दीप शिखा - 10 - Last Part S Bhagyam Sharma द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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दीप शिखा - 10 - Last Part

दीप शिखा

तमिल उपन्यास

लेखिका आर॰चुड़ामनी

हिन्दी मेँ अनुवाद

एस॰भाग्यम शर्मा

(10)

गीता के चेहरे को तीनों घूर कर देख रहे थे | रामेशन तो सिर्फ अपने प्रश्न के उत्तर के लिए उसको देख रहा था | लेकिन पेरुंदेवी, आने वाले शब्दों में जो तूफान होगा उसे सोच पहले से ही डरी हुई थी अत: उसका गला सूखने लगा और वह दयनीय दृष्टि से उसे देख रही थी |

सारनाथन जी उत्सुकता से बेचैन थे | एक क्षण में ही सारी पुरानी यादें मस्तिष्क में घूम गईं, उनकी रोमावली खड़ी हो गई | उन तीनों की भावनाएँ, इच्छाएँ और मन के अंदर की बात सब एक साथ बाहर आने को है | तीनों की दृष्टि उसके ऊपर ही है ये जब गीता ने महसूस किया तो थोड़ी देर पहले उसमें जो हिम्मत और शांति उसमें थी वह गायब हो गई | वह बेचैन हो उठी, मैं जो बोलने वाली हूँ उसे ये लोग किस तरह लेगें ? इस डर ने उसे घेर लिया | उसका दिल तेजी से धड़कने लगा | उसने तीनों के चेहरों को एक के बाद एक डर और असमंजस के साथ देखा | ‘उस घबराहट के अनुभव को अधिक देर तक सहन करने से तो अच्छा है उस विषय को एकदम से ही कह दूँ थोड़ा-थोड़ा कर बताने के बजाय शायद यही ठीक रहेगा’ उसे लगा | पिछले हफ्ते जब अम्मा से बात करना चाही, तब अपने शब्दों को सजा कर शांत मन से जो बोलना चाह रही थी वह शांति अब मन में नहीं है | उसके अंतर्मन में छुपी निजी बात, उसके मन के नायक की बात, एक ही सांस में बाहर आ गई -

“मैं किसी से प्यार करती हूँ” वह बोली । कमरे में कुछ देर कोई आवाज नहीं आई | एक मौन चारों तरफ फैल गया | उसके अंदर की बात अचानक ही सामने आने पर सब आश्चर्यचकित हो गए | उनके कुछ बोलने से पहले यह मौन ही हजारों प्रश्न पूछ रहा हो जैसे उसे ऐसा लगा | तीनों के चेहरों को देख उसे लगा की विश्वास न करने जैसी कोई बात उसने बोल दीहो |

क्षणभर में ही उसका जो निजी आन्तरिकभावहै वह प्रकट हो गया। ये लोग क्या सोच रहे होंगे? ‘हमारे परंम्परागत परिवार में ये क्या प्यार-व्यार ? ऐसा बोलेंगें ? जो सोच रहे हैं उसे बोल दें तो ये जो अति का संकट है वह खत्म हो ! वह हंसने का प्रयत्न करने लगी, पर हंस न सकी | अचानक उसे लगा मैंने कुछ अधिक दुस्साहस तो नहीं कर दिया! ऐसा ही लगता है | ऐसा सोच कर ही उसका शरीर कांपने लगा |

“क्या है अप्पा ?........ अप्पा !...... कोई तो कुछ बोलो ना ! मैं बोल रही हूँ सुनाई दे रहा है ना ? ताता, (नाना) क्यों कुछ नहीं बोल रहे हो ? अम्मा, अम्मा क्यों अम्मा ऐसे बिना कुछ कहे आँखें फाड़-फाड़ देख रही हो ? बोलो ना माँ ! मेरे समझ में कुछ नहीं आ रहा है अम्मा !”

अचानक सारनाथन ने जोर जोर से हँसना शुरू किया | धुएँकी तरह फैला मौन क्षण भर में हँसीमें हवा जैसे काफूर हो गया उनके हँसते ही रामेशन ने भी ‘वाह बेटा ! ऐसी बात है कहते कहते सीटी बजाई |

पेरुंदेवी का हृदय तूफान के बाद हुई शांति के जैसे शांत हो गया | दुख के बाद खुशी भीआघात सी लगी| दिमाग जैसे भ्रमित सा हो गया | मन के अंदर सच को स्थान बनाने में समय लगा, एक डर व घबराहट थी| आखिर अपने को संभाल लेने पर उसके मुंह से बोल फूटे

“अरे बेटी कन्ने ! (प्यारी) मेरे पेट में दूध डाली ! (मुझे शांति मिली) गीता, मेरी गीतू, यहाँ आओ, मेरे पास आओ मेरी सोनिया !”

एक क्षण को गीता चौंकी, फिर उसका चेहरा खिल कर चमकने लगा | वह फर्श पर पैरों को फैलाकर बैठी हुई बुढिया नानी की गोद में जा बैठी |

कांपती मोटी उँगलियों से, वात्सल्य से भरकर पेरुंदेवी ने उसके चेहरे को सहलाया, सिर को सहलाया फिर अपने से चिपकाकर उसे चूम लिया | हे भगवान........ हे भगवान तूने क्या दया दिखाई हम पर ! इसे मैं तुम्हें नहीं दूँगी मैं बोली, तुमने इसे मुझे दे ही दिया | मैं डर रही थी कहीं दूसरी बार भी मेरे हृदय को दुख: न पहुंचे, तूने मुझे अपार खुशियाँ दे दीं | मैंने इसके लिए जो चाहा वह सब कुछ तुमने दिया | मैं इसके लिए प्रभु को कितना भी धन्यवाद दूँ कम है |

“अम्मा........ अम्मा”

“मेरा गला सूख रहा है....... थोड़ा पानी लेकर आ |” पेरुंदेवी का शरीर भावनाओं के अतिरेक से शिथिल होने लगा वह डगमगाई |

गीता भाग कर अंदर जा एक गिलास ठंडा पानी लेकर आई | ठंडा पानी होने के कारण चाँदी के गिलास के बाहर पानीकी बूंदें जम गई थीं | फ्रिज में काँच के बोतल में रखा अनाचार पानी पर भी ध्यान न देपेरुंदेवी ने बड़ी बेसब्री से उसे पी लिया | सांस का फूलना धीरे-धीरे ठीक हुआ | आश्वासन से आँखों के आँसू पूरी तरह खत्म हो गए | अपने चेहरे और आँखों को उसने अपने साड़ी के पल्ले से पोंछा, अपने कमजोर शरीर को गीता के हाथों का सहारा देकर धीरे-धीरे चार कदम चल कर पास में जो कुर्सी थी उस पर बैठ गई |

गीता ने भी इस बीच अपने को संभाल लिया | पेरुंदेवी के मन की बात तो वह समझ गई, परंतु अप्पा क्या बोलेंगे ? उनकी आज्ञा ज्यादा जरूरी है ? उनके मना करने पर भी वह अपने प्यार को नहीं ठुकरायेगी | फिर भी उनकी आज्ञा व आशीर्वाद के बिना उसे अच्छा नहीं लगेगा | जाने वाले रास्ते को तो उसने तय कर ही लिया | उसके बाद भी बीच में कोई रुकावट न आए तो ही आसानी होगी ना ?

“अप्पा ! आपने कुछ नहीं बोला ! आपकी बेटी एक एटम बम को फेंक रही है.......”

“इसमें एटम बम की क्या बात है ? समय ऐसा ही है | आदमी औरत साथ मिलकर रहने वाले समाज में ये सब तो सहज बात ही है | इस बारे में अभी तक तुमने हमें नहीं बताया था और एकदम से इस बारे में सुन आश्चर्य हुआ | बस यही बात है | आजकल के समय में लड़की आकर ‘अप्पा, मीट माइ हस्बेंड’ कह कर मिलवाये तो भी आश्चर्य की बात नहीं !” कह कर हंसा रामेशन |

“ओ, थेंक्यू अप्पा !..... परंतु..... परंतु सिर्फ एक ही बात है...... आप उसके लिए क्या बोलोगे ! अम्मा को भी पक्का पसंद नहीं होगा.....”

“वह कौन सी बात है ? क्या खींच रही हो ? जल्दी से बोलो|” पेरुंदेवी फिकर के साथ बोली |

“वे….. वे चैन्नई में रहते हैं पर अपनी तरफ के नहीं | वे गुजराती हैं | इस बात पर तुरंत कोई कुछ नहीं बोला | रामेशन ने कुछ सोचते हुए उसे देखा | पेरुंदेवी के चेहरे पर जमी हुई बातों की छाया दिखी |

“ये क्या है री, ये सब अपने लिए ठीक रहेगा क्या ?” उसके शुरू करते ही गीता का मुंह लाल हुआ उसका हृदय जोर से धड़कने लगा |

“अम्मा, दया करके ऐसी बात मत बोलो | वे बहुत अच्छे हैं, मालूम है ? हम एक दूसरे से मिलकर एक दूसरे के गुणों को पहचान ही एक दूसरे को पसंद करने लगे, एक दूसरे को चाहने लगे | शादी कर हम खुशी से जीवन जीने का सपना देख रहे हैं | अब आप लोग इसका विरोध करोगे तो मन बहुत दुखी हो जाएगा अम्मा!” उसकी आवाज दब सी गई | घबराहट के कारण इतनी-इतनी बातें बोल गई सोचकर उसे शर्म आई |

रामेशन ने पास आकर उसके कंधे को अपनत्व से पकड़ शाबाशी दी | उसकी आवाज गीतू के कानों में अमृत घोल रही थी |

“गीतू ! हमेशा ही बोलता हूँ ना शादी के विषय में तुम्हारी इच्छा के विरुद्ध मैं कुछ नहीं करूंगा | वह लड़का भी तुम्हें प्रेम करता है ? बोलो गीता, मैं पूरी तरह तुम्हारे साथ हूँ सारी बात मुझे बताओ | आज शाम को ही तुम्हारी मौसी (सौतेली माँ) को लेकर मैं उनके घर जाकर बातचीत कर शादी पक्की करता हूँ | आज जो आने वाले लोग हैं उनको भी मैं कुछ बहाना बना कर नहीं आने के लिए बोलता हूँ, बस ? तुम्हारी चिंता खत्म हुई ?”

“अप्पा !” वह थोड़ी देर खुशी के अतिरेक में बोल नहीं पाई | ‘अप्पा ! अप्पा ! ..... आप कितने अच्छे हैं !” पिता के आगोश में उस बच्ची को खुश देख पेरुंदेवी को लगा जो सोचकर वह बच्ची को पाल रही थी वैसे ही मंगलमय जीवन जीने वाली वह संसार की लड़की है | इससे ज्यादा वह और क्या चाहती है ?

इसके अलावा, कोई इसे प्रेम करने वाला प्रेमी मिले तो ही ठीक रहेगा वरना जो चली गई उसकी छाया से गीतू की परम्परागत शादी में कोई संकट आ सकता था | पिता के लाड़ प्यार से प्रफुल्लित गीता बोलती ही चली जा रही थी | उसका शर्म से लाल चेहरा बहुत कुछ कह रहा था । बातों ही बातों में उन लोगों ने बहुत कुछ उससे पता लगा लिया |

उसकी सहेली मीना के पिता जी के व्यवसाय में एक गुजराती कुछ लोहे की वस्तुएं बनाने वाली कंपनी का चैन्नई के अंदर एजेंट है | उनका युवा पुत्र उसी उद्योगमें था | मीना के घर में एक उत्सव में वह भी आया था | मीना के घर के इस उत्सव में ही वह और गीता पहली बार उससे मिले | करीब एक साल से दोनों को कई मौके मिलने के मिले | एक दूसरे को जब चाहने लगे, उसके बाद ही बद्रीनाथ का प्रस्ताव आया | गीता अपनी सहेली के आग्रह को स्वीकार करने का कारण ही ये था कि वह युवक भी उस यात्रा में शामिल था | उसके साथ-साथ सभी जगहों पर जाकर देखने के कारण ही गीतू को यात्रा की एक-एक जगह, एक एक मूर्ति एक-एक स्थान उसे इतना पसंद आया | बद्रीनाथ से मीना के साथ लौटकर नहीं आई क्योंकि दूसरी ग्रुप में ही वह युवक भी लौट आने वाला था यही उसका कुछ और दिन रुकने का कारण था |

पेरुंदेवी को आश्वस्त होने के साथ ही गुस्सा भी आया कि यही कारण था ! पर कैसे-कैसे उसने उसे डरा दिया था ये बदमाश लड़की |

यात्रा से लौटते ही समय उन दोनों ने मिल कर तय कर लिया था कि हम अपने अपने परिवार जनों से मिलकर उन्हें बताएंगे कि वे शादी कि तैयारियां करना शुरू कर दें | उस बात को सोच-सोच गीता कितनी घबराई हुई थी | दूसरे प्रदेश के आदमी से शादी करने कि बात को अपने लोग कैसे मान लेंगे ? इस बात का उसे बहुत डर लग रहा था | इसीलिए कितनी बार कितने देवताओं से कितने तरीकों से उसने प्रार्थनाएँ की !

“ओह हो, यहीं छुपा था क्या उस भक्ति का कारण ? मैंने इसे कभी मीरा कभी आंडाल (देवी) सोचा इसी से मैं बहुत घबराई ! अरे बदमाश ! ये सब इस शादी के लिए ही किया ?” मुंह को मोड नकली गुस्सा किया तो उसके अंदर से खुशी का फव्वारा फूटा |

बोलती जा रही गीता अचानक चुप हो सारनाथन को मुड़ कर देखने लगी | उन्हें भूल ही गई ! इस विषय के कारण ताता उससे नाराज होंगे क्या ?

“ताता ! (नाना) गुस्सा हो क्या ताता ?” सारनाथन की हँसी जाने कहां चली गई थी | इन सब से दूर अपने हृदय तल में वे अतीत की गहराई में एक दूसरे ही जीवन के साथ अकेले थे | रामेशन और गीता एक जैसे हैं परंतु वे दुसरी तरह के पिता हैं जो अपनी लड़की की याद में रहते हैं | वो बंधन ! कितना-कितना गहरा था क्या ये लोग महसूस कर सकते हैं ? जाने वाली के साथ उनका जुड़ाव कैसा था ये और कौन जानता है ? वह एक अलग ही किस्म की प्राणी थी | उसके जैसा कोई और हो सकता है क्या ?

‘अम्मा यामिनी, तेरी बेटी को प्यार हो गया है! ऐसा मन ही मन कहते समय उनके अधर भी साथ में हिल रहे थे | “ताता मैं जो बोल रही हूँ वह आप सुन नहीं रहे क्या ?”

वे चौंक कर अपने में आए और पूछा “क्या ?”

“आप नाराज हो क्या ?”

“जिस तरह तुम अच्छी रहो वही ठीक है |”

पेरुंदेवी एकदम से बोल उठी “देख गीतू, ऐसे ही मत खड़ी रह, जाकर नहा ले| बाबू, वसंती को जाकर बात बता तो वह अपनी गीतू की शादी के बारे में बहुत उत्सुक रहती है | वसंती को जब ये बात बताओगे, तो वह बड़ी खुश होगी ! अपनी गीतू के शादी के लिए वह सब करने को तैयार है | तुम्हारे अप्पा और अम्मा को भी इस परिस्थिति के बारे में बता समझाकर बता उन्हें भी सहमति देने के लिए तुम्हें राजी करना होगा |”

“वह सब मैं देख लूँगा अत्तैय” सब ठीक हो जाएगा | इस जमाने में सब को देखो तो चलेगा क्या ?पेरूंदेवी...... शाम को लड़के के घर तुम और वसंती के ही जाने से काम नहीं चलेगा क्या ? शादी वाली लड़की को भी ले जाना जरूरी है क्या ?”

“ये प्रेम विवाह है अत्तैय ! मत भूलो !” कह कर रामेशन हंसा |

“ठीक है ठीक है, तुम्हारी मर्जी | ऐसा है तो गीतू शाम को वहाँ जाने के लिए अच्छे गहने, साड़ी ब्लाउज अभी से देख कर निकाल कर रख लो | सुंदर और साफ दिखना चाहिए |

“तुम्हें भी जरूर हमारे साथ आना है अम्मा ! उनसे मैंने तुम्हारे बारे में बहुत कुछ बताया है तुम्हें पता है ? मेरी प्यारी अम्मा, मेरी अच्छी अम्मा, तुम आओगी ना ?” गीता उनसे लाड़ लड़ाती हुई उसके गालों को चूमते हुए बोली|

“बस कर रे ! थूक लगा रही है, तुझे ये सब कुछ मालूम नहीं ?” गाल को पोंछती हुई गर्व से बोली, गीता चहरे को सहलाने लगी | “आज क्या बुधवार है ? सोना मिल जाएगा बुधवार नहीं मिलेगा ? आज ही जाकर आना ठीक रहेगा बाबू | राहूकाल साढ़े बारह से डेढ़ बजे खत्म हो जाएगा | शाम को हम चाहे कितने बजे भी रवाना हो सकते हैं |”

“हम आ रहे हैं ये पहले ही उनको सूचित करना पड़ेगा | उसे कैसे करें गीतू ? उनके घर फोन है क्या ? उनको जब सहूलियत होगी उस समय मैं और वसंती यहाँ आकर तुम दोनों को लेकर जाएंगे अत्तैय |”

“रमेश और महेश को भी........” संसार की मिट्टी में जमती जड़ को जमा कर उसको पानी देते लोग उत्साहित होकर बात कर रहे थे तो सारनाथन अपने कमरे में चले गए |

उनका कमरा | उनकी अपनी बेटी का कमरा | वहाँ उसका फटी-फटी आँखों से देखना, झूले के साथ उसकी काली छाया सब उनको दिखता| पीतल की मूढ़ वाले काले तख्ते पर बैठकर वे अब भी वे उसे हृदय में बसा झूले में झूला रहे हों ऐसा ही लगा | उनकी कल्पना में वह हमेशा बच्ची ही है जिसको थपकी देने की जरूरत है| बड़ी होने पर ही तो युवती फिर किसी की पत्नी बनेगी ?

छ: फुट के गंभीर व्यक्ति, वे सीधे खड़े होते तो लम्बाई और चौड़ाई से वे कोई राजसी व्यक्ति लगते | उनकी पुत्री को भी उनकी ही लंबाई मिली थी | उसकीतरह रंग में काले नहीं तो वे पेरुंदेवी जैसे गोरे भी नहीं | उनका रंग गेहुआँ था जो उनकी खूबसूरती को कम नहीं होने देता था |

इस बहत्तर साल की जीवन यात्रा में उनके शरीर के अंग ढीले पड़ने के बाबजूद उनके हर एक अंग विशेष कर आँखें उनकी गहरी आँखों में एक बड़प्पन टपकता है | यामिनी के रहते बासठ साल के होने पर भी इतनी परेशानियों व उम्र के तकाजे के बाबजूद उनके सिर के बाल काले ही थे | प्यारी बेटी चली गयी तब तुरंत ही उनके सिर के बाल एक महीने में ही सफेद हो गए | परंतु बालों का घनापन अभी भी कम नहीं हुआ |

रात होते होते पूरे घर में एक उत्साह फैल गया | शादी की बातचीत सफलता पूर्वक पूर्ण हुई | पेरुंदेवी ने आकर सभी बातों को विस्तार से उनको बताया | लड़के ने बहुत विनम्रता से उनसे घुलमिल कर बहुत ही आदर से बातचीत की और अपनी बात कहने में वह पूरी तरह से सफल भी हो गया | उन्होंने सिर्फ ‘ऊम’ बोलकर सब बातों को सुन लिया |

रात हो गई | कोने के कमरे से निकल सारनाथन पीछे की तरफ बगीचे में गए | रात में चमेली व रात की रानी की खुशबू चारों ओर फैल रही थी |

उन्होंने कुएं के पास जाकर धीरे से अंदर झाँककर देखा | आकाश एक गोल आईने में अपने चेहरे को देख रहा था | सीधे होकर ऊपर देखा वहाँ रात में आकाश में तारे ही तारे नजर आ रहे थे | वहाँ वह किसका चेहरा है ? वे दुख को सहन न कर पाने के कारण पिघल कर पानी पानी हो गए | लंबी आकृति, सफ़ेद बाल गेहुआँ रंग, दांत गिरे हुए मुंह, ढलका हुआ शरीर, पुत्री के प्रेम में डूब कर खुद पानी हुए जा रहे थे | गले में शब्द अटक रहे थे, दीप की ज्योति, ये ज्योति रात में क्यों फैल रही है?

पैदा हुई व खत्म हुई वो कौन ?

वहीहै ! और कौन ? वह अलग है | वे अलग हैं | वे दोनों एक ही थे | काल के प्रवाह में प्रेम में बंधे साथी नहीं बने वे दोनों !

मेरी आँखों में मेरा जीवन रहने तक तुम रहोगी, मेरी आँखों के सामने तुम ही तो हर समय खड़ी रहती हो ! मेरा ही दिया नाम, वही मेरे जैसी तड़प, वही मेरे जैसा तप सब कुछ वैसा ही |

परंतु इतने साल के तप के बाद भी मन में शांति तो मिली नहीं ?

मेरा मन टूट गया | ये दुख ये तड़प, ये शांति कभी मिलेगी या नहीं मिलेगी ?

अभी तक भी उसके बिछोह के दुख को सहन नहीं कर पा रहे | दस साल से दिल के अंदर दफन रहस्य को सोच-सोच मैं पिघल रहा हूँ अभी तक भी मैं सामान्य नहीं हो पाया | मेरे अंदर जो खालीपन है वह भर नहीं पाया | प्रेम और स्नेह का बंधन टूट न सका अब शांति का रास्ता बचा ही क्या है ? उन्होंनेफिर कुएं में झुक कर देखा | वहाँ भी वही उसका चेहरा ! उसमें कितनी शांति है ! वे अपनी निगाहों को दूर नहीं कर पाये | उसके चेहरे को देख आँखों में आँसू तैरने लगे |

‘मुझे शांति चाहिए मेरी प्यारी, मेरी लाड़ली, मेरी कल्लों........! नहीं, ऐसे उसे पुचकारने से अच्छा नहीं लगता | बच्ची कह कर बुलाऊँ ? मेरी बच्ची ! मेरी बेटी ! यामिनी ! यामिनी........!

अंदर पेरुंदेवी अपनी खुशी की बातों में मग्न थी | कुएं से जो आवाज आई, इस बार भी उसके कानों को पता नहीं चला |

समाप्त ।