पल जो यूँ गुज़रे - 20 Lajpat Rai Garg द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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पल जो यूँ गुज़रे - 20

पल जो यूँ गुज़रे

लाजपत राय गर्ग

(20)

रविवार को जब अनुराग वापस शिमला पहुँचा तो रात के ग्यारह बजने वाले थे। घर में श्रद्धा और जाह्नवी जाग रही थीं, क्योंकि निर्मल ने टेलिफोन पर सूचित कर दिया था कि अनुराग सिरसा से तीन बजे के लगभग चला था। निर्मल ने चाहे अपनी ओर से जाह्नवी को सारी बातें बता दी थीं, फिर भी वह तथा उसकी भाभी अनुराग की जुबानी सुनने को उत्सुक थीं। अनुराग ने आते ही सबसे पहले जाह्नवी का, और फिर श्रद्धा का मुँह मीठा करवाया। तदुपरान्त सावित्री द्वारा दी गयी सोने की ‘लड़ी' पहनाते हुए बताया कि यह निर्मल की पड़दादी के समय की लड़ी है।

श्रद्धा — ‘आप चेंज कर लो, हाथ—मुँह धो लो। फिर खाना खाते हुए बातें करेंगे।'

‘मतलब कि तुम लोगों ने अभी तक खाना खाया नहीं?'

‘निर्मल का फोन आ गया था। उन्होंने बताया था कि आप ग्यारह—एक बजे तक पहुँच जायेंगे। सो, हमने सोचा कि इकट्ठे ही खाना खायेंगे।'

जब अनुराग बाथरूम से बाहर आया तब तक श्रद्धा ने खाना टेबल पर लगा दिया था। महाराज को उसने दस बजे ही आराम करने के लिये भेज दिया था।

खाना खाते हुए अनुराग ने बताया कि निर्मल का घर दोमंजिला है, अच्छा बना हुआ है। समय की कमी के कारण मैं दुकान नहीं देख सका। निर्मल की मम्मी, पापा और बहिन सब बहुत ही मिलनसार तथा सुलझे हुए विचारों वाले लोग हैं। उनमें अवांछनीय दिखावे की प्रवृत्ति बिल्कुल नहीं है तथा वे स्पष्टवादी किस्म के व्यक्ति हैं।

वैसे तो दोपहर में जब निर्मल का फोन आया था, तब से ही जाह्नवी भावनाओं के अतिरेक में बह रही थी, किन्तु अब अनुराग के मुख से अपनी भावी ससुराल सम्बन्धी सकारात्मक टिप्पणियाँ सुनकर वह और भी प्रफुल्लता अनुभव करने लगी।

रात को सुनहरी सपने बुनती जाह्नवी की आँखों से नींद कोसों दूर थी। अन्ततः उसने मन की भावनाओं को कागज पर उतारने का मन बनाया और लेटर—हैड तथा पेन लेकर रज़ाई में बैठी निर्मल को पत्र लिखने बैठ गयी। पत्र लिखते समय उसे अनुराग की कही हुई बात याद आई कि कमला ने फोटो भेजने के लिये कहा है तो उसने सोचा कि मेरे पास फौरी तौर पर तो ऐसी कोई फोटो है नहीं जो भेजी जा सके। अतः उसने कल शिमला जाकर फोटो खचवाने तथा वहीं से पत्र डाक में डालने की सोची।

जाह्नवी का पत्र पढ़कर निर्मल को बहुत प्रसन्नता हुई। फोन पर जाह्नवी से बात तो हुई थी, लेकिन औपचारिक, क्योंकि घर में सब की उपस्थिति में फोन पर सीमाओं में रहकर ही बात कही या सुनी जा सकती थी। दिल की बातें प्रिय तक पहुँचाने का सर्वोत्तम माध्यम तो पत्र—लेखन ही था। अतः उसने पत्रोत्तर में लिखाः

प्रिय जाह्नवी,

मधुर स्मरण!

हृदय के भावों से लबालब तुम्हारा पत्र मिला। पढ़कर मन अति प्रसन्न हुआ। तुम्हारी फोटो देखकर कमला तो बावरी ही हो गयी। होती भी क्यों न, जब तुमने उसके भाई को मिलते ही बावरा कर दिया था। माँ—पापा को तुम बहुत अच्छी लगी। तुमने लिखा है कि अनुराग भइया ने हमारे परिवार की बहुत तारीफ की जिसे सुनकर तुम्हें बहुत प्रसन्नता हुई। अपने प्रिय के सम्बन्ध में किसी और से सुनना हमेशा अच्छा लगता है। वैसे हमने भइया के आगमन को लेकर कुछ विशेष नहीं किया था। यह भइया का व्यक्तिगत गुण है कि उन्होंने थोड़े—से आदर—सत्कार को बहुत बढ़ा—चढ़ा कर स्वीकारा है।

तुमने लिखा है कि माँ की दी हुई ‘लड़ी' पाकर तुम्हें बहुत खुशी हुई और तुम्हें ‘सतलुज दे कंडे' फिल्म का यह गीत याद हो आया — ‘काले रंग दा परांदा मेरे सजनां ने आंदा, नी मैं चुम चुम, नी मैं चुम चुम रखदी फिरां, कि पबां भार नचदी फिरां' और तूने भी ‘लड़ी' को न जाने कितनी बार चूमा। तेरे मन में आया कि तुझे यह ‘लड़ी' अपने प्यार के प्रतीक तथा परिवार की विरासत के रूप में सम्भाल कर रखनी है। मुझे यह जानकर बड़ी खुशी हुई कि तुम न केवल पंजाबी समझ लेती हो, बल्कि पंजाबी गानों का भी तुम्हें शौक है। मेरे लिये तुम्हारे व्यक्तित्व का यह नया पहलू था, क्योंकि इससे पहले पंजाबी बोलने या समझने को लेकर हमारे बीच कभी कोई बात नहीं हुई थी।

आधी रात के साटे में अपने मनोभावों को जिस प्रकार तुमने व्यक्त किया है, उससे मैं अभिभूत हूँ। तुमने अपने मन की बेचैन उमंगों का जिन शब्दों में वर्णन किया है, पढ़ते हुए वे भाव मेरे मन की आँखों के समक्ष सजीव हो उठे। मेरी मनःस्थिति भी तुम जैसी ही है। पढ़ाई में बिल्कुल मन नहीं लगता। पढ़ने बैठता हूँ, तो किताब के पों पर तुम्हारी तस्वीर उभर आती है। चाहे दिल में हरदम तुम्हारा ही ख्याल रहता है, फिर भी हमारे बीच की यह दूरी, एक—दूसरे के पास न होने की मज़बूरी बहुत अखरती है। मेरे पास तुम्हारे जैसी काव्य—शैली तो नहीं है कि अपने मन के भावों को शब्दों में सही ढंग से पिरो सकूँ। हाँ, ‘सरस्वती चन्द्र' फिल्म की जरूर याद आ रही है जो मैंने कॉलेज टूर में जबलपुर में रहने वाले अपने ‘पैन— फ्रेंड' गोबिन्द के साथ देखी थी। फिल्म में नायक और नायिका जो एक—दूसरे से दूर रह रहे होते हैं, एक गाना गाते हैं — ‘फूल तुम्हें भेजा है खत में, फूल नहीं, मेरा दिल है'; मैं फूल तो नहीं भेज रहा, किन्तु मेरे दिल में जो भाव हैं, जिन्हें मैं शब्दों में व्यक्त नहीं कर पाया, उन्हें तुम अवश्य समझ लोगी, क्योंकि तुम में ऐसी क्षमता है। अब तो बस यही इन्तज़ार है कि लॉ की परीक्षा खत्म हो और किसी बहाने से तुम्हें मिलने आ सकूँ।

भइया और भाभी को मेरी नमस्ते, मीनू को प्यार।

शीघ्र मिलन की आस में,

तुम्हारा ही,

निर्मल

***