दीप शिखा - 5 S Bhagyam Sharma द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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दीप शिखा - 5

दीप शिखा

तमिल उपन्यास

लेखिका आर॰चुड़ामनी

हिन्दी मेँ अनुवाद

एस॰भाग्यम शर्मा

(5)

उसके बाद जो भी हुआ सब विपरीत ही हुआ | शहर के दूसरे कोने में रहने वाले उसके पति के घर एक अच्छा दिन देखकर उसे छोड़ आए |

“बच्ची वहां पता नहीं कैसे रहेगी !” ऐसे बोलते हुए सारनाथन हॉल में बने झूले पर बैठे | उस समय झूला वहीं लगा था | हॉल की दीवार पर कुछ चित्र लगे थे | उसमें से कुछ पेरुंदेवी ने कपड़े व चमकीली पन्नियों से बनाऐ थे और रवि वर्मा के बनाए चित्र भी टंगे थे |

“कैसे क्या ? अच्छी ही रहेगी | इतने दिन कुछ विशेष जैसे रही, अब सब कुछ ठीक ठाक सामान्य हो जाएगाऔर क्या?” पेरुंदेवी ने अपनी शादी-शुदा जिंदगी में जैसा ठहराव देखा उसे देख कर शांति मिली | वैसा अनुभव उसकी लड़की को नहीं मिलेगा क्या ? “उसका अब सब सही हो जाएगा आप देखना” वह बोल कर अपनी आँखों को पोंछने लगी| माँ के मन में बेटी के विछोह का दु:ख नहीं होगा क्या ? पर अब बेटी को अपना जीवन जीना चाहिए, नहीं क्या ?

“हमारी लाड़ली का अब सब ठीक हो जाएगा, आप देखना |”

रात के अंधेरे को खत्म होते हम महसूस कर सकेंगे ? सुबह का मतलब रात का अंत ही तो है ? पता नहीं कौन सी कल्पना में सारनाथन डूब गए |

कुछ आवाज सुन पेरुंदेवी बाहर आई | बरामदे में बांस का ढेर लगा था उसी के पास यामिनी खड़ी थी।

“ये क्या है री ?”

काले लम्बे बालों वाले सिर को ऊंचा उठा कर, यामिनी बड़ी-बड़ी आँखों को फाड़-फाड़ कर उसे ही देख रही थी | तड़फडाती, फुफकारती हुई तीक्ष्णदृष्टि से देखतीबोली“अम्मा, मैं वहाँ नहीं रहूँगी |”

“अय्यों, ये क्या अनर्थ है ! बिना बोले आ गई क्या ?”

“मैं वहाँ नहीं रहूँगी |”

“अरे पापी लड़की ! तुम पागल हो क्या ?”

“मुझे वहाँ अच्छा नहीं लग रहा है |”

“छि.......छि बको मत, तुम्हारे पति का घर है तुम्हें वहीं रहना होगा |”

“नहीं, नहीं रहूँगी ! मुझे पसंद नहीं | मुझे डर लग रहा है…….. मुझे नफरत है.......” उसका स्वर तैरने लगा |

“हे भगवान ! किस लिए ये सब हो रहा है ? ये मुझे ये कैसी लड़की पैदा हुई.....” उसने बेटी को गले लगाकर उसे समझाने की कोशिश की | “मेरे प्यारी बच्ची ये देखो मेरी लाड़ली...”

यामिनी अपने को छुड़ाते हुए पीछे हटी | “मुझे मत छू | मुझे ऐसे मत बुला |”

थोड़ी देर में ही रामेशन घबराया हुआ आया | वह वहाँ सुरक्षित है मालूम होने पर उसे तसल्ली आई | उसके चेहरे पर चिंता व चिड़चिड़ाहट को देख कर पेरुंदेवी उससे आँखें न मिला सकी | उसे अपनी बेटी पर ही गुस्सा आया |

“अरी यामिनी रोमेशन तुम्हें ले जाने आया है देख, तुरंत जाओ|”

“नहीं जाऊँगी, नहीं आऊँगी |”

उसने पक्के इरादे से मना कर दिया | पति की तरफ क्रोध से आँखें फाड़ कर देखा | उसकी निगाहों में कितनी घृणा और विरोध था !

“तुम्हें जाना ही पड़ेगा |”

“नहीं जाऊँगी…….” उबलती, घबराई, आँखें पिता को देख कुछ ठीक हुईं | “अप्पा मुझे मत भेजना अप्पा, प्लीज, मुझे मत भेजना !” सारनाथन सहन नहीं कर पाये, “उसके मन को थोड़ा शांत होने दो बाबू, दो एक दिन यहाँ रह जाने दो|” वे बोले |

रामेशन ने पत्नी को देखा | उसकी दृष्टि में गुस्सा, उसके विरोध का आश्चर्य, उसके विरोध के कारण का मालूम होने न का असमंजस सभी सम्मलित था |

फिर वह पेरुंदेवी की तरफ मुड़ाशांत ढंग से तसल्ली से उसने पूछा “आपको मुझसे क्या विरोध है अत्तैय ? आपने क्यों मुझसे उसकी शादी कराई ?”

पेरुंदेवी तड़प गई | “अय्यो, ऐसा सब मत बोलो बेटा ! मैंने अच्छा सोच कर ही ऐसा किया...... तुम कुछ फिकर मत करो बाबू ! समय के साथ-साथ सब ठीक हो जाएगा | उसका स्वभाव एकांत में रहने वाला है, डरने वाला है………”

डर हो तो ठीक हो जाता | परंतु वह डर नहीं वह तो आंदोलन था | कारागृह की दीवारों से पक्षी के सिर टकराने जैसा रोना था |

लेकिन उसके रोते-बिलखते ही वे उसे वापस भेज दिया गया| पीहर आने पर उसे फिर वापस भेजेंगे सोच कई बार वहाँ भी न जाकर कहीं ओर चली जाती |उसेबार बार ढूंढ कर पकड़ कर लाये |

सारनाथन दिन पर दिन बहुत चिंतित रहने लगे और फिकर करने लगे | अपनी बेटी की शादी करके सही किया या गलत उनके मन में बार बार ये विचार उठने लगा | रात के समय छत पर चाँद की चाँदनी में बैठे मन की शांति खोकर विचारों में डूब जाते, और सिर ऊपर उठा आकाश को देखने लगते |

‘मैंने किया वह ठीक ही है ना ? मेरी बच्ची खुशी से तो रहेगी ?

कई महीने बीत गए |

‘मैंने जो किया वह सही तो है ? मेरी बच्ची हँसी-खुशी से तो रहेगी ?’ इसी तरह एक साल बीत गया |

मैंने किया वह गलत था क्या ? मेरी बच्ची कभी खुशी से नहीं रहेगी क्या ?

हर बार सवाल करते लेकिन रात के अंधेरे से उन्हें कोई जवाब नहीं मिलता | एक दिन यामिनी शोक में डूबी हुई सारनाथन के सामने जमीन पर घुटने को मोड़कर आकर रोने लगी | वह आवेश कहाँ गया ? यह दु:ख भरा घड़ा! वहयुद्ध में हारे हुए योद्धा का बोझ लादे हुई थी, हैरान, परेशान । ये क्या हुआ प्रश्न चिन्ह आँखों में लिए देख रही थी | बाढ़ उतरने के बाद सूखी धरती जैसी स्थिति में आया उसका शरीर बिना हिले डुलेथा पर उसका हृदय अंदर से बिलख बिलख कर रो रहा था|

वह गर्भवती थी |

***