शैलेन्द्र चौहान
उनके हाथों में जब-तब एक लॉलीपॉप रहता।अक्सर तो वे अपने हाथों का उपयोग कुछ लेने के लिए ही करते थे परंतु जब भी वे अपने आसपास किसी भोले-भाले शरीफ़ आदमी को देखते तो उनके हाथ में एक लॉलीपॉप नाचा करता। उस समय वे अपने व्यवहारिक ज्ञान की कुशलता का बहुत ही शानदार परिचय देते। वे उस व्यक्ति की आँखों में झाँकते और मुस्कराते। और तब तक मुस्कराते रहते जब तक कि उस आदमी की आँखों में लॉलीपॉप की झलक न पा लेते। फिर धीरे से वे अपनी मुट्ठी बंद कर लेते, लॉलीपॉप मुट्ठी में बंद हो जाता। अब कहानी अपने सैट फ़ार्मूले पर आगे बढ़ने लगती। भोलाभाला आदमी लॉलीपॉप के सम्मोहन में धीरे-धीरे जकड़ने लगता। वह उनके चक्कर काटने पर विवश हो जाता, उसका मन उनके आसपास मँडराने को आकुल रहता। उसकी इस स्थिति से संतुष्ट हो अब वे लॉलीपॉप बहुत कम समय के लिए और कभी-कभी ही निकालते। भोला व्यक्ति इस तरह लॉलीपॉप के लालच में गहरा फँस जाता। उसकी व्यग्रता दीवानेपन की हद तक बढ़ जाती तब उन्हें उसकी हालत पर अनंत आनंद की अनुभूति होती। और फिर वे किसी अन्य भोले आदमी पर अपना तीर चलाते।
उन्होंने अपनी बुद्धिमत्ता और कठिन प्रयास से एक प्रभामंडल अपने चारों ओर निर्मित कर लिया था सो बहुत लोग अब आसपास मँडराने लगे थे। उनकी मेहरबानी हासिल करने के लिए पूरा हुजूम अब वहाँ इकट्ठा रहता। सभी तरह के लोग पाए जाते थे उस हुजूम में, ज़रूरतमंद, परेशान, समय बिताने वाले, धंधेबाज़, चालाक, धूर्त, अपराधी, व्यवसायी और राजनीतिक। कुछ सीधे-साधे और समझदार संवेदनशील लोग भी उनके सम्मोहन में फँसे रहते भ्रम, तृष्णा या माया के फेर में। वह इन दिनों सफलता की सीढ़ियाँ बहुत तेज़ी से चढ़ रहे थे। वे अत्यधिक प्रसन्न और आत्म सुख से लबालब थे। अपने बुद्धि चातुर्य पर उन्हें बेहद दंभ हो आया था। वे इन दिनों अपने को अपूर्व और अद्वितीय महसूस करते थे। अपने प्रतिद्वंद्वियों को वह सहज ही पटखनी लगा देते और अपने प्रशंसकों, शुभचिंतकों को देखकर गर्व से इतराते। उनकी स्थिति उस रूपसी जैसी थी जो अपने रूप और चंचलता से अनेकों पुरुषों से फ़्लर्ट करती है। वह भी उसी तरह अपना लॉलीपॉप दिखा-दिखा कर अनेकों लोगों को फ़्लर्ट करते थे। वह कभी किसी को लॉलीपॉप देने का वायदा करते फिर उसे डिच करते और जब कोई बंदा बहुत निराश हो जाता तो उसे मुस्करा कर धीरे से अपने पास बिठा लेते। धीरे-धीरे लॉलीपॉप उसके हाथों पर छुआते और लॉलीपॉप को इतरा कर देखते फिर जेब में रख लेते। इस तरह वह उस आदमी को सम्मोहन मुक्त नहीं होने देते। देखते-देखते वे अत्यधिक संपन्न हो गए और प्रसिद्ध भी। अब उनके पास हज़ारों लोग थे उनकी जयजयकार करते हुए, गुण बखानते हुए उनकी कृपा दृष्टि के लिए विपुल आकांक्षा समेटे हुए।
जैसे-जैसे समय बीतता रहा, उनके चाहने वालों की संख्या और अधिक बढ़ती गई। नए-नए लोग उनके चाहने वालों में शुमार होते चले गए। अब उन्हें स्वयं किसी को सम्मोहित करने की ज़रूरत नहीं रह गई थी। उनकी प्रसिद्धि इतनी अधिक हो चुकी थी कि अब लोग स्वयं उनके दरबार में हाज़िर होने को बेताब रहते और उनके यश में दिन-दूनी रात चौगुनी वृद्धि करते। अब मीडिया उनके इशारों पर नाचता सैकड़ों एडवर्टाइज़िंग एजेन्सीज़, एक्सपर्ट उनकी छवि बनाने में जी-जान से जुट गए थे। कई ब्यूटीपार्लर और मसाजकेन्द्र उनके बँगले के आसपास खुल गए थे। उनके मेकअप के लिए एक बहुत ही श्रेष्ठ टीम जुटा ली गई थी। मज़े की बात यह थी कि यह सब वे स्वयं नहीं कर रहे थे; उनके चाहने वालों का कमाल था। अब उनमें एक गुरुत्वाकर्षण पैदा हो गया था, उन्होंने लोगों की परवाह करना एकदम बंद कर दिया था। उनका अपना जादुई लॉलीपॉप भी अब उन्हें बूढ़ा होता नज़र आने लगा था, सो अब उन्होंने उसे छुपा लिया था और अब वे उसके क्लोन बनाने पर गंभीरता से विचार करने लगे थे।
इस तरह गंभीर हो जाने का ही नतीजा यह था कि लॉलीपॉप की महत्ता पर उन्होंने बेहिसाब भाषण देने शुरू कर दिए थे। वे बताते कि लॉलीपॉप अद्भुत चीज़ है। यह एक शक्ति है, एक चमत्कार है, इस चमत्कार का उपयोग देश और देशवासियों की भलाई के लिए किया जाना चाहिए। लॉलीपॉप की शक्ति न्यूक्लियर ऊर्जा की तरह अप्रतिम और अतुलनीय है। लॉलीपॉप में इतनी ऊर्जा है जितनी कि सूर्य में हो सकती है। पता नहीं देश में ऊर्जा की कमी की बात लोग कैसे करते हैं, वैकल्पिक ऊर्जा का अनन्त स्त्रोत है लॉलीपॉप।
लॉलीपॉप के महत्व को प्रतिपादित करते-करते एक दिन उनके किसी शुभचिंतक ने उन्हें लॉलीपॉप की फ़ैक्ट्री डालने की सलाह दे डाली। उन्हें यह बात जँच गई सो उन्होंने अपने एक भक्त से प्रोजेक्ट रिपोर्ट बनवाई और फिर एक नहीं चार-चार फ़ैक्ट्रियाँ डालने का एलान कर दिया। चूँकि यह कार्य वे अपने चाहने वालों के लिए ही कर रहे थे इसलिए उन्होंने उन फैक्ट्रियों के शेयर पब्लिक में इश्यू कर दिए। बाजार में धड़ल्ले से लॉलीपॉप के शेयर बिके, उम्मीद से कहीं अधिक धन इकट्ठा हो गया। दलाल, तस्कर, लुटेरे, अपहरणकर्ता तथा संभ्रांत अपराधियों का उन्हें भरपूर सहयोग मिल रहा था। कुछ सरकारी बैंकों ने भी उनके शेयरों को उछालने में मदद की। अब वे एक स्थापित भद्र पुरुष थे। उनके पास अकूत धन था और उसी अनुपात में धन पाने की उनकी हवस भी बढ़ गई थी। अब उनकी सारी बिज़नेस डील्स अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर होने लगीं थीं जिसमें कई स्वामी और कई हथियार व्यापारी सहयोगी बन गए थे। अब ख़ास वर्ग के और ख़ास धंधों में लिप्त लोग ही उनके कृपा पात्र रह गए थे। आम आदमी अब उनके लिए ख़तरे की वॉयस था और शरीफ़ व्यक्ति तो एकदम घृणा का पात्र। ऐसे लोगों को यदाकदा जहन्नुम बुक करने के लिए एके 47 धारी आतंकवादी इनके इशारों पर ताबड़तोड़ आग बरसा देते थे।
उनकी फ़ैक्ट्रियों में बड़ा जोशपूर्ण माहौल था। उनमें बड़ी तादाद में उत्पादन प्रारंभ हो गया था, उनकी खपत भी बेहिसाब थी और विदेशों में निर्यात भी रिकार्ड तोड़ था। इस तरह से दुनिया के मालदार व्यक्तियों में उनका सम्मानजनक नाम हो गया। धीरे-धीरे वे चौथे, तीसरे, और दूसरे स्थान पर पहुँच गए। अब तक सहज और भोले क़िस्म के लोग उनसे एकदम दूर हो चुके थे। भावुक और भावनात्मक सबंधों में विश्वास रखने वाले लोग उनके उपहास का पात्र बनते गए थे। उनके सच्चे मित्र अब उन्हें अपने शत्रु लगने लगे थे। उन दिनों लॉलीपॉप पर लार टपकाने वालों के अलावा भी उनके कुछ सच्चे शुभचिंतक थे जिन्हें वे कोई ख़ास महत्व नहीं देते थे उल्टे उन्हें भी वे लॉलीपॉप दिखा-दिखा कर भ्रष्ट और सम्मोहित करने का प्रयत्न करते थे। जो लोग उनके इस मायाजाल से अप्रभावित रहते थे उन्हें वे बिल्कुल भी पसंद नहीं कर पाते थे। इन लोगों के मन पर विजय पाने की आकांक्षा सदैव उनमें बलवती रहती। यदा-कदा इन मित्रों और शुभचिंतकों को तलाश कर वे उन पर बेइंतिहा हँसते, उन्हें जलील करके आनंदित होते। धीरे-धीरे ऐसे सभी आत्मसम्मान रखने वाले लोग उनसे एकदम दूर चले गए।
समय के तो पर ही लग गए थे। समय बहुत जल्दी-जल्दी बीतने लगा था। प्रशंसक और भक्त दिन-रात बढ़ते ही जा रहे थे। उधर इस स्थिति से फ़ायदा उठा कर कुछ लोग उनसे बुरी तरह चिपक गए। उन्हें यह बताया गया कि यह भीड़ आपके लिए ख़तरा है, इससे बचाव आवश्यक है। यह सुरक्षा व्यवस्था कुछ ही लोग जो अत्यंत विश्वसनीय हैं वही कर सकते हैं। उन्हें इस बात पर कोई एतराज़ नहीं था। अब कुछ लोग उनके चारों तरफ़ दीवार की तरह खड़े हो गए। उन्हें उस चहारदीवारी के आगे दिखना बंद हो गया। फिर तो वे उस सुरक्षा व्यवस्था के इस क़दर आदी हुए कि स्वयं उससे बाहर निकलने की उनकी इच्छा ख़त्म हो गई। अब न उन्हें कुछ बाहर दिखाई देता, न वे देखते ही। बस उनके विश्वस्त लोग उन्हें आँखों-देखा हाल सुनाते।
धीरे-धीरे उन्हें यह पता चलने लगा कि उनके उत्पादित लॉलीपॉप का निर्यात घटने लगा है और देशी मार्केट में भी उनकी माँग कम होती जा रही है। उनके "ब्रांड" के लॉलीपॉप की मार्केटिंग प्रॉपर तरीक़े से नहीं होती देख उन्हें क्रोध आ गया। उन्होंने आदेश दिया कि उनका पुराना मॉडल लॉलीपॉप ढूँढ़ निकाला जाए और नए प्रॉडक्ट को उससे कम्पेयर किया जाए, तब फिर उस पर कुछ और रिसर्च की जाए। उन्हें यह भी आभास हो गया था कि विदेशी "ब्रांड" के लॉलीपॉप इन दिनों धूम मचा रहे हैं। अत: उन्हें विदेशी कंपनियों से कोलेबोरेशन का आयडिया भी सूझा। वे इस पर विस्तार से सोच-विचार कर निर्णय करना चाहते थे। इतने में उनका एक भृत्य उनके पुराने लॉलीपॉप को ढूँढ़ लाया जो ज्वेलरी पैक करने वाले पारदर्शी सुनहरे डिब्बे में बंद था। जैसे ही उन्होंने उस डिब्बे को खोला, वे अचंभे से भर गए, उसमें बदबू आ रही थी। उनका वह आदर्श लॉलीपॉप सड़ चुका था, उस पर फफूँद लगी हुई थी। वे आहत हुए परंतु उन्होंने अपनी त्वरित बुद्धि से यह निर्णय लिया कि इसकी सफ़ाई कर इस पर रासायनिक लेप चढ़ा दिया जाए और यदि ज़रूरत पड़े तो इसकी प्लास्टिक सर्जरी भी कराई जाए। तुरंत कॉस्मेटिक एक्सपर्ट की खोज हुई, पता चला कि ऐसे कॉस्मेटिक एक्सपर्ट सिर्फ़ अमेरिका में ही पाए जाते हैं।
वे स्वयं अमेरिका जाकर उस लॉलीपॉप की कॉस्मेटिक सर्जरी करा लाए थे। अब वे संतुष्ट थे उनका यह नया लॉलीपॉप एकदम असली जैसा पर उससे अधिक चमकदार दिखाई दे रहा था। उन्होंने फ़ैक्ट्री प्रबंधन को आदेश दे दिया कि अब से ठीक ऐसे और इसी जैसे लॉलीपॉप बनाने चाहिएँ जैसा उनके हाथ में है। उन्होंने तय किया कि यही समय है जब इस पुराने लॉलीपॉप के सम्मोहन को आज़माया जा सकता है। अब, जब फिर से उन्होंने उस लॉलीपॉप को लोगों के सामने नचाना शुरू किया तो किसी में भी उसके प्रति ललक दिखाई नहीं दी। एक तो उनके पास जो लोग थे वे उनके लॉलीपॉप को पूरी तरह जान गए थे, दूसरे उन्होंने उनकी फ़ैक्ट्रियों के बने इतने लॉलीपॉप चूस लिए थे कि उनके लिए उसका आकर्षण समाप्त हो गया था। नए लोग अब उनके पास आ नहीं पा रहे थे। उनका व्यवहार और रुख देख कर वे अपना रास्ता बदल देते थे। धीरे-धीरे उनके आसपास जमी भीड़ भी छँटने लगी। उधर उनकी फ़ैक्ट्रियाँ भी एक के बाद एक बंद होनी शुरू हो गईं। अब उनका बाज़ार ख़त्म हो रहा था। और अंततः वह समय भी आ गया जब अधिसंख्य लोग उनसे दूर चले गए। उन्हें अपने इस नए "फेस" से निराशा होने लगी थी।
इस निराशा के दौर में अब उन्हें अपने पुराने मित्र याद आने लगे। वे लोग जो उनके सच्चे शुभचिंतक और चाहने वाले थे जो उनके उस लॉलीपॉप के सम्मोहन से दूर रहते रहे उन्हें ढूँढ़ने की व्यग्रता उनमें व्याप्त हो गई। उन्होंने अब सभी पुराने ठिकाने तलाशने शुरू कर दिए। उन्हें यह देख कर बेहद आश्चर्य हुआ जब उन्हें पता चला कि इतने समय में सब कुछ बहुत तेज़ी से बदल चुका था। वे और व्याकुल होते गए। उन्हें अपने पुराने भले मित्रों में से कोई भी नहीं मिल पा रहा था और जो मिल भी रहा था वे शायद उसे पहचान भी नहीं पा रहे थे। बहुत भटकने के बाद आख़िरकार अपना सबसे अधिक चाहने वाला मित्र मिला। वे तो उसे नहीं पहचान पाए थे, मित्र ने ही उन्हें पहचान कर उनका अभिवादन किया, हालचाल पूछा। वे भावविभोर हो गए, बोले - "मैं तुम्हारी ही तलाश में था, तुम मेरे अपने थे परंतु मैंने अपने स्वार्थवश तुम्हें नहीं पहचाना, मुझसे बहुत बड़ी ग़लती हुई, अब मुझे माफ़ कर दो।"
मित्र को उनकी यह स्थिति देखकर करुणा उपजी, उसकी आँखों से दो बूँदें टपक पड़ीं। उसने पूछा आख़िर उन्हें उसकी किस हेतु तलाश थी, वह उनके किस काम आ सकता है। वह बोला मैं आपकी सहायता के लिए सदैव तत्पर हूँ आप आदेश करें। यह सुनकर उन्हें बेहद संतोष हुआ। उन्होंने तुरत-फुरत अपने व्यक्तिगत सहायक को तलब किया बोले - "यही मेरे परम प्रिय मित्र हैं, मैं अपनी लॉलीपॉप की सारी फ़ैक्ट्रियाँ अब इन्हें सौंपता हूँ, अब यही उनकी देखभाल करेंगे। आख़िर इस दुनिया में तरक्क़ी का एकमात्र उद्देश्य और प्राप्ति धन-दौलत ही तो है। मैं अपने अनुभव से जान चुका हूँ कि दौलत ही सब कुछ है, उससे सब कुछ ख़रीदा जा सकता है। मैं तुम्हें अपार धन दूँगा, मालामाल कर दूँगा ताकि तुम सुख चैन से जी सको। आओ मेरे मित्र मेरे हृदय से लग जाओ।"
मित्र उनकी बातें सुनकर चौंका, उसे बेहद आश्चर्य हुआ कि रस्सी जलने के बाद भी ऐंठन बरक़रार थी। लॉलीपॉप नहीं रहा तो क्या, लॉलीपॉप की छाया अब भी उनकी आँखों में बरक़रार थी। उस वक़्त उसके मन में एक गहरी वितृष्णा उनके प्रति पैदा हुई। उसने चाहा कि उनके मुँह पर थूक दे परंतु उसने अपने आप पर क़ाबू किया। हाथ जोड़ कर उसने कहा - "मुझे माफ़ कर दें, मैं अपनी स्थिति से संतुष्ट हूँ, मैं आपका कष्ट समझता हूँ पर अब बहुत समय बीत चुका है, सब कुछ बदल गया है, आप बहुत बड़े आदमी हैं और मैं अकिंचन, मैं इतना बड़ा दायित्व नहीं निभा सकता।"
वह नाराज़ हुए, उन्हें उपदेश नहीं मित्र चाहिए। उपदेश तो वे ही जीवन भर लोगों को देते रहे हैं। वे व्यग्र थे, उस मित्र को यूँ ही छोड़ना उनकी कल्पना से बाहर की बात थी। उन्होंने उसे कसकर पकड़ लिया। मित्र कसमसाया, उनका दबाव बढ़ता गया। मित्र को लगने लगा उसका दम घुट जाएगा, वह मर जाएगा। अत: उसने ज़ोर से उछाल मारी और उनकी जकड़ से दूर हो गया। उसे लगा कि यह बिन बुलाई मुसीबत उसकी जान ले लेगी सो उसने फ़ौरन बुद्धि स्थिर करके वहाँ से दौड़ लगा दी। वे चिल्लाए पकड़ो... पकड़ो... पर मित्र पकड़ में नहीं आया। उन्हें लगा कि उनका इन्द्रजाल खण्ड-खण्ड हो चुका है। काँपते पाँव वे वापस लौट चले।