Nadaan Mohabbat books and stories free download online pdf in Hindi

नादान मोहब्बत

नादान मोहब्बत
( प्रस्तावना-प्यार की परिभाषा )
क्या प्यार समझदारों का खेल है या शारीरिक रसायनों का प्रभाव ? जब प्यार की परिभाषा भी स्पष्ट नही होती तब प्यार कैसे हो जाता है ? कम उम्र में होने वाले प्यार को क्या नाम दूँ ? जब कोई खुद को बहुत अच्छा लगने लगे , उसे देखे बगैर न रहा जा सके । मूवी में चल रहे चलचित्र के नायक नायिका में अपनी जोड़ी नजर आए । माँ के बार-बार कहने पर भी खाने का ध्यान न रहे, तो लोग इसे प्यार की संज्ञा देते हैं । परन्तु अब मेरा मस्तिष्क इसे प्यार मनाने को तैयार नही है । लोगों ने प्यार को तरह-तरह से परिभाषित किया और सबकी परिभाषा भी अलग ही है । इसी प्रकार जब मैं अपने तरीके से इसे परिभाषित करता हूँ तो प्यार का मतलब ही बदल जाता है । मुझे प्यार को परिभाषित करने की जरूरत क्यों पड़ी ? दूसरों की परिभाषा को मैंने सहजता से स्वीकार क्यों नही किया ? इस कहानी संग्रह का सार इसी प्रश्न में नीहित है ।
जैसे जैसे मैं बड़ा हो रहा था बचपन की बहुत सी बातें भूलता भी जा रहा था बस कुछ बातों को छोड़कर । जैसे कि उन दोस्तों के चेहरे जो लम्बे वर्षों से मुझे नही मिलें, उन्हें भूल रहा हूँ । लेकिन उनकी बातें , उनके साथ खेले गए खेल , हँसी मज़ाक आज भी याद हैं । जैसे कि कहा जाता है कि पहला प्यार भुलाए नही भूलता ।

तब प्यार का एक मतलब यह समझ आता है कि "प्यार मानवीय संवेदनाओं की समझ का एक सीखा हुआ ऐहसास है और सीखा हुआ कभी भूलता नही है ।"

अब एक प्रश्न और उठता है कि यदि प्यार एक सीखा हुआ ऐहसास है तो इसे सिखाता कौन है ? लोग कहते हैं, प्यार स्वतः होने वाला ऐहसास है , मैं उनकी इस बात से सहमत नही हूँ । क्योंकि मैंने देखा है और अनुभव किया है कि मोहब्बत की प्रत्येक कहानी की शुरुआत अवश्य होती है , बस यही शुरुआत ही तो वह उद्दविपक है जो हमें प्यार करने के लिए प्रेरित करता है । हम प्यार करते हैं परन्तु इसके लिए कोई प्रशिक्षण की आवश्यकता नही पड़ती , शायद इसीलिए लोगों को यह लगता है कि प्यार स्वतः होने वाला ऐहसास है । तब एक और प्रश्न उठ खड़ा होता है कि यदि प्यार के लिए कोई प्रशिक्षण की आवश्यकता नही होती और इसके लिए कोई पाठशाला नही होती तो फिर हम यह कैसे समझ पाते हैं कि हमें प्यार हुआ है ? हो सकता है जिसे हम प्यार समझते हैं वह प्यार हो ही न, हम नाहक ही रसायनों के प्रभाव में शारीरिक असंतुलन को प्यार समझ रहे हों । चूंकि प्यार की परिभाषा पर यह प्रश्न मेरे द्वारा उठाया गया है तो मेरी जिम्मेदारी बनती है कि मैं प्रमाणित करूं कि प्यार की प्रचिलित परिभाषा सही नही है और यह जिम्मेदारी भी मेरी है कि प्यार को और भी परिमार्जित रूप में परिभाषित करूं । परन्तु मैं स्वयं को इस लायक नही समझता कि मैं प्यार को परिभाषित कर पाऊंगा, फिर भी एक प्रयास जरूर करूँगा । इस कहानी संग्रह में जो कहानियां है उन सभी कहानियों का अंत यही संदेश देता है कि हम जिसे प्यार समझते हैं वह प्यार न होकर हमारे शरीर में विभिन्न परिस्थितियों में उत्तपन्न होने वाले रसायनों के प्रभाव में हमारे मश्तिष्क द्वारा की जाने वाली प्रतिक्रिया के परिणामस्वरूप पनपे भावों का प्रतिफल होता है । यह प्रतिफल जब तक हमारे अनुकूल रहता है या हम इसके अनुकूल रहते हैं तब तक हम प्यार की काल्पनिक व खूबसूरत दुनिया में खुश रहते हैं । परन्तु जिस प्रकार मौसम बदलने पर प्रकृति की अन्य कृतियों में बदलाव होता है, उसी प्रकार जब हम अपनी भावनाओं की काल्पनिकता से बाहर निकलकर वास्तविक जीवन में पुनः प्रवेश करते हैं तब उसी प्यार में बहुत सारी कमियाँ नज़र आने लगती हैं , और अंततः वह होता है जो अक्सर ही प्रेम कहानियों का होता रहा है , बस रह जाती है एक कहानी जिसे हम प्रेम कहानी कहते हैं । चलिए अब समझते हैं कि प्रेम कहानियां बनती कैसे हैं । सोंचिए जब हम किसी अजनबी से मिलते हैं उसके रूप , तौर तरीके, बातों, और उसके व्यक्तित्व आदि से प्रभावित होकर हमारा मश्तिष्क जो भी प्रतिक्रिया करता है उसी के परिणामतः हम उससे व्यवहार करने लगते हैं । यदि हम उसके साथ सहज महशूस करते हैं अर्थात हमें वह अनुकूल लगता है तो हम उससे बात करते हैं, यदि वह अनुकूल नही लगता तो उसे अनदेखा करके दूर ही रहते हैं । जब हमें, कोई बहुत अधिक प्रभावित कर जाता है तब हम भावनात्म रूप से उससे जुड़ जाते हैं । प्यार की कहानियों की शुरुआत यहीं से होती है । धीरे-धीरे हम उससे इतना जुड़ जाते हैं कि हमें उसमें कोई कमीं नज़र नही आती। यदि वह हमसे विपरीत सेक्स वाला है तब शारीरिक रसायनों के प्रभास्वरूप उत्तपन्न वासना के भाव और प्यार में हमें कोई फर्क नज़र नही आता, और यदि दोनों ने ही एक दूसरे को प्रभावित किया है तब एक प्यार की कहानी का प्रारम्भ होता है । यहाँ एक बात यह समझनी अतिआवश्यक है कि जब दोनों ही एक दूसरे को प्रभावित कर चुके होते हैं तब प्यार के इज़हार में देरी कैसे होती है और कभी कभी उक्त प्यार अधूरे प्यार की कहानी बनकर क्यों रह जाता है ? मेरे विचार से सभी प्यार करने वाले अपने साथी को बराबर परिणाम में प्रभावित नही कर पाते हैं और ऐसा उनके व्यक्तित्व में अनेक भिन्नताओं के कारण होता है । इसीलिए हमें यह निर्णय लेने में देर हो जाती है कि क्या अगला भी हमारे बारे में वही ख्याल रखता है जैसा हम उसके लिए सोंचते हैं । यह असमंजस इसलिए और भी अधिक रहता है क्योंकि हम पहले से प्रचलित अन्य तमाम प्रेम कहानियों से परिचित होते हैं जिनमें प्यार में धोखे का वर्णन होता है । यह सत्य भी है क्योंकि हम अक्सर ही सभी को ठीक से परखने में नाकाम भी हो जाते हैं । अतः सच्चे प्रेमियों के लिए डरना स्वाभाविक हो जाता है, प्रायः ऐसा देखा गया है कि सच्चे लोग सरल भी होते हैं और चालक लोगों के धोखे में आकर शोषण का शिकार बन जाते हैं । इस सब के बावजूद हम अपनी भावनाओं के वशीभूत प्यार कर बैठते हैं, परन्तु हम तब तक कोई निर्णय नही ले पाते जब तक दूसरे को ठीक से न पहचान लें । अतंतः जब प्यार का इज़हार हो जाता है, दो प्यार करने वाले एक दूसरे के बहुत करीब आ जाते हैं तब फिर ऐसा क्या कारण है कि वे बिछड़ने को मजबूर हो जाते हैं ? शायद एक कारण यह हो सकता है कि हम प्यार को ठीक से नही समझ पाते क्योंकि हम प्यार की जिन प्रचलित परिभाषाओं को आधार मानकर निष्कर्ष पर पहुंचते हैं वे दोषपूर्ण हैं, और हम रसायनों के प्रभाव में शारीरिक इच्छा को प्यार समझ लेते हैं । वैसे तो बहुत से कारण हो सकते हैं, फिलहाल हमें प्यार को परिभाषित करने के उद्देश्य को ध्यान में रखना है इसलिए अब एक प्रश्न पर आता हूँ कि क्या शारीरिक वासना को प्यार कहा जा सकता ? शायद आप यही कहेंगे कि नही । अधिकतर बुद्धिजीवियों का कहना है कि सच्चा प्यार तो वह है जो एक माँ और पिता अपने बच्चों से करते हैं और एक बच्चा अपने माता पिता से करता है । क्योंकि किसी का बच्चा हमारी नज़र में कितना भी कुरूप हो परन्तु माँ बाप के लिए वह सबसे खूबसूरत होता है, उसमें उनकी जान बसती है । बहुत से विचारकों और मेरे अनुसार प्यार तो किसी को किसी से भी हो सकता है जैसे कि किसी मनुष्य को किसी अन्य जीव से, किसी निर्जीव से, स्त्री को पुरुष से और पुरुष को स्त्री से । यहाँ सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या शारीरिक वासना को प्यार की संज्ञा देना उचित होगा या नही ? सवाल इसलिए है क्योंकि एक स्त्री और पुरुष के बीच प्यार का सम्बंध वासना से भी सम्बंधित हो सकता है । मेरे विचार से जब वासना पवित्रता की हद में आ जाये तब वह प्यार में रूपांतरित हो जाती है । यहाँ पवित्रता का मतलब इतना है कि जब वासना स्वार्थ या अहित न होकर एक दूसरे की समसंतुष्टि हो जाये तब इसे अपवित्र कहना उचित नही होगा । इस प्रकार मैं इस निष्कर्ष पर पहुंचता हूँ कि स्त्री पुरुष के बीच प्यार और वासना में बस पवित्रता का फर्क है । किसी स्त्री का स्त्री से, पुरुष का पुरुष से और इनका किसी अन्य जीव या निर्जीव से प्यार भी स्वर्थ की त्रुटि से पूर्ण हो सकता है । इन सभी बातों और त्रुटियों को दृष्टिगत रखते हुए प्यार को परिभाषित करना मेरे लिए आसान तो नही है, परन्तु मैं एक प्रयास कर रहा हूँ । अतः मेरी दृष्टि में,
"मानवीय संवेदनाओं की समझ की एक अवस्था में जब वासना पवित्रता को प्राप्त कर ले, और स्वार्थ, हित में परिवर्तित हो जाए, तब फलस्वरूप होने वाला ऐहसास ही प्यार है ।"

मुझे यह बोध है कि प्यार को परिभाषित करने में बहुत से विचारकों ने संपूर्ण जीवन लगा दिया फिर भी मेरे जैसे तमाम लोग उनकी परिभाषाओं से संतुष्ट नही हुए और अपने अपने तरीके से परिभाषित करते रहे हैं जैसा कि मैंने भी किया । इसलिए यह भी जानता हूँ कि शायद ही मेरी परिभाषा आपको सन्तुष्ट कर पाए । मैं तो बस एक प्रयास कर रहा था और प्यार के सम्बंध में अपना अनुभव आप से साझा कर रहा था । चूंकि यह कहानी संग्रह, प्रेम कहानियों का संग्रह है इसलिए यह स्पष्ट करना जरूरी था कि मैं प्यार को किस हद तक समझता हूँ और मेरी इस विषय पर क्या सोंच है ।
ऊपर मैंने कहा था कि प्यार की कोई पाठशाला नही होती, यह सत्य है फिर भी प्यार को पढ़ने और समझने के लिए बहुत सामग्री उपलब्ध है , और सभी प्रकार की पाठशालाओं में हम इसे अप्रत्यक्ष रूप से पढ़ते और समझते हैं । इसके लिए कोई गुरु या शिक्षक न होते हुए भी प्रत्येक व्यक्ति हमें प्यार का कुछ न कुछ अंश जरूर पढ़ाता है । यह एक ऐसा विषय है जिस पर सबसे अधिक लेखन हुआ है । बड़े बड़े विद्वानों से लेकर मेरे जैसे मूर्खों ने भी इस पर लिखने का प्रयास किया है । परन्तु अभी तक कोई भी प्यार का वास्तविक चित्रण करने में सफल नही हुआ है , इससे प्रतीत होता है कि प्यार का विषय इतना विस्तृत है कि इसके लिए कोई भी पैमाना छोटा पड़ जाता है । शायद अपने आकर और हमारी अज्ञानता के कारण ही आज तक प्यार अपने मूर्तरूप में नही आ पाया ।

प्यार की परिभाषा पर मेरे इस लेख को पढ़ने और अपना समय देने के लिए मैं लक्ष्मी नारायण "पन्ना" पाठकों को सहृदय आभार व्यक्त करता हूँ ।

अब मैं अपने कहानी संग्रह "नादान मोहब्बत" की ओर आपको ले चलता हूँ । मुझे उम्मीद है कि यह कहानी संग्रह पाठकों के मन को सुकून प्रदान करेगा । इस संग्रह की कहानियाँ मेरे आसपास घटित घटनाओं और मेरी कल्पना का संयुक्त परिणाम हैं ।

नादान मोहब्बत का पहला अध्याय - "तितलियों के बीच" अगले भाग में पेश करता हूँ .......

अन्य रसप्रद विकल्प

शेयर करे

NEW REALESED