पंचायत का फ़ैसला आ चुका था। स्कूल की ज़मीन को पंचायत ने ख़रीद लिया। और इस ज़मीन पर मंदिर, मस्ज़िद और गुरुद्वारा बनेगा ईसाई की संख्या गॉंव में न के बराबर थीं । स्कूल की हालत बड़ी ख़स्ता थी। बच्चे गिनती के रह गए है। बाऱिश में स्कूल में पानी भर जाता है। ज़्यादातर शिक्षक की नौकरी गॉंव से 20 किलोमीटर दूर नगर निगम के स्कूल में लग गई थी। और जो 2-3 शिक्षक बच गए थे। वे भी जाना के जुगाड़ में लगे हुए थे । और अब वहाँ के स्कूल के बच्चे को उसी नगरनिगम के स्कूलों में भेजा जाएगा।
जगन चपरासी था। उस गरीब का रोज़गार भी चला गया। वह भी मायूस नज़रों से स्कूल को देख रहा था। वही फुलवा जो अपने मामा के साथ रहता है। उसे पता है कि अब उसकी पढ़ाई छूट जायेगी। क्योंकि उसका कंस मामा उसे इतनी दूर नहीं जाने देगा और घर का काम करवाएगा । वही मनप्रीत यानि निम्मो भी बहुत उदास थी। क्योंकि उसकी माँ तो थी पर पिता नहीं थे उसकी माँ को घर-घर जाकर काम करना पड़ता था । अब वो कहा इतनी दूर निम्मो को छोड़ने जा पाएगी । और दो चार बच्चे ऐसे भी थे जिनकी परिस्थिति भी ऐसी ही दयनीय थी । रहीम भी अपने चाचा को ज़्यादा परेशां नहीं कर सकता था बस सभी दुःखी मन से एक साथ गॉंव के पीपल के नीचे इकठ्ठे हुए ।
वाहे! गुरुजी तो जगह-जगह रहते है फिर उनके लिए स्कूल को तोड़ने की क्या ज़रूरत है। गुरबाणी में भी यही लिखा "वो हर थाह ते रेह्न्दा है" बाबाजी साडा तो यही स्कूल है। इनु बचा लो।" मनप्रीत ने बड़ी मासूमियत से कहा । फुलवा भी अपने बंसीवाले से प्रार्थना करता है हमारी मदद करो ।
दिन बीतते जा रहे थे । स्कूल टूटना शुरू हो गया था । वही मनप्रीत रोज़ अपने वाहे!गुरु के आगे अरदास करती कि कोई मदद करो । जिनका स्कूल छूट गया वे रोज़ मायूस होकर स्कूल को टूटते हुए ही देखा करते। धीरे-धीरे सबने उम्मीद छोड़ दी कि अब क्या हो सकता है? "कल गुरूद्वारे की नींव रखी जानी है निम्मो फिर धीरे-धीरे मंदिर, मस्जिद सभी की दीवारे खड़ी हो जाएँगी। बाकी बच्चों ने स्कूल जाना शुरू कर दिया है । और जगन ताऊ ने भी वही नए स्कूल के पास अपना झोपड़ा बना लिया है।" फुलवा उदास होकर बोला । " उसके घर देर है अंधेर नहीं" ज़रूर कुछ न कुछ बाबाजी करेंगे। निम्मो भी उदास होते हुए बोली। "पर अब कुछ नहीं हो सकता निम्मो देख लेना हम यूँ ही अनपढ़ रह जाएँगे।"
"सुखी बसे मसकीनिया आप निवार तले वडे-वडे अहंकारिया नानक गरब गले । गुरुद्वारे में यहीं शब्द चल रहा था और मायूस निम्मो यहीं कह रही थी कि अब मैं नहीं पढ़ पाऊँगी बाबाजी और आप कुछ मत करना । रोते हुए वह गुरूद्वारे से चली गई। और शब्द यूँ ही चल रही थी। दीवार खड़ी हो चुकी है । पर रात को इतनी तेज़ अँधेरी आई कि स्कूल की नई दीवार ढह गई। सुबह सब गॉंव वालों ने माथा पीट लिया और और फ़िर नई दीवार बनाने में जुट गए। इस बार मंदिर की दीवार खड़ी की गई मगर जो मज़दूर दीवार बना रहे थे एक-एक करके जाते गए या तो कोई बीमार पड़ गया या फिर किसी को कोई और काम मिल गया। कोई न कोई अड़चन आती गई फ़िर मस्जिद की बनाते समय सीमेंट कच्चा रह गया और दीवार के गिर जाने से एक मजदूर को चोट लग गई ।
"भाइयों सभी धर्मिक स्थलों का काम ठीक से शुरू नहीं हो पा रहा है क्या कहते हो ?" सरपंच जी ने गॉंव के लोगों से पूछा।"हाँ, आप ठीक कह रहे है 550वां गुरुपर्व आने वाला है ऐसा कैसा चलेगा? नया गुरुद्वारा तो बनना ही चाहिए।"सभी गॉंव वाले एक साथ बोले। फुलवा को उसके मामा ने सब्ज़ी का ठेला पकड़ा दिया।और निम्मो भी बुझे मन से माँ के साथ खेतों पर जाने लगी ।
गॉंव वालों ने ज़्यादा मजदूर से काम ज़ोर शोर से शुरू किया । औ सब कुछ जाणदा किस के आगे कीजे अरदास "इसी शब्द को प्यारी सी निम्मो गुरुद्वारे के कोने में बैठकर निम्मो सुन रही थी।आज उसे लग रहा था कि बाबाजी सबकुछ जानते है और फिर हम सबको स्कूल के अलावा कहीं और क्यों जाना पड़ रहा है। निम्मो पुरानी किताबों को ही पढ़ती रहती है ताकि उसका और किताबों का साथ कभी न छूटे।
दिलो को तोड़कर सभी धार्मिक स्थलों की दीवारें खड़ी हो गई । और बच्चों को लगने लगा कि न अब कोई बाँसुरी बजेगी, न कोई अरदास पहुँची और न ही कोई नमाज़ परवान हुई। दिन बीतते जा रहे थे । धुनिया मौसी का भांजा अंकित दिल्ली से आया और एक दिन गॉंव में घूमते-घूमते इन्ही पीपल के नीचे बैठे उदास बच्चों से टकरा बैठा और इनकी बातों को अपने पास रिकॉर्ड कर अपने न्यूज़ चैनल 'भारतवर्ष' में ले गया । वहाँ किसी तरह अपने बॉस को मनाकर यह न्यूज़ दिखा दी । चारों तरफ यह हंगामा मच गया और पूरे भारत ने इस बात की आलोचना हुई कि अगर स्कूल की स्थिति ख़राब हो गई थी तो दोबारा बनवाते या उन सभी बच्चों के लिए दूसरे स्कूल तक जाने के लिए सुविधा उपलब्ध करवाई जाती। शिक्षा से वंचित करने का अधिकार किसने दिया ।
बात राष्टपति तक पहुँची। मुख्यमंत्री ने गॉंव वालों से बात की और यह फैसला लिया गया कि अब स्कूल ही बनेगा और जब तक स्कूल नहीं बनेगा तब तक बच्चों गॉंव से बाहर जो स्कूल है सरकारी गाड़ी के द्वारा बच्चों भेजा जायेंगा ताकि उनकी पढ़ाई न छूटे। और प्रशासन गॉंव वालों को किसी भी धार्मिक स्थल बनाने के लिए अलग ज़मीन देगा । सभी बच्चे खुश थे । भागती हुई निम्मो गुरुद्वारे जा पहुँची और शब्द चल रहा था कि---
"नानक चिंता मत करहो चिंता तिस ही होए"
जल में जंत उपा-ए-अन तिना भी रोज़ी दई"
निम्मो की आँखों में आँसू आ गए । और गॉंव के सभी बच्चे बहुत खुश है। उस मालिक का शुक्रिया करने के लिए निम्मो ने अपनी कमाई के थोड़े से पैसो से पूरे गॉंव में टॉफियाँ बाँटी । एक महीना बीत गया और अंकित गॉंव आया 550वां गुरुपर्व मनाने की तैयारी चल रही थी जगह -जगह शोर था उसे देखते ही सभी बच्चे उससे लिपट गए और गॉंव के लोगों ने भी उसे हाथों-हाथ लिया। "अरे ! मुझसे क्यों लिपट रहे हो मौसी आप सब लोग मुझे क्यों घेरकर खड़े हो गए" अंकित ने सकुचाते हुए कहा। भैया आप पिछली बार और कमाल कर गए । थैंक्यू भैया सभी ने कहा । और गॉंव वालों ने भी धन्यवाद दिया ।
"मौसी बड़ी अज़ीब बात है । पता नहीं मैंने यह किया कि या मुझसे करवाया गया । रात को सपने में मुझे तेज़ आंधी बरसात के कारण यही टूटा हुआ स्कूल आता था । कभी यह काम करने वाले मज़दूर आते और कहते कि "हमसे नहीं बनेगा यह भवन" । पीपल के पेड़ के नीचे उदास बैठे बच्चे और गॉंव का गुरुद्वारे और गुरुद्वारे में चलती शब्द " जैसा सतगुरु सुणीदा तैसो ही मैं ढीठ" और तो और मैं तो अपने बीवी- बच्चों को लेकर शादी में जाने के लिए गुजरात जा रहा था पता नहीं आपके गॉंव बलिया उत्तर प्रदेश कैसे पहुँच गया । और वो मेरा खड़ूस बॉस जो कभी एक बार नहीं सुना और इतना भ्रष्ट है कि कहने ही क्या वो इतनी जल्दी कैसे मान गया । "
अंकित बेटा वो सतनाम परमात्मा तो सभी में रहता है बस देखना यह होता है कि सतनाम वाहेगुरु किस के ज़रिये अपना काम करवा लेता है। तो इस बार तुम ही सही मौसी ने प्यार से अंकित के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा । और फिर उन ग़रीब बच्चों की कैसे मदद नहीं करता तभी तो कहते है कि कि लेणा मैं वडया बनके मेरा सतगुरु यार ! गरीबा दा !!! मौसी मुस्कुराते हुए बोली और अंकित भी बहुत संतुष्ट नज़र आ रहा था । 550वां गुरु पर्व पूरी श्रद्धा से मनाया गया सभी धर्म के लोग पूरी श्रद्धा से गुरु के द्वारे पहुंचे ।
कुछ समय और बीत गया बच्चे गॉंव के ही स्कूल जाने लग गए । गॉंव ने प्रशासन से मिली ज़मीन पर अस्पताल खुलवाना बेहतर समझा । अंकित भी गॉंव में यह परिवर्तन आया देखकर सोच रहा था कि आज जितने भी मंदिर, मस्जिद, गिरिजाघर, गुरुद्वारे या कोई और धार्मिक स्थल है सब माया(धन) से ही चलते है पर एक वो मालिक (परमात्मा ) है जो किसी मुरीद से ही चलता है।