्फ खुला आसमान उपर से तारे टीमटीमा रहे हैं, वो अलग। ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो, खुले आसमान के तले खाट लगा कर सो रहे हो। लेकिन खिड़की बता रही थी, भैया धोका खा रहे हो। अभी तो अच्छा खासा दिनका समय है। अभी-अभी ही तो दोपहर का भोजन किए हों, भुल गए का ?
फिर गौरसे देखने पर पता चला। ये नायाब कलाकारों की रंगोसे बनाई हुई कृती है। जो हमें सोचने पर मजबुर कर देती है की, साला सचमे दिन है की रात।
राजभा और राजवीरभा भी यही देख रहे थे और हर किसी की तरह तारीफ किए जा रहे थै। तभी बगल मे पड़े टेबल पर बैठे महेमानो की बात कानों में पड़ी। ठिक से सुनाई नहीं दीया पर कोई महत्त्वपूर्ण बात कर रहे थै। उत्सुकता वश बाप-बेटे दोनों उसी टेबल की ओर चल दीए। उस टेबल पर राजभाका एक पुराना मीत्रभी बैठा हुआ था। राजभाने कहा क्या बातें चल रही है यहां ?
राजभाका मीत्र- क्यो राजभा, सीर्फ काम-काज में ही लगे रहते हो या, आसपास की खबर भी रखते हो ?
राजभा- अब क्या हो गया, राजस्थान में ?
मीत्र- आजकल राजस्थान में एक साधु की टोली घुम रही है। जो लोगोंको अपने मोहपाश में बांध देती है। फिर पुजा के बहाने उनके घर जाकर सारी जानकारी हासिल कर लेती है। और रात को सारा माल साफ करके रफुचक्कर हो जाती है। खास बात तो ये है की किसी के हाथ नहीं आते। मगर पीछली चोरी के दौरान उन्होंने एक पांखी नामकी औरत की हत्या करनी चाही, लेकिन वो बच गई। सारा भेद उसीसे खुला है। फिर लोगों ने कड़ी से कड़ी मीलाई तो पता चला। जहा-जहा साधु गए वहां चोरीया हुई थी। फिर भी अभी तक ये पता नहीं की वह गीरोह कौनसी है ?
ये सुनते ही राजभा और राजवीरभा दोनों का माथा एकसाथ ठनका। साधुतो हमारे घर पर भी आने वाले थै आज। राजभाने अपना वायरलैस फोन नीकाला तो, राजवीरभा ने वही पडा लैन लाईन फोन लेकर घर पर लगाया। दौनोकी फोन की घंटी बज रही थी। ट्रीग ट्रीग, ट्रीग ट्रीग।
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बजती हुई घंटी का कोई जवाब नहीं था। क्योंकि यहां पर कहानी इतनी दीलचस्त थी की, सभीने अपनी नजरें फोन से हटाकर वृदा पर तान दी।
वृदा- तकरीबन १३वी सदी की बात है। उस वक्त राजस्थान के चीरोह विस्तार में वीरभद्र चौहान नामका राजा हुआ करता था। रानी तरुलता की एक मात्र पुत्री धरा। राजा और रानी के दीलका टुकड़ा थी। वीरभद्र को एक पुत्रभी था। मगर वो छोटा था। पर लाडली धरा थी। उन्होंने उसे एक राजकुमार की तरह ही बड़ा किया था। तो शोखभी, वह वैसे ही रखती थी। वनमे घुमना, प्रजाके लिए फैसले करना इत्यादी। वैसे ही एक दीन धरा अपने कुछ सैनीक और दासीयो के साथ वनमे घुमने गई हुई थी। सारे दीन घुमने के कारण वह काफी थक गई थी। सबने तय किया की कुछ देर आराम किया जाए। तो सब एक पेड़ के नीचे सुस्ताने बैठ गए। धरा वहां बैठी आसपास का नजारा देख रही थी। और उसकी नजर एक पीले खरगोश पर पड़ी। आमतोर पर खरगोश सफेद होते हैं। मगर ये अलग था इसलिए उसे पकड़ने की इच्छा हुई। इसी झंझट में वह अपने लोगों से दुर हो गई। इसका खयाल उसे तब आया। जब वह खरगोश के पीछे भाग रही थी, तो अचानक शेर की दहाड़ सुनाई दी। धरा वही थम गई। वापस मुड़कर देखा तो सिर्फ पेड़ दीखाई दे रहे थै। दिमाग ने कहा। धरा बेटा, बुरे फंसे। शैरकी आवाज नजदीक आती लग रही थी। तभी किसी की सीटी बजाने कि आवाज सुनाई दी। उसे देखने के लिए धरा मुड़ी तो एक आदीवासी इन्सान तीर-कमान लिए खड़ा है। धराने मनमे कहा, शायद शेर से तो बच जाती पर इससे कैसे बचु ?
वह अभी सोच ही रही थी की उसने तीर छोड़ दीया। धरा डरकर नीचे गीर पड़ी। उसके गीरने के साथ ही किसी चीज की धड़ाम से गीरने की आवाज आयी। बगल में देखा तो एक विशालकाय शेर पडा है। उसके सीरके बिचोबीच तीर लगा हुआ है। वही तीर जो उस आदिवासी ने चलाया था। फिर खयाल आया, इसका मतलब वह मुझे नहीं बल्कि शेर को मारने आया था। यह सोचकर जान में जान आयी। धरा अभीभी जमीन पर ही गीरी हुई थी। वहां से उसने उस आदिवासी पर नजर डाली।
उसने उपर कुछ नहीं पहना था। सिर्फ गले में शेरका दांत मोगली की तरह। सर पर पगड़ी बंधी हुई थी और नीचे सफेद धोती घुटनों तक, मगर वह भी मैली हो चुकी थी। चहेरा देखे तो उसकी बाईं आंख के भवो से लेकर गाल तक एक बड़ा नीशान लगा हुआ था। लगता था ऐसे ही किसी शेर की मुलाकात के दौरान, शेर ने तोहफे के रुप में दीया होगा। शावला शरीर, कंटीला बदन और उसके डोले सब उस पर जच रहा था। फिर उसकी चौड़ी छाती पर दाई ओर एक बड़े और खतरनाक सर्प का टेटु गुदा हुआ था। धरा अभी उसे कुछ और नीहारे, तब तक वह उसके एकदम नजदीक आ पहुचा। और धरा को उठने में सहायता करने के लक्ष्य से हाथ उसकी ओर बढ़ा दीया। धराने हाथ पकड़ते हुए देखा की उसकी बाई कलाई पर ओमका नीशान गुदा हुआ है। उसने धीरे से धरा को उठाया। उसे देखने से लग रहा था की वह धरा को देखकर उस पर मोहीत हो चुका है। पर उसकी पोशाक और किंमती आभुषण देखकर वह समझ गया था की धरा कोई राजकुमारी है। इसलिए खुदको रोक रहा था। लेकिन धरा का भी यही हाल हो रखा था। शायद उसे पहली नजर का पहेला प्यार हो गया था।
धरा अभी भी उसे देखे जा रही थी तभी, उस अधमरे शेर ने होश में आकर दहाड़ लगाई। और डरके मारे धरा उस इंसान से लिपट गई। इस घटना के लिए वह आदीवासी शेरका आभारी था। शायद मन-ही-मन कह रहा होगा। इसके लिए तो तेरे सो खूनभी माफ है, शेर राजा। आज आदीवासी का दील फुट आया था। जवानी ने अंगड़ाई ली थी। वही हाल धराका भी था।
अब अंधेरा गुफा से बहार नीकलने लगा था। भेडीयो की सुबह हो रही थी। अंगड़ाई के नाम पर वाऊ....वाउ..... की आवाजें आने लगी थी। आदीवासी ने कहा- देवीजी, अब यहां रुकना हमारे लिए सही नहीं है। हमें घर को जाना चाहीए। मगर धरा का मन उससे बीछडने को राजी ही नहीं था। तो धराने कहा- मुझे पता नहीं कि हमारे साथी कहा पर है। तो क्या हम आपके साथ चल सकते है ? सुबह होते ही, आप हमें हमारे साथीयों के पास पहुंचा देना।
आदीवासी- कुछ देर विचार कर, ठीक है। मैं आपको सुबह-सुबह ही आपके साथीयों से मीलवा दुंगा।
धरा- ठिक है। (फिर चलते-चलते) अच्छा ये बताओ तुम्हारा नाम करता है ?
आदीवासी- मेरा नाम ? मेरा नाम किशन है।
धरा- अच्छा नाम है। और हमारा धरा।
आदीवासी- नाम सुनकर सिर्फ मुस्कुराया।
अगली सुबह वह दोनों धरा के साथीयो को ढूंढने नीकल पड़े मगर वो मील ही नहीं रहे थै। क्योंकि धरा उसे सही जगह बता ही नहीं रही थी। ऐसे ही ३-४ दीन बीत गए। वहां सैनीक भी परेशान हो गए थे कि आखीर राजकुमारी गई कहा ? और ये बात महेल तक भी पहुंच गई। की राजकुमारी वनमे खो-गई है।
यहां किशन को भी धरा पर शक होने लगा की वह जुठ बोल रही है। क्योंकि वो हर बार नए ठिकाने बता रही थी। तो उसने कहा- मुझे लगता है, राजकुमारी जी आप मुझसे जुठ बोल रही है। बताओ बात क्या है ?
धरा-(ना चाहते हुए भी कहना पड़ा) देखो किशन हमें तुमसे प्रेम हो गया है।
किशन- ये क्या कह रही हो, राजकुमारी ? हम दोनों अलग लोग है। हमारा कभी मीलन नहीं हो सकता।
धरा- क्यु नहीं हो सकता। हम तुमसे प्रेम करते हैं। और मुझे पता है तुमभी मुझसे प्रेम करते हो। बताओ करते हो ना ?
किशन- इससे कोई फर्क नहीं पड़ता की मैं आपसे प्रेम करता हु या नहीं। मगर हम दो अलग-अलग लोग हैं।
धरा - नहीं किशन, हम एक ही है। यहां तक हमारा नाम भी एक है। धरा= राध यानी राधा और राधा सिर्फ किशन की है और किसी की भी नहीं।
और अगर मैं तुम्हें पसंद नहीं हु। तो मुझे छोड़ दो यहां पर ओर चले जाओ। ( फिर वो पास में बह रही नदीकी ओर मुड़ी)
यह देख किशन ने धरा का हाथ थाम लीया और घर की ओर मुड़ गए।
धरा-किशन तैयार होकर किशन के गुरु के सामने शादीके लिए खड़े हैं। गुरु ने दोनों को ध्यानसे देखा फिर कहा। तुम्हारा मीलना तय था, मगर वैसे ही बिछड़ना भी तय है। तुम दोनों जनम-जनम के साथी हो, मगर इस जनम साथ में मरना ही नसीब होगा। तुम्हारा मीलन अगले जनम होगा। ये होनी है और होकर ही रहेगी। इसमें कोई संदेह नहीं।
ये सुनकर धरा घबरा गई। फिर हिंमत जुटाकर बोली। कोई बात नहीं, साथ जी नहीं पाए तो कुछ नहीं। साथ मरतो सकते हैं।
और फिर किशन की ओर देखकर बोली, क्या मुझसे शादी करोगे ?
किशन ने अपना हाथ धरा के हाथ में दीया। फिर कसके गले लगा लिया। ऐसा लग रहा था, जो अबके बिछड़े तो ना मील पाएंगे।
गुरू- याद रखना धरा। अगले जनम किशन का नाम मीत होगा, मीत पटेल। और ये सीर्फ तुम्हे याद होगा। और हां, तुम्हे तुम्हारा परीवार ही अलग करेगा। फिर दोनों ने एक दुसरे को वरमाला पहनाई। और धराने अपना बालों का बंध नीकाला। बड़ा ही खूबसूरत उसपर मोरकी कारीगरी कमालकी की गई थी। उसने कहां- ये मुझे मेरी मां ने दीया था। ये हमारा खानदानी बंध है और सादी के वक्त पती अपने हाथों से पत्नी को पहनाता है। फिर किशन ने वह बंध धरा के बालों में लगाया।
गुरुजी ने दोनों पर फुल फैंकते हुए कहा। ये विवाह अब संपन्न हुआ। तभी राजा के सैनीक आपहुचे और दोनों को पकड़कर राजमहल ले गए।
वहां राजा वीरभद्र ने वीवाह की बात सुनते ही किशन को मृत्युदंड फरमा दीया। मगर धरा को मार न सका। लेकिन किशन के विरह में धरा भी तील तील घुटकर भगवान को प्यारी हो गई।
मगर एक कसम के साथ-
हम मीलैगे। अगले जनम, उसी चहेरे नीशानीयो के साथ।
हां। फिर मैं जाग गई। बस इतना ही वृंदा बोली।
मगर सारी हवेली एकदम शांत है। कोई चु की भी आवाज नहीं है। सबके चहेरे रहस्यमय भाव वाले दीख रहे हैं। मगर ऋषभ बुरी तरह बोखलाया हुआ है। दीमाग बर्फ हो चुका है। कोई हलन चलन नहीं। मुहसे केवल एक सवाल, ये कैसे हो सकता है ????
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- जारी