मासूम की मौत का गुनहगार कौन ? NR Omprakash Saini द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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मासूम की मौत का गुनहगार कौन ?

मासूम की मौत का

गुनहगार कौन ?


लेखक – एन आर ओमप्रकाश ।



समीर को रात 9 बजे एक अनजान नंबर से व्हाट्स अप मैसेज मिलता हैं

हाय समीर, कैसे हो?

समीर उत्तर देता हुआ –

हैलो, मैं ठीक हूँ, आप कौन?

अनजान नंबर से जवाब मिलता हैं-

सेजल

समीर सेजल का नाम सुनते ही जल्दी जल्दी टाइप करने लगा –

अरे सेजल तुम, इतने दिनो के बाद। ओर ये नंबर किसके हैं।


समीर ओर सेजल दोनों अच्छे दोस्त हैं। इन दोनों की दोस्ती आनंदपुर गाँव मे एक शादी के फंक्शन मे होती है। सिर्फ एक दिन मे ही दोनों अच्छे दोस्त बन जाते हैं। बचपन से एक ही गाँव पीपाड़ रोड मे रहते हैं। मगर पहली बार मिलना आनंदपुर मे होता है।

सेजल की तरफ से बिना कोई देरी किए सीधा मैसेज मिलता हैं –

समीर तुम मेरे दोस्त हो ना।

समीर का जवाब होता हैं – हाँ इसमे कोई पूछने वाली बात हैं।

सेजल - दोस्त मानते हो तो प्लीज इस दोस्त की एक मदद कर दो।

समीर – क्या मदद चाहिए। बोलो ये दोस्त किस तरीके से आपकी मदद कर सकता है।

सेजल – काही से जहर लाकर दे दो प्लीज।

समीर – पागल हो गई। क्या ? क्या फालतू बात कर रही हो।

सेजल – समीर मैं बहुत तकलीफ मे हूँ मुझे इसके अलावा कोई रास्ता भी नही दिखता।

समीर – सेजल तुम खुलकर बताओ। क्या हुआ? किस बात से परेशान हो। इस दोस्ती के लिए मेरे से जो भी होगा। मैं जरूर करूंगा।

ये मैसेज पढ़कर सेजल ने का कॉल किया?

समीर- बगैर देरी किए जट से कॉल को उठाया ओर बोला- हाँ हैलो, सेजल!

फोन के उस तरफ से समीर को आह भरी रोती हुई सिसकियाँ मिल रही थी। लगभग दो – तीन मिनट हो गए। सिसकियों के अलावा कोई आवाज नही मिली। तो समीर उसकी पीड़ा को समझ गया। समीर को लगा सेजल को उसके साथ की सक्त जरूरत हैं। समीर सहनुभूति के साथ बोला – देखो सेजल रोना बंद करो। अब मैं हूँ ना। मुझे बताओ तुम्हारे साथ क्या हुआ।


समीर ओर सेजल के बीच हुए तकरीबन 1 घंटे की बात मे समीर का मन बहुत ही व्याकुल, अशांत ओर विचलित हो गया। सेजल के लिए समीर के पास भी आँसू ही मिले। सेजल की बात सुन समीर भी डिप्रेशन मे आ गया। सेजल की तकलीफ़ों के साथ समीर के मन मे बहुत सारे प्रश्न बन गए। जिनका उतर मिलना शायद लगभग नामुमकिन सा प्रतीत होता था।

समीर मन की शांति के लिए गिरधारी मंदिर मे चला गया। समीर गिरधारी भगवान की मूर्ति के सामने लगभग 10 मिंट तक हाथ खड़ा रहा। समीर को इस कदर खड़ा देख पुजारी जी को इतनी मनुभूति हो गई थी की ये बालक किसी बड़ी समस्या मे फसा हुआ हैं।

मंदिर के पुजारी जी समीर के समक्ष आकर बोले – बेटा इतना उदास क्यों है? कोई परेशानी है।

समीर बोला – पुजारी जी, मन बहुत अशांत हैं। मन मे अनेकों प्रकार के उठ रहे प्र्श्नो के उतर चाहिए।


पुजारी जी समीर की बात सुन बोले बेटा – वह गणेश मूर्ति हे उसके सामने जाकर बैठ जाओ ओर 108 बार ॐ गं गणपतये नमः का जाप करो। मन शांत हो जाएगा।

समीर 108 बार गणेश जी मंत्र का जाप करके फिर से पुजारी के सामने आकर बैठ गया।

पुजारी जी मुसकुराते हुए बोले - बेटा मन शांत हुआ।

समीर – नही पुजारी जी जो मन मैं प्रश्न उठ रहे है उनके जवाब मिलने जरूरी है।

पुजारी जी बोले – बेटा जहां तक संभव होगा मैं कोशिश करूंगा तुम्हारे सारे सवालों के जवाब मिले। पुछो जो पुछना हैं?


समीर का पहला प्रश्न – क्या समाज मे लड़की का पैदा होना अशुभ हैं? या लड़की बनकर जन्म लेना गुन्हा होता हैं?

पुजारी जी का जवाब था – नही बेटा, लडकी का पैदा होना। शास्त्रों मे लक्ष्मी प्राप्ति का संकेत माना जाता है। वो माँ-बाप भाग्यशाली होते हैं जिनके घर मे बेटी पैदा होती हैं।

समीर का दूसरा प्रश्न – अच्छा! तो उस लक्ष्मी को अधिकार नही होता हैं की वह अपना जीवन अपनी इच्छा से जिये। जिस प्रकार एक लड़के को आजादी प्राप्त होती है वेसा अधिकार लड्की को भी तो होना चाहिए?

उतर – पूर्ण अधिकार होता है बेटा, कोई भी बच्ची अपना जीवन अपनी इच्छा के अनुसार जी सकती हैं। अपनी ज़िंदगी के फैसले वह स्वयं ले सकती है। ये बात ग्रंथो मे वर्णित है। ओर देश के संविधान मे भी इसकी अलग व्यवस्था कर रखी हैं।

समीर का तीसरा प्रश्न – क्या समाज मे लड़का लडकी का दोस्त होना उचित हैं।

उतर – बेटा, ये दोस्ती बिलकुल उचित मानी जाती है। मगर ऐसी दोस्ती मे होने वाले घर्णात्मक कार्य को शास्त्रों मे गलत ओर पाप ठहराया गया हैं।

समीर बीच मे बात काटता हुआ बोला – पुजारी जी मैंने सिर्फ इतना पूछा है की ऐसी दोस्ती उचित है या नही बस।

पुजारी जी – उचित है बेटा।

समीर का चौथा प्रश्न – पुजारी जी, क्या हिन्दू समाज शास्त्रों मे लिखी बाते मानता है? क्या गीता के ज्ञान को समझता है। क्या भगवान की लीला को अपनाता है।

पुजारी जी – हाँ, हिन्दुत्व धर्म का प्रतीक है। इसमे समाहित एक एक बात को हम लोग अपनाते है।

समीर का पाँचवाँ प्रश्न – अच्छा तो पुजारी जी, भगवान श्री कृष्ण ओर द्रोपदी का रिश्ता क्या दर्शाता है।

पुजारी जी का उत्तर – द्रोपदी ओर कृष्ण का रक्त से कोई संबंध नही था। द्रोपदी राजा द्रुपद की पुत्री होती है। द्रुपद, श्री कृष्ण को अपनी पुत्री का पाणिग्रहण करने का प्रस्ताव देते है। मगर श्री कृष्ण ये कहते हुए प्रस्ताव को अस्वीकार कर देते है की वो द्रोपदी को बहिन के रूप मे देखते है इसलिए वो द्रोपदी को अपनी बहिन बनाना चाहते है। इस प्रकार से कृष्ण ओर द्रोपदी का रिश्ता भाई बहिन का रिश्ता होता है।

समीर – तो कृष्ण द्रोपदी को सखी कहकर क्यों पुकारते थे? क्या वो दोनों दोस्त थे?

पुजारी जी – हाँ बेटा, वो दोनों बहुत ही घनिष्ठ मित्र थे। कृष्ण ओर द्रोपदी के मध्य अटूट दोस्ती का प्रेम था। उस युग की एक मात्र नर ओर नारी की अद्वितीय दोस्ती थी। जिसे पूरा हिन्दु समाज स्वीकारता है।

समीर का छठा प्रश्न – अगर लड़का – लड़की की दोस्ती उचित हैं, ये बात शास्त्र भी साबित करता है। तो फिर आज का समाज ऐसी दोस्ती को गलत क्यों ठहरता है?

पुजारी जी का उत्तर – बेटा, हर समाज की कुछ मर्यादा होती है। इस प्रकार से दोस्ती बनाना समाज मे मान्य नही होती है। ऐसी दोस्ती को सार्वजनिक तोर पर कोई नही अपनाता। समाज का कोई भी पिता अपनी पुत्री को ऐसी अनुमति नही देगा।

समीर हसता हुआ बोला – तो क्या यह बात भी शास्त्रो मे लिखी है। या फिर शास्त्र गलत है।

पुजारी जी – नही बेटा, शास्त्रों मे ऐसा कुछ भी वर्णित नही है। ये तो समाज की मानसिकता होती है। शास्त्र गलत नही है बस वो युग अलग था ओर ये युग अलग है। बस इतना सा फर्क है।

समीर का सातवाँ प्रश्न – शास्त्रो के अनुसार आज के समाज मे एक भाई का धर्म क्या होना चाहिए?

उत्तर – भाई का धर्म कहता है की बहिन की इच्छा के विरुद्ध उसके प्रति कोई गलत फेसाला नही लेना। आज के समाज की बहिन खुद की ज़िंदगी के फैसले वो स्वयं ले सके इस वचन की जरूर रखती है। भाई का बहिन के प्रति पूर्ण निष्ठा, समर्पण ओर प्रेम भाव रखना ही भाई का धर्म होता है।

समीर – अच्छा तो पुजारी जी, जैसे भगवान श्री कृष्ण ने अपनी बहिन की इच्छा के अनूसार अर्जुन के साथ भगाया। फिर उनकी शादी करवादी। अगर आज के समाज मे कोई भाई ऐसा करता है। तो वो समाज मे कलंक कहलाता है। जैसे रुकमनी भागकर शादी करती है। वैसे अगर आज कोई बेटी करती है। तो उसे भी समाज नही स्वीकारता है। ऐसा क्यों? क्या ये आज भाई के धर्म का हिस्सा नही है? क्या, ये उस लड़की का अधिकार नही है की वो अपने फैसले स्वयं ले सके।

पुजारी जी का उत्तर – बेटा आज के समाज की विचारधारा के हम गुलाम बन गए है। इसमे हम जैसी विचार धारा वाले लोग असहाय नजर आते है।

समीर – तो क्या भगवान श्री कृष्ण ने जो कार्य किए थे। वे सभी असम्मानीय थे। मतलब रुकमनी को भगाकर ब्याह करना, सुभद्रा को अर्जुन के साथ भगाना, द्रोपदी से दोस्ती रखना, राधा से प्रेम करना, क्या ये सारे कर्म जो है अशोभनीय थे।

पुजारी का उत्तर – नही बेटा, ये सारे कर्म उनकी लीलाये थी, ऐसी लीलाए कर वो, समाज मे धर्म की स्थापना कर रहे थे। उन्हे हिन्दुत्व धर्म मे समाज सुधारक माना जाता है।

समीर तो फिर आज का समाज ऐसी विचारधाराओं ओर कर्म को अशोभनीय ओर कलंकदायक क्यों मानता है?

पुजारी जी – बेटा उस युग मे सिर्फ चार जाती के समाज हुआ करते थे। मगर आज अनगिनत जाति, उपजाति के लोग समाज मे रहते है। इसलिए समाज की जाति से बाहर किया गया ऐसा कर्म कुकर्म कहलाता है।

समीर का अगला प्रश्न – अगर ऐसा कर्म एक जाति के समाज मे ही हो तो क्या? समाज को ऐसे कर्म स्वीकार्य है।

पुजारी जी का उत्तर – हाँ बेटा, आज भी समाज ओर शास्त्र ऐसे किये कर्म को स्वीकारता है, मगर ये समान जाति धर्म ओर समाज मे होना चाहिए।


समीर का अगला प्रश्न – अच्छा अगर समाज का कोई व्यक्ति गलती करता है तो उसके लिए सजा निर्धारित होती है, लेकिन कोई पूरा समाज गलती करे तो उसकी कोई सजा हो सकती है।

उत्तर – बेटा एक समाज कभी गलती कर भी नही सकता है।

समीर का अगला प्रश्न – अगर कोई स्त्री अपने बहिन धर्म ओर माँ धर्म के संकट मे फस जाती है तो उसका पहला धर्म क्या होना चाहिए। मतलब एक माँ बनकर अपनी संतान का साथ देगी या बहिन बनकर भाई का। अगर भाई के मोह मे अपनी संतान के साथ अन्याय करे तो क्या ये उचित होगा।

पुजारी का उत्तर – दुनिया की कोई भी माँ अपनी संतान का बुरा नही कर सकती। एक माँ के लिए सारे रिश्ते, धर्म पीछे छुट जाते है जहां उसको माँ का धर्म निभाना होता है। इसलिए कोई भी स्त्री पहले माँ होने का धर्म निभाएगी।

समीर का अगला प्रश्न – अच्छा तो अगर किसी व्यक्ति के समक्ष पिता ओर पति होने के धर्म मे फस जाए तो पहले किस धर्म का पालना करेगा।

उत्तर – यह पर परस्थिति के अनूसार धर्म का पालन करना होगा। अगर जीवन संगनी धर्म के साथ है तो उसका साथ देना उचित होगा ओर अगर संतान धर्म के साथ खड़े होते है तो संतान का साथ देना उचित माना जाता है। येही पिता का धर्म होता है।

समीर का नौवा प्रश्न – एक पति का धर्म क्या होता है।

उत्तर – पति का धर्म हमेशा पत्नी की इच्छा के साथ चलने को कहता है। जीवन संगनी के इच्छा के विरुद्ध कोई भी अनुचित कार्य करना पाप होता है। अगर पत्नी किसी प्रकार के अधर्म का साथ देती है तो पति का धर्म एक सामाजिक व्यक्तित्व के धर्म मे परिवर्तित हो जाना चाहिए।

समीर बोलता है - एक अंतिम प्रश्न है पुजारी जी।

पुजारी जी हाँ पूछो। क्या प्रश्न है?

समीर का दशवा प्रश्न – एक दोस्त का धर्म क्या होना चाहिए?

पुजारी जी मुसकुराते हुए उत्तर देते है – बेटा, ये ही एक ऐसा रिश्ता होता है जिसका धर्म सर्वोतम ओर सर्वोपरि होता है। जिसमे मित्र चाये धर्म के रास्ते हो या अधर्म के रास्ते, मित्रता के लिए उसका साथ देना ही धर्म होता है। इस धर्म मे जात – पात, ओर रक्तसंबंध नही देखा जाता ओर नही कोई लिंग भेद। सिर्फ प्यार – स्नेह ओर साथ देखता है। दोस्ती के धर्म के आगे युगो युगो से समाज ओर समाज की मान्यताए भी परास्त होती आई है। ये ही एक मात्र धर्म होता है जिसके आगे समाज भी आसाहय नजर आता है।

समीर हाथ जोड़ता हुआ बोला- आपका बहुत बहुत धन्यवाद पुजारी जी। आज आपने समाज की मर्यादा को परास्त करने वाले सवालों के जवाब मुझे दिये। आपका आभारी रहूँगा।

पुजारी जी – बेटा, मुझे खुशी है की मैं आपके असामान्य सवालों के जवाब दे सका। मगर अब मेरा भी एक प्रश्न है। अगर तुम चाहो तो उत्तर दे सकते हो।

समीर बड़ी ही विनम्रता के साथ – जी पुजारी जी, कोशिश करूंगा की पूरी ईमानदारी के साथ आपके प्रश्न का उत्तर दे सकूँ।

पुजारी जी बोले – बेटा, ऐसे असमान्य प्रश्न आपके मन मे कैसे प्रकट हुए। बिना किसी आसमाजिक घटना के कभी भी किसी व्यक्ति के मन मे ऐसे प्रश्न नही उठ सकते है। कोई तो ऐसी घटना घटित हुए आपके साथ जो आपका मन असामान्य प्रश्नो से भर आया।

समीर बोला – आप सच कह रहे हो पुजारी जी। कुछ ऐसा ही समझो जो मेरे साथ घटित हुआ ओर होने वाला है। जिसकी तैयारी कर रहा था।

पुजारी जी – जरा खुलकर बताओ बेटा, क्या बात हुई?

समीर – पुजारी जी मेरी एक सेजल नाम की दोस्त है। जिसके साथ अन्याय होने जा रहा है। आज उसका कॉल आया था। बहुत परेशान ओर व्याकुल थी। जब वो 2.5 साल की थी तब उसके नानाजी अपने बेटे के बहू के बदले (आमने – सामने की शादी) उसकी शादी कर दी थी। अब उसके नानाजी इस दुनियाँ मे नही रहे। वो बताती है की जिसके साथ उसकी शादी हुई है उसने कभी उसको देख तक नही। मतलब वो नही जानती है की उसकी शादी किसके साथ हुई है। ओर उसके घर वाले उसकी इच्छ के विरुद्ध उसको विदा कर रहे है। सेजल बताती है की वह व्यक्ति उससे 10 साल बड़ा है। सेजल अभी 16 साल की है ओर वह लड़का 27 साल का ऐसे मे उसके साथ जबर्दस्ती हो रही है। उसने इसी वर्ष 12वी बोर्ड परीक्षा 89% विज्ञान वर्ग से उतिर्ण की है ऐसे मे उसके बहुत सारे सपने है। वो पढ़ना चाहती है। मगर समाज का कोई भी व्यक्ति उसका साथ देने को तैयार नही है। इसलिए अब आखिर मे उसने मेरे से मदद की गुहार लगाई है।

पुजारी जी चिंता जताते हुए बोले – ये तो अन्याय है।

समीर – जी पुजारी जी, आज आपके शास्त्र ज्ञान, ओर समाज धर्म सभी गलत साबित हो रहे है। कोई भी धर्म के रास्ते नही चल रहा है। आज एक समाज गलती कर रहा है ऐसे मे वह लडकी बिलकुल असहाय सी हो गई है। इसलिए उसने इस दोस्त को याद किया है। अब आप ही बताओ मैं अपना धर्म कैसे निभाऊँ? अगर दोस्त की ओर देखता हूँ तो समाज ओर परिवार विरोधी बन जाता हूँ ओर अगर परिवार ओर समाज का साथ देता हूँ तो दोस्ती के नाम पर कलंक साबित होता हूँ। ऐसे धर्म संकट मे आप ही कोई रास्ता दिखाये।

पुजारी जी – बेटा, ये उचित है की आपको दोस्ती का धर्म निभाते हुए दोस्त का साथ दे। मगर दोस्त का साथ देते देते तुम एक पूरे समाज ओर परिवार से अलग हो सकते हो। इस दर्द को सहने की भी तो हिम्मत होनी चाहिए। क्या तुम दोस्ती के धर्म के आगे परिवार ओर समाज के खिलाफ खड़े हो सकते हो। अगर ऐसा करते हो तो तुम भावी पीढ़ियों की दोस्ती का एक उदारण के रूप मे देखे जाओगे।

समीर – अगर मेरे समाज ओर परिवार के खिलाफ होने से ये एक गलत विचारधारा खंडित कर सकता हूँ । तो मुझे मंजूर है पुजारी जी की मैं समाज से अलग हो जा हूँ।

पुजारी जी – लेकिन बेटा अगर वो लड़की उस व्यक्ति के साथ भविष्य मे सुखी जीवन यापन कर सकती है तो एक कन्या का घर उजाड़ने का पाप अपने माथे मत मठ देगा। कोई भी कदम उठाने से पहले पूर्णविचार जरूर कर लेना। बस इतनी सी सलाह दे सकता हूँ।

समीर – अगर सुखी नही रही तो।

पुजारी जी – इसका निवारण बाद मे भी हो सकता है।

समीर बड़े ही विनम्र भाव से पुजारी जी के पाँव छूकर बोला – ठीक है पुजारी जी। जैसी आपकी मर्जी, परस्थिति के अनूसार ढलने की कोशिश करूंगा। अब आज्ञा दीजिये।

पुजारी जी – सदा खुश रहो।


दूसरे दिन ही समीर, सेजल के घर पहुच जाता है। सेजल के घर वाले सभी समीर का स्वागत करते है। सेजल की सारी सहेलियाँ भी बेताबी से समीर को सामने से देखने का इंतजार कर रही थी। क्योंकि आज तक समीर को सिर्फ सेजल की बातों मे सुना ओर महसूस किया था। जिसे रोज सेजल की कहनी मे सुनती थी। आज उस समीर को सामने से देखने का मोका मिल रहा था। समीर के आस पास लड़कियों की भीड़ इक्कठा हो गई। सेजल ने सभी से रिक्वेस्ट की, कि कुछ पल के साथ अकेला छोड़ दे। आज वो जी भरकर समीर के साथ बात करना चाहती है। सेजल के कहने पर सभी ने उन दोनों को अकेला छोड़ कमरे से बाहर निकल जाती है। सेजल की खास दोस्त अनीता खाना लेकर आयी ओर बोली समीर जी आज सुबह से कुछ नही खाया जिद्द है की पहला निवाला आपके हाथो से खाएगी। अब आप आ गए हो तो इनकी ये जिद भी पूरी कर दो।

समीर अनीता के सामने देखता हुआ बोला – जी जरूर, क्यों नही, इधर लाओ।

समीर ने सेजल को अपने हाथो से हल्का सा खाना खिलाया। सेजल अपने समीर के प्रति आए प्रेम को रोक नही सकी ओर झट से आंखो के आंसुओं को पोसती हुई समीर के गले जा लिपट गई।

समीर बड़े ही प्यार से सेजल का माथा चूमता हुआ बोला – अब बस कर पगली कितना रोएगी। चुप हो जा। मैं हूँ ना, तेरा साथी, दोस्त ओर तेरा सखा समीर। अब ओर बुरा नही होने देगा।

सेजल, समीर के गले लगी हुई करूण शब्दो मे बोली – समीर, तुम देख रहे हो ना, मम्मी जी, पापाजी, नानीजी ओर मामाजी सभी कितने खुश हैं। इनकी इस खुशी के आगे मैं अपना सारे सुख सपने ओर खुशी कुर्बान कर रही हूँ। मुझे पता है तुम क्या करने वाले हो। मगर अब मैं चाहती हूँ की तुम ऐसा कुछ नही करो, जैसा चल रहा है बस चलने दो प्लीज।

समीर गहरी सांस से आह भरता हुआ बोला – जैसी आपकी मर्जी सेजल। तुम जो कहोगी वैसे ही करूंगा। तुम्हारी खुशी मे ही मेरी खुशी है।

इस प्रकार समीर ओर सेजल लगभग 10 मिंट तक गले लगे बैठे रहे। 10 मिंट बाद कमरे के दरवाजे से आवाज आई। अगर मिलना हो गया तो हम लोग अंदर आ सकते है।

समीर बोला – हाँ! क्यों नही। आपके बिना संबालेगा कौन?

सेजल समीर के सामने देखकर बोली – मतलब तुम जा रहे हो। विदाई तक तो रुको। मेरे साथ बनो रहो। प्लीज।

समीर बड़े ही प्यार से सेजल के गालों को खिचता हुआ बोला – कहीं नही जा रहा हूँ पगली, तुझे छोडकर बल्कि तू जा रही है हम सभी को छोड़कर।

सेजल उदास नजरों को झुकाती हुई बोली- हम्म सच मे जा रही हूँ।

समीर हसता हुआ बोला – अब ओर उदास मत हो। जल्दी से तैयार हो जा मैं बाहर ही हूँ। ओर वहाँ से उठता हुआ बाहर चला जाता है।

इस प्रकार सेजल की विदाई करवाकर समीर फिर से शहर लौट आता है।

दूसरे दिन सेजल की दोस्त अनीता का फोन सेजल के ससुराल से आता है। जिसमे सेजल बात करती हुई बहुत खुश नजर आती है। समीर को भी तसली हो जाती है की अब उसकी दोस्त खुश है, एक अच्छा साथी ओर परिवार मिल गया। इसलिये वह इतनी खिलखिलाकर बात करती है।

मगर चार दिन बाद सेजल के नंबर से मिला मैसेज समीर की नींद उड़ा देती है। जिसमे सेजल फिर से मदद की गुहार लगती है।

समीर पूछता है – कहाँ पर हो अभी।

सेजल का जवाब – पीपाड़ रोड, अपने घर।

समीर – तो फिर क्या हुआ? अब कैसी मदद चाहिए?

सेजल फोन करके बताती है – अब वापस नही जाना चाहती। मुझे ये रिश्ता नही चाहिए। मेरे साथ बहुत बुरा बर्ताव हो रहा है।

समीर - क्या हुआ सेजल इतनी गबराई हुई सी क्यों बात कर रही है।

सेजल बोलती है – प्लीज हेल्प मी समीर। मैं मर जाहुंगी। अब ओर सहन नही होता। बहुत जबर्दस्ती हो रही है मेरे साथ। अपनी दोस्त को बचालों समीर, अपनी दोस्त को बचालों।

समीर – ठीक है। पहले रोना बंद कर मैं कुछ करता हूँ।

सेजल – मुझे ये रिश्ता नही रखना समीर। मैं जीना चाहती हूँ। मगर ऐसे मर मर के नही। मेरे साथ बहुत जबर्दस्ती कर रहे हैं। मैं क्या करू। कुछ भी करो मगर मुझे बचा लो, प्लीज तुम्हारे आगे हाथ जोड़ती हूँ।

समीर – ठीक है सेजल, कल सुबह होने तक रुको मैं कुछ करता हूँ, महिला आयोग जाकर बात करेंगे हो सकता है, वहाँ से कोई मदद मिल जाये। तुम अपनी ज़िंदगी को फिर से खुशियों के साथ शुरू कर सकों। लेकिन एक बार ये बात अपने ममी पापा से भी कर लो हो सकता अब वो तुम्हारा साथ दे दे।

सेजल – मैंने बात कर ली है समीर। कोई साथ नही देने वाला है। मेरी मदद के लिए कोई आगे नही आयेगा। कल सुबह वो राक्षस लोग मुझे लेने आ रहे है। तुम कुछ भी करो मगर प्लीज मुझे बचा लो, मैं उनकी बेटी के उम्र की हूँ ये सब फ़ेस नहीं कर सकती। समीर प्लीज हेल्प मी।

समीर बीच मे बात काटता हुआ बोलता है – ठीक है सेजल तुम सुबह तक हिम्मत बानए रखो।

सेजल – मैं बिलकुल टूट चुकी हूँ समीर, अब ओर सहन नही होता। जो भी करना है जल्दी करो। मगर ये रिश्ता नही रखना।

समीर – ठीक है अभी तुम चैन से सो जाओ। सुबह कुछ करते है।

सेजल – ठीक है समीर मुझे सुबह का इंतजार रहेगा।


सुबह आठ बजे समीर का फोन फिर से बज उठता है। समीर ने फोन उठाया तो उस तरफ से खामोशी के साथ सिर्फ रोती हुई सिसकियाँ सुनाई पड़ी। इतनी गहरी सिसकियाँ सेजल के साथ घटित होने वाली अनहोनी की खबर समीर के कानों तक पहुंचा रही थी की अब तुम्हारी सेजल इस बेदर्द दुनियाँ मे नही रही।
समीर बिना कोई देरी किए गाँव की ओर रवाना हो गया। आंखो मे सेजल के शोक के दर्द भरे आँसुओ को छुपाता हुआ गाँव पहुंचा। सेजल के पड़े निर्जीव शरीर को गले लगाते ही आंसु अपना सब्र खो बैठे। ओर ज़ोर ज़ोर से चिलाते हुए बाहर निकल पड़े। समीर की उस दर्द भरी चीख से ऐसा लगता था की समीर के भी प्राण निकल जाएंगे। लोगो ने समीर को मजबूती से गले लगये हुए सेजल के शरीर से अलग किया। सेजल के पिताजी समीर को गले लगाकर शांत करने की कोशिश करने लगे।

सेजल शांत पड़ी रूह से मानो समीर आवाज दे रही हो मुझे बचालों समीर, मैं जीना चाहती हूँ मुझे बचा लो। मैं आपके आगे हाथ जोड़ती हूँ समीर... प्लीज मुझे बचालों।

आज सेजल की ये मृत पड़ी देह पूरे समाज से एक ही सवाल कर रहा थी की मेरा गुनहगार कौन हैं? मेरी इस दर्दनाक मौत का जिम्मेदार कौन है? मेरा क्या गुन्हा था जो मेरे नसीब मे ऐसी दर्दनाक मौत मिली।

आज सेजल अपनी मृत्यु के साथ एक सवाल छोडकर चली गई। ऐसी मासूम मौत का गुनहगार कौन होता हैं? आप किसको गुनहगार ठराओंगे?

लेखक – एन आर ओमप्रकाश।