एक अपरीचीत मीलन Raje. द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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एक अपरीचीत मीलन

राजभा जमीनदार राजस्थान के एक बडे और विकसीत गाँव चीरोली के एकमात्र सम्मानित और धनवान व्यक्ति है। इनके गाव की आसपास भी कोई ऐसा व्यक्ति नही है, जो राजभा की बराबरी कर सके।
राजभा का परीवार एक खानदानी परीवार है। वे मुसीबत के वक्त लोगो कि मदद करते है। इनके पुर्वज भी अंग्रेजी सरकार के जुल्मो से गाव के लोगो को बचाते थै। इसी कारण गाव के लोग उन्है बहुत मानते है। अगर गावमे कोई प्रसंग या शादी हो तो पहेला आमंत्रण इन्ही के परीवार को जाता है।
राजभा अपनी परंपराओ मे बहुत मानता है। वह समाज के बनाए नीयमो का शख्तीसे पालन करता है और सभी इनका पालन करे इसका भी खयाल रखता है।
राजभा के परीवार मे एक पुत्र है। जीसका नाम राजवीरभा है। राजभा की दो पुत्रीया थी। जीसमे से एक की मृत्यु किसी कारण हो गई थी और दूसरी हमारी वृदा। जीसके बारे मे हम बात कर रहे है। राजभा के परीवार मे उसकी पत्नी तरु और पुत्र राजवीरभा की पत्नी लता और ६ साल का बेटा समीर भी है।
वैसे तो राजभा एक पढा-लीखा इंशान है। इसिलिए अंधविश्वास,जादु,टोना-टोटका और यहातक यज्ञ मे उसका कम ही विश्वास है। लेकीन पत्नी तरु की इतने दीन की जीद और बैटी के मोह के कारण, आज किसी पहुचे हुए महान साधु की कुटीया की और मोटर मे जा रहे है।
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ऋषभ अपने बडे से तंबु मे, गद्दी पर विराजमान है। उसने अपना दाया हाथ बडे से तकिये पर रखा है और आराम कि मुद्रामे पीठ को रखते हुए अपना दाया पैर जमीन से सटा रखा है, जबकी बाया आधा मोडा हुआ है और उसके ढीचन पर अपना बाया हाथ रखा है।
तंबु मे सामने दो लोग अपने खुटनो पर खडे है। जीसमे से एक तो औरत है और दूसरा पुरुष। उसकी पौशाक से वह साधु मालुम पडता है। और दोनो की मुख रेखा बता रही है कि वह दोनो भयभीत है। उन दोनो से थोडा दूर दोनो बाजु पर साधु शीष्य(लुटेरे) और वीलाश खडे हुए है।
ऋषभने बाजुमे पडी चीलम को उठाया और जौर का कस खीचा । फिर चीलम के नशे मे खोगया। वह धुए को अपने मुहसे धीरे-धीरे बहार नीकाल रहा था। यह द्रश्य ऐसा लग रहा था मानो कोई अघोरी अफिम के कस लेकर भोले मे खो रहा हो।
तभी ऋषभ को दीखाई दीया। एक सुंदर लडकी, जीसके बालो मे मोर वाला नायाब बंध लगा है। वह मुडकर उसे पुकार रही थी। ऋषभ, ऋषभ।
और ऋषभ की आँखे खुली तो देखा।वीलाश उसे पुकार रहा था।
(ऋषभ होश संभालते हुए) हा!
तो, इसने हमारी गीरोह का आदमी होते हुए भी, एक लडकी से प्रेम प्रसंग रखकर हमारी गीरोह के कानुन को तोडा है।(साधुओ कि तरफ देखते हुए)
तो बताओ साथीयो, इन दोनो का क्या अंजाम होना चाहिए ?
साधुओने कहा, इसका फैसला आप ही किजीए।
ऋषभने दोनो दोषीयो की ओर देखकर कहा। इस बारेमे तुम्हे कुछ कहना है ?
दोषी शीष्ने कहा- मैने प्रेम करने के सीवा कोई गलती नही की। और इसके लिए मै हर सजा कुबुल करता हु।
लेकीन प्यार क्या चीज है, शायद तुम्है मालुम नही?
इसपर ऋषभने हलकी सी नकली हसी नीकाली और फैसला सुना दीया।
ये दौनो प्रेमी है, इसिलिए इन्हे साथ रखा जाए। दौनो के हाथ पैर बांधकर, एक छेद की हुई नाव मे बैठाकर नदी मे छोड दीया जाए।
(और दौनो की ओर देखते हुए कहा) दौनो कि अंतीम यात्रा मुबारक हो।
सभा बरखास्त।

सभी अपने कामपर लग गये। ऋषभ भी चीलम फूकने मे व्यस्त हो गया। लेकिन वीलाश वही रुक गया। कुछ कस खीचने के बाद ऋषभ की नजर वीलाश पर गई। उसने चीलम बाजुमे रखते हुए पुछा, अरे वीलाश क्या हुआ ? तुम क्यू रुक गये ?
वीलाशने कहा- तुमने इतनी कठोर सजा उन दोनो को क्यु दी ? वह प्रेमी थे और अब दोनो एक दुसरे के सामने घुट-घुटकर मरेगै। एक-दुसरे की मौत उनकी आँखोमे देखैगे। ऐसी भयानक सजा तो तुमने किसी गद्दार को भी नही दी।
ऋषभने कहा- हा। यही तो मै चाहता हु। उन्हे दीखाना चाहता हु कि, प्यार का क्या अंजाम होता है। प्यार सीर्फ एक गलत फहमी होता है।
वीलाश को ऋषभ की उग्रता दीखाई देने लगी। इसिलीए उसने बात का रुख बदलते हुए कहा। ऋषभ सुनो, इस गाँवमे हमारा अगला क्या काम होगा ? किस ओर लुट का प्लान बनाना है।

ऋषभ अभी कुछ बोलने वाला ही था की, एक शिष्य तंबु के अंदर आया और कहने लगा। गुरुजी आपसे मीलने, चीरोली के जमीनदार कोई राजभा और उनकी पत्नी आये है।
ऋषभ- उनसे कहो। मै अभी नही मील सकया।
शिष्य- मैनेभी वही कहा था, पर वह जीद कर रहे है।
केह रहे थै, उनकी बेटी को एक ही सपना बार-बार आता है।
ऋषभने (टोकरी की ओर इसारा करते हुए) इनमे से ८ पुडीया देदो। और फिर उसका माथा ठनका ओर कहने लगा। रुको सीर्फ एक ही देना।
कहना शोते वक्त ले इसे। सपना नही आएगा।(शिष्य वहा से चला गया)
वीलाश वह सब देख रहा था।
उसने कहा, ये क्या ! वह तो नींद की पुडीया थी ना ?
और पहले ८ दे रहे थै बादमे १ ही क्यू दी ?
ऋषभ कहने लगा, देखो बहोत छोटी लुट करली। अब कुछ बडा करते है।
इस जमीनदार के घर अगली लुग करेगै।
वीलाश- मगर एक पुडीया क्यो दी ?
ऋषभ- देखो, इसके कारण वह एक रात अच्छे से सो पाएगी। मगर अगले दिन फिर वही समस्या।
तो वह फिर आयेगै। तब हम हवन के बहाने, उनके घरकी जानकारी हासील कर लैगे।
वीलाश- अरे, क्या बात है।
तो मै अभी से अपने लोगो को इस काम पर लगा देता हु।
ऋषभ- ठिक है। तो इसी बात पर एक-एक कस हो जाए। और दौनो चीलम के कस लगाने लगे।
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तरु राजभा को जोर-जोरसे हीलाकर उठाने का प्रयास कर रही थी और उसमे वह कामयाब भी हुई। राजभा उठते हुए- अपनी आँखे मसली और कुछ बोलने का प्रयास कर रहा था। मगर कमर सीधी करने के लिए, ली हुई अंगडाई मे उसकी आवाज कही दब गई। असल मे वह बोलने का प्रयास कर रहा था कि इतनी सुबह-सुबह उसे उठाने की, क्या जरुरत आन पडी ? मगर राजभा कुछ बोले, उससे पहले तरुने अपनी बात कह डाली।
क्या आपने गौर कीया ?
राजभा ने तरुको थोडी देर ध्यानसे देखा। फिर बोल उठा- हा। तुमने अपनी माँग मे सिंधुर नही भरा।(फिर नाराज होकर कहने लगा)
क्या तरु इन छोटीमोटी बातो के लिए मेरी नीन्द ना खराब किया करो।
तरु बोली वह सब छोडो मै इसकी बात नही कर रही हु। मै बता रही हु कि आज अपनी वृदा सपने मे चील्लाकर उठी नही। बल्की सारी रात अच्छे से सो पाई।
राजभा बोल उठा। अरे हा, इसपर तो मेरा ध्यान ही नहि गया।
तरु- जाता भी केसे ? तुम तो हररोज भैसे कि तरह सोते हो। जागती तो मै हु। फिर तुम्हे कैसे ध्यान रहेगा।
राजभा-वह सब छोडो। चलो वृदा बेटी से मील आते है।
राजभा और तरुने धीरेसे वृदाके रुम का दरवाजा खोला। तो देखा, बेटी वृदा अपने आलीसान बेड पर आराम से सोई हुई है। एक ऐसा बेड, जीस पर गीरते ही, किसीको भी नींद आ सकती है। पर सच बात तो यह है कि, पीछले कुछ सालोमे, आज ये दिन है। जब वृदाको नींद आई है।
वह नींदमे बीलकुल परी लग रही थी। उसके बदन की चारोओर सफेद मलमल कि रजाई, ऐसे लीपटी हुई थी, मानो बहुत सारे सफेद-खरगोस उसे लीपटकर सो रहे हो। खिडकीसे आती हुई सुरजकी किरणे सीधे उसके मुख पर पड रही थी। मगर उसको रोकने के लिए बालोकी घटा, ढाल बने बैठी थी। और सुरज की किरणे उन सुनहरे बालो को टकराकर सारे कमरे मे सुनहरी रोशनी फैला रही थी।
तभी उसने करवटली और रजाईमे से उसका एक पैर बहार नीकल आया। एकदम भूरेरंग कि त्वचा और उपर से प्रकाश के कारण लिसी चमडी किसी धातु कि तरह चमक रही थी। और उसकी पायलभी मानो खुशी के मारे खनक उठी। खन खन...
यह द्रश्य देखते ही राजभा का दीलभर आया और तरु तो रोने ही लगी।
राजभाने तरु को संभालते हुए कहा। देखो अपनी परी बिटीया कितने आरामसे सो रही है। उसे जगाओगी क्या ?
राजभा की ये बात सुनकर तरुने अपने आसु रोके और कहने लगी, इतने दिनो बाद सोई है। अभी आराम से सोने देते है। बादमे बात करेगे।(यह कहते हुए तरुने वृदाके रुमका दरवाजा बंध किया) और दोनो कुछ बाते करते हुए। अपने रुम कि तरफ नीकले। जब रास्तेमे एक नौकर मील गया तो उसे हूकम फरमा दीया गया की, भुले से भी कोई वृदा के कमरे के आसपासभी ना भटके।
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जाडे के दिनोमे भी राजस्थान अपना रंग दीखा रहा था। वक्त करीबन ११-११:३० का हो रहा था। लेकीन सूरज अपनी अंतीम लालीमा पर था।
ऋषभ सूर्य कि ओर मुख कर, मनही मन कह रहा था। मै जबभी तंबु से बाहर नीकलता हु, तभी तेरी गरमी बढ जाती है।
मतलब ऐसा कुछ हो, तो बता ?
कि कोई पुराने जनम की दुश्मनी जैसा ?
जगह चीरोली गाँवका सुप्रसीध्ध बाजार। चारो ओर से आवाजे गुंज रही है।- 'आवो भाया आवो, आवो गावकी छोरीया और बींदणीयाँ मारे त्या घणी चोखी चीझे मीले है'। एक बार देखलो। 'मारे घेर देखणे के पैसे कोणी लगते'। "आवो गोरी मेमो और गोरे भाया"।
तभी एक शिष्ने ऋषभ को पुकारा।
क्या गुरुजी, बाजार मे तो पहुच गए। अब आगे क्या करना है ? और आपने हम सबका भेष क्यु बदलवाया। जबकी आप खुद साधके भेष मे खडे है।
ऋषभ- देखो, अब ध्यान से सुनो।
तुम सब सारे बाजार मे फैल जाओ। दो लोग काम की चीजे खरीदेगे। बाकी सब, लोगो से बात करके यहा के हालात और सुरक्षा के बारेमे पता लगाएँगे। यहा के खुफिया रास्ते, मुल्यवान और प्राचीन चीजे सबकी जानकारी लेनी होगी।
हा और इस बातका खयाल जरुर रहे की, तुम्हारी बातो पर किसीको भी सक ना हो पाए। इसीलिए मैने तुम सबका भेष बदला है।
और रही मेरी बात, तो इससे बाजार मे सबका ध्यान मुझ पर रहेगा। जीससे तुम अपना काम आसानी से कर सकते हो।
चलो अब सब, दफा हो जाओ। (और सब अपने कामको चल दीए)
ऋषभ अब बाजारमे घुमने लगा है। सबका ध्यान उसी पर है। सब झुककर उसे प्रणाम कर रहे है। थोडी देर वैसे ही चलता रहा, लेकिन कुछ देर बाद ऋषभके नाक से एक अजीब सी सुगंध आकर टकराई। उसने उसे ध्यानसे शुगां। फिर एकदम वीचलित हो गया और इधर-उधर देखने लगा। मगर चारोओर दुकानो के सीवा कुछ ना दीखा।
आँखो से निराश होकर, उसने आँखे बन्द करली और अपने नाकको सारथी बनाकर अपने पैरो का रथ दौडा दीया। कुछ देर चलने के बाद, उसने आखे खोली तो पास मे एक पुराना और जरजरीत मंदीर पाया।
अब उसे पक्का यकीन हो गया था कि हो-नहो यह सुगंध इसी मंदीर से आ रही है। और यदी वह गलत नही, तो ये खुश्बुभी उसी लड्डुकी है।
मगर यह कैसे हो सकता है ?
यह सब सोचते-सोचते वह मंदीर के सीडीयो तक पहुच गया।
मंदीर देखनेसे ही करीबन ५० साल पुराना लग रहा था। मंदीरके आसपास और खंभे पर लगी धुल और जाले बता रहे थे की, यहा ज्यादा लोगो का आना-जाना नही रहेता है।
मंदीर के आंगनमे नंदी आराम से बैठे है। जबकी महादेव की मुर्ती अपने सिहासन पर विराजमान है। वही उनके पैरोमे कुछ मुरजाए हुए फूल पडे है और वही एक थाली पडी है। जीसमे ताजे एक के उपर एक सजाकर लड्डु रखे पडे है।
ऋषभ भागते हुए लड्डुकी थाली के पास जाकर ध्यानसे सुंघ कर देगा। ओर ये क्या ?
वह अपने हाथोको रोक ना सका। एक लड्डु थालीमे से उठाकर सीधा मुह मे गया और एक तीरछी नजर महादेव पर। उसने अपनी दौनो आंखे छोटी की और मन ही मन माफी मागते हुए बोला, माफ कर देना भोले। थोडा जल्दीमे हु।
लेकीन लड्डु जैसे ही मुह मे गया। ऋषभको वीश्वास ही नही हुआ। उसने थालीमे से दूसरा लड्डु उठाया और मुह मे ठूस लीया।
और मुह से नीकल गया, बीलकुल वही स्वाद।
फिर मंदीर मे चारो ओर देखने लगा। मगर कोई न मीला। हार कर उसने अपनी नजरो को झुका लीया और पास ही मे लोहेकी जाली के पास आकर बैठ गया। जब उसकी नजर जाली पर गई, तो पाया वहा बहुत सारे धागे और चुनरीया बंधी हुई है। लगता था लोगोने अपनी मंन्नते बांधी थी। उन सबमे से एक चुनरी ऋषभको बीलकुल अलग पडती दीखाई दी। उसने उत्सुकता वस जैसे ही उस चुनरीको हाथ लगाया। आवाज आयी-'मीत'।
ऋषभ एकदम चौक गया और डरके मारे दो कदम पीछे हट गया। उसने ध्यानसे चारो ओर देखा मगर कोई न दीखा।
तो उसने कुछ हिम्मत जुटाई और फिर उस चुनरीको हाथ लगाने की जुर्रतकी।
मगर इसबार जाली की दुसरी तरफ कोई दीखा।
पैरोको देखकर अंदाज लगाया जा सकता था की उसके शरीर और चहेरेका रंग कुछ गेहूआ होगा। पायल हिलकर बता रही थी की वह एक लडकी है। घाघरा उसका एकदम देशी कलाकारी से सज्ज था। खरे जामुनी रंगमे सुनहरे दोरसे हाथोकी बुनाईके कारण पुरा राजस्थान उसके घाघरे मे आ बैठा था। वह तपता रण, उंट, घुमर नाच और कुछ लोकगीत लाजवाब लग रहे थै।
नजर जब कमर से होती उपर गई। तो ब्लाउज मे आधा राजस्थान दीखा। क्योकि आधा राजस्थान उसकी पारदर्शक चुनरीने ढक रखा था और यही हाल कमरका भी था।
गला बीलकुल खाली था, मगर गलेकी तीरछी दो हड्डीयो मे से बाई हड्डीके ठिक नीचे सात तील या फिर टेटुके डोट्स पता नही, मगर पुरे गलेकी रोनक लग रहे थे।
चहेरेका हाल क्या बताऊ !
पुरेका पुरा चुनरी से ढका हुआ था। ये चुनरी मानो दुश्मन बन बैठी थी। पहले कमर, फिर ये चहेरा।
पर यकिन मानो मेरा, चहेरे से ज्यादा नजर कमर पर दौडी जा रही थी मेरी। क्योकी एक तो, मेरी तरह तत्पर हवा का जौका अपनी पुरी जान लगाकर चुनरको उडा रहा था।
उसमे उसकी सीधी नाभी मानो कोई बवंडर हो, अंदर खीचे जा रही थी। मुझे लगा किसीने मुझे हिप्नोटाईझ कर दीया है। मगर दुसरे ही पल होस मे आ गया।
कारण, उसके ब्लाउजसे लटकती घुघरीयाँ। वह भी हवा के साथ हिल रही थी और उसकी नाभीसे टकराकर छन छन बज रही थी।
यह देख घुघरुसे मुझे इतनी ईर्षा हुई की अभी तोडकर फैक दु उन्हे और ऐलान करु इसे छुनेका हक तुम्हे बीलकुल नही है।
उसका पेट एकदम सफेद और मुलायम, चमडी पर एकभी दाग नही मानो किसी चीत्रकारने अपने रंगो से उन सब तील, धब्बोको छीपा दीया हो। अगर उसकी कमर को पकडकर अपना चहेरा उस पेट पर रखने को मीले। तो मै कहुगा, जींदगी मे अब कुछ करने को बाकी ही नही रहा।
लडकीने आवाज लगाई- क्यु मीत, लड्डु अच्छे थै न ? थारे लिए खास, इतने चोख्खे लाडु बणाके लाई हु। बता ना कैसे लगे है ?
(ऋषभ कुछ हडबडाकर) क कौन मीत ? और क्या लड्डु ?
लडकी ने कहा, अरे बाबा, अभी तो तुमने लड्डु खाए और मुकर भी गए।
और ये क्या ! कौन मीत का क्या मतलब होता है ?
तुम मीत और कोन।
ऋषभने मक्कम होते हुए कहा, मै ऋषी ऋषभगुरु हु। कोई मीत नही। लडकी तुम्हे जरुर कोई गलत फहमी हो रही है।
लडकी- तुम समझ नही रहे हो। तुम मीत हो और मै तुम्हारी प्रेमीका।
और ये क्या पहेले छोटे बालो मे तुम कितने अच्छे लगते थै। इस जनम कुछ जम नही रहा। मै कहती हु तुम इसे कटवा दो।
(ऋषभ कुछ संकोचीत) पीछला जनम ? इसके क्या माने है ? और तुम्हारे कहने पर मै क्यु अपने केस कटवाऊ ? यह बताओ ये लड्डु बनाना तुमने कहा से सीखा ? (यु करते ऋषभने एक साथ ४-५ सवाल पुछ डाले)
लडकी- अरे, रुको रुको रुको।
एक साथ इतने सवाल ? एक-एक कर पुछो। तुम्हारी यह आदत भी बदली नही।
और लड्डु पहले भी तो, मै ही बनाया करती थी। लगता है तुम्हे हमारे पीछले जनम की बात पर यकीन नही हो रहा। मेरे पास एक सुबुत है, चलो दीखा ही देती हु। यह कहते हुए उस लडकीने अपने हाथ पीछे करके अपने बंधे बाल हवामे लहरा दीये और अपने बालो के बंध को ऋषभ के सामने धर दीया।
(यह वही बंध है, जो ऋषभको नदी कीनारे स्नान करने जाते वक्त दीखा था। पहले अध्यायमे)

ऋषभ वो मोर की छवी वाला नायाब बंध देखकर एकदम आश्चर्य चकीत हो गया। और एक ही सवाल मुह से नीकला। ये बंध तुम्हारे पास कैसे आया ?
लबकी ने हसकर कहा, क्या तुम्हे नही पता ?
चलो अब मै चलती हु कहकर, वो लडकी वहा से जाने लगी। यह देखकर ऋषभ रुको-रुको कहते हुए पीछे दौडा। मगर लडकी अपनी सरारत मे हसते हुए भागे जा रही थी, और पीछे पीछे ऋषभ।
ऋषभ शायद भूल चुका था की, वह एक सन्यासी है ? और उसका यह व्यवहार स्वीकार योग्य नही है।
तभी दौडते-दौडते लडकीका पैर एक तारमे घुस गया। और उसकी पायल वहा टुटकर गीर पडी। उसका पैरभी शायद घायल हो चुका था, मगर अपनी खुशीमे वह समझ न पाई।
पीछे आता ऋषभने पायल उठाई और वापस पीछा करने का प्रयास कीया। मगर उसे मालुम पडा की कोई उसे पीछे से पकडे हुए है। मुडकर देखा तो वीलाश उसकी एक बाह पकडे खडा है। और जब वापस लडकी की तरफ नजर गई। तो भीडमे गुम होती हुई उसकी चुनरी ही दीखाई दी।
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-जारी....