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जिगोलो


रात जैसे जैसे आगे चलकर वक्त को अपने पहलू से बांधती है वैसे ही और भी काली होती जाती है रात की सबसे बडा हुनर यही है की वक्त को बदलने वाली रेंगती सुई पर घिसकर और काला होना ।

काली रातों में जगमगाहट सड़कों की खूबसूरती बड़ा रही थी

कहीं कहीं बड़ी लैम्प पोस्ट पर नीचे तक लटकने वाले खूबसूरत से बल्ब लटक रहे थे और पेड़ों के ऊपर जमाने भर की लाईटे पेड़ों को रोशन कर रही थी। कुछ सड़कें इस तरह की अक्सर हर शहर में मिलती है जहां हर तरह की रंगीन रोशनी बिछी होती है बड़ी ही रौनकें होती है न सड़कों पर और बिछे बाजारों में , यहां की रातों की उम्र कभी नहीं ढलती।


सजी हुई सड़कों पर सजे हुए पिंजर ,जो सांसो से भरे थे पर सड़कों पर बिखरे हुए , बिल्कुल ऐसे जैसे आपकी जरूरतो की हिसाब की कोई दुकान फुटपाथ पर बिछी होती है । सबके अपने ही दाम थे और सबके अपने ही वज़हात। मैं भी इस रंगीन दुनियां का एक हिस्सा हूं ,बस सब की तरह अपनी अलग कहानी के साथ।


इन जगमगाती सड़कों पर मेरे भी कुछ सपनों ने जामा पहनते और उतारते हैं मेरे पहनने और उड़ने के बिल्कुल विपरीत । इन सपनों ने मुझे इस शातिर और बिकाऊ दिमाग के बाजार का एक हिस्सा बनने पर मजबूर किया था


इस बाजार की खूबसूरती इनके ग्राहकों से ही है जो कि खूबसूरत औरतें है यहां बाजार हर तरह की औरतों का स्वागत करता है अक्सर ये अपने छोटे छोटे सपनो की पोटली कहीं घर के कोने में रखकर भूल जाती है तब उन स्थिती में प्यास लगने पर खुलकर प्यास की बात न कर पाना मजबूरी नहीं, समझौते की कई शर्तो में एक शर्त होती होगी। जजमेंटल से बचने के लिए , औरतें अपना कलेजा यहां हाथ में लेकर आती होगीं।


अरमान पूरे करने के लिए जहां ये समाज औरतों को नाप तौल कर आजादी किराये पर देता है वहीं ये बाजार उन्हें मन मुताबिक अपने खेल के खिलाड़ी को चुनने और उसकी बोली लगाकर इस पुरष प्रधान समाज द्वारा थोपी गई प्रथा पर जरोदार तमाचा मारने का मौका देता है


बड़ी गाड़ीयों में ये महिलाएं अपने अंदर के जुनून को हाथों में थामकर इस बाजार में कदम रखती है इनकी ख्वाहिश कहीं ठहरने की नहीं बस सांप की तरह किसी ओर के मन पर रेंग कर निकलने की होती है भूख औरतों को भी अजगर सा बना देती है जो कुछ भी निगलने को तैयार रहती है


मैं इस चाह में एक पोल के नीचे खड़ा हूं की कोई मुझे अपने साथ उन अंधेरों में ले जाए जहां मुझे किसी की शक्ल आभास भी न हो।


मैं तेज़ ऱोशनी में घबराता हूं हर वक्त अंधेरों में जाने की तलब होती है ये अंधेरे ही मेरे सपनों को रोशनी दे सकते हैं


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मैं दो बहनों का भाई हूॅ सबके सपनों को आसमान पर बिठाने की जिम्मेदारी मेरी है। मां को मुझसे प्यार नहीं , वो अपशकुनी मानती है उनका मानना है घर में गरीबी और सब बुरे हालातों की वजह, मैं हूॅ


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दो साल पहले


उस रात फोन पर -


"मां मुझे कुछ पैसे चाहिए , मुझे आगे एम बी ए करना है"


मेरे कान मां की आवाज़ सुनने के तरस रहे थे और सोच रहा था शायद आज मेरी खैरियत पूछ ले।


मां-"तेरी जिम्मेदारी हमने नहीं ली ,पैदा हो कर तूने भी कोई तीर नहीं मार दिए , हमारे लिए।"


कुछ सपनों की कीमत सिर्फ पैसे ही होते हैं ...


खुद को हर रोज थोड़ा थोड़ा आग में जलाता हूं और फफोले को अपने सिने के एक कोने में ही उठने का वादा लिया है


सपने इ- एम -आई पर भी नहीं मिलते ,इन्हे रोज की दिहाड़ी चुकानी होती है मैं अपनी खुशी से आग में आकर खड़ा रहता हूॅ


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हर रात किसी संभ्रांत परिवार की महिला को अपने मां की मुस्कराहट की कीमत चुकाता हूॅ कीमत अदायगी के वक्त अक्सर महसूस किया औरतें अक्सर अपने खोए हुए एहसासो से उबर नहीं पाती । वो हर वक्त शायद अपने अतित के कंकाल को अपनी पीठ पर ढोती रहती है


मैं जहां मां को खुश रखने के लिए एक सजा से गुजरता हूॅ तो वहीं इस समाज के बनाए रीत रिवाज से जली हुई औरते जो बड़े बड़े छालो को अपने जिस्म के कोने कोनो में ले कर घूमती है उनके उस दर्द की चीखों को , ख्वाहिशों को ,उनकी मुरादों को सब एक साथ कर अपने सारे बदले एक ही काली रातों में लेती है और अपने असली चेहरे को उजागर करती है उन सारे बदलो का ,उन लम्हों का एकमात्र मैं गवाह होता हूॅ


***


वो रात ,मुझे आज भी याद है जब वो चिल्ला रही थी-"तुमने मुझे हर रात उस लड़की के लिए बहुत मारा है मुझे रोज उसका नाम लेकर मांस को नोचा, आज मैं बदला लूंगी ,उस में ऐसा क्या है ? तुम उसके लिए दीवाने क्यो हो ? जो तुम्हे जानवर बना देता और मेरी मर्जी की बिना हर रात , मेरे बदन पर सांप रेंगने के लिए छोड़ते हो, सिलवटों वाली चमड़ी ओढ़ाकर उम्मिद करते हो कि मैं हर वक्त मुस्कराऊं तब मैं सिर्फ चीखती हूं , मेरा अक्स भी तुम से नफ़रत करता है । "


फिर मुझे मार मार कर रोने लगती है


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मैंने की औरत के सुकून के लिए कभी स्ट्रिपर बन कर उन्हें खुश करता हूं कभी उनके बन्द कमरे मैं सिर्फ उनके इशारों पर मदारी के बन्दर की तरह नाचता रहता हूॅ वो मुझे देखकर खुशी से ताली बजाती है या अपने ख्यालों का राजकुमार बनकर मुझे मुक्कमल जी जाती है


ये सारे ख्याल बस रात के चंद घंटों तक ही ठहरते हैं सूरज के रात को निगलते ही उनकी सोच ,उनका दिल सब बदल जाता है


मुझे हीन भावना से भरी नजरों से देखने लगती है गन्दगी समझने लगती है फिर ,उस जगह फेंक देती है जहां से बडे प्यार से उठाया था ।


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मैं जब पहली बार इस दुनियां में अपने सपने की चाबी खोजने आया था तब बहुत ही डरा सा ,सहमा था पता नहीं था कि सपने भी डंक मारते है मेरे परिवार की और मेरी आर्थिक सहायता की जरूरत थी केवल मेरी एक नौकरी खुशी का हरा रंग नहीं खरीद सकती।

पेशे से एक इंजिनियर और कई जिम्मेदारियों के बीच झूलता हूं

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एक रात मुझे किमिया मिली ,इन्हीं उदास और रंगीन सड़कों पर ,अपनी गाड़ी में बिठाकर किसी लांग ड्राइव पर जाने के लिए कह रही थी उसने इशारे से मुझे अपनी गाड़ी में बैठने को कहा और मैं उसके साथ चल दिया।

खामोशी थी गाड़ी में भी और आस पास भी,गाड़ी की आवाज न के बराबर थी पर खामोशी को बार बार भंग करने का काम कर रही थी उसने ख़ामोशी काटते हुए पूछा

"कब से हो ,इस काम में"

मैंने कहा 'दो साल से"


थोड़ी देर फिर से खामोशी बनी रही ,उसने फिर कहा- " आवाज तो बहुत सैक्सी है तुम्हारी"

और हम दोनों साथ हंसने लगे ।


फिर उसने पूछा ,क्यो हो यहां?


मैं एक गहरी ठंडी सांस लेता हूं फिर मैंने कहा-


"मेरे पिता बाकी आम पिता से नहीं है वो आफिस नहीं जाते और न ही कोई बिज़नेस है उनका ,वो वक्त के साथ दौड लगाने में सक्षम नहीं । ‌थोडे डरे रहते हैं कोई भी जिम्मेदारी नहीं ली जाती , उनसे।


कई सालो से घर में बेकार बैठे कर बस मां पर बरसते रहते थे जैसे कोई बरसों से तेजाब भर कर बादल गरज कर आग की बारिश कर रहा हो या फिर कोई सलफर का कोई झरना जो दिखने से ही समझ आ जाए कि उबलते पानी को छूआ तो जल जाएंगे। मां और भाई बहन सब सल्फर के झरने से जले हुए हैं इसलिए इनकी जुबान तेजाब सी दूसरों को जलाती रहती है ।"


किमिया - "हम्म"


वह अपना दर्द को बयां कर सके इसलिए मेरे दर्द को अपना साहरा बना कर कहने लगी - "मेरे मां एक रईस घर में झाड़ू , बरतन करती थी उस रईस घर का लड़का दिमाग से कमज़ोर था

लड़की मिलना आसान नहीं था और हम पर उनका ढेर सारा एहसान, इसलिए मैं आसान थी उस से मेरी शादी कर दी गई और बदले में मेरी मां की गरीबी दूर कर दी गई।


इतना कहकर वो जोर से हंसने लगी।


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पुरष और औरतों का भेद वाकई खत्म हो गया है? ऐसे सवालों का जवाब अमूमन लोगों नहीं देते । ये बहस बाजी कि काफी बडा मुद्दा है


औरतों को पाने के लिए पुरुष ‌की जो खलबली सुनी और देखी होती है वैसी ही खलबली हमारी बोली के लिए हैं ‌ यहां औरतें बोली लगाती है हमारे खुश करने के हुनर से मुखातिब होकर, इसलिए हम अलग अलग साईंन बोर्ड लेकर खड़े होते हैं जो हमको बेशकीमती बनाता है


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अचानक एक बड़ी गाड़ी मेरे पास आकर रुकी, मुझे उसने अंदर आने के कहा ,मैं उस कार में बैठ गया ।


उसमें कोई 30 साल की सांवला रंग की औरत थी , बड़े घर की मालूम पड़ रह था


प्यार में मिले धोखे ने उसे पागल कर दिया था


वो अपना अपमान भूलना चाहती है जैसे जहर जहर को काटता है वो भी बस खुद को मुझसे मिलकर ,अपनी रूह की उधड़न पर तुरपाई लगवाना चाहती थी।


वो मुझे मुम्बई के उन सड़कों से उठाकर एक हाई क्लास की सोसाइटी में ले गई। जहां बड़े बड़े से फ्लैट थे मुझे उनमें से ही किसी फ्लेट में ले ‌गई। जिसकी छत पर बड़ा सा इटेलियन झूमर टंगा था जो पूरा शीशे का था और जिससे रोशनी छनकर पूरे ही कमरे को रोशन कर रही थी


वहीं कहीं कोने में बार बना था कई तरह की महंगी रम से सजा हुआ।बार टेबल के ऊपर गिलास उल्टे करके रखें हुए थे


इतनी मंहगी वाईन के बीच बकरडी गोल्ड रम ,वाइन गिलास में डालकर मेरे पास ले आई।


काफी देर तक पीते रहे। गला तर हो रहा था और मन भरता जा रहा था कई ख्यालों से


फिर ‌रात के गुजरते हुए कुछ पहरो को बिस्तर पर बिछा दिया , जहां आडी टेढ़ी वक्त की बहती धारा बना गई ,उसने उस वक्त में न जाने कितने वादे कर लिए न जाने कितने जन्मों में मुझे ही ढूंढने की कसम खा ली गईं।


जितना प्यार और मिठास उन लम्हों में था उतना ही जहर आने‌ वाले लम्हे पकड़कर खड़े थे अपने आगे ‌आने के इन्तजार में ।


बाद में ,न जाने कब मैं माल हो गया था । नफरत से घूरती रही और मुझे बेइज्जत करती जैसे मैंने उनके ‌साथ कोई जबरदस्ती की हो।


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मेरे कोई ऐसा कोई दोस्त नहीं था जिनसे मेरी दोस्ती होती ।मेरा अकेलापन मुझे अन्दर ही अन्दर तोड़ता था मैं इस बड़े शहर में अकेला था मेरे घर वाले सिर्फ अपनी इच्छाओं तक सीमीत थे।


मैं अपने मन को कही भी खंगाल नहीं सकता था कोई नहीं था ऐसा , जहां मैं रो सकता और कोई

मेरे मन पर ठंडे पानी की पट्टी रखता।


एक बार ,मै शहर के किसी बड़े से बार में था जहां लोग मुझे जानते नहीं थे मैं अकेला ही बार में बैठकर हर टकि्ला शाट के बाद नमक और नींबू जुबां को हवाले कर देता । जिससे कड़वी जिन्दगी का घूंट भी आसानी से नीचे उतरे, जो गले में कहीं अटका सा रहता है


मेरे पास बैठा शख्स , बहुत देर से पैनी निगाहों का


लंगर मुझ पर डाल कर अपनी घूमती फिरती नज़रों को एक ठहराव दे दिया था मुझे और ध्यान से देख रहा था


थोड़ी देर में मेरे पास मेरे से अगली सीट पर बैठ गया। मुझे अपना परिचय देते हुए उसने बताया


"मैं एक बिजनेस मैन हूं और अमूमन वक्त देश विदेश की यात्रा पर रहता हूं"


फिर इस तरह ओर भी बातें होती रही । अचानक से उनके सवाल ने मुझे सकपका कर दिया , उन्होंने पछा-


"आप क्या काम करते है? "


न जाने क्यों मै खुद को इंजिनियर नहीं बता पाया।


उनसे मैंने कहा -" मैं जिगोलो हूं। "


ये सुनकर उन्हें जैसे कोई फर्क नहीं पड़ा।


एक कोनटेक्ट नम्बर देकर कहा कि इस नम्बर पर कांटेक्ट करें और वो‌ वहां से चला गए।


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मुझे याद है मैं बचपन‌ मे खट्टी -मिठ्ठी गोली‌ के पीछे दीवाना था ऐसी गोली जिसमें दोनों जायके एक साथ होते हैं कभी जुबान चट्ट सी आवाज करती खटास की वजह से तो कभी बस उसे मुंह में घुलने के लिए बिना आवाज के छोड़ देते मम्म्म् करके। अब ज़िन्दगी भी एक खट्टी मीठी गोली की तरह जुबान पर ठहर गई है हम खामोश होकर उसे मुंह में घुलने दे भी तो भी वो मिठास नहीं मिलती।


उस रात एक महिला का फोन आया , जिन्हें मेरी सर्विस चाहिए थी शायद मेरा नम्बर मेरी आर्गनाइजेशन से मिला था आवाज से काफी उम्रदराज लग रही थी और मुझे से जल्द से जल्द मिलना चाहती थी


रात के 8 बजे का वक्त तय हुआ।


एक पता लिखवा दिया गया और बातचीत खत्म कर फोन को आराम करने के लिए रख दिया गया ।


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रात 8बजे


उस पते पर पहुंचा जहां मिलना को कहा गया था घर था किसी का। पुरानी सोसाइटी पुरानी बिल्डिंग ,सब मिलाकर लग रहा था शायद कई सालों से यहां रह रही हैं


मैं ११ माले पर एक फ्लेट के दरवाज़े

के आगे खड़ा था बैल २-३ बार बजाने पर


दरवाजा नहीं खुला । कुछ समय रुककर मैंने फिर से बैल बजाई तब एक तकरीबन 50 साल की औरत ने दरवाजा खोला।


दिखने में वो औरत बिल्कुल सीधी-सादी सी दिख रही थी पर चेहरे की रंगत उनकी इस उम्र में भी खूबसूरती बढा रही थी उन्होंने एक नार्मल काटन का गाउन पहना हुआ था जो जमीन से थोड़ा दो अंगुलियों जितना ऊपर था


उनके बाल अभी अभी बने हुए लग रहे थे और घर रजनीगंधा से महक रहा था


उन्होंने मुझे अपने हाल में लाकर डाइनिंग टेबल पर बैठने को कहा, फिर मेरे लिए प्लेट लगाना शुरू कर दिया जैसे पता पड़ गया हो उन्हें कि मुझे भी भूख लगी थीहै।


फिर उन्होंने मुझे से बिना पूछे मेरी प्लेट लगा दी ,जैसे‌ उन्हें पता हो , मुझे भूख लग आई है


हम दोनों ने साथ में खाना खाते खाते कुछ बातें की। उन्होंने पूछा- "तुम्हारा नाम क्या है?"


" जिगोलो राज" - कहकर चुप हो गया।


"ये कोई नाम है जिगोलो"


......'खैर क्या करते , इसके अलावा"


मैंने कहा-" साफ्टवेयर इंजिनियर हूं"


..."उनकी कमाई बहुत होती है"


मैंने कहा- " अगर डिमांड ज्यादा हो तो कम पड़ती है"


फिर खाना के बाद वो मुझे सामने वाले सोफा पर बिठाकर खुद एक कुर्सी खिंचकर बैठ गई ,जो साफ के साथ बैठने के लिए लगाई गई थी साथ बैठ गई थी उन्हें किसी भी बात जली नहीं थी


उन्होंने बताया " मेरा बेटा दुनियां में ‌नही रहा,एक ऐक्सिडेंट में गुजर गया। पति‌ बहुत पहले ही नई दुनिया बसाने के लिए मुझे छोड गए।"


मैंने पूछा -"तो उन्होंने दूसरी शादी कर ली"


वो बताने लगी -


"नहीं नहीं ,उन्हें ये दुनियां रास नहीं आ रही थी इसलिए ‌किसी आश्रम की शरण में चले गए। "


"ज़िन्दगी ने मुझे बिल्कुल अकेला कर दिया है ऐसा कोई नहीं जो मेरे लिए वक्त निकालें"


आगे वो बोलती जा रही थी जैसे उनके अकेलेपन ने उन्हें बहुत बोलना सीखा दिया हो|


"पहले मेरी नौकरी चलते वक्त को साल दर साल झूले में बिठाकर झूलाती रही ।तो एहसास नहीं होता था कि वक्त को कोई भी तेज धार नहीं काट सकता।जब कोई उसे अपने मुताबिक काटने की ज़िद पर अडे तो सुईयां भी अपनी चाल धीमी कर देती है।


अब मैंने वोलंटियर रिटायरमेंट ले लिया है तो अकेले रहकर दिवालों से साथ बात नहीं होती।"


रात भर मुझसे वो ऐसे ही बातें करती रही । मेरी बातें भी सुनती और बार बार कहती -"बेटा यहां कभी कभी आते रहा करो"।


उनके साथ बातें करते करते कब सुबह हो गई ,पता ही नहीं चला। मेरे जाने का वक्त आ गया था मैं जैसा आया था वैसा ही ,बिना किसी शिकवा के और सुकून वाली रात जह़न में लेकर मै वहां से निकलने लगा ,तब उन्होंने फिर कहा -"आते जाते रहा करो बेटा।"


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घड़ियां अपनी रफ़्तार से चलती रही , दिन रात गुजरते रहे ,कुछ दिनों बाद ज़िन्दगी फिर वैसी की वैसी ,मैं फिर से उन्हीं सड़कों पर .... ..फिर से औरतें मुझे ले जाते वक्त अक्सर अपना घर छोड़ कर मुझसे शादी तक बात करती रहती और फिर से काम निकल जाने पर मुड़कर भी नहीं देखती थी


*******"


मैं अकेला ‌था उस रात को , आफिस से आकर निढाल हो गया था कहीं भी जाने का मन नहीं था सिर्फ खुद के साथ रहना चाहता था लेकिन पैसो की जरूरत आदमी को कमोजर कर देता है तभी वो नम्बर याद आया,जो मुझे बार में मिला था उस नम्बर पर काॅल किया।


दूसरी तरफ से आवाज आई- "हैलो,दिस जी मिताली"


मैंने फोन पर कहा - "आई एम राज"


आपसे कुछ बात करनी है


उसने पूछा -" रिगार्डिंग वोट"


मैंने उन्हें अपनी पूरी जानकारी देकर बताया कि आपका नम्बर किसी शख्स ने दिया। मैंने उस शख्स की पूरी जानकारी दी


वो ये सुनकर थोड़ी देर चुप हुई। फिरआगे मिलने का प्रोग्राम तय हुआ।


वो मुझे कहा लेने आएगी।ये भी तय हो गया।


हम एक बार मिलकर, फिर कई बार मिले । उसने अपने गलर्स कोन्टेक्टस में मेरे नबंर आगे बढ़ाती गई।

फिर एक दिन मिताली ने बताया नंबर देने वाला शख्स मेरा पति है इस बात ने मुझे कोई धक्का नहीं दिया।

मैं काफी पहले समझ चुका था दुनिया में अक्सर रिश्ते मुट्ठी भर के जरूरत के है


मेरा काम बढ़ चला था काफी कमाई होने लगी , जिससे मैंने अपनी पढ़ाई पूरी कर ली।


********


७ साल बाद एक एम एन सी में


सर, आगे की प्लानिंग क्या करनी है ,क्या हमारा एप , मोबाईल के मैसेज बॉक्स में भी मैसेज देगा एप के साथ साथ।


बिल्कुल मैसेज बॉक्स में अपडेट्स आते रहेंगे ,पूरे एप के


मीटींग रूम में डिस्कशन लम्बा चल रहा है





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