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अदृश्य हमसफ़र - 22

अदृश्य हमसफ़र …

भाग 22

कमरे में गहन शांति का वास हो गया था। इतनी की सुई भी गिरती तो उसकी भी आवाज सुनाई देती।

दोनो ही अपनी अपनी मानसिक यायावरी में उलझते जा रहे थे। अनुराग अभी भी अपने मन की बातें कहने में स्वयं को असमर्थ महसूस कर रहे थे। जानते थे कि जीवन के बहुत कम दिन बचे हैं जिनमें से रोज एक एक दिन कम होता जा रहा है। भूमिका बनाने का समय नही है उनके पास और उन्ही बचे दिनों में सारी गांठे खोलनी हैं।

अनुराग को इतना तो यकीन था कि ममता कुछ कुछ समझ तो गयी है और पलट कर कुछ हमला भी नही कर रही है या फिर जान बूझकर अनजान बनने का नाटक कर रही है। कुछ तो है जो दरमियाँ है मगर अभी तक अबोला है। अनुराग का दिल अचानक से ममता के स्वभाव में आये परिवर्तन को सामान्य तौर पर स्वीकार करने को भी सहमत नही था।

ममता भी अपनी ही सोच में गुम थी कि ऐसा क्या करे जिससे अनुराग को इस बात का शक भी न हो कि उसे पता है और सीधे मुद्दे की बात पर आ जाये। जिंदगी के तजुर्बों से इतना तो समझ ही गयी थी कि कितना टूटकर चाहा है अनुराग ने उसे। न तो कभी प्रेम जताया और न ही हक़। उसकी कितनी नादानियों को मुस्कुराते हुए सहते चले गये। उसकी और बाबा की नजरें किसी के सामने न झुके इसके लिये खुद की भावनाओं को न सिर्फ दबाया अपितु सिरे से कुचल ही दिया।

तभी कमरे का दरवाजा खटखटाने की आवाज आई तो दोनो ने ही बुरी तरह से चौंक कर दरवाजे की तरफ देखा। देविका हाथों में चाय की ट्रे लेकर खड़ी थी। चेहरे पर वही दिव्य मुस्कान लिए।

ममता तुरन्त कुर्सी से उठ खड़ी हुई और दरवाजे की तरफ बड़ी। देविका के हाथों से ट्रे लेते हुए ममता ने मुस्कुराते हुए प्यार भरी आवाज में कहा-" तुम्हे अपने ही कमरे में आने के लिए क्या किसी की इजाजत की जरूरत है?"

देविका-" हो सकता है न जिज्जी। "

हल्की मगर मधुर सी हंसी हँसते हुए कहने लगी-" दरअसल बात यह है कि अब आदत बन गयी है बरसों से दरवाजा खटखटा कर अंदर आने की। पहले जब यह किताबों में उलझे रहते थे तो मुझे ही क्या, किसी को भी सीधे अंदर आने की इजाजत नही थी। "

ममता-" अरे गजब, अपने कमरे में आने के लिए भी इजाजत चाहिए होती है क्या? हमने तो कभी नही ली। "

अनुराग-" तुम्हें तो कभी भी, कंही के लिए भी और किसी से भी इजाजत लेने की जरूरत ही नही है। किस की शामत आई है झांसी की रानी। "

ममता ने तुरन्त आंखे तरेर कर अनुराग की तरफ देखा और कहा-" आपको नही लगता है कि अब जबकि मैं गुस्सा नही कर रही हूँ तो आप कुछ ज्यादा ही खिंचाई करने लगे हैं मेरी। नही तो कुछ कहने की हिम्मत होती थी क्या आपकी?

अनुराग-" अब तीर कमान से निकल चुका है मुंन्नी। अब तुम चाहकर भी मुझ पर गुस्सा नही कर पाओगी। "

अनुराग ने अपनी बात में हंसी का तड़का लगाते हुए कहा।

ममता-" देखो न देविका, अब ये तो अन्याय हुआ न मेरे साथ कि कुछ कह नही रही हूँ तो मुझे छेड़ा जा रहा है। "

देविका ने तुरन्त पलटकर जवाब दिया-" आप दोनो के बीच में कुछ कहकर मुझे अपनी फजीहत नही करवानी। एक मिनट में अपना झगड़ा भूलकर मेरी वाट लगा देंगे। आप दोनो की माया, आप दोनो ही जाने। "

अनुराग-"सही कहती हो देविका, ये तो बचपन से ही मुंन्नी की आदत रही है कि दिन भर मेरी क्लास लगाकर रखना लेकिन अगर भूले से भी किसी ने मुझसे कुछ कह दिया तो उसकी खैर नही। "

इन्ही हल्की फुल्की बातों के दौरान तीनो चाय की चुस्कियां लेते जा रहे थे। चाय खत्म हुई तो देविका बर्तन समेट कर जाने के लिए खड़ी हो गयी।

ममता ने उससे कुछ देर और बैठने की मंशा जाहिर की जिसे देविका ने यह कहकर मना किया कि एक तो उसे रसोई के काम में भाभी का हाथ बटाना है दूसरे आप दोनो इतने सालों बाद मिलें हैं तो अपनी बातें कीजिये तब तक मैँ काम खत्म करके आती हूँ।

देविका के जाते ही कमरे में एक बार फिर से चुप्पी का साम्राज्य फैल गया। ये शांति अक्सर असहनीय होती है लेकिन आज खुशगवार सी थी। भले ही दो बचपन के साथियों में कोई वार्तालाप नही हो रहा था लेकिन उनका मौन भी बातें कर रहा था। कुछ पल शांत रहने के बाद इस बार अनुराग ने ही चुप्पी तोड़ते हुए ममता पर प्रश्न उछाल दिया-" मुंन्नी, ..क्या तुमने मुझे कभी याद नही किया?"

अनुराग की तरफ से आये इस सवाल की ममता को बिल्कुल भी उम्मीद नही थी। एक पल को तो दिमाग में सन्नाटा से छा गया लेकिन फिर तुरन्त ही विचारों की लहरों में उथल पुथल अचानक से तेज हो गयी। ऐसा लगा जैसे शांत समुन्दर में अचानक से ज्वारभाटा उमड़ आया। लहरों के थपेड़ों से बचना चाहती थी लेकिन हर कोशिश नाकामयाब हो रही थी।

नजरें उठाकर अनुराग की तरफ देखा तो उसकी नम आंखों में उम्मीद छलकती हुई नजर आई। ममता अनुराग की नजरों की उम्मीदों को सह नही पायी और नजरें झुका ली। कभी आदत ही नही रही उसे ऐसे नजर मिलाकर बात करने की। अनुराग की गर्दन तो हमेशा उसके सामने झुकी रहती थी। अब जिस तरह से बातों का दौर चल रहा है और अनुराग अपनी झिझक को छोड़कर बेबाकी से सिलसिले को बढ़ाये जा रहे थे, वह आशंकित और अचंभित थी। स्वयम से विश्वास हिलता जा रहा था। जब अनुराग अपने मन की बातें कहेंगे तो कैसे खुद को संभाल पाएगी वह भी ऐसी स्थिति में जबकि उसे देविका से पता चल चुका है।

उसे खामोश देखकर अनुराग ने बेचैनी से पहलू बदला और फिर से पूछा-" क्या हुआ मुंन्नी? जवाब क्यों नही दे रही हो?"

ममता अनिश्चय की स्थिति से बाहर निकलने में खुद को असमर्थ पा रही थी। क्या जवाब दूँ मैं अनुराग को।

असहाय सी स्थिति से गुजरते हुए मन ही मन ममता तय कर रही थी कि क्या मुझे कहना चाहिए कि.....हाँ बहुत याद किया, अपितु कहना चाहिए हर पल याद किया । ऐसा कोई दिन नही जिस दिन तुम याद नही आये लेकिन कल तक इस बात से अनजान थी कि यही प्यार है। मैँ तो मारे गुस्से और नाराजगी के चलते याद करती थी। अब जब तुम्हारे मन की बात जानती हूँ तो कैसे कहूँ?

शब्दगंगा दिल की गंगोत्री से निकल कर जुबान पर अटक रही थी।

क्रमशः

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