खुशियों की आहट - 6 Harish Kumar Amit द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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खुशियों की आहट - 6

खुशियों की आहट

हरीश कुमार 'अमित'

(6)

दोपहर बाद मोहित स्कूल से वापिस आया तो उसका मुँह उतरा हुआ था. उसका मैथ्स का टैस्ट कुछ ख़ास अच्छा नहीं हुआ था. दो-तीन प्रश्न तो वही आए थे, जो उसे मुश्किल लग रहे थे और जो वह सुबह पापा से समझ नहीं पाया था. रह-रहकर उसके दिमाग़ में यही बात आ रही थी कि अगर पापा ने उसे वे सवाल शनिवार या रविवार को समझा दिए होते तो उसका टैस्ट काफी अच्छा हुआ होता. पर पापा तो इन दोनों दिनों में कोचिंग कॉलेज में दूसरे बच्चों को पढ़ा रहे थे.

मोहित का मूड खराब होने की एक वजह और भी थी. हिन्दी और इंगलिश की टीचर ने होमवर्क कॉपी में कई गल्तियाँ निकाल दी थीं और सारी क्लास के सामने उसे आगे से ध्यानपूर्वक होमवर्क पूरा करने के लिए कहा था. बहुत बुरा लगा था मोहित को. यही बात उसके मन में आ रही थी कि अगर मम्मी ने उसे हिन्दी और इंगलिश का होमवर्क पूरा करने में कुछ मदद कर दी होती, तो यह सब नहीं होता. पर मम्मी के पास तो टाइम ही कहाँ था. शनिवार को मम्मी कवि सम्मेलन में गईं थीं और इतवार को पुस्तक-विमोचन के समारोह में. और फिर शाम को मम्मी कुमुद आंटी के साथ थीं.

यही सब सोचते-सोचते मोहित कपड़े बदल रहा था. कपड़े बदलकर उसने मुँह-हाथ धोया ही था कि शांतिबाई उसे खाना खाने के लिए बुलाने आ गई. मोहित का मूड अच्छा नहीं था, पर खाना तो खाना ही था. वह डाइनिंग टेबल पर जाकर बैठ गया.

सब्ज़ी में आज भिण्डी बनी थी. मम्मी सुबह ऑफिस जाने से पहले सब्ज़ी बनाकर जाती थी. भिण्डी मोहित को कोई ख़ास अच्छी नहीं लगती थी. डाइनिंग टेबल पर एक डोंगे में रात वाली चने की दाल भी थी. सामने सलाद भी पड़ा था, लेकिन आज न जाने क्यों मोहित का मन सलाद खाने को कर नहीं रहा था.

मोहित ने अपनी प्लेट में थोड़ी-सी भिण्डी रख ली, पर चने की दाल नहीं ली. शांतिबाई गरम-गरम रोटी लेकर आई तो मोहित ने उससे पूछा, ''राजमा पड़े हैं क्या कल के? ''

''नहीं, वो तो खतम हो गए थे कल रात को ही.'' शांतिबाई ने कहा.

''फिर थोड़ा-सा मीठा अचार दे दो.'' मोहित बोला.

''पर मेम साहब तो मना करती हैं न अचार को...'' शांतिबाई ने मोहित को याद दिलाया.

''अरे, थोड़े-से अचार से कुछ नहीं होता शांतिबाई. ला दो ना.'' मोहित ने मिन्नत-सी करते हुए कहा.

मोहित की बात सुनकर शांतिबाई पिघल गई और मोहित के लिए थोड़ा-सा मीठा अचार ले आई. मोहित अचार और भिण्डी के साथ रोटी खाने लगा. शांतिबाई की बनाई रोटी उसे अच्छी नहीं लगती थी, पर भूखे भी कहाँ रहा जा सकता था. शांतिबाई दूसरी रोटी लाई, तो उसने चुपचाप वह रोटी ले ली. साथ ही यह भी कह दिया कि उसे और रोटी नहीं चाहिए.

दूसरी रोटी उसने इस तरह खत्म की कि प्लेट में भिण्डी की सब्ज़ी थोड़ी-सी बची रह जाए. रोटी ख़त्म करके उसने बची हुई भिण्डी चम्मच से खा ली और तब अचार का बचा हुआ टुकड़ा मुँह में रख लिया.

कुछ देर बार कुल्ला करके वह अपने कमरे में पहुँचा. उसका जी उदास-सा था. पहले उसने सोचा कि गाने-वाने सुन लिए जाएँ, पर फिर अपना इरादा बदल दिया और टी.वी लगा लिया.

कुर्सी पर बैठकर टी.वी. देखते हुए उसका मन काफ़ी हलका-सा हो आया था. धीरे-धीरे उसकी आँखें नींद से भारी होने लगीं.

तभी उसके मोबाइल फ़ोन की घंटी बजने लगी. मोहित ने लपककर फोन उठाया. मम्मी का फोन था.

''बेटू, आ गए स्कूल से?'' मम्मी पूछ रही थीं.

''जी, मम्मी.''

''कैसा हुआ मैथ्स का टैस्ट?'' मम्मी ने फिर सवाल किया.

''कुछ ख़ास अच्छा नहीं हुआ, मम्मी.'' कहते-कहते मोहित की आवाज़ मानो रुआँसी हो आई.

''क्यों, क्या हो गया? की नहीं थी क्या तैयारी अच्छी तरह से?'' मम्मी की आवाज़ में थोड़ी सख़्ती थी.

''तैयारी तो की थी मम्मी, पर पापा से कितना कुछ पूछना बाकी रह गया था.'' मोहित ने सफाई दी.

''पापा पर दोश मत लगाओ. पढ़ाई तुम्हें करनी है या पापा ने?'' मम्मी की आवाज़ की सख्ती कुछ और बढ़ गई थी.

''पर मम्मी...'' मोहित अपनी बात कह पाता इससे पहले ही मम्मी बोल पड़ीं, ''अब आज से ही अगले क्लास टैस्ट की तैयारी शुरू कर दो. कौन सा टैस्ट है अब?''

''मम्मी, हिन्दी का है.''

''कब होना है? अगले मंडे को?'' मम्मी ने पूछा.

''हाँ मम्मी.'' जवाब दिया मोहित ने.

''तो ठीक है. तैयारी कर दो शुरू आज से ही.'' मम्मी ने मानो आदेश दिया.

''पर मम्मी होमवर्क भी तो पूरा करना है न.'' मोहित कहने लगा.

''ठीक है, पहले होमवर्क पूरा कर लो. फिर टैस्ट की तैयारी करना.'' मम्मी का स्वर अब उतना सख़्त नहीं रह गया था. फिर जैसे उन्हें अचानक कुछ याद आ गया हो. वे पूछने लगीं, ''खाना-वाना तो खा लिया है न?''

''हाँ, मम्मी खा लिया है.'' मोहित ने उत्तर दिया.

''और हाँ, कल कुमुद जी को स्टेशन पर छोड़ने गई थी तो चाँदनी चैक से तुम्हारे मनपसन्द बेसन के लड्डू लाई थी. सुबह तो स्कूल और ऑफिस के चक्करों में याद नहीं रही लड्डुओं वाली बात. तुम खा लेना. शांतिबाई को पता है कहाँ रखे हैं.'' मम्मी की आवाज़ में मिठास-ही-मिठास थी.

''जी, मम्मी, खा लूँगा.'' मोहित का मन बेहद हलका हो आया.

''ओ.के. मोहित बाय.'' कहकर मम्मी ने फोन काट दिया.

मोहित का जी किया कि अभी दो-तीन लड्डू खा ले. उसने शांतिबाई को आवाज़ दी, मगर कोई जवाब नहीं आया. 'सो रही होगी. चलो, शाम को खा लूँगा लड्डू' सोचते हुए मोहित फिर से टी.वी. देखने लगा.

मम्मी का फोन आने से मोहित के मन में छाए उदासी के बादल मानो छँट-से गए थे. अपने आप को वह बड़ा खुश-खुश-सा महसूस करने लगा था.

तभी उसे पापा की याद आई और उसने पापा का मोबाइल नम्बर मिला दिया, मगर एक घंटी बजते ही उधर से फोन काट दिया गया. मोहित समझ गया कि पापा अभी बात नहीं कर पाएँगे. उसने फोन को एक तरफ़ रख दिया और फिर से टी.वी. देखने लगा. टी.वी. देखते हुए कुछ ही देर में उसे कुर्सी पर बैठे-बैठे ही नींद आ गई.

***

शाम के छह बजे जब मोहित अपने दोस्तों के साथ क्रिकेट खेलने गया, तब तक मम्मी दफ्तर से वापिस नहीं आई थीं. पापा तो, ख़ैर, तब तक आते भी नहीं थे. वे साढ़े छह के बाद आया करते थे.

साढ़े सात बजे के करीब जब मोहित क्रिकेट खेलकर वापिस आया तो मम्मी घर में थीं. मगर आम दिनों की तरह वे रसोई में नहीं थीं. वे अपने कमरे में कुछ लिखने का काम कर रही थीं.

मोहित सीधा मम्मी-पापा के कमरे में ही चला गया. पापा का ब्रीफकेस कमरे में पड़ा था. इसका मतलब पापा ऑफिस से वापिस आ चुके थे और ट्यूशन पढ़ाने जा चुके थे.

''क्या कर रहे हो मम्मी?'' मोहित ने पूछा.

''मोहित, थोड़ी देर बाद बात करूँगी. अभी कुछ कविताएँ बना रही हूँ. कल ही देनी हैं किसी मैग़जीन में छपने के लिए.'' मम्मी ने व्यस्तता से उत्तर दिया.

''ऐसी भी क्या जल्दी है मम्मी कविताएँ देने की?'' मोहित ने हैरानी से पूछा.

''है जल्दी मोहित. बाद में बताऊँगी.'' मम्मी ने जल्दी-जल्दी कहा और अपना ध्यान फिर से लिखने में लगा लिया.

मोहित कुछ पल वहीं खड़ा रहा. फिर जैसे ही वह कमरे से बाहर जाने के लिए वापिस मुड़ा, मम्मी कहने लगीं, ''पहले नहा लो. फिर कुछ खा लेना. और हाँ, वे लड्डू कैसे लगे तुम्हें?''

कमरे से बाहर जाता हुआ मोहित रूक गया. 'अरे, उसने तो अभी तक लड्डू खाए ही नहीं?' उसके दिमाग़ में आया. फिर वह मम्मी से कहने लगा, ''मम्मी, जब दोपहर को आपने लड्डुओं के बारे में बताया था तो मैंने शांतिबाई को आवाज़ दी थी ताकि वो लड्डू ले आए मेरे लिए. पर उस समय वह सो रही थी. फिर मुझे भी टी.वी. देखते-देखते नींद आ गई. शाम को उठा तो क्रिकेट के लिए लेट हो रहा था, इसलिए लड्डू खा ही नहीं पाया अब तक.'' मोहित ने एक साँस में जैसे सारी बात बता दी.

''कोई बात नहीं. अब नहाकर खा लेना लड्डू. ठीक है?'' कहते हुए मम्मी सिर झुकाकर फिर से लिखने में व्यस्त हो गईं.

मोहित अपने कमरे में आया और अपना बैट वगैरह रखकर नहाने चला गया. नहाकर वह बाथरूम से बाहर निकला तो उसे ख़ूब भूख लग आई थी. 'जी-भरके लड्डू खाऊँगा अब तो' बस यही बात उसके दिमाग़ में आ रही थी.

उसने शांतिबाई को पुकारकर बुलाना चाहा. तभी उसे याद आया कि मम्मी तो लिखने का कुछ काम कर रही हैं. वह शांतिबाई को ज़ोर से पुकारेगा, तो मम्मी का ध्यान बँटेगा, इसलिए वह रसोई तक गया. शांतिबाई रसोई में कुछ काम कर रही थी. उसने शांतिबाई से लड्डू और पानी का गिलास देने के लिए कहा. फिर वह अपने कमरे में आ गया.

कुछ ही देर में शांतिबाई एक प्लेट में दो लड्डू और पानी से भरा गिलास ले आई. प्लेट में सिर्फ़ दो लड्डू देखकर मोहित को लगा कि ये तो उसे बहुत कम पड़ेंगे. उसे तो बड़ी ज़ोर से भूख लगी थी. उसने शांतिबाई को लड्डुओं वाला पूरा डिब्बा ले आने के लिए कहा और सामने पड़ी प्लेट से एक लड्डू उठा लिया.

लड्डू बहुत स्वाद था. मम्मी या पापा पहले भी चाँदनी चैक की एक मशहूर दुकान से इस तरह के लड्डू लाया करते थे. एक लड्डू खाकर उसने थोड़ा-सा पानी पिया.

तब तक शांतिबाई लड्डुओं वाला डिब्बा ले आई थी. मोहित ने उसे वह डिब्बा सामने मेज़ पर पड़ी प्लेट के पास रखने के लिए कह दिया. शांतिबाई ने वैसा ही किया और कमरे से बाहर चली गई.

प्लेट में पड़ा दूसरा लड्डू खाते-न-खाते मोहित को ऐसा लगा मानो उसका पेट पूरी तरह भर गया हो. दूसरा लड्डू खाकर जब उसने पानी पिया, तो उसमें सामने रखे डिब्बे से और लड्डू उठाकर खाने की हिम्मत नहीं बची थी.

मोहित ने बाथरूम में जाकर हाथ धोए, कुल्ला किया और वापिस अपने कमरे में आकर स्टडी टेबल पर बैठ गया. 'काफी सारा होमवर्क मिला है आज. होमवर्क के अलावा मंडे के हिन्दी के क्लास टैस्ट की भी तैयारी करनी है न. पर होमवर्क ही इतना ज्यादा है कि उसे पूरा करना ही मुष्किल होगा.' यही सब सोचते हुए उसने इंगलिश की क़िताब और कॉपी निकाली और होमवर्क करने लगा.

इंगलिश का होमवर्क करते हुए बीच-बीच में उसे कुछ मुश्किलें आ रही थीं. वह मम्मी से उन मुश्किलों के हल पूछना चाहता था, पर मम्मी तो अपना लिखने का काम कर रही थीं. उसे पता था कि लिखते समय मम्मी ज़रा भी शोर या खटका बर्दाश्त नहीं करती थीं. बातचीत करना तो दूर की बात थी. वैसे भी मम्मी ने अपने कमरे का दरवाज़ा अन्दर से बन्द कर लिया हुआ था ताकि उन्हें कोई परेशान करे ही नहीं.

'आज उसका टैस्ट अच्छा नहीं हुआ - यह बात मम्मी को पता है' होमवर्क के बारे में हिन्दी और इंगलिश की टीचर ने उसे जो कहा था, वह तो मम्मी को बता ही नहीं पाया था वह अब तक. मम्मी तो अपने ही काम में लगी हैं. अब इस वक्त उसे कुछ पूछना है, तो वह पूछ नहीं सकता. पापा भी घर में नहीं हैं. यही सब सोचते हुए वह अपना होमवर्क किए जा रहा था.

इंगलिश के बाद उसने दूसरे विषयों का होमवर्क करना शुरू कर दिया था. नौ बजने वाले थे, पर मम्मी ने कमरे का दरवाज़ा अभी तक अन्दर से बन्द किया हुआ था. इसका मतलब अभी उनकी कविताएँ पूरी तरह बनी नहीं थीं.

होमवर्क करते-करते मोहित को थकावट-सी लगने लगी थी. उसका जी चाहने लगा था कि कुछ देर टी.वी. देखा जाए, पर टी.वी. की आवाज़ सुनकर मम्मी भड़क जाएँगी. उसने अपना मोबाइल उठाया और अपने कानों में इयरफोन लगाकर गाने सुनने लगा.

गाने सुनते-सुनते उसकी पलकें भारी होने लगीं. उसके दिमाग़ में आया कि अभी तो उसे होमवर्क पूरा करना है और खाना भी खाना है. लड्डू खा लेने के कारण उसे अभी कुछ ज़्यादा भूख महसूस हो नहीं रही थी, वरना अब तक तो भूखे रहना उसके लिए बहुत मुश्किल हो जाता.

मम्मी ने दोपहर को फोन पर उसे कहा था कि वह अगले सोमवार को होनेवाले हिन्दी के क्लास टैस्ट की तैयारी अभी से शुरू कर दे, पर कम-से-कम आज तो वह ऐसा नहीं कर पाएगा. कल दोपहर को स्कूल से आने के बाद वह होमवर्क के अलावा टैस्ट की तैयारी भी करेगा.

तभी उसे अपने कंधे पर किसी के हाथ का स्पर्श महसूस हुआ. उसने आँखें खोलकर देखा. पापा उसके पास ही खड़े थे.

''आप कब आए पापा? मुझे तो पता ही नहीं चला!'' मोहित ने इयरफोन को कानों से निकालते हुए कहा.

''बस अभी-अभी तो आया हूँ. तुम्हारी मम्मी ने दरवाज़ा अन्दर से बन्द किया हुआ है, इसलिए तुम्हारे कमरे में आ गया.'' पापा उसके पलंग पर बैठते हुए बोले.

तब तक शांतिबाई एक ट्रे में पानी के दो गिलास ले आई थी. पापा ने एक गिलास उठा लिया. पानी देखकर मोहित को भी प्यास लग आई. पानी का दूसरा गिलास उसने उठा लिया और गटगट पीने लगा. शांतिबाई ख़ाली गिलास लेकर कमरे से बाहर चली गई.

तभी जैसे पापा को कुछ याद आया हो, वे कहने लगे, ''अच्छा यह बताओ कैसा हुआ मैथ्स का टैस्ट?''

पापा को जवाब देने के बदले मोहित की नज़रें झुक गईं.

पापा ने फिर पूछा. ''बताओ मोहित, कैसा हुआ टैस्ट?''

''कोई बहुत बढ़िया नहीं हुआ, पापा'' हिम्मत करके जवाब दिया मोहित ने.

''क्यों, क्या वजह हो गई? ढंग से तैयारी नहीं की थी क्या?'' पापा को गुस्सा आने लगा था.

मोहित कुछ जवाब देता इससे पहले ही उस कमरे का दरवाज़ा खुलने की आवाज़ आई जिसमें मम्मी थीं. अगले ही पल मम्मी मोहित के कमरे में थीं.

मम्मी को देखते ही पापा गुस्से से फट पड़े, ''तुम्हें कुछ पता भी है कि कैसा टैस्ट हुआ है इसका?''

''हाँ, कह रहा था कोई ख़ास अच्छा नहीं हुआ.'' मम्मी बोलीं.

''अच्छा, तो तब होगा न जब तैयारी अच्छी तरह की होगी.'' पापा कह रहे थे.

''करता तो है तैयारी.'' मम्मी ने मोहित का पक्ष लिया.

मम्मी की बात सुनकर पापा कुछ और भड़क गए, ''तुम्हें क्या पता कितनी तैयारी करता है यह? घर में होती ही कितनी देर हो तुम?''

पापा की बात सुनकर मम्मी को भी गुस्सा आ गया. वे कहने लगीं, ''और आप कितनी देर होते हैं घर में? पहले शनिवार-इतवार को कुछ देर घर में हुआ करते थे, अब वह भी कोचिंग कॉलेज की भेंट चढ़ गया है.''

''अपने लिए खपता हूँ मैं क्या सारा-सारा दिन? ये ट्यूशनें-व्यूशनें इसीलिए तो कर रहा हूँ कि घर के लिए और पैसा आए. हम इससे भी बड़ा घर खरीद सकें. इससे भी बढ़िया गाड़ियाँ खरीद सकें.''

पापा की बात सुनकर मम्मी चुप रहीं. इस पर पापा फिर कहने लगे. ''तुम ही तो कहती हो, मेरी फलाँ सहेली के पास इतने कमरों का घर है. मेरी फलाँ सहेली के पास इतनी ज्वैलरी है, हमारे फलाँ रिश्तेदार के पास ये वाली गाड़ियाँ हैं. मुफ्त में आ जाती हैं क्या ये सब चीज़ें?''

''वो तो ठीक है, पर मैंने आपको यह थोड़ा ही कहा था कि सारा-सारा दिन घर में ही न रहा करो.'' मम्मी ने कुछ धीमी आवाज़ में जवाब दिया.

''कैसी भोली बातें कर रही हो तुम? बच्चों के घर में जाकर ट्यूशन पढ़ाऊँगा तभी तो अच्छे पैसे मिलेंगे. अपने घर में बच्चों को बुलाने लगेंगे तो उससे आधी कमाई भी नहीं होगी.'' पापा कहने लगे.

''फिर यह कोचिंग कॉलेज का चक्कर क्यों पाल लिया है आपने?'' मम्मी पूछने लगीं.

''अरे, तुम ही तो कहती हो मेरी सब सहेलियों के पास लैपटॉप है और तुम्हारे पास नहीं है. बड़ी शरम आती है तुम्हें इस बात को लेकर. बस इसीलिए जाना शुरू किया है मैंने कोचिंग कॉलेज, ताकि कुछ और कमाई हो सके. और शनिवार-इतवार को खाली कोचिंग कॉलेज ही तो नहीं जाना होता. जो ट्यूशनें पहले से पकड़ी हुई हैं, उनको पढ़ाने तो जाना ही होता है न.'' पापा की आवाज़ यह सब कहते हुए थोड़ी-सी तेज़ हो गई थी.

मोहित को लग रहा था कि शांतिबाई सुन रही है यह सब, पर अब किया भी क्या जा सकता था. वैसे भी इस तरह की बातें वह पहले भी कई बार सुन चुकी थी. कई सालों से जो उनके घर में काम कर रही थी वह.

''बात आपकी ठीक है, पर अपने बच्चे को भी तो देखना है न.'' मम्मी ने यह कहा ही था कि पापा और भड़क गए, ''तो अपने बच्चे को देखने की ज़िम्मेदारी तुम्हारी भी नहीं हैं क्या? क्यों अपना वक्त कवि सम्मेलनों में बरबाद कर देती हो? आख़िर रखा क्या है इन कविताओं-शविताओं में?''

''इन कविताओं में, कवि-सम्मेलनों में जो रखा है, वह आप समझ ही नहीं सकते. अपना कोई शौक, अपनी हॉबी भी होती है कि नहीं?'' मम्मी कह रही थीं.

''तो करती रहो अपने शौक पूरे. बच्चे की पढ़ाई हो जाए चाहे चैपट.'' कहते हुए गुस्से में पैर पटकते हुए पापा अपने कमरे में चले गए.

मम्मी कुछ पल मोहित के पास खड़ी रहीं. फिर बिना कुछ बोले कमरे से बाहर निकल गईं. मोहित को लगा मम्मी रसोई की तरफ़ गई हैं.

तभी मोहित को याद आया कि उसका होमवर्क तो अभी पूरा हुआ ही नहीं है. वह स्टडी टेबल पर बैठकर अपना काम पूरा करने लगा. पापा घर में थे, मम्मी घर में थीं, पर घर का वातावरण जैसा था उस समय, ऐसे में मम्मी-पापा से पढ़ाई के बारे में कुछ पूछना ठीक नहीं लग रहा था उसे. वह चुपचाप किसी तरह अपना होमवर्क पूरा करता रहा.

थोड़ी देर बाद मम्मी ने उसे आवाज़ दी, ''बेटू, आ जाओ. खाना तैयार है.''

मोहित कुर्सी से उठा और हाथ धोने बाथरूम में चला गया. जब वह डाइनिंग टेबल पर पहुँचा, तो पापा वहाँ पहले से ही बैठे हुए थे. मोहित ने महसूस किया कि पापा ज़्यादा बात नहीं कर रहे थे. वह समझ गया कि कुछ पहले मम्मी-पापा में जो झगड़ा हुआ था, यह उसी के कारण है. उसने चुपचाप खाना खाना शुरू कर दिया.

***