अदृश्य हमसफ़र - 24 Vinay Panwar द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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अदृश्य हमसफ़र - 24

अदृश्य हमसफ़र…

भाग 24

अनुराग का चेहरा उतर गया। ममता की सभी बातों को हंसी में झटकने वाले अनुराग आज उसका किया मजाक नही सह पा रहे थे। बीमारी की वजह से शायद ह्रदय कुछ जरूरत से ज्यादा सवेंदनशील हो गया था। ममता एक पल में समझ गयी थी कि मजाक उल्टा पड़ चुका है। उसने जल्द से जल्द डिब्बा उठाया और अलमारी बन्द करके अनुराग के सामने आकर खड़ी हो गयी।

बात बदलने के मद्देनजर तुरन्त ही जल्दबाजी में डब्बे को खोलने लगी और अनुराग से कहा-" खोल सकती हूँ न...कोई दिक्कत तो नही। "

अनुराग अब तक ममता की बात और माहौल बदलने की मंशा को समझ चुके थे। खुद को सयंत करते हुए चुटीले अंदाज में फटाक से कह दिया-" जैसे मना करूंगा तो मान ही जाओगी। "
ममता भी कहाँ चुप रहने वालों में से थी नहले पर दहला जड़ दिया-" जब नही दिखाना था तो मंगाया ही क्यों?

मुझे कोई सपना तो आया नही था कि अलमारी में डिब्बा और डिब्बे में कोई सामान होगा। "

कहते कहते डिब्बे को खोल बैठी ममता। डिब्बा नही जैसे भानुमती का पिटारा खुला हो। एक छोटी सी पॉलीथिन में उसके फाडे हुए रुपये रखे थे तो उसकी गुड़िया, कुछ टूटी हुई कांच की चूड़ियां, एक छोटी सी पेंसिल और रबर और भी न जाने कितनी वस्तुएं रखी हुई थी। मन ही मन एक आह निकली। उसे ऐसे लगा जैसे उसके बचपन की एक एक याद को सहेज कर रखा गया है। डिब्बे पर झुकी पलकें उठी तो अनुराग की नजरों से टकरा गई। अनुराग मन ही मन मुस्कुरा रहे थे।

ममता से रहा नही गया और पूछ बैठी-" यह क्या है अनुराग? क्यों सहेज कर रखी हुई हैं यह वस्तुएं। "

अनुराग-" क्या तुम अभी भी नही समझी?"

ममता-" इन सब से मुझे क्या समझना चाहिए?"

अनुराग-" जान बूझकर मुझे बनाना बन्द करो। "

ममता-" मुझे सीधी सपाट बातें कहनी आती हैं, बातें बनाने का काम मेरा नही। "

अनुराग-" हम दो दिन से खुल कर बात कर रहें हैं क्या फिर भी नही समझी?"

ममता-" दो दिन से ज्यादा बातें हो रही हैं क्योकिं मिले भी तो 32 साल बाद हैं। "

अनुराग-" मुंन्नी, अब तुम मुझे जान बूझकर परेशान कर रही हो"

ममता-" बचपन से ही आदत है मेरी, फिर उभर आई। क्या करूँ? तुम्हारे लिए तो कोई नई बात नही। "

अनुराग के चेहरे पर बेचैनी छलक आयी। अपने भावों को शब्द देने में हिचक रहे थे और ममता किसी तरह से भी पकड़ में नही आ रही थी। हिम्मत जुटाकर कुछ कहते उससे पहले ही ममता बोल उठी।

"अनुराग" तुमने बताया नही-" मुझे क्या समझना चाहिए। "

अनुराग-" मुंन्नी तुम जानबूझकर अनजान बन रही हो अब। "

ममता-" मेरे बचपन की यादें सहेज कर रखी हुई हैं तुमने, इसके लिए बहुत बहुत धन्यवाद। बस ...अब खुश।

इनमें से कुछ को तो अपने साथ ले जाऊंगी मुंम्बई। "

ममता ने जान बूझकर यह बात कही।

जानती थी अनुराग तड़प कर कुछ तो कहेंगे और हुआ भी ठीक वैसा जैसा उसने सोचा था।

अनुराग-" क्यों? तुम क्यों लेकर जाओगी। ये सभी मेरी चीजें हैं। (अनुराग की आवाज में तड़प के साथ साथ बाल हठ भी बखूबी छलक रहा था। )"

ममता-" अरे मगर तुम क्या करोगे इन सभी का?

वैसे भी एक बात बताओ, तुमने यह सब समान क्यों सम्भाल कर रखा है?"

ममता घूम फिर कर अनुराग को फिर उसी मुद्दे पर ला घेरती थी और अनुराग लाचारी से उसे देखने लगते थे। अनुराग के दिल और दिमाग दोनो को ही अब तक यकीन हो चुका था कि ममता समझ तो सब कुछ गयी है लेकिन सुनना उसे उनके ही शब्दों में ही है। आंखें बंद कर के दो चार गहरी गहरी सांसे लेकर अनुराग अब कहने के लिए खुद को तैयार कर रहे थे कि फिर से ममता ने उन्हें छेड़ दिया।

ममता-" नही बताओगे तो एक भी समान न लौटाऊंगी। "

कह कर खिलखिला कर हंस दी ममता।

उसे भी अनुराग को तंग करने में मजा आ रहा था।

अनुराग ने हिम्मत जुटाई और बोले-" मुंन्नी, जिस लड़की से मैं प्रेम करता था वह"....कहते कहते नजरें उठाकर ममता की तरफ देखा तो वह बड़ी उत्सुकता से बड़ी बड़ी आंखों को गोल गोल कर के उन्ही की तरफ देख रही थी।

"ह्म्म्म, ..बोलो बोलो...सुन रही हूं। "- ममता ने कहा

अनुराग के शब्द हलक में फंसने लगे थे। मुंह में आई लार को सटकने में बहुत जोर लगाना पड़ा उनको, ...धीने स्वर में बोले, ..."तुम हो। "

ममता ने उन दोनों शब्दों को बखूबी सुना लेकिन न सुनने का नाटक कर दिया और फिर से कहने को कहा।

ममता-" मुझे न सुनाई दिया, क्या बड़बड़ा रहे हो मन ही मन में। फिर से दोहराइये न। " ममता ने अनुराग की तरफ बड़े प्यार से देखा और हल्का सा नाक चढाकर बोली।

अनुराग...., जो अपनी सारी जिस्मानी ताकत को जुटाकर और बहुत मुश्किल से यह दो शब्द कह पाया थे फिर से वहीं आकर खड़े हो गए। उफ्फ यह मुंन्नी भी न, एक बार में सुन नही सकती थी। अचानक फिर से दिमाग में बिजली कौंधी कि ये जान बूझकर तो नही सता रही है जिसके चलते सुनकर भी अनसुना कर रही है। मुंन्नी के चेहरे की तरफ देखा तो वह बड़ी मासूमियत से अपने बचपन की चीजों को देखने मे लगी हुई थी।

"नही नही, इस बार तो कोई शरारत नही कर रही है। " खुद को तस्सली देते हुए अनुराग दोबारा कहने की हिम्मत जुटाने लगे।

उधर ममता कनखियों से सब देखते हुए अनुराग के मन में आती जाती विचारों की लहरों से बखूबी खेलने में जुटी हुई थी। जान बूझकर नजरें डिब्बे में रखे समान पर गड़ा रखी थी जिससे आंखों की चंचलता को अनुराग पकड़ न पाएं। बखूबी कामयाब रही थी अपनी इस शरारत पर। कमरें में व्याप्त मौन में दो जनों की बैचैन सांसों के आवागमन की तारतम्यता एक अजीब सी धुन पैदा कर रही थी। दोनो की आंखों में सवाल और दिमाग में जवाब कदमताल कर रहे थे। हर हाल में एक दूसरे के मुंह से उसका हाले दिल निकलवाने की जुगत में खेलते जा रहे थे।

आखिर में अनुराग ने ही हार मानी।

अनुराग-" मुंन्नी, सुन लो मेरी बात। लडना नही और चीखना नही। सुनकर जो भी प्रतिक्रिया हो उसे शांति से ही जाहिर करना। "

अनुराग की पलकें लज्जा से बोझिल हुई जा रही थी।

एक सांस लेते हुए अनुराग ने कहा-" जिस लड़की को मैंने टूटकर चाहा, जो मेरे वजूद में मुझसे ज्यादा समाहित है, वह और कोई नही मुंन्नी...तुम हो। "

अनुराग को लगा था कि कोई विस्फोट होगा उनके कहने के बाद लेकिन कमरें में तो वही पहले वाली शांति थी।

अनुराग की झुकीं नजरें उठने का नाम नही ले रही थी। मुंन्नी के सामने अपने प्रेम को स्वीकार तो कर लिया किसी तरह लेकिन अब उससे नजरें मिलाने की हिम्मत नही जुटा पा रहे थे।

मन ही मन में एक डर था जो उन्हें खाये जा रहा था कि अब मुंन्नी की प्रतिक्रिया क्या होगी?

क्या मुंन्नी की सहज स्वीकृति इस प्रेम को हासिल होगी?

क्या मुंन्नी की नजरों में उसका वह स्थान कायम रहेगा जो पहले था?

क्या मुंन्नी शोर मचाकर घर भर में सभी को बता देगी?

इतने बरसों के अंतराल के बाद हुए इस विस्फोट को क्या मुंन्नी सहन कर पायेगी?

क्या मुंन्नी उन्हें माफ कर पायेगी?

राम जाने क्या होगा, लेकिन जो होगा देखा जाएगा।

अब ओखली में सिर दे ही दिया है तो मूसलचन्द से क्या डरना।

थोड़ी हल्की और डरी सी आवाज में अनुराग ने फिर कहना शुरू किया-" नही जानता मुंन्नी, कब और कैसे यह सब हुआ। बस इतना जानता हूँ कि जिस दिन पहली बार तुम्हारे घर में कदम रखा और तुम पर पहली नजर पड़ी, तभी से तुम्हारी जो सूरत मन में बसी थी वह आज भी वैसी की वैसी ही है। अपनी जान से बढ़कर चाहा तुम्हें लेकिन तुम्हारे घर में रहता था तो नमक अदायगी का भाव हमेशा मेरे प्रेम पर हावी रहता था। तुम्हारे ब्याह के दिन ही तय किया कि तुम्हारे सामने नही आऊंगा, यही बात मुझमें अपराधबोध भरती चली गयी। अहसास है मुझे इस बात का कि तुम्हें बहुत दुख दिया मैंने। यूँ ऐसे बिना बताए ही नजरों से और जिंदगी से भी दूर चले जाना वह भी बिना किसी कारण। तुमने कैसे खुद को समझाया होगा। आज माफी मांगता हूँ तुमसे। "

कहते कहते झुकी नजरों से ही अनुराग ने हाथ जोड़ दिए। "तुमसे माफी मांगें बिना तो मेरे प्राण भी मेरी देह छोड़ने को तैयार नही मुंन्नी। जिसे जी जान से चाहा उसे ही गहरा घाव दिया मैंने। "

अनुराग इतना कहकर चुप हो गए। अब घबराहट हावी होने लगी थी। ममता की तरफ से कोई प्रतिक्रिया अभी तक नही आई थी। मन ही मन आशंकित थे कि अब क्या होगा।

पहली बार ऐसा हुआ था कि वह हाथ जोड़कर आँखें नीची किये बैठे हैं और ममता चुप है। आखिर मन कड़ा करके उन्होंने ही पूछने की ठानी और हल्के हल्के गर्दन उठानी आरम्भ की।

क्रमशः

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