अदृश्य हमसफ़र - 29 Vinay Panwar द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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अदृश्य हमसफ़र - 29

अदृश्य हमसफ़र…

भाग 29

ममता के मन में शांति थी कि चलो कुछ ज्यादा हंगामा नहीं हुआ था। बड़े भैया के सामने बात हुई तो चिल्लपों कुछ ज्यादा नही मची थी। व्यापार के बहाने ही सही उसे जाने की इजाजत तो मिली। दोनो भाभियाँ ममता के लिए नाश्ता बनाने की कहकर कमरे से चली गयी। उसने देविका को भी बाहर चलने का इशारा किया। देविका तो तुरन्त ही कमरे से बाहर निकल गयी लेकिन ममता ने काकी के कंधे पर सिर रख दिया। काकी ममता के सिर पर हाथ फिराने लगी।

ममता- "काकी, क्या करूँ, मजबूरी है। "

काकी- "समझती हूं, जल्दी ही दोबारा फुर्सत में आना। "

ममता- "काकी, इतना कहते ही ममता का गला भर्रा उठा। "

काकी- "शांत रह मेरी बच्ची, माँ बाबा याद आ रहे हैं न। "

ममता- "हम्म"

काकी- "मेरी पगलु बिटिया, चल बाकी बच्चों से भी मिल ले। नही तो बाद में शोर मचाएंगे कि भूजी

उनसे मिले बिना चली गयी। "

"जी काकी" ममता उठी और धीरे धीरे कमरे से बाहर निकल गयी। उसने देखा तो सीढ़ियों के पास देविका खड़ी उसी का इन्तज़ार कर रही थी। घड़ी पर नजर पड़ी तो 7 बज चुके थे।

घर से निकलने में महज दो घण्टे बाकी थे। सभी बच्चों से भी मिलना था और अनुराग से भी। ममता ने तय किया कि पहले अनुराग से मिलेगी। बच्चों से बस जाते वक्त ही मिलेगी। उसके कदम स्वयमेव ही सीढ़ियों पर खड़ी देविका की तरफ बढ़ने लगे। इशारे से देविका को भी ऊपर चलने को कहती हुई ममता जल्दी जल्दी कदम बढ़ाने लगी।

देविका यंत्रवत सी ममता के पीछे पीछे चल दी।

दरवाजे के पास पहुंच कर ममता एक पल को ठिठक गयी। हल्की सी झेंप के भाव चेहरे पर तैरने लगे। गर्दन घुमाकर बगल में खड़ी देविका की तरफ देखा। देविका ने आंखों ही आंखों में उसे सांत्वना दी। मन ही मन हौसला बटोरते हुए ममता ने अनुराग के कमरे में कदम रखा। अनुराग आराम कुर्सी पर दरवाजे की तरफ से पीठ किये बैठे थे। ममता और देविका ने जैसे ही कमरे में कदम रखा तुरन्त कह उठे- "अरे, आ गयी तुम दोनो। देविका, तुमने ममता को नाश्ता कराया या नही अभी। "

देविका- "आपको बिना किसी आहट के कैसे पता चला कि हम दोनों हैं। " देविका थोड़ा हैरत में थी।
अनुराग-" कमाल करती हो देविका, यह भी कोई सवाल हुआ? हवाएं दर्ज कराती हैं तुम दोनो की उपस्थिती। "

ममता को वक़्त की कमी का अहसास था। बिना वजह वक़्त जाया नही करना चाहती थी। सीधे मुद्दे की बात पर आ गयी।

ममता -" अनुराग, मैं जा रही हूँ 11 बजे की फ्लाइट से। "

अनुराग ने जैसे ही सुना वैसे ही एक झटके में कुर्सी से खड़े हो गए और पलट कर सामने आ गए।

अनुराग-" ममता, यह कैसा मजाक है?"

ममता-" यह कोई मजाक नही अनुराग। "

अनुराग-" मजाक नही तो और क्या है? तुम तो अभी 6 दिन और रुकने वाली थी न। "

ममता-" हम्म, रुकना तो था लेकिन कल रात को मैनेजर का फोन आया था। मुझे जाना ही पड़ेगा और कोई समाधान नही है। " कहते हुये ममता ने जो कहानी बड़े भैया को सुनाई थी वही अनुराग के सामने दोहरा दी।

अनुराग एकदम से ममता के जाने की खबर से विचलित हो उठे थे। चेहरे पर कई रंग आते और जाते जा रहे थे। दिमाग में तरह तरह की आशंकाएं जन्म ले रही थी। कुछ पल स्तब्ध रहने के बाद खुद ही पूछ बैठे -" ममता, मुझसे नाराज होकर जा रही हो क्या?"

ममता-" नही तो, भला नाराजगी की क्या बात है। जो बात थी वह बता तो दी। "

ममता जल्द से जल्द बात खत्म करके नीचे जाना चाहती थी। अनुराग से किसी भी तरह का विवाद नही चाहती थी।

अनुराग -" कहीं ऐसा तो नही कि जो हमारी बात हुई तुम उसकी वजह से तो नाराज हो। कहीं जाने के निर्णय की वजह हमारी बातचीत तो नही?"

अनुराग के चेहरे से साफ जाहिर था कि उसका मन शंकित भी था और ममता का यूँ अचानक जाना उसे नही भा रहा था। मन की उथल पुथल चेहरे पर साफ नजर आ रही थी। बदलते भावों के साथ साथ चेहरे की रंगत भी बदलती जा रही थी। इन सभी बातों के मध्य देविका शांत खड़ी थी। अचानक अनुराग का ध्यान देविका पर गया और उसी से पूछने लगा -" देविका, तुम कुछ क्यों नही कह रही हो?"

देविका-" क्या कहूँ मैं, आपको लगता है मैंने कोशिश नही की?"

अनुराग-" नहीं नहीं, मेरा यह मतलब नही था। "

अनुराग ने इतनी जल्दी में कहा कि ममता और देविका की हंसी छूट गयी।

देविका -" सुनिए, जिज्जी नीचे सभी से जाने की इजाजत लेकर आपसे मिलने आयी है। आप भी आराम से इजाजत दे दीजिए। जरूरी काम है नही तो यूँ अनुष्का से मिले बिना क्या जिज्जी जा सकती थी? आप ही सोचिए जरा?"

अनुराग ने कुछ पल सोचा और गर्दन हिला कर हामी भर दी। ममता ने मन ही मन सुख की सांस ली।

न जाने देविका की उपस्थिति का प्रभाव था या कोई और कारण लेकिन शांति से विदाई मिलने पर ममता के मन को तसल्ली तो बहुत मिली। अनुराग से विवाद में नही पड़ना चाहती थी। इतने आराम से मान जाएंगे अनुराग उसे इसकी उम्मीद भी नही थी। अब तो उसको मन ही मन में विश्वास हो चला था कि ईश्वरीय रज़ा भी यही है कि उसके जाने में ही सभी की भलाई है तभी तो जाने के नाम से जितने शोर का अंदेसा था उसे, उतना नही हुआ था। जाने के नाम से एक के बाद एक सभी हाँ में हाँ मिलाते जा रहे थे। वह सोच में गुम थी कि अनुराग की आवाज उसके कानों में आई।

अनुराग-" मुंन्नी, पहुंचने पर इत्तला कर देना। "

ममता-" जी, यकीनन। "

अनुराग -" गाहे बगाहे फोन भी करती रहना।

ममता -" जी अनुराग। "

अनुराग-" मुझे माफ़ कर देना ममता। "

कहते कहते अनुराग ने हाथ जोड़ दिए।

ममता एक पल को सन्न सी रह गयी। आगे बढ़कर अनुराग के जुड़े हाथ खोले और अपने हाथ में पकड़ कर कहने लगी-" अनुराग, मैं हमेशा आपकी मुंन्नी थी, हूँ और रहूँगी। अब जाते वक्त ममता कहकर मुझे पराया न कीजिये। "

अनुराग-" हाँ, तुम हमेशा मेरी मुंन्नी ही रहोगी। "

बेहद भावुक पल थे वह। तीनों की आवाज भारी हो रखी थी और आंखे नम।

ममता-" चलती हूँ अनुराग, फोन करती रहूँगी। जलन महसूस न करना क्योकिं तुमसे ज्यादा देविका से बातें होगीं मेरी। "

अनुराग -" कोई बात नही। मुझे जलन क्यों होने लगी। देविका मुझे सब बता देगी देखना। मुझसे कुछ नही छिपाती। "

अनुराग मुस्कुरा दिए। घड़ी पर नजर डाली तो 9 बजने में बस आधा घण्टा बाकी था।

अनुराग-" मुंन्नी, चलो अब जाओ। पहुंच कर इत्तला देना। मैं नीचे नही आ पाऊँगा। "

ममता-" जानती हूँ, जाते हुए नही देख पाओगे। पुरानी बीमारी है तुम्हारी। "

ममता और देविका हंस दी लेकिन अनुराग ने धीरे से उन दोनों की तरफ पीठ घुमा ली।

ममता ने देविका की तरफ देखा तो उसने इशारे से ही तसल्ली दी कि वह संभाल लेगी । चिंता की कोई बात नही।

ममता ने हामी भरी। अब ममता के चेहरे पर संतुष्टि के भाव थे।

" अच्छा अनुराग, चलती हूँ। " ममता ने कहा तो अनुराग ने बाय करते हुए हाथ हिला दिया।
ज्यादा समय गवाये बिना ममता कमरे से बाहर निकल गयी। पीछे पीछे देविका भी चलने लगी।

ममता नीचे आई तो बच्चे नाश्ता करने में व्यस्त दिखे। मनु ने हाथ पकड़ कर ममता को भी खींच लिया। मनु अनुरोध कर रहा था कि ममता उसी के साथ नाश्ता करे।

जल्द ही नाश्ता खत्म करके उठी तो सामने से दोनो भाई आते नजर आए। बड़े भैया ने सूरज भैया से उसके सूटकेस लाने को कहा और ममता से बोले -" मुंन्नी, जल्दी चलो । तुम्हे छोड़ आता हूँ एयरपोर्ट तक। आओ तब तक गाड़ी निकाल लेता हूँ। "

ममता बारी बारी बच्चों से मिली फिर दोनो भाभियों के गले मिली। काकी से आशीर्वाद लिया और फिर देविका के गले लगी तो उसे छोड़ने का मन नही हुआ।

ममता ही नही सभी का मन बहुत भारी हो चला था। ममता के यूँ अचानक जाने से अनुष्का के आने की खुशी भी फीकी लग रही थी। सभी के चेहरे उतर गए थे आंखे नम थी लेकिन गनीमत थी कि कोई रोने नही लगा था। बड़े भैया गाड़ी निकाल चुके थे और उसे बुला रहे थे। ममता ने सारी शक्ति अर्जित करके खुद को सम्भाला और जल्दी से पलटकर घर से बाहर निकल ली। जल्दी से गाड़ी में बैठी और सभी की तरफ हाथ हिलाया। भारी मन से ममता वहां से विदा हुई।

क्रमशः

***