फरेब - 4 Raje. द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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फरेब - 4



वृदा अपने कमरे मे बिस्तर पर लेट कुछ खयालो मे खोई हुई थी की तभी, अचानक उसके कानो मे कुछ आवाज पडी। कुतुहल वश वृदाने अपने खयालो को वही पलंग पर पटक कर। अपने कमरे से बाहर जाने का कष्ट उठाया। वैसे मनमे तो यही खयाल था की जो भी ये शोर कर रहा है, उसकी क्लास ले ली जाए। मगर जब बाहर नीकली तो देखा। वह आवाज उसके भाई राजवीरभा के कमरे से आ रही थी। वृदाको आश्चर्य हुआ क्योकी उसका भाई राजवीर और भाभी लता दौनो इतने प्यारे थे कि उनके बीच मनमुटाव होही नही सकता। मगर जब वृदा उनके कमरे के नजदीक पहुची। उसने पाया कमरे का दरवाजा पहले से ही थोडा सा खुला हुआ था। वह जैसे ही अंदर घुसने वाली थी कि, उसके कानो मे नाम सुनाई दीया। वृदा और उसके पैर वही थम गये। उसने ध्यानसे सुना तो पाया, उसकी भाभी लता काफी गुस्सेमे जोर-जोर से बोल रही थी। और भाई राजवीर उसको कह रहा था। - अरे धीरे से बोलो कोई सुन लेगा, और कोन सा आसमान गीर पडा। जो तुम इतना भीनभीना रही हो। यह सुनकर वृदाभी सोचमे पड गई की, ऐसी कौनसी बात हो गई जो भाभीसा इतनी गुस्सेमे है।
तभी लताने कहा- आसमानतो नही गीरा मगर ऐसा ही चलता रहा, तो आसमानभी गीर पडेगा। पता है आज तुम्हारी लाडली बहनने क्या किया। ( राजवीर चौकते हुए) वृन्दु। वृन्दुने क्या किया ? देखो, मैने पहले भी कहा है तुमसे की, वृन्दुको किसीभी बातो मे ना घसीटो।
लता- घसीट नही रही हु। सच बता रही हु।
पता है आज क्या हुआ, समीर खेलते हुए वृदाके कमरे मे चला गया था। वही खेलते-खेलते गलती से वहा पडी तसवीर उससे गीर गई।
इसमे बडी बात क्या हो गई? बच्चा है, गलती से गीर गई होगी। मगर नही, यह देखते ही उसने सीधा समीरको तमाचा जड दीया। यह सुनते ही वृदाको वह वाक्या याद आ गया। उस वक्त उसे डर था की, अगर वह चीत्र कही बीगड जाता! तो उसकी सारी महेनत पर पानी फिर जाता। इसिलीए गुस्सेमे हाथ उठ गया था। तभी राजवीरने कहा, उसने कोई गलती की होगी इसीलिए मारा होगा। यह सुनते ही लताको और गुस्सा आ गया और कहने लगी। तुम्हे अपनी बहनकी कोई गलती दीखाई ही नही देती। वह दीनभर कमरे मे घुसी रहती है। रातको चील्लाती है और अब तो बच्चोको भी मारने लगी है। एकदम पगलेट।
बस यही सुनना तो बाकी था की, राजवीर का सीर घुमा और कहने लगा, मेरी बहन को पगलेट कहती है। कहते हुए- अभी एक जोरदार चाटा, उसके चहेरे पर होता। मगर वृदाने तेजी दीखाई और तेजीसे दरवाजा खोलते हुए, आवाज लगाई। रुकीये भाईसा। और कमरे मे जा घुसी। आप दोनो एसा कैसे कर सकते हो। आप दौनो इतने प्यारे हो और मेरे कारण लड रहे हो। (वृदाको देखते ही राजवीरने अपने आपको और गुस्से, दोनोको संभाला। वैसे ही लताने भी चहरे के भयको जाता कीया)
वृदा- भाईसा, भाभीसा बीलकुल ठिक कह रही है। उस वक्त मै थोडी गुस्सेमे थी और उसी कारण गलती से सारा गुस्सा समीर पर आ उतरा।( लताकी ओर देखते हुए) और इसके लिए मै आप दोनोसे माफी चाहती हु। मगर भाभीसा मैने सिर्फ हवामे हाथ उठाया था। समीरको मारा नही था। समीर मेरा भी ब्च्चा है। मै उसे कैसे मार सकती हु ?
और ये क्या भाईसा, आप बिना कारण भाभीसा पर भडक गए। वो भी मेरे कारण। मै तो हु ही जल्ली।
राजवीर- अरे ये बात नही है। वृन्दु।।
वृदा-ऐसी वैसी कोई बात नही। चलीए भाभीसा से माफी मागीए। और ये मेरा हुकम है।
राजवीर- लेकीन वृदा। ठिक है, जो हुकम मेरे आका। फिर वह लताकी और मुडा और कहने लगा।
लता मुझे माफ कर दो।
मगर लताभी कुछ कम न थी। उसने अपना मुह फेर लिया। यह देख, वृदा कहने लगी। देखो भाईसा अब आगेकी जंग तो, आपको ही जीतनी होगी। मै तो चली, कहते हुए वह वहासे नीकल पडी। अपने कमरे की ओर। और राजवीर लताको मनाने मे जुट गया।
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अभी ऋषभके तंबु मे बिलकुल संन्नाटा छाया हुआ है। सारा धुआभी जा चुका है। ऋसभ अपना सर जुकाए बैठा है। शायद अपने आसु छीपा रहा था। पर आँखोने ठान लीया था की, हर गमको धो देगी आज। वीलास वही बैठा सब देख रहा था। कुछ देर बाद वीलाशने मौन तोडा और कहा। यह सब तो ठिक है। वहा पांखी और आयेशा दोनो मारी जा चुकी थी। तो फिर यहा चीरोली, राजशस्थानमे क्या हुआ ? कौन है, यहा ? जीसे देखकर तुम इतने अस्त-वय्त हो गए हो।
( ऋषभ अपने आसुओ को पोछते हुए) वही तो मुझेभी समझ नही आ रहा।
वीलाश- क्या मतलब ! समझ नही आ रहा ?
तुम उसके पीछे भाग रहे थे, और तुम्हे पता नही वह कौन थी।
ऋषभ- हा। मुझे बिलकुल पता नही की वह लडकी कौन थी। क्योकि मै जबभी उससे मीला। तब उसका मुख ढका हुआ ही था।
वीलाश- तो तुम उसके पीछे क्यु थे ?
ऋषभ- रुको मै सब वीस्तार से बताता हु।
देखो जब हम पहली बार चीरोली आये, तब मै स्नान करने नदी किनारे गया था। वही एक लडकी को देखा था। और उसने वही नायाब मोरकी आक्रीती वाला बालोका बंध पहना हुआ था। जो की मैने पांखीको तोहफे मे दीया था।
फिर उस दीन बाजार मै, महादेव के मंदीरकी बाहर तो, तुमने देखा ही होगा। उस दीन वह लडकी मेरे सामने आयी थी, और मेरा असली नाम यानी मीत पटेल कहकर पुकार रही थी। उसने जो लड्डु बनाए थे। उनका स्वादभी बिलकुल वैसा ही था। जैसे कभी पांखी बनाया करती थी। वो मेरे बारेमे सब कुछ जानती है। जब मैने उससे पुछा तो, वहा से भाग गई। उस दीन अगर तुमने मुझे ना रोका होता तो मै जान लेता वह कौन है।
अब पता नही उससे कब मुलाकात होगी ? या फिर मुलाकात होगीभी या नही होगी ?
अब उसकी पायल ही, एक नीशानी है, मेरे पास।
यह सब सुनकर वीलाश का माथा चकरा रहा था। और बोल पडा, यह सब क्या हो रहा है ? मेरे तो कुछ भी समझ नही आ रहा।
तभी बाहरसे किसी के चील्लाने की आवाज आयी। ऋषभ और वीलाश दोनो चौके! कौन हो सकता है, जो हमारे तंबु के पास आकर चील्ला रहा होगा। किसकी इतनी हिंमत ?
तभी तंबुका कपडा हटा और एक औरत अंदर घुस आयी। उमर २५-२७ साल होगी। सादे कपडे, कोइ नीचले वर्गकी महीला होगी। वह हांफ रही थी। इससे यह मालुल होता था की वह भागकर यहा पहुची है।
तभी अन्य सेवक तंबुमे घुस आये और कहने लगे। माफि गुरुदेव। यह औरत जबरदस्ती अंदर घुस आयी है। हमने इसे खुब मना किया की गुरुदेवसे आप अभी नही मील सकते। मगर मानने को तैयार ही नही। फिर हमे चकमा देकर अंदर चली आयी।
यह सुनते ही, वीलाश बोल पडा- अगर एक औरत तुम्हे चकमा दे सकती है। तो तुम हमारे साथ रहने के लायक नही हो। और फिर औरत को देखकर संभल गया। कहने लगा, बहार भेजो इसे।( वह उसे बहार ले जाने को चलते है)
तभी वह औरत बोल पडी- मै चंपा, राजभा जमीनदार के यहा से आयी हु। बस यह सुनते ही वीलाश के कान खडे हो गये। बोला रुको और शीष्योको भेज दीया। बताओ क्या काम है?
तुम्हारे पास पाँच मीनट है। ( चंपा राजभाके घरकी शब्जीवाली है।) गुरुदेव मे बहुत दीनो से यहा आ रही हु। लेकीन कोई आपसे मीलने ही, नही दे रहा। इसी कारण मुझे ऐसे आना पडा। हमारे जमीनदार की बेटी पर आपकी दवाईका काफी अच्छा असर पडा है। इसीलिए उन्होने आपको घर पर पुजा के लिए बुलाया है। ( वीलाश ऋषभकी ओर देखता है)
ऋषभ- हा, ठिक है। हम कल आपके घरको आवैगे। यह सुनते ही चंपा खुश हो गई और खुशी-खुशी वहा से चलदी।
ऋषभ- मेरी बात ओर है। मगर कामभी उतना ही जरुरी है। यह सुनते ही वीलाश खुश हो गया और कहने लगा। मै अभी सारी तैयारी करवाता हु। कहते हुए तंबुसे बाहर चला गया।
और ऋषभ उस पायल को हाथमे लेकर खयालो मे डुब गया।
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राजभा और राजवीर दोनो घरके अंदर से दरवाजे की और जा ही रहे थे की, राजभा रुका, और आवाज लगाई। तरु, जरा वो तोहफा तो लेते आना। जो हम लाए थे। उनको देने के लिए।
कमरे के अंदरसे तरुकी आवाज आयी। अरे हा, मे तो भुल ही गई थी। अभी घरके घरही पडा रहता।
राजभा और राजवीर दोनोने नए कपडे पहने हुए थे। वह काफि भरावदारभी थे। फिर तोहफे की बातसे मालुम पड रहा था की, वह कही फंकशनमे जा रहे है।
तभी ऊपर से वृदा चली आयी। लता और समीरतो पहले से वही पर थै। उन दोनोको वीदा देने के लीये। समीर कुछ नाराज़ था। क्युकि उसेभी बाबासा और दादुसा के साथ बहार जाना था।
वृदा- बाबासा, आप कहा जा रहे हो ? कोई शादी है ? शाम तक तो लौट आयेगे ना आप दोनो।
राजभा- हा। हम शादीमे जोधपुर जा रहे है। मेरा एक जीगरी मीत्र है। उसकी बेटीकी शादी है। और ऊपर से राजवीरकी भी कोलेज के दीनोकी मीत्र है। इसीलिए साथ जा रहा है। यह सुनते ही वृदा बोल पडी।
अह भाईसा, कोलेज की दोस्त एन ओल।
राजवीर- क्या बोल रही है, वृन्दु। लता यही खडी है। कही सुन लीया तो मेरी जान खाजाएगी।
(तभी तरुभी तोहफा लेकर वहा आ पहुची)
वृदा- देखा मासा, मै न कहती थी। भाईसा भाभीसा से डरते है।( तरु राजवीरकी और देखती है)
राजवीर- नही, ऐसी कोईभी बात नहीं है। भला मै क्यू डरने लगा लतासे ?
तभी वहा पास खडी लता बोली, मुझे सब सुनाई दे रहा है। यह सुनते ही, राजवीर बोला चलो बाबासा मै गाडी नीकालता हु। आप आजाना कहते हुए समीर की और एक हवाई चुम्मा फेका। पर मालुम नही वह किसके लीया था। समीर या फिर साथमे खडी लता के लीए।
राजवीरको ऐसे जाते देख, वृदा बोली- अरे भाईसा रुकीए तो सही। इतनी भी क्या जल्दी शादीमे जानेकी। दुल्हन कहा भागी जारही है।
राजवीर- तु रुक, मै वापस आकर तेरी खबर लेता हु।
यह सुनते ही सब हस पडे।
राजभा- अच्छा, तो हम चलते है। और हा वृदा हम एक रात रुककर आएगे। यह कहकर अभी राजभा चला ही नही था की, चंपा दोडती हुई आयी और दरवाजे पर ही राजभा से टकरा गई। फिर राजभाको देखकर एकदम डर गई और कहने लगी। माफी मालीक, माफी।
राजभा- ठिक है चलो। पर तुम इतनी भागी-भागी कहा से आ रही हो।
तरु फुसफुसाते हुए- संभलकर आना चाहीएना। फिर जोरसे- अरे, तुम तो साधुजी के यहा गई हुई थी न। वहा क्या हुआ? उन्होने कहा की वो आयेगे ?
चंपा-(बाकी शब्जीवालीयो की तरह ही बातुनी थी। हर एक कि खबर रखती थी।) अतः उसने साधुके तंबुमे हुई घटना का आरंभ रामायण से कीया और अंत महाभारत तक लेगई। फिर अंतमे बोली साधु अपने शीष्योके साथ कल आरहे है।
यह सुनकर वृदाके चहेरे का नुर कुछ और ही था। वह फुले नही समा रही थी। मगर अपनी खुशी औरोसे छिपा रही थी। मगर क्यु पता नही ?
राजभा- अगर वो कलही आरहे है तो, हम नही पहुच पाएगे। इससे अच्छा हम जाते ही नही जोधपुर। यह सुन कुछ सोचकर वृदा बोली। देखीये बाबासा वह आपके बचपनके मीत्र है। ऊपर से भाईसा की भी मीत्र है। तो अगर आप नही जाएगे तो, उन्है बहुत बुरा लगेगा। और मासा, भाभीसा भी तो है यहा। वह सब संभाल लेगी। तभी चंपाभी बोल पडी, मै भी तो हु।
राजभा- मगर। तभी राजवीरने गाडीका होर्न बजाया।
वृदा- अगर मगर कुछ नही। देखो भैयाकी गाडीभी आगई। आप जाईए, कहकर राजभा को वीदा कीया। फिर वृदा भागकर अपने कमरे मे जा घुसी।
तरु चंपासे कहने लगी चलो हम पुजाके सामान की लिस्ट बना लेते है। लता समीरको लेकर खाना खीलाने चली गई। और घरका खुला दरवाजा आने वाले अतीथी की राह देखने मे व्यस्त हो गया।
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समय सुबह करीबन ८:३० बजे थे। हररोज की तरह राजस्थान ठंडा था और गरमी की ओर बढ रहा था। ऋषभ और वीलाश दोनो तंबुके बाहर खडे यही सोच रहे थे की, राजभा की हवेली तक कैसे पहुचे। तभी दो एम्बेसडर कार उनके तंबुके पास आकर रुक गई। देखने से पता चल रहा था की वह दोनो कार खाली है। उनमे ड्राईवरके सीवा और कोई मुसाफिर बैठा नही था। वह आगे कुछ सोचे उससे पहले, एक कार मे से ड्राईवर उतरकर उनके सामने आकर खडा हो गया। फिर बोला, राजभाजी के यहा से आपको लीवाने आए है, हुकम।
यह द्रश्य देखकर वीलाश एकदम खुश हो गया। क्योकि उस वक्तमे किसी जमीनदारके पास दो-दो एम्बेसडर कार होना, बडी नही बल्की बहोत बडी बात है। और वो भी अतीथीयो को लेने के लीए भेजना उनकी धन-संपतीका वैभव दीखा रही थी। क्योकि कोई व्यक्ती किसी आदमी को अपनी कारमे बीठाना तो दुर उसे छुने तक ना दे।
वीलाश- (मन ही मनमे) अरे कोई और क्यू ?
मै खुद किसीको मेरी गाडी के आसपास ना घुमने दु।
ड्राईवर-( आदेशके इंतजार मे) हुकम।
यह सुनते वीलाशने अपने खयालो की गाडी पर ब्रेक लगाई और ऋषभकी और देखा। उसे देखकरभी यही लग रहा था की वह भी उसी खयालो मे है। जीनमे वीलाश खोया हुआ था। मगर ड्राईवरकी आवाज सुनकर दोनोने होस संभाला। फिर जरुरी सामान और शीष्यो के साथ गाडीमे चल दीए।
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घरमे सारे लोग काममे व्यस्त है। कौई फुल सजा रहा है। तो कोई हवनकुंड मे लकडी भर रहा है। तरु चंपासे बतीया रही है और लता समीरके पीछे, उसे नहाने के लीये मनाने भाग रही है।
इस ओर वृदा अपने कमरे मे कुछ परेशान सी खुरशी पर बैठी, अपना एक पैर लगातार हीला रही है। और सामने पडे केनवाश को लगातार देखे जा रही है। शायद उसमे कोई कमी तो नही, यह परख रही थी।
तभी नीचे से आवाज आयी। लाडो क्या कर रही हो ? तैयार हुई की नही ? (वह तरु थी)
वृदा- हा, मासा। हो रही हु। कहकर वहा से उठी और बाल बनाने लगी। नहाना-कपडे तो पहले से हो चुका था। पर आसपास देखा तो, उसके बालोका बंध वहा पर नही था, जहा होना चाहीए था। उसने सोचा यहि कही गीरा पडा होगा। और आसपासकी जगह देखी पर वह वहा भी नही था। अब उसकी चीन्ता बढी। ढुढंने मे भी तेजी दीखाई देने लगी। पलंग से अलमारी, अलमारी से कबर्ट, ड्रोवर सभी जगह छानमारा। आँखे प्लास्टीक की गुडीया की तरह हील रही थी। हाथोमे तेजी और नाक पर गुस्सा या फिर कहे तो, फ्रस्टेशन आ पहुचा था। मगर बंधका कोई पता नही।
तभी तरुने कमरेका दरवाजा खोला, देखती है। पुरा कमरा मानो कोई कपडो-सामान के बाजार के माफिक प्रतीत हो रहा था। अलमारी पुरी खाली, कपडे पलंग पर, गद्दा जमीन पर सो रहा है। टेबल रुमके बिचोबीच पडा है। यह सब देखकर तरु बोली- लाडो, यह सब क्या कर रही हो ?
वृदा-(तरुकी ओर देखकर, चील्लाकर) वेर ध हेल इस माय बंध ?
यह आवाज सारे घरमे गुंज उठी। सारे नौकर समझ गये की आज मैमसाब का गुस्सा सातवे आसमान पर है। कोई भी गलती माफ नही की जाएगी।
तरु- (तरुने अब से पहले वृदाको इस लहजे मे बात करते नही देखा था, इसिलीए धिरेसे बोली) देखो बेटा, अभी बहोत काम है। साधुजीभी पहुचते ही होगे। तुम कोई और बंध बाधलो। अगर न होतो, मेरा या अपनी भाभीसासे लेलो। वैसे भी तुम्हारे खुले बालभी अच्छे लगते है। तो तुम उन्हे खुला भी रख सकती हो।
वृदा- आइ वोन्ट माय बंध। धेट्स इट।
तभी भागते भागते लता उपर आई और बोली, समीर खेल रहा था इससे। कही ये बंधतो नही ?
बंधको देखते ही वृदाने उसे जटसे ले लीया। हा, यही है। फिर उसने कहा मासा मुझे तैयार होना है, आप जाईए कहकर दोनो को कमरे से बाहर ढकेलने लगी। जाते जाते तरु कहने लगी, मगर यह कमरा कौन ठिक करेगा ? तबतक तो दोनोको वृदाने कमरे से बहार कर दीया था और दरवाजा बंध करते हुए बोली। वो मै कर लुगी मासा, आप जाईए।
तरु लताको कहते हुए- इस लडकी के मन मे क्या चाल रहा है। थे तो मारो ठाकुरजी ही जाणे ? कहते हुए नीचे दुसरे काम के लिए चले गए।
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ऋषभ, वीलाश और साथी जब राजभाकी हवेली पहुचते तो देखते है। एक शानदार हवेली, हो न हो ये हवेली किसी जमाने मे किसी राजाकी रही होगी। यह भावना सबके मन आगई। क्योकि वह थी ही इतनी शानदार। इसे ज्यो की त्यो रखने मे राजभाने भी कोई कमी नही रखी थी।
हवेली के बाहर ही ऋषभने सबको रोककर समझा दीया की कोई हवेली की शानो-शौकत देखकर अपना मन नही ललचाएगा। हमे सिर्फ चीजे कहा रखी है और किस हालमे है देखना है। घरमे कितने आने-जाने के रास्ते है। कितने लोग रहते है, कितने नौकर, कमरे, सामान कहा रखा है, सुरक्षा के इंतजाम क्या-क्या है हर चीज का ध्यान रखना है। लेकिन ज्योकि हम साधुके भेसमे है। हम पर कोई सक करे, ऐसा कोई भी काम नही करना है। और किसी चीजकी हेरा-फेरी तो बिलकुल नही कि जानी चाहीए। और अगर कोई एसा करता है तो, वह मेरे गुस्सेका भागीदार होगा।
अंतमे, सबको समझ आया ?
सभी- जी हा।( कुछ सीर हिला कर, हा मे जवाब)
जब सब अंदर गए, तो उनका भव्य स्वागत किया गया। उनके पैरोमे फूल डाले गये। कोई नौकर इत्रका छीडकावभी कर रहा था। और फिर खाने मे भी हर चीजका प्रबंध रखा गया था।
इधर शिष्योने भी अपना ढोगं चालु कर दीया। भोले, हर-हर भोले कि आवाज हवेली मे गुंज उठी। ऋषभ और वीलाश सोफे पर न बैठकर सीधे हवनकुंड पर जा बैठे। इससे वह यह दर्शा रहे थै कि वह एक सच्चे साधु है। और इसपर किसीको भी तनीक भी शक नही था। तभी वीलाशने दो शीष्योको आदेश दीया, जाओ और धुआ घुमाकर हवेलीकी शुध्धी करदो। आदेश मीलते ही, दो-दो करके आठ शिष्य पुरी हवेली मे घुमकर सारी जानकारी लेने चले गये।
वीलाश तरुसे- अच्छा तो आपकी बेटीको रातको सपने आते है ?
तरु- नही। सपने आते थै, जबसे आपने पुडीया दी थी। तबके बाद सपना आना बंध हो गया है।
यह सुनते ही वीलाश और ऋषभ दोनो चौक उठे। क्योकि वह कोई दवाई नही। बल्की नींदकी पुडीया थी। जो उसे एक रात तक बैहोस रख सकती थी। पर बीमारी दुर नही कर सकती थी। वह अभी सोच रहे थै कि, एसा कैसे हो सकता है ?
तभी ऋषभके कानो मे एक आवाज सुनाई दी छन छन छन। ऋषभकी नझरे उत्सुकता वस सीडीयो की तरफ मुड गई। (हवनकुंड सीडीयोके ठिक सामने था) कोई सीडीयो से नीचे आरहा है। मगर पायलकी आवाज रुक-रुककर आ रही थी। गौर करने पर पता चला। उसने केवल एक ही पायल पहन रखी थी। और इससे कोई फर्क नही पडता था की, उसने दुसरी पायल क्यू नही पहनी। क्योकि उसकी बाकी खुबसुरती देख वह बात, हरकोई भुल जाता।
( वहाकी सीडीयाभी संगेमर से जडीत थी और उस पर लाल मलमलका लंबा गलीचा बीछा हुआ था )
उसका लाल लहेंगा, उस पर सोनेकी जरीसे किया हुआ काम राजस्तानी कारीगरोकी कला दीखा रहा था। और वह जेसे-जेसे सीडीया उतर रही थी। उसका लहेंगा ऐसे उछल रहा था मानो, कोई कला(કળા) किया हुआ मोर उतर रहा हो, और उसके मयुरपंख उछलते है। यह द्रश्यभी हुबहु वैसा ही लग रहा था। तो कभी डरभी लगा की, ये काचकी मुरत कही फिसल कर गीर गई। तो मै क्या करुगा ?
उसके लंबे बाल बंधे हुए थे। सुना गला और चहेरेकी नक्काशी मानो खुद भगवान शंकरने पार्वतीको देखकर की हो। और वह किसीकी यादभी दीला रहा था। कुछ देर के लिए ऋषभतो वहा ही जम गया था। वहभी नीचे आ पहुची और तरु बोल पडी। यह मेरी बेटी वृदा है गुरुदेव।
वृदाने आते ही गुरुको प्रणाम करते हुए कहा- प्रणाम मीत। ऋषभ पहले से ही कुछ खयालो मे तो था ही और मीत सुनकर हडबडा गया। वीलाशकी आँखेभी चौडी हुई।
तरु- बेटा इनका नाम मीत नही, ऋषभगुरु है और गुरुजीको नामसे नही बुलाते।
वृदा- ओह, ऐसा ही। सोरी...( कहकर एक क्युट स्माईल करदी)
वीलाशकी नजर अभीभी वृदाके पैरो मे ही थी। फिर ध्यानसे देखकर चकित होते हुए, ऋषभके कानो मे जाकर बोला- तुमने देखा उसकी एक पायलको ?
ऋषभ- पायलमे क्या है ? ( कहते हुए उसने पेरोकी ओर देखा) और क्या देखता है- वह पायल हुबहु उस पायलकी जैसी थी। जो उसे मंदीरके पास मीली थी। वह ताकिदगी करने के लिए, उठकर वृदाकी और बडा। तभी वृदाका पैर मुडा और वह गीरी।
( मगर यह मालुम नही की वह सचमुच गीर पडी या फिर जानबुजकर)
यह देख आते हुए ऋषभने उसे पकडकर अपने दोनो हाथोमे थाम लीया। इसी बीच वृदाके लंबे बाल आकर ऋषभके मुह पर आ गीरे। और उसकी खुशबु सुघंते ही, ऋषभ सारा भान भुल गया। हाथोकी पकड कमजोर हो गई और वृदा फिसलकर जमीन पर गीरी। बीलकुल वही खुशबु, वही पांखीके बालो के परफ्युमकी खुशबु। ऋषभको लगा की वह पागल हो जाएगा। तभी एक और जटका!
वृदाके गीरने से उसके बाल खुल गये और एक चीज उछलकर संगेमरमरकी टाईल्स पर घुमने लगी। सभी का ध्यान उस पर आ अटका। थोडी देर घुमनेके बाद वह रुकी तो क्या? - वह चीज और कुछ नही बल्की वही मोरकी आकृती वाला नायाब बंध। यह देखकर वीलाश जो अबतक बैठा था खडा हो गया। और ऋषभतो वही चक्कर खाकर गीर पडा।
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